सोमवार, 13 जनवरी 2020

श्री रेणुका माहात्म्य सम्पूर्ण हिन्दी

         


  श्री रेणुका माहात्म्य  पार्ट 01
प्रिय भक्तों भगवान विष्णु के अंश अवतारी भगवान परशुराम जी की जन्म कथा बड़ी अलौकिक आनन्द देने वाली है ।
सृष्टि के पालनकर्ता नारायण ने जिस वक्त ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से जन्म लिया उस दौरान परशुराम जी के माता पिता के जानापाव आश्रम में आग लगी हुई थी  ।
आग की लपटों से सारा आश्रम जल रहा था । गौ माताएं भी आग से झुलस रही थी । जमदग्नि कुरुकुल के विद्यार्थी अपनी जान बचाकर देवी रेणुका मां के पास आए माता कों सूचना दी । ऋषि जमदग्नि भी वहां पहुंचे और देवी रेणुका प्रसव पीड़ा भोग रही  थी तब ऋषि जमदग्नि ने देवी रेणुका माता को अपने हाथो से उठाकर आग से बचाते हुए आश्रम से बाहर निकाला । जमदग्नि ऋषि के शिष्य पास के गांव में धाई माँ कों बुलाने गये हुऐ थें लेकिन धाई आग की लपटों कों देखकर वापस चली गई ।
दुष्ट सहस्त्रअर्जुन सैनिक तमाशा देख रहें थें गुरुकुल के जलने का , गुरुकुल के राख बनने और इससे बाद वे सभी राजमहल चले गए ।
भगवान विष्णु नारायण जी के अंश अवतार का समय आ चुका था , सारे देवी देवता प्रभु के अंश अवतार की स्वागत तैयारी में लगे हुऐ थें ।
तभी श्री विष्णु हरी मां लक्ष्मी जी से कहते है - देवी महालक्ष्मी  मेरा ये अवतार अंश अवतार होगा । अपने इस अवतार ने मैं धरती पर भी रहूँगा और विष्णु लोक में भी रहूँगा ।
अब मैं जा रहा हूँ महादेवी , जलते हुए वन में जहाँ ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी प्रसव पीड़ा भोग रही है ।
मैं उनके गर्भ से परशुराम रूप में जन्म लूंगा , मैं एक आचार्य के घर जा रहा हूँ , एक गुरू के घर जा रहा हूँ , परन्तु शास्त्रों की रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाऊंगा । मैं इस अवतार में परशु उठाऊंगा और परशुराम कहलाउंगा
प्रभु की इस लीला में सहयोग करने के लिए माँ लक्ष्मी जी स्वयं धाई बनकर माता रेणुका और जमदग्नि की कुटिया में आयी । धाई रूपी माता लक्ष्मी जी ने जमदग्नि ऋषि कों उस कक्ष से बाहर जाने का अनुरोध किया ।
तब भगवान विष्णु जी का अंश देवी रेणुका के गर्भ में समाहित हुआ और प्रभु ने अपना अंश अवतार धारण किया ।
प्रभू के प्रथम दर्शन माता लक्ष्मी जी ने किये , बेहोश अवस्था में रेणुका देवी को माता लक्ष्मी जी ने कहाँ की हें रेणुका देवी आपको कदापि ज्ञात नहि हो पाएगा की आपके पास कौन आयी थी और क्या देकर चली गई ।
देवी रेणुका मैं आपको अपनी धरोहर दे कर जा रही हु ।
धाई ने आगे बढ़कर जमदग्नि ऋषि कों कहाँ की धन्य हो आप और रेणुका देवी आपके वंश में स्वयं नारायण ने जन्म लिया । जब जमदग्नि ने अपने लाल के दर्शन किये तो एक दुसरे कों बधाई दी ।

रेणुका देवी ने अपने पति जमदग्नि ऋषि से प्रार्थना की और कहाँ की स्वामी इसी समय इस बालक का नामकरण कर दीजिये ।
माता रेणुका की बात सुनकर जमदग्नि ऋषि बोले  - हे  देवी ये बालक भृगुवंशी राम कहलाएगा । ये उन सभी का विरोध करेगा जो आश्रमों कों मिटा देना चाहते है ।
देवी रेणुका मुसकुरा कर कहने लगी - मेरा पुत्र राम , मेरा राम ।

समय देख रहा था की  देवी रेणुका और जमदग्नि ऋषि की कुटिया में ऐसे शिशु ने जन्म लिया जिसकी गूंज अनंतकाल तक सुनाई देते रहेगी ।
सहस्त्रबाहु अर्जुन ने ऋषि जमदग्नि के एक आश्रम नहि जलाया अपितु उन्होने जहाँ जहाँ भी आश्रम बनाए , वहां वहां आश्रम जलाए । ये सिलसिला चलता रहा और नन्हा राम माता रेणुका की गोद में सिमटा यह आतंक देखता रहा । सहस्त्रबाहु अर्जुन आश्रम जलाते जलाते तक गया लेकिन ऋषि जमदग्नि अपने आश्रम और गुरुकुल बनाते नहि थके ।

एक बार फिर सहस्त्रअर्जुन जमदग्नि ri
माता रेणुका देवी ऋषि जमदग्नि जी से कहती है स्वामी जब आप सहस्त्रबाहु से बात कर रहें थें उस दौरान शिशु राम की आंखो में भयंकर क्रोध था जो देखने योग्य था ।

देवी लक्ष्मी कहती है - प्रभू सहस्त्रबाहु कों ज्ञात नहि की उसकी शक्ति और अभिमान कों चूर करने वाला आ गया है । ऋषि जमदग्नि की गोद में शिशु की आँख से निकलती चिंगारी कों देखते हि मैं जान गई की अब सहस्त्रबाहु के संसार में आग लगने वाली है ।

विष्णु जी कहते है - क्या करू देवी मैं विवश हु सृष्टि के नियम कों तोड़ नहि सकता । जो मेरे माता -पिता कों कष्ट दे रहा है उनके शीश काट धुल में मिला दु ।
ऋषि जमदग्नि रात्री में शिक्षा अध्ययन दे रहें ताकि दिन की पूर्ति हो । शिक्षार्थियों का भविष्य खतरे में है , आचार्य भयभीत है ये सब देखकर भी मैं कुछ नहि कर सकता ।

एक बार माता रेणुका देवी देखा की हो सो रही है तभी अचानक राम कों अपने पास न देखकर चिंतित हो उठी और शिशु राम की तलाश करने लगी और जो देखा उसे देखकर होश उड़ गए जिस बालक कों शस्त्र बोलते नहि आता वह बालक शस्त्र बनाने का प्रयास कर रहा है ।
माता रेणुका ने राम से पूछा की क्या कर रहें पुत्र तो राम ने कहाँ राजा कों मारने के लिए शस्त्र बना रहा हु ।

माता रेणुका मन में हि कहती है देख पापी सहस्त्रबाहु तेरे कारण क्या हो रहा है तूने एक बालक से उसका बचपन छिना है , इस पाप के ईश्वर कभी क्षमा नहि करेगा ।
अक्सर रेणुका नन्दन राम माता के सोते हि रात्री कों उठकर आश्रम के खण्डरो की ओर जाकर शस्त्र चलाने का प्रयास करते रहते थें ।

छोटी सी उम्र होने के बावजूद रेणुकानन्दन राम अपने परिवार कों संकट से उबारने के लिए शस्त्र चलाना सिखने का प्रयास करते थे । पिता जमदग्नि जी से शास्त्र शिक्षा लेनें के बाद जब राम ने शस्त्र शिक्षा मांगी तो पिता ने मना कर दिया । पिता के अनुसार शस्त्र विद्या राम के लिए ब्राम्हण संस्कारो के विरूद्ध है । कहते है रेणुका पुत्र राम कई दिनो तक बाल्य अवस्था में घर से दूर जंगल में रहें । वृक्ष के पत्तो कों खाकर जंगल में रहकर ,  सहस्त्रअर्जुन के सैनिको से मुकाबला किया । माता रेणुका देवी बेटे की अवस्था से परिचित थी , एक ओर सहस्त्रअर्जुन राजा का आतंक मचा हुआ था दूसरी ओर अपने लाल की चिता थी , जो अकेला जंगल में इन भेड़ियों से मुकाबला कर रहा है , दौड़ रहा है । जमादारा भूमि के जमदग्नि आश्रम में माता रेणुका देवी आस लगाए बैठी रहती थी की कब आयेंगा मेरा राम । देवी रेणुका कों चिंता सताते रहती थी की मेरा बेटा राम कहाँ होगा , किस अवस्था में होगा , क्या भोजन करता होगा । माता रेणुका देवी ने नयन तरसते रहते थे पुत्र राम के दर्शन के लिए ।
देवी रेणुका कों उम्मीद थी की मेरा लाल लौट कर आएगा , आते हि उसे सीने लगाऊँगी , अपनी करुणा की छांव में सुलाऊगी ।  रेणुकानन्दन राम कों ये दुःख था की वह रेणुका माता का ऋण नहि चुका पा रहा है , माँ कों सुख नहि दे पा रहा है , जो एक पुत्र का धर्म है । जमदग्नि पुत्र राम सहस्त्रअर्जुन जैसै पापी राजा का सर्वनाश कर सकें ऐसे शस्त्रों की खोज में निकला हुआ है । माता रेणुका देवी से राम एक पल भी दूर नहि रहना चाहते थे , माता के इतना प्रेम और स्नेह था उन्हे की माँ की आज्ञा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दे ।
रेणुका पुत्र राम ने कई आश्रमों में शस्त्र शिक्षा ली लेकिन उन्हे सहस्त्रअर्जुन का वध कर सकें ऐसे किसी भी आश्रम से शस्त्र नहि मिले ।
एक दिन राम कों शिव भगवान ने दर्शन दिये और कहाँ की शिष्य मैं तुम्हे अपना शिष्य स्वीकार करती हु ।
लेकिन शिष्य तुम सहस्त्रबाहु के 1 -2 सैनिको कों खत्म कर उसके आतंक कों समाप्त नहि कर सकते हो । उसके पास बहूत शक्ति है उसे यह उसकी कठोर तपस्या के परिणामस्वप मिली है । उसे बहूत बड़ा वरदान मिला है । यह तुम्हे तपस्या या मंत्र द्वारा नहि बल्कि शस्त्र विद्या सीखकर मिलेगी ।

तब रेणुकानन्दन राम ने कहाँ की हे शिव शंकर मेरे पिताजी शस्त्र विद्या ब्राम्हण संस्कारो के विरूद्ध समझते है ।
हे महादेव मूझे कहाँ मिलेगी ऐसी विद्या , कौन होगा मेरा गुरू ।
शिव बोले - राम तुम्हे ये शिक्षा कैलाश पर मिलेगी और मैं दूंगा स्वयं शिक्षा । वत्स मैं तुम्हारा गुरू होना स्वीकार करता हु ।
जाओ अपने माता पिता से कैलाश यात्रा अनुमति ले आओ । पूर्ण मासी की सन्ध्या कों मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा ।

घर पहुंचकर राम ने माता रेणुका देवी कों प्रणाम किया ।
माता रेणुका ने कहाँ की पुत्र तुम्हे देखने कों मेरे नैया तरस चूके थें । कई कई दिन बीत जाते है तुम्हे देखे बिना । तुम क्या जानो माँ की ममता ।

जब राम ने कहाँ - माता मैं आज भी आपको कोई सुखद समाचार नहि देने आया हूँ
मैं आपसे दूर जा रहा हूँ 10 वर्ष के लिए ।

माता रेणुका ने पूछा - कहाँ जा रहें हो पुत्र !
राम बोले - माता मैंने शिव शंकर के पास कैलाश जाने का निर्णय लिया है , उनके साथ रहकर 10 वर्ष तक शस्त्र विद्या सीखूँगा आपकी अनुमति लेनें आया हूँ ।

माता रेणुका बोलि - पुत्र निर्णय ले हि लिया है तो अनुमति की कोई आवश्यकता नहि रह जाती , अपने जीवन के बारे में निर्णय लेनें की अनुमति तो तुमने मुझसे मांगी नहि ।

राम बोले - आप तो जानती हो माता की परिस्थितियो ने मूझे ये निर्णय लेनें कों विवश कर दिया ।

माता रेणुका बोली - ऐसा लगता है पुत्र राम की इस संसार में मां और ममता हि विवश नहि है बाकी हर कोई किसी न किसी कारण विवश है ।
माता रेणुका देवी और पिता जमदग्नि का आशीर्वाद लेकर राम कैलाश शिव धाम की यात्रा आरम्भ कर देते है ।
ऊंचे ऊंचे पहाड़ चढ़ते हुए पैरो के रक्त बहने लगा लेकिन राम का ध्यान कैलाश पर शिव जी के चरणो पर पहुचाने में लगा हुआ था ।
लंबे ऊंचे पर्वत की लम्बी चढ़ाई चलते हुए थक चूके थें लेकिन उन्हे पूरण मासी की सन्ध्या कों शिव जी के पास पहुचना था । जब कैलाश पर राम शिव के पास पहुंचे तो ।
शिव जी ने कहाँ - राम तुमने निश्चित समय पर आकर शिष्य धर्म का प्रथम पाठ पूर्ण किया ।
महादेवी ये जमदग्नि पुत्र राम है , राम ये ..!
आचार्य माता का परिचय नहि , जिनसे संसार की सारी माताओं कों मातृत्व का दान मिलता है , ये वही जगदम्बा है ।

पार्वती माता ने कहाँ - ये तो हमारे राम के कोमल पैरो का रक्त है , स्वामी इसने तो हमारे धाम कों पैरो के रक्त से धो कर आपकी गुरू दक्षिणा पहले हि दे डाली ।

राम ने कहाँ - देवाधिदेव कैलाश आने में कदाचित पैर छील गए होंगे , लक्ष्य की ओर ध्यान था , पता हि नहि चला ।
ये मेरा अपना रक्त है लेकिन सहस्त्रबाहु तो निर्दोष ऋषि , मुनि , महात्माओं का रक्त बहा रहा है ।
         
पार्वती माता ने कहाँ - बस करो पुत्र एक ब्राम्हण का रक्त बहे और उसे पता भी नहि चले ।

शिव जी बोले - पुत्र तुमने मूझे आचार्य कहाँ है । तु शिव के धाम आया है मैं तुम्हे वचन देता हूँ , मैं तुम्हे अपनी संहारक शक्ति का एक अंश दूंगा । मैं तुम्हे पशुपतास्त की शिक्षा दूंगा । मैं तुम्हे इस संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर विद्या का आचार्य बनाऊंगा । अब तुम अपनी साधना में लीन हो जाओ । जिस तरह तुम्हे अपने पैर से रिसते खून का पता नहि चला उसी तरह साधना की कठिनाइयों का पता नहि चलना चाहिए ।
शिव कृपा से राम के पैर स्वस्थ हो गए ।

शिव जी ने राम कों कलावा बांधकर कहाँ - हे जमदग्नि पुत्र राम मैं गुरू शिष्य परम्परा के अनुसार तुम्हे अपना शिष्य स्वीकार करता हूँ ।
मैं शिव अपने गुरूपद का पालन पूरी निष्ठा से करूंगा ।

रेणुका नन्दन राम ठिठुरता पानी में परशुराम धनुर्विद्या का आभरण करते रहा और 10 वर्ष बीत गए ।
शिव जी राम की तपस्या से प्रसन्न हुए और दर्शन दिये ।

परशुराम जी बोले - पार्वती पति हर हर महादेव शंभू

शिव जी बोले - उठो वत्स , आज तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई ।
  सहस्त्रबाहु आतंकवादी और बलात्कारी बन गया है । अब जाकर उसका सर्वनाश करो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ।

राम बोले - शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत क्या गुरू दक्षिणा भेंट करू प्रभू ।

शिव जी बोले - वत्स अभी तो मेरी ईच्छा यही है की पापी सहस्त्रबाहु का वध ब्राम्हणों और ऋषियों के कुल कों बचाओ । बाकी गुरू दक्षिणा वक्त आने पर मैं तुमसे मांग लूंगा ।

राम बोले - आप जब भी गुरू दक्षिणा मांगोगे , मूझे हार्दिक प्रसन्नता होगी ।
शिव ने ओम का उच्चारण करते हुए धनुष और परशु रेणुकानन्दन कों दिया और कहाँ की वत्स इस परशु की वजह से आपका नाम परशुराम होगा । आपको पूरी रात्री इस शस्त्र की पूजा करना है ।


श्री रेणुका माहात्म्य पार्ट  2

रेणुकानन्दन राम 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहि आया तो माता रेणुका बहूत चिंतित अवस्था में रात्री आश्रम की कुटिया के समीप बैठकर सोच रही थी की मेरा राम क्यु नहि आया अब तक , कब आयेंगा , कितने बरस हो गए दर्शन पाए तभी उनके पास ऋषि जमदग्नि आ कर कहते है - रेणुका क्या सोच रही हूँ ।
रेणुका देवी बोली - स्वामी पुरे 10 वर्ष बीत गए है , मैंने राम कों नहि देखा , पता नहि जीते जी , मैं उसका मुख देख भी पाऊँगी की नहि ।
जमदग्नि ऋषि बोले - ऐसा न कहो रेणुका , धीरज रखो । भगवान के घर देर है अंधेर नहि , वो अवश्य लौटेंगा ।

रेणुका देवी बोली - (कब लौटेंगा स्वामी , जब मेरे नैनो की ज्योति बूझ चूँकि होगी ,जब मेरे सांसो की शृंखला टूट चूँकि होगी तब लौटेगा स्वामी ।

जमदग्नि ऋषि बोले - ऐसा मत कहो रेणुका , मूझे पूर्ण विश्वास है उसके लौटने में अब अधिक समय नहि है , वैसे भी हमारे शेष चार पुत्र हमारे साथ है ।

तभी आश्रम के शिष्य आकर ऋषि जमदग्नि कों सूचना देतें है की सहस्त्रअर्जुन की सेना आने की आवाज आ रही ..

जमदग्नि ऋषि बोले - जिसने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करने की ठान ली हो रेणुका , उसका सामना धीरज और सहनशीलता से ही किया जा सकता है ।

रेणुका देवी बोली - स्वामी समाप्त हो गई है मेरी सहनशीलता , टूट गए है मेरे धीरज के बांध , अब मैं और धीरज नहि धर सकतीं ।

जमदग्नि बोले - तो हम कर भी क्या सकते है रेणुका ।

रेणुका देवी बोली - मैं दुष्ट सहस्त्रअर्जुन के समक्ष जाऊंगा । उससे कहूँगी की आतंक और अत्याचार की भी एक सीमा होती है , कदाचित एक स्त्री की फटकार सुनकर उसे लज्जा आ जाये ।
जमदग्नि बोले - नहि रेणुका , मैं आपको उसका परामर्श नहि दूंगा । क्युकी रेणुका सहस्त्रअर्जुन जो कुछ कर रहा है , सोच समझकर कर रहा है । लज्जा , आचरण , सभ्यता और शालीनता जैसै शब्द उसने अपने शब्दकोश से निकाल फेंके है । आप उसकी भाषा समझ नहि पाओगे । रेणुका आपको वहां जाने से कोई लाभ प्राप्त नहि होगा ।

रेणुका देवी बोली - मैं एक ऋषि पत्नी हूँ और एक राजकन्या भी हूँ । इसलिए मूझे भली भांति ज्ञात है की राजाओ से किस प्रकार की भाषा में बात करना चाहिए । मेरा विश्वास कीजिए स्वामी जिस प्रकार मैं सहस्त्रअर्जुन से बात करूंगी उसकी निर्जलता का कवच चीर चीर हो जाएगा ।

तभी अचानक सहस्त्रअर्जुन की सेना का आश्रम की कुटिया में आगमन होता है जिसे देख रेणुका माता जमदग्नि ऋषि से कहती है , दुष्ट सहस्त्रअर्जुन हमे धरती के किसी भी अंश पर ठीक से जीने नहि देगा ।
रेणुका माता बोली - ठहर जाओ , क्यु आये हो यहां
सेनापति ने कहाँ - आपको ये स्थान छोड़ना होगा , क्युकि इस स्थान के स्वामी सहस्त्रअर्जुन है , आपने ना भूमि मोल ली है और ना इस भूमि पर निवास के लिए कर देतें हो । अगर आप यहां से नहि गए तो वही करना होगा जो हम हमेशा करते आये , तुम्हारा आश्रम जला देंगे हम , यही महाराज का आदेश है ।
रेणुका देवी ने बोली - तब तो मैं स्वयं ही तुम्हारे महाराज के समक्ष जाऊंगी । उन्हे बताऊँगी उनका अत्याचार और हमारा धैर्य दोनो अपनी सीमाए पार कर चुका है ।
इस तरह माता रेणुका देवी घोड़े पर सवार होती है
जमदग्नि बोले - रेणुका ..रेणुका
रेणुका देवी बोली - आप चिंता न करे स्वामी , मैं शीघ्र लौट आऊँगी ।
माता रेणुका वीरांगना देवी उतनी ही  रात्री में अकेले सहस्त्रअर्जुन के राजमहल कि ओर निकल पड़ती है ।
सहस्त्रबाहु की पत्नी नैनुका देवी रेणुका माता की बड़ी बहन थी । रेणुका देवी कों अपने सामने देखकर राजा सहस्त्रअर्जुन के होश उड़ गए ।
सहस्त्रअर्जुन बोले - क्या मैं कोई स्वप्न देख रहा हूँ । इस संसार  की सबसे सुन्दर स्त्री मेरे कक्ष में है , मेरे समक्ष है , मूझे अपनी आंखो पर विश्वास नहि हो रहा है ।

रेणुका देवी बोली - नहि सहस्त्रअर्जुन तुम स्वप्न नहि देख रहे हो तुम्हारे समक्ष मैं ही खड़ी हूँ । ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका । मैं तुमसे कहने आयी हूँ की मेरे परिवार पर अत्याचार करना बन्द कर दे और उन्हे शांति से रहने दों ।
तुम जैसै भोगी और विलासी व्यक्ति की दृष्टि ने नारी में सौंदर्य के अतिरिक्त और कहाँ कुछ दिखाई देता है । नारी के मान , सम्मान उसके मातृत्व इन सभी गुणो से तुम अनिभिज्ञ हो । अपरिचित हो ये कोई कम अभिशाप नहि ।

सहस्त्रअर्जुन बोले - सुंदरता तो हर नारी का गुण है देवी ! आप क्या जानती हो देवी आपको एक बार देखकर बारम्बार देखना मेरे जीवन का उदेश्य बन गया था । ये रूप ये यौवन और सौन्दर्य इसी योग्य है की आप जैसी स्त्री मुझ जैसे राजा की शोभा बढ़ाए । ये दुर्भाग्य है , अत्याचार है की तुम जैसी सुन्दर स्त्री कों ऋषि जमदग्नि जैसै ऋषि के रूखे सूखे जीवन का अंश बनना पड़ा । आओ सुन्दरी मेरी फैली बाहों में ।

रेणुका देवी बोली - रूक जाओ सहस्त्रअर्जुन , वासना में अन्धे होकर ये मत भूलो की मैं महान ऋषि जमदग्नि की पत्नी हूँ । उनके पांच पुत्रो की माता भी हूँ और समस्त संसार एक ऋषि पत्नी कों माता की श्रेणी में रखता है । देवी सहस्त्रअर्जुन उस स्त्री के अतिरिक्त जिसने उसे जन्म दिया है ,  किसी कों माता नहि समझता है । तुम जैसी स्त्री कों माता समझना सौन्दर्य का अपमान होगा , महापाप होगा ।

रेणुका देवी कों पकड़ने के लिए रेणुका माता का पीछा कर रहा सहस्त्रअर्जुन भुल गया था की वो एक राजकन्या और ऋषि पत्नी भी है । देवी रेणुका ने आत्मरक्षा के लिए राजभवन की तलवार उठा ली और सहस्त्रअर्जुन की पूजा पर वार कर दिया जिससे उसकी पूजा का रक्त बहने लगा ।

रेणुका देवी ने कहाँ - मैं दुष्ट चाहती तो आज तेरा वध भी कर देती किन्तु मेरे पति कों ये स्वीकार नहि होगा । तुष्ट तुझे सहस्त्र बाहुओ का बल केवल तेरे शत्रु के लिए मिला था ।
किसी नारी के सम्मान के लिए नहि मिला था । मेरी तलवार से तुझे जो घाव लगा है उसका रक्त आजीवन बहता रहेगा ।

लेकिन रात भर रेणुका देवी के न आने की वजह से ऋषि जमदग्नि कों नीन्द नहि आयी और वे जागते रहे । ऋषि जमदग्नि के मन मे अनेक शंकाए जन्म ले चूँकि थी ।
ऋषि जमदग्नि ने रेणुका देवी के चरित्र पर संदेह किया । उनके पास उस संदेह का कोई प्रमाण नहि था । बस सहस्त्रअर्जुन की कहे बाते उनके दिमाक में घुस रही थी देवी एक बार हमारे भवन आ जाओ , ऋषि जमदग्नि और मेरे बीच संधि का कोई मार्ग निकल जाये । ऐसी सुन्दरी तो राजभवन में होना चाहिए आश्रम में नहि ।  वो इस संदेह की धारा मे बहकर इतने दूर निकल चूके थें जहाँ से वापसी सम्भव नहि था । परिणामस्वरूप जो होने वाला था जिसकी कल्पना भी नहि की जा सकतीं थी ।
जब प्रातः रेणुका देवी आश्रम पहुंची तो ऋषि ने संदेह करते हुए देवी आपने सारी रात्री क्या किया ।

रेणुका देवी बोली - स्वामी नारी में चरित्र पर लक्षण लगाने का अधिकार आपको नहि है , जब आपका मुझ पर विश्वास ही नहि रहा तो मेरा कोई भी तर्क आपको संतुष्ट नहि कर सकता । मेरा समस्त जीवन आपके सामने है , मैं आपके पुत्रो की माता हूँ , मैंने आपकी आजीवन सेवा की है , मैंने आपके पुत्रो कों दुध के रूप में अपना लहू पिला पीला के पाला है । जब आपका एक संदेह इतने सारे प्रमाणो कों नकार सकता है तो किसी भी तर्क या किसी उत्तर का कोई महत्व नहि रह जाता ।

जमदग्नि बोले - तो देवी मैं भी ये बताने की आवश्यकता  नहि समझता हूँ की मैं क्या करने वाला हूँ और क्यु करने वाला हूँ ।

जमदग्नि बोले - हे पुत्रो तुम्हारी माता ने मेरे सारे आदर्शों कों धूल में मिला दिया उसने हम सबको लज्जा के सागर में डूबा दिया । हम सब किसी कों मुँह दिखाने योग्य नहि रहे ।
समस्त संसार ये जान ले की किसी ऋषि के परिवार के मान सम्मान कों धूल में मिलाने वाली स्त्री कों क्या दण्ड मिलना चाहिए ।
पुत्रो मैं तुमने आदेश देता हूँ की अपनी माता का शीश धड़ से अलग कर दों ।

पुत्रो ने कहाँ - पिता जी यह महापाप हम नहि करेंगे । हमारे जीवन में पाप करना लिखा ही है तो पितृ आज्ञा न निभाने का पाप करेंगे लेकिन माता का वध करके उनके रक्त से अपने हाथ रंगने का महापाप नहि करेंगे ।

तभी राम का कैलाश से वहां आगमन होता है और पिता के चरणो में गिरकर आशीष लेनें लगे ।
पिताश्री आपने मूझे पहचाना नहि , मैं आपका पुत्र राम हूँ । मेरे गुरुदेव ने मेरा नाम परशुराम दिया है ।

जमदग्नि बोले - मेरे चारो पुत्रो ने मेरे आदेश का तिरस्कार किया है तो मैं पांचवे से क्या अपेक्षा रखूँ ।

परशुराम बोले - पिताजी मूझे खेद है की मेरे भाईयो ने आपको दुःख पहुचाया है परन्तु मैं आ गया हूँ , आप मुझसे कहिए , मूझे आदेश दीजिए । आपका आदेश तो भगवान का आदेश है , पितृ देव भव । आप आदेश देकर तो देखिए ।

जमदग्नि - मूझे वचन दों पुत्र ।
परशुराम - मेरे वचन देने से आपको शांति मिलती है तो मैं आपको वचन देता हूँ , आप जो आदेश देंगे , मैं बिना कोई प्रश्न पूछे आदेश का पूर्णतया पालन करूंगा ।

माता रेणुका आश्रम की कुटिया के प्रवेश द्वार पर शेष पुत्रो के साथ खड़ी थी ।
परशुराम जी बोले - माता कितने वर्षो बाद इन चरणो कों छू रहा हूँ , जो स्वर्ग समान है , हे माता अपने पुत्र का प्रणाम स्वीकार करे ।

रेणुका माता बोली - मेरा राम , तुम आ गए राम , मेरे लाल इसी क्षण के लिए मैं जीवित थी पुत्र ।

जमदग्नि ऋषि बोले - कही भावना की धारा में पुत्र अपना वचन तो नहि भूले पुत्र , तुम्हे स्मरण है ना । तो कांट दों अपनी माता का शीश।

परशुराम जी - शंभू , हे परशु तुझे मैं अपने गुरू शिव शंकर का दिया वरदान समझू या अपने दुर्भाग्य का प्रतीत । तुझे मैंने पाया था , मानवता के शत्रु सहस्त्रअर्जुन का वध करने के लिए लेकिन तेरा प्रथम प्रहार होगा तेरा उस माता पर जिसकी कोख से मैंने जन्म लिया है । जिसकी गोद में मैंने अपने जीवन का प्रारम्भ किया । जिसके प्रेम से मेरा रोम रोम बंधा हुआ है । जिसके चरण स्पर्श करने के लिए मैं वर्षो से तड़प रहा था ।
गुरुदेव , हे शिव शंकर , समस्त देवी देवताओ , हे ऋषिगण , आप सब साक्षी रहना ।
मैं केवल अपना वचन निभा रहा हूँ , केवल अपने पिता की आज्ञा पालन कर रहा हूँ । हे माता अपने इस अभागे पुत्र कों क्षमा कर देना ।



रेणुका माहात्म्य पार्ट  3

परशुराम जी कहते है - माता में आज वो करने जा रहा हूँ जो तक किसी पुत्र ने नहि किया होंगा । ईश्वर ना करे आज के बाद किसी पुत्र कों करना पढ़े ।
क्षमा क्षमा कहते हुए रोने लगे और अपना परशु उठाया । माता रेणुका ने भी ने उस दौरान आँखे बन्द कर पुत्र के सामने शान्त अवस्था में खड़ी थी ।
इस तरह परशुराम जी ने परसा उठाकर माँ रेणुका के शीश कों धड़ से अलग कर दिया । परशु के प्रहार से माता का सिर एक ओर गिरा और दूसरी ओर धड़ गिरा , माता के रेणुका देवी के रक्त की बूंदे भी  धरती के कई प्रांतों तक पहुंची ।
वो पावन भूमि लहू लहू हो गई ।
परशुराम की आज्ञा पालन से पिता जमदग्नि अति प्रसन्न हुए और अपने पुत्र से कोई भी वरदान मांगने कों कहाँ ।

परशुराम जी ने कहाँ - पिता जी आप मूझ पर प्रसन्न हुए हो तो मेरी माता जी कों जीवनदान दे दीजिये ।

जमदग्नि ऋषि बोले - पुत्र तुमने मुझसे पूछे बिना हि वरदान दे दिया । ये भी नहि सोचा की मैं क्या मांगने वाला हूँ इसलिए मूझे भी ये अधिकार नहि है की मैं इस वचन कों पुरा ना करू । तभी ऋषि ने जल मन्त्रित कर देवी रेणुका के धड़ और सिर पर डाला । देवी माता का सिर धड़ से जुड़ गया और माता रेणुका देवी कों जीवनदान मिल गया ।

परशुराम जी माता के चरणो में गिर गए और रोने लगे , माता क्षमा करे ।

 परशुराम कहते है - पिता श्री आप जैसै आचार्य , आप शास्त्राज्ञ से इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई ।

जमदग्नि - तुम्हारी माता दुष्ट सहस्त्राबाहु से मिलने गई थी । उसे आने में देर हो गई इसलिए मेरे अपना आत्म विश्वास खो बैठा ।

परशुराम जी बोले - पिता जी आप जैसै आचार्य और ज्ञानी इस कारण अपनी पत्नी पर संदेह कर बैठ जाते है की उनकी पत्नी कों आने में कुछ पल की देर हो जाती है तो धरती लोग के साधारण मनुष्यो का क्या होगा ।
पिता जी कही ये घटना नारी जाती के लिए अभिशाप न बन जाये और इसे बार बार दोहराया जाये ।
किसी भी पुत्र कों ये अधिकार नहि मिलना चाहिए की पिता की आज्ञा करने के लिए माता पर हाथ उठाना पडे ।

इस घटना से मानव जाती कों भी सीख लेना चाहिए मातृ देव : सत्य है तो पितृ देव भी सत्य है । जब तक माता पिता के बीच विवाद की स्थति कों न जाने तब किसी का साथ न दे अन्यथा मुझ जैसै एक की आज्ञाकारी दुसरे के लिए अन्याय न बन जाये । बिना सोचे समझे किसी कों वचन नहि देना चाहिए ।

जमदग्नि ऋषि बोले - पुत्र मूझे बड़ी गलती हुई हुई मूझे माफ कर दों ।
परशुराम जी बोले - पिताजी आपने गलती की है और उस गलती की वजह से मैंने भी बड़ी गलती की है इसलिए आप और मूझे माफ कर करने वाली माता है , हमे क्षमा माता की कर सकतीं है ।

परशुराम राम जी इसके बाद सहस्त्रबाहु कों सबक सिखाने के लिए उसके राजमहल कों जाने लगे जिसने एक प्रतिव्रता स्त्री और विद्यावान शास्त्रज्ञ पति के बीच दीवार उत्पन्न कर दी ।
परशुराम जी ने सहस्त्राबाहु के राजमहल में में उनके मार्ग में आने वाले सभी सैनिको का सर्वनाश कर दिया ।
सहस्त्रबाहु से युध्द आरम्भ किया अंत में सहस्त्रबाहु का सिर कांटने वाले थें परशुराम जी पर वहां पापी दुष्ट की पत्नी नैनुका आ गई और अपने पति के प्राणो की भीख मांगने लगे । परशुराम जी ने देवी नैनुका के निवेदन पर पापी कों जीवनदान दिया और वहां से अपने आश्रम की ओर आ गए ।

ऋषि जमदग्नि बोले - देवी आज जो कुछ भी हुआ उसे भुलाने के लिए क्षमा शब्द बहुत छोटा है , मूझे क्षमा कर दीजिये देवी ।

रेणुका देवी बोली -  मेरे पास क्षमा करने के अतिरिक्त कोई उपाय भी नहि है स्वामी किन्तु एक भयसा लग रहा है , एक चिन्ता मेरा पीछा नहि छोड़ रही है , जिस दुर्भाग्यपूर्ण परम्परा की नीव आज पड़ गई है कही आने वाले युगों में वह स्त्री पर अत्याचारो का बहाना न बन जाये ।

जमदग्नि ऋषि बोले -  इसिलए तो याचना कर रहा हूँ देवी रेणुका ।

रेणुका देवी बोली - आपकी क्षमा का स्मरण तो उनको रहेगा स्वामी जिनके पास बुद्धि रहेगी , विवेक होगा , जो शिक्षित होगे किन्तु जिनके पास ये सारे गुण नहि होगे उन्हे तो यही स्मरण रहेगा । पत्नी के चरित्र पर भी संदेह किया जा सकता है , कारण स्वरूप उसे दण्ड भी दिया जा सकता है ।

जमदग्नि ऋषि बोले - हे देवी मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा जो बीत चुका चुका है हमारे और किसी ओर के जीवन में कभी ना आये । जो भुल हुई है वो कोई दुबारा न करे ।
देवी आप क्या सोच रही हो ।

रेणुका देवी बोली - हाँ स्वामी इस घटना कों भूलना हि होगा इसलिए नहि की आप मेरे पति है और मैं आपकी पत्नी हूँ । मैं पांच पुत्रो की माता भी हूँ , उनकी शिक्षा मार्गदर्शन का भार प्रकृति ने हमे सौपा है । उनके भविष्य के लिए भले के लिए हमे इस घटना कों भूलना होगा ।

जमदग्नि बोले - विश्वास कीजिए , देवी जैसी पत्नी पर संदेह करने का दण्ड मूझे मिल चुका है , मिलते हि रहेगा ।

रेणुका देवी बोली - स्वामी मैंने आपको माफ कर दिया है मूझे और लज्जित मत करिए ।



रेणुका माहात्म्य पार्ट  4
कुछ दिनो बाद जमदग्नि आश्रम में गुरू वशिष्ट का आगमन होता है । ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका देवी दोनो ही उनका स्वागत अभिनन्दन करते है ।
वशिष्ट जी बोले - बहूत लम्बे समय से आपसे भेंट करने के लिए मन कर रहा था , परन्तु अपनी व्यस्थता से अवकाश ही नहि मिल रहा था ।

जमदग्नि बोले - ये देवी कौन है , मैंने इसे नहि पहचाना ।
वशिष्ट मुनि बोले - ये आपके प्रिय शिष्य आचार्य प्रियव्रत की पुत्री अनामिका है । अपने पिता के साथ आपके ही आश्रम में ही रहा करते थी  । आप पर जो कठिन समय चल रहा है ऋषिवर मैं भली भांति परिचित हूँ । हर्ष ये है की इन कठिन परिस्थियों में भी आपने धैर्य के पाँव नहि लड़खड़ाये वरना उस दुष्ट सहस्त्रअर्जुन ने तो अत्याचार की हर सीमा पार कर दी है ।
जमदग्नि बोले - अत्याचार तो अत्याचार है ऋषिवर बढ़ता है और तो मिट भी जाता है , धैर्य अपार सागर की भांति है जिसका कोई छोर नहि होता । आपको हमारा ध्यान रहा इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ ।

वशिष्ट जी बोले - ऋषिवर मैं आपके लिए एक उपहार लेकर आया हूँ , आशा है आप इसे स्वीकार करेंगे । आये दिन आपके इस आश्रम में अग्निकांड होते रहते है । इसमे आपके पशु भस्म हो जाते है या घबराकर भाग जाते है । इस परिस्थिति में आपके विद्यार्थी और परिवार का भरण पोषण एक समस्या है मैं ऐसी समस्या का समाधान लेकर आया हूँ ।
ये गाय सुशीला है , मैंने इस गाय का यही नाम रखा है ।
आपने कामधेनु का नाम सुना होगा ।

जमदग्नि ऋषि बोले - नाम जैसै ही गाय सुन्दर भी है ।  ऋषिवर कामधेनु का नाम तो सारा संसार जानता है , ये वो गऊ है जो सबका मनोरथ पुरा करती है , धन धान , कुछ भी मांगो सब मिलता है ।

वशिष्ट जी बोले - ये सुशीला कामधेनु की ही संतान है इसमे कामधेनु के सभी गुण है । ये आपके परिवार और शिष्यों का भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त है ।
जमदग्नि बोले - मेरे पास शब्द नहि है , ऋषिवर आपका आभार प्रकट करने के लिए ।

वशिष्ट बोले - इसकी आवश्यकता नहि है ऋषिवर , अनामिका कों मैं इसलिए लेकर आया हूँ , सुशीला इसके बिना एक छन भी नहि रह सकतीं , इसके अतिरिक्त वो किसी से चारा भी नहि लेती । ऋषिवर राम कहाँ है ।

जमदग्नि बोले - पुत्री अनामिका तुम्हारा और सुशीला का मेरे आश्रम में स्वागत है । पुत्र राम देखो कौन आया है ।
परशुराम जी ने वशिष्ट ऋषि के चरणो में प्रणाम किया ।

इसके कुछ दिनो बाद परशुराम सन्ध्या के वक्त जंगल से आश्रम लौटे तो अनामिका ने पूछा ।
अनामिका बोली - लगता है राम तुम मूझे देखकर प्रसन्न नहि हुए । वरना तुम्हारे आंखो में इसकी परछाई नजर आती ।
 राम जी बोले - मेरे नेत्रो में जले हुए आश्रमों , लूटी हुई कुटिया , आक्रमण में हथा हो रहे मनुष्यो की परछाई बसी हुई है । 
अनामिका -तुम्हे बालपन की किसी भी घटना का स्मरण नहि । तुम तो राम थें परशुराम कैसे बन गए ?
परशुराम बोले - है अनामिका लेकिन परिस्थिया ऐसी बनी है की कभी कभी पहचान ही नहि पाता । इन परिस्थियो ने ही मूझे राम से परशुराम बनने के मजबूर किया ।

इसके बाद दोनो आश्रम पहुंचे तो देखा की सहस्त्रअर्जुन के सिपाही परशुराम जी की खोज करते हुए आश्रम आये थें और माता रेणुका देवी और पिता जमदग्नि कों बंधी बना लिया है ।

सेनापति बोले - कहाँ है वो दुष्ट जिसने हमारे महाराज कों ललकारा है । तुम लोगों ने मुँह नहि खोले तो मैं सबको चुन चुन के मार डालूंगा । बताऒ कहाँ है वो ..


घेर लो इसे चारो ओर से , इसके बाद सभी सैनिक परशुराम जी कों चारो ओर से घेर लेते है ।

परशुराम जी बोले - अब जब तुमने मूझे चारो ओर से घेर लिया है तो मेरे परिवार कों छोड़ दों ।

सेनापति बोले - मैं इतना मूर्ख नहि हूँ । मैंने तुम्हारे परिवार कों इसलिए बंधी बनाया है , यदि तुम कोई संकट खड़ा करने का दुशसाहस करो तो इन सबका वध कर दिया जाये ।

परशुराम जी बोले - मैं तो समझता था की छत्रिय हो , वीर भी होंगे परन्तु तुम सब तो केवल कायर हो, कपटी हो ।

सेनापति बोले -हम वही कर रहे है जिनका आदेश हमे महाराज ने दिया है ।

जमदग्नि ऋषि बोले - तुम एक शिक्षक की संतान हो पुत्र । तुम शिक्षक हो

परशुराम जी बोले - मैं शिक्षक की संतान अवश्य हूँ पिताजी । लेकिन शिक्षक कदापि नहि ।
जमदग्नि बोले - नहि पुत्र ,हट मत करो तुम ! मैं नहि चाहता की आश्रम की भूमि पर रक्त बहे ।
तुम आत्म समर्पण कर दों पुत्र ।

परशुराम बोले - आत्मसमर्पण , असत्य के समक्ष आत्मसमर्पण, अधर्म के समक्ष आत्मसमर्पण, अन्यान्य के समक्ष आत्मसमर्पण पिता जी आप जो कह रहे है वो कर दिया तो मानव इतिहास असुरों की धारा में बह जाएगा । वो मानव इतिहास का दुर्भाग्यपूर्ण दिन होगा ।
परशुराम जी ने अपने परशु कों निकाला और सैनिको का वध करने लगे एक एक करते सारे सैनिक मारे गए जिसे देख सेनापति भी भाग गया ।
इसे देखकर माता रेणुका देवी कों बड़ा गर्व मेहसूस हुआ जो माता कों एक वीर पुत्र की माता बनने का सौभाग्य हुआ ।
जमदग्नि बोले - पुत्र राम ! कर्म की परीक्षा साधारण स्थति से नहि होती । कोई भी व्यक्ति कर्म का कितना बड़ा साधक है ये उसी समय ज्ञात होता है जब उसे असाधारण स्थतियो ने घेर लिया हो । हमारे जन्म के साथ ही हमे एक विशेष कर्म से जोड़ा है , वो हमारे अस्तित्व के साथ उस समय तक जुड़ा रहेगा । ये कर्म शास्त्र नियमो की शिक्षा है , ज्ञान का प्रचार है , धर्म और अहिंसा पर अनुरोध है , यही हमारा कर्म है पुत्र , यही हमारी परम्परा है पुत्र , मैं इस परम्परा कों अपने नेत्रो के सामने टूटने नहि दूंगा ।

परशुराम जी बोले - क्षमा करे पिताजी वो परम्परा जो हिंसा के समक्ष सिर झुकाना जानती है , वो परम्परा जो आतंक से दब जाना सीखाती है उसे टूटना चाहिए देखिए इन अत्याचाररियो के के मृत शरीर चिल्ला चिल्ला के कह रहे पिता जी वो परम्परा बदल चूँकि है , वो परम्परा टूट चूँकि है । मैं बदला है उसे , मैंने तोड़ा है उसे ।
सहस्त्र अर्जुन और उसके वर्ग के लिए मेरी ओर से यही उत्तर है ये उत्तर आज ही नहि मिला है अब यही उत्तर हर बार मिलेगा ।

जमदग्नि - पुत्र मैं अपना कर्म नहि बदल सकता और तुम अपना प्रण नहि बदल सकते , मैं अपनी परम्परा नहि बदल सकता न ही उसे तोड़ सकता , सच तो ये है पुत्र की मैं उसे नेत्रो के सामने टूटते भी नहि देख.सकता । यदि जो तुम कर रहे हो और आगे भी करना चाहते हो तो पुत्र तुम्हारा इस आश्रम में कोई स्थान नहि , तुम्हे आश्रम छोड़कर जाना होगा पुत्र ।


रेणुका माहात्म्य पार्ट 5
भगवान परशुराम पिता की आश्रम छोड़ जाने की बात का मान रखते हुऐ अपनी माता से आज्ञा लेते है , अपने भाईयो को प्रणाम करते है और जंगल की ओर चल पड़ते है । तब उन्हे शिव का साक्षात्कार होता है उन्हे कैलाश आने के लिए आमंत्रित करते है , इस तरह परशुराम जी पिता का घर छोड़ने के बाद कैलाश पहुंचते है । 
परशुराम - प्रणाम माता शेरोंवाली , प्रणाम देवाधिदेव महादेव , प्रणाम गुरुदेव , क्या आदेश है आपका , शिष्य आपके चरणो में उपस्थित है । 

भोलेनाथ - शिष्य तुम्हे स्मरण है मैंने तुमसे गुरुदक्षिणा नहि मांगी थी । मैं तुमसे आधी गुरुदक्षिणा मांग रहा हूँ । 
शेष आधी किसी और समय पर मांगुगा ।
 
परशुराम जी बोले - मूझे ये स्मरण है गुरुदेव की आप माँगेगे । क्या मेरे सौभाग्य से वो समय आ गया है । आप जब भी जितनी भी गुरुदक्षिणा माँगेगे गुरूदेव उसे देना मेरा सौभाग्य होगा । मैं आपका आदेश सुनने कों व्याकुल हूँ । 

भोलेनाथ बोले - तुम्हारे भांति ही मेरा एक ओर शिष्य है , लंकापति रावण जिस समय तुम्हारा अभ्यास पूर्ण हुआ था , उसी समय सहस्त्रअर्जुन ने उसे बंधी बना लिया था । 
वो विद्वान है , प्रतापी है , परन्तु उसे अपने पराक्रम पर बहूत अभिमान हो गया था । अब तक उसे अपने अभिमान का दण्ड मिल चुका है , तुम जाओ उसे सहस्त्रअर्जुन के करावास से मुक्ति दिला दों । 

परशुराम जी बोले - जो आज्ञा गुरूदेव 
पार्वती माता बोली - सुनो शिष्य मेरे भोलेनाथ के सभी भक्त होते है , शिष्य नहि होते , तुम अकेले हो जिसे जिन्होने शिष्य बनाया है । तुम कदापि ये मत समझना की पिता का घर छोड़कर तुम बेघर हो गए हो । ये कैलाश तुम्हारा घर है इस घर के द्वार सदा के लिए तुम्हारे लिए खुले रहेंगे । 

परशुराम - हे शेरोंवाली इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ । 
आपको कोटी कोटी प्रणाम है , मैं सदा के लिए आपका ऋणी हो गया । 

परशुराम राम जी कैलाश से सीधे सहस्त्रअर्जुन के करावास मऊ पहुंचे और उन्होने करावास की सुरक्षा कर रहे सभी सुरक्षा अधिकारियो कों मार गिराया । लंकापति रावण कों स्वतंत्र कराने के लिए कारगार वो प्रवेश द्वार खोला जहाँ रावण कों बांधकर रखा गया था ।
 
परशुराम जी ने लंकेश से कों प्रणाम किया और कहाँ - मैं ऋषि जमदग्नि और रेणुका माता का पुत्र राम आपको इस कारागार से मुक्त कराने आया हूँ । 

रावण के कहाँ - तुमसे पहले भी तीन व्यक्ति इसी योजना कों लेकर आये थें , किन्तु मैंने उनके साथ जाना स्वीकार नहि किया क्युकी मैं बघोड़ा नहि हूँ । 

परशुराम जी ने कहाँ - शंभू शंभू , लंकेशवर मैं आपको भागने का परामर्श नहि दे रहा हूँ , मैं आपको यहां से ले जाने के लिए आया हूँ । 
ये सारे कारागार के सुरक्षा अधिकारी जो सुरक्षा कर रहे थें , मारे जा चूके है । अब यहां से एक विजेता की भांति जा सकते है । 

रावण - इसका अर्थ हुआ की तुमने अपनी सेना के साथ इस कारगार पर आक्रमण किया है । मूझे सहस्त्रअर्जुन की कही किसी बात का ध्यान आ रहा है । तुम कौन हो ! 

परशुराम जी बोले - तुम जिस शिव शंकर के भक्त हो , मैं उन्ही का शिष्य हूँ । मेरा नाम राम है , हाँ लंकापति रावण , मैं ऋषि जमदग्नि का पुत्र राम हूँ जिसे अपने गुरुदेव ने परशुराम बना दिया । मैं आपके उपकार का ऋण चुकाना चाहता हूँ । 

रावण - किन्तु मैंने कौनसा उपकार किया है ,। 

परशुराम बोले - मेरे गुरू शिव शंकर ने आदेश दिया है , लंकापति , यदि मैं आपको इस कारागार से मुक्त करा दु तो मेरे ओर से उनकी आदी गुरुदक्षिणा होगी । 
गुरुदक्षिणा का साधन जुटाने में आपने मेरी सहायता की है ये उपकार ही तो है । मेरी बात मानकर आप मुझ पर उपकार ही करेंगे । आईए इस चार दीवारो के बाहर स्वतंत्रता आपकी परीक्षा कर रही है । 

रावण बोले  - परशुराम इस समय स्वतंत्रता के उपलक्ष्य में कुछ भी देने की स्थति में नहि हूँ किन्तु तुम किसी भी वक्त कोई भी वस्तु मुझसे मांग सकते हो । इसका अधिकार मैं तुम्हे देता हूँ । 

परशुराम बोले - मूझे किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहि है लंकापति ! एक बात अवश्य कहना चाहूंगा । आपने कारागार में एक लम्बी अवधि बिताई  है । आपको ज्ञात हो चुका है , बंधी का जीवन कितना अपमान जनक होता है , आप अपने राज्य में किसी भी बंधी का अपमान मत कीजिए , किसी भी बंधी कों कष्ट मत दीजिए । बंधियों के साथ उनके वर्ग और श्रेणी के अनुसार व्यवहार करूंगा । 

रावण बोले - मैं वचन देता हूँ राम , तुम्हारा धनुष बहूत सुन्दर है । 
परशुराम बोले - ये धनुष मेरे गुरू शिव शंकर का उपहार है । 
रावण - मैं सदैव इसका सम्मान करूंगा । 


      रेणुका माहात्म्य पार्ट 6
सहस्रअर्जुन को पता चला की रावण को कारागार से मुक्त कराने वाला ब्राम्हण व्यक्ति परशुराम है तो उसने उसकी सेनाओ को कई आश्रमों और जंगलो में परशुराम जी की खोज करने के लिए लगा दिया । वही परशुराम जी ने भी रात्री में भार्गवो को युद्ध नीति की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया । 
एक बार सहस्त्रार्जुन की सेना ब्राम्हणों और राजाओ से लुटा हूआ खजाना लेकर जा रही थी । तभी परशुराम जी ने ब्राम्हण शिष्यों के साथ उस खजाने पर कब्जा कर लिया और उसे ब्राम्हणों और आश्रमों में वितरित कर दिया । 
इस बात से सहस्त्रबाहु की नींदें उड़ गई क्युकी परशुराम जी एक आधी और तूफान की तरह सहस्त्रबाहु की एक एक भुजा काटते हि जा रहे थें । 
 परशुराम.जी हर एक जन्मदिन माता रेणुका मानती थी , राम को खीर बहूत प्यारी थी इसलिए रेणुका माता उनके लिए खीर बनाती थी । इस दौरान भी उनके जमदग्नि पर माता रेणुका ने खीर बनाई जिसे अनामिका ने रात्री में परशुराम जी के पास पहुचाई । 

सहस्त्रबाहु ने परशुराम जी का पता लगाने के लिए अपने पुत्रो कों जमदग्नि आश्रम भेजा ।
राजा के पुत्र जमदग्नि आश्रम में पहुंचे जहाँ माता रेणुका अपने पुत्रो के लिए खाना बना रही थी । 

राजा पुत्र बोले - भिक्षान देही ..
रेणुका देवी बोली - मैं आपकी क्या सेवा कर सकतीं हूँ । 

राजा पुत्र बोले - हम ब्राम्हण पुत्र है , मार्ग भटक चूके है और भूख भी है । 

देवी रेणुका बोली - अतिथि गण ना तो ब्राम्हण है ,  ना हि विद्यार्थी । ब्राम्हण इसलिए नहि क्योकि आपके शरीर पर जनेऊ नहि है और विद्यार्थी इसलिए नहि क्योकि आप लोगों के मुख पर विद्यार्थी विद्यार्थियो के परिश्रम की नहि राजकीय ऐश्वर्य की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है । हाँ मैं मान सकतीं हूँ की आप मार्ग भटक गए है । आपको भूख भी लगी हुई है । इस ऋषि की कुटिया में जो कुछ भी बना है उसे स्वीकार करे । मैं अपने पुत्रो के लिए भोजन बना रही यही आप इसी भोजन कों ग्रहण करे । 

राजा पुत्र बोले - माता ये आ रहे ये आपके चार हि पुत्र है क्या  ? 

रेणुका देवी बोली - मेरे चार पुत्र नहि , बल्कि पांच पुत्र है । मेरा पाँचवा पुत्र राम है । 

राजा पुत्र बोले - देवी आपका पांचवा पुत्र राम कहाँ है ? 

रेणुका देवी बोली - मेरा पुत्र राम पिता सिध्दांतों में मतभेद होने के कारण आश्रम छोड़ चला गया है पता नहि कहाँ होगा और किस अवस्था में होगा । 

रेणुका देवी बोली - ये अतिथि गण हमारी कुटिया में भोजन करके हमे धन्य करेंगे । 

राजा पुत्र बोले - जब आप देवी रेणुका हमे पहचान गए हो तो हम भोजन नहि करेंगे । हम अपने भवन में बहूत स्वादिष्ट भोजन करते है हमे यहां का भोजन उत्तम नहि लगेगा । 

रेणुका देवी बोली - अच्छा , तो आपको छप्पन भोग की ईच्छा है । पुत्र कलश अनामिका से कहो सुशीला कों ले आये । 

रेणुका देवी बोली - ये सुशीला माता , हम अपने अतिथि का सत्कार करना चाहते है आप इनकी ईच्छाओ के अनुसार इन्हे उत्तम भोजन प्रदान करे । 

देवी सुशीला के पेंट से विशिष्ठ विशिष्ठ प्रकार उत्तम भोजन राजा पुत्रो के सामने पहुंचा ।
सहस्त्रबाहु के पुत्रो ने ऐसा भोजन उनके जीवन भर में कभी नहि किया था । पुत्रो ने राजमहल जाकर सुशीला के विशिष्ट गुणो के बारे में सहस्त्रबाहु कों बताया । 
  कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को सुशीला के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। ऋषि जमदग्नि ने अपनी आत्मरक्षा के लिए शस्त्र उठाया और सहस्त्रअर्जुन से मुकाबला किया । 
अंत में सहस्त्रबाहु ने छल द्वारा जमदग्नि ऋषि कों घायल कर दिया और सुशीला कों अपने राजभवन ले कर चला गया ।
सहस्त्रबाहु अपने पुत्रो से कहते है मैंने तुम्हारे जमदग्नि ऋषि की गाय ला ली है। 
परशुराम जी कों खबर चली की उनके आश्रम से सहस्त्रबाहु कामधेनु सुशीला कों लेकर चला गया तो दौड़े आये परशुराम जी 
जमदग्नि बोले - परशुराम , पुत्र तुम सत्य कहते थें आवश्यकता पड़ने पर शस्त्र केवल आत्मरक्षा के लिए नहि अपितु आक्रमण के लिए भी उठाना उचित है । 

सहस्त्रबाहु के पुत्रो ने कहाँ - हे गऊ हम चारो भाईयो के लिये चार ऐसी सुन्दर कन्याए प्रकट करो जिनका यौवन मंदिरा के कलश की तरह झलक रहा है । 
कामधेनु माता ने कोई जवाब नहि दिया । 

पुत्रो ने कहाँ - इतना विलम्ब देवी , रेणुका देवी के कहने पर तो आपने पलक झपकते ही स्वादिष्ट भोजन का प्रबन्ध कर दिया था । हाँ देवी ऐसा स्वादिष्ट भोजन तो आज तक हमे हमारे राजभवन में भी नहि मिला । 
क्या हो गया सुशीला कों , क्या हमारे साथ छल हो गया । ये तो सुशीला ज्ञात ही नहि होती । जमदग्नि ने छल किया है । हमारे साथ है वो ये गऊ नहि है । 
हे गऊ हम तुझे अंतिम अवसर दे रहे है हमारी अंतिम ईच्छा पूरी कर दों नहि तो , गऊ कों मारने के लिए एक पुत्र ने लाठी उठायी ही थी की 
उसी समय वहां परशुराम आये । 
परशुराम बोले - दुष्टों यदि गऊ माता कों हाथ भी लगाया तो आप लोगों के मृत शरीर धरती पर पड़े मिलेंगे । कितने निर्जल और निर्दयी हो तुम लोग । 
गऊ जैसै भोले भाले  पशु पर अत्याचार कर हो । 
पुत्र बोले - ये हम जो चाह रहे हो वो भेंट नहि कर रही है ।
परशुराम जी बोले - मूर्खों ये पवित्र गऊ है । ये वही भेंट करती है जो पवित्र होता है , तुम दुष्कर्मियो की ईच्छा पूरी नहि करेंगे , ये तो अपवित्र स्थान पर रहना भी पसंद नहि करती है । मैं तुम्हे इस कर्म के लिए दण्ड अवश्य देता लेकिन गऊ माता सुशीला की उपस्थिति में कोई हिंसक कार्य नहि करना नहि करना चाहता । मैं तुम लोगों कों अंतिम बार क्षमा कर रहा हूँ ध्यान रहे । 
परशुराम जी बोले - चलिए गऊ माता 
सहस्त्रबाहु पुत्र बोले - दण्ड तो हम तुम्हे देंगे । जब तक परशुराम गऊ कों लेकर आश्रम नहि पहुँचता है भाईयो हमे इससे पूर्व पहुचना होगा , चलिए भाईयो । 

जमदग्नि ऋषि बोले - देवी मेरा राम , मेरा परशुराम कहाँ है , किधर गया है । 

रेणुका देवी बोली - स्वामी दुष्ट सहस्त्रबाहु सुशीला कों लेकर चला गया है और परशुराम उसी कों लेनें गया है । 

जमदग्नि बोले - रेणुका मेरे शिष्य , शेष पुत्र तो घायल नहि हुए ना । 
रेणुका देवी बोली -आप चिंता न करे स्वामी , उनके घाव साधारण है मैंने उन्हे विश्राम करने का आदेश भी दिया है वे विश्राम कर रहे होंगे । 
ईश्वर का धन्यवाद आप मूर्छा से बाहर आ गए । आपकों  मूर्छित देखकर मैं तो घबरा ही गई थी । 

तभी अचानक आश्रम के कुटिया के द्वार खुले । सहस्त्रबाहु दुष्ट के चारो बेटो ने घायल जमदग्नि के ऊपर तलवारों से प्रहार करना चालू कर दिया । 
माता रेणुका ने पति की रक्षा करने का पहुंच प्रयास किया लेकिन उसे भी चोट आ गई । 
इस तरह चारो बेटो ने बड़ी बेरहमी ऋषि जमदग्नि की हत्या की और माता रेणुका देखती ही रह गई और उनके स्वामी के प्राण चले गए  । 
माता रेणुका स्वामी स्वामी पुकारते हुए रो रही थी तब तक वहां परशुराम जी कामधेनु सुशीला कों लेकर वहां पहुंचे । 


        रेणुका माहात्म्य पार्ट  7

माता रेणुका देवी  हे स्वामी ,  हे स्वामी करते हुए अपनी छाती पीट कर विलाप कर रही थी , वहां पिता के चरणो में बैठे परशुराम देख कर गणना करते गए और कहने लगे माता शांत हो जाइये , अपने आप कों संभालिए । 

रेणुका देवी बोली - जिन्होने मेरे स्वामी के प्राण लूटे है संसार में नाम न रहे उनका , जिन्होने ऐसी कायरता की है । ऐसी कायरता की है । 

परशुराम बोले - हे पिता श्री मैं आपसे कहाँ था आतंक के पीछे सिर झुकाना  आतंक कों बढ़ावा देना है , जो लोग अहिंसा कों कायरता समझते है उन्हे विश्वास दिलाना आवश्यक होता है की अहिंसा व्यक्ति कों कायर नहि बनाती है । आपने मेरा तर्क समझा पिताजी परन्तु तब तक बहूत देर हो गई थी । 
हे माता मैंने गणना की है आपने इक्कीस बार छाती कों पीट कर विलाप किया  । मैं आपको अपने पिता के पार्थिक शरीर पर आपको वचन देता हूँ इन छत्रियों का 21 बार वध करूंगा । 21 बार इन छत्रियो कों नष्ट करूंगा ।  हे माता मैं इस धरती पर उन कायरों के रक्त का सरोवर बना दूंगा । आपकी सौगन्ध माता , आपकी सौगंध माता मैं यही करूंगा । मैं यही करूंगा , मैं यही करूंगा माता । 

सहस्त्रबाहु के चारो बेटे जमदग्नि आश्रम आते है और अनामिका कों बलपूर्वक ले जाने का प्रयास करने लगे , अनामिका कों बचाने के लिए माता रेणुका ने भी तलवार उठा ली और पापी दुष्ट सहस्त्रबाहु के बेटो के साथ युध्द किया लेकिन माता तलवार के घाव से जख्मी हो गई और उन्होने अनामिका से कहाँ की बेटी अब तुम्हारी रक्षा तुम्हे स्वयं करना है । 
अनामिका बोली - मैंने राम की शक्ति बनने के लिए जन्म लिया है दुष्टों , उनकी दुर्बलता बनने के लिए नहि । यदि मेरे कारण उनके अभियान की गति छीर हो , उनकी शक्ति में कमी आये , मैं कदापि ऐसा होने नहि दूंगी । इसलिए मैं ये जीवन ही समाप्त कर रही हूँ । 

रेणुका देवी बोली - हे पुत्री तुमने क्या किया , अनामिका अनामिका 
अनामिका बोली - मैंने अपने आत्मसम्मान और राम की शक्ति की रक्षा की है । हे माता मूझे क्षमा कर दीजिएगा । 
रेणुका माता बोली - क्षमा कर दु , तुमने ऐसा किया क्या है । 
अनामिका - मैंने आपसे झूठ कहाँ था की मैने आपके पुत्र से विवाह कर लिया । मैं सदैव उनसे प्रेम करती रही किन्तु विवाह न कर सकी । 
रेणुका देवी बोली - पुत्री , मैं तो तुम्हे पुत्र वधू मान चूँकि हूँ । और तुम ही मेरी पुत्र वधू होगी । 

तभी परशुराम जी वहां आये और अनामिका कों मृत्यु शैया पर लेटे देख बोले - अनामिका अनामिका , माता ये क्या हो गया अनामिका कों । 

रेणुका देवी बोली - दुष्ट सहस्त्रबाहु के चारो पुत्र इसे बलपूर्वक लेकर जा रहे थें इसने इसके आत्म सम्मान की रक्षा ऐसे की । इस प्रकार की । 
परशुराम जी बोले - ये तुमने क्यु किया अनामिका,  तुमने ये क्या किया अनामिका । 
अनामिका बोली  - तुम आ गए राम । मैं तुमने देखे बिना मरना नहि चाहती थी । मेरा सौभाग्य की तुम मेरे नेत्रो के पथराणे से पहले ही आ गए मेरे प्राण मेरे नेत्रो में सिमट आये है , तुम्हे देख लिया अब मैं शांति से जीवन का त्याग कर सकतीं हूँ । जिसके रहते तुम्हे पाना असम्भव था । मैं तुमसे प्रेम करती हूँ राम । 

अनामिका की मृत्यु के बाद परशुराम जी सहस्त्रअर्जुन के चारो बेटो की एक एक कर हत्या कर देतें है उनके कटे हुऐ शीश माता रेणुका देवी के चरणो में ला कर रख देतें है और माता रेणुका को प्रणाम कर कहते है ..
हें माता आपने कहाँ था ना , जिन लोगों ने आपका सुहाग लूटा है , उनका वंश मिट जाये , मैं उनके वंश के नाश की राह पर प्रथम पग लिया है । जिन लोगों ने आपकी मांग ने वैतल्य की राख मल दी । मैंने उनको पावन मिट्टी में मिला दिया । 

माता रेणुका कटे हुऐ सहस्त्रअर्जुन के पापी बेटो के सिरो को देखकर कहती है - इन दुष्टों के अंत से मेरा लूटा हुआ सुहाग तो नहि मिल सकता पुत्र । किन्तु हर्ष अवश्य है की पाप और अन्याय को दण्ड अवश्य मिल गया है । नहि तो हर बलवान यही सोचता निर्बल पर अत्याचार किया जा सकता और वह सिर्फ तमाशा हि देख सकता है । 

परशुराम जी कहते है - माता मैं यही बात सिद्ध करना चाहता हूँ की हर निर्बल पर अत्याचार करने वाला ये जान ले की निर्बल और उसके बीच कोई परशुराम भी आ सकता है । जो उसका विरोध भी कर सकता है । उसका अंत भी कर सकता है , माता मैंने सरनावत में जो कुण्ड बनाया है उसको छत्रियों के रक्त से भरना है । मैंने आपको ये वचन दिया था माता वह वचन मैं अवश्य निभाऊंगा । 
 
रेणुका माता बोली - पुत्र लेकिन एक ऋषि पुत्र के पास से करुणा हि चली गई तो इस संसार का क्या होगा ।जहाँ तक हो सकें शस्त्र को ना उठाए तो हि अच्छा है पुत्र । मैं दोषी ना तुम्हे समझती हूँ ना अपने स्वर्गीय पति को दोषी समझती हूँ , यह विधि का लेख है इसे कौन टाल सकता है । एक ओर तुम अकेले हो वही दूसरी ओर दुष्ट सहस्त्रअर्जुन के साथ सैकड़ो छत्रिय राजा है मेरा तुम्हे आशीर्वाद है तुम इस दुष्ट सहस्त्रअर्जुन का वध कर इस धरती को पाप मुक्त करोगे । 

रेणुका माता की प्रार्थना पर परशुराम जी ने एक बार फिर युध्द टल जाये इसका प्रयास किया । 
परशुराम जी ने अपना सन्देश वाहक सहस्त्रअर्जुन के राज महल भेजा और कहाँ की निश्चित जगह पर अकेले में परशुराम जी उनसे मिलना चाहते है । ठीक परशुराम जी के बुलाए स्थान पर.दुष्ट सहस्त्रअर्जुन आया । 
परशुराम राम जी बोले - हें सहस्त्रअर्जुन तुमने शक्ति का दुरूपयोग किया जिससे तुम क्या थें और क्या बन गए हो । अगर तुम समस्त भार्गवो , ऋषियों और सन्तो से क्षमा मांग लो तो निश्चित तुम्हे जीवनदान मिल सकता है , ये युद्ध टल सकता है , मैं  तुम्हे अंतिम अवसर देना चाहता हूँ । 

लेकिन दुष्ट सहस्त्रअर्जुन अपनी सहस्त्र भुजाओं की शक्ति के अभिमान में चूर था,हि नहि था इस तरह अपनी जान बच पाने का अंतिम अवसर भी सहस्त्रअर्जुन गवा बैठा । अब युद्ध होने से कोई भी नहि रोक सकता था । परशुराम जी को भय था की उनकी माता को किसी प्रकार का सहस्त्रअर्जुन कष्ट ना पहुंचाए इसलिए वे अपनी माता को जमादारा सिन्धु नदी के तट से कोसो दूर हिमांचल प्रदेश की सुन्दर वनों में लेकर चले गए जहाँ माता रेणुका तक सहस्त्रअर्जुन और उसकी सेना नहि पहुंच सकतीं । यही पावन भूमि रेणुका माता की जन्मभूमि थी , यही धरा पर उनके पिता रेणु राजा राज करते थें । 
रेणुका माता की खोज में सहस्त्रअर्जुन ने जमीन आसमान एक कर दिया तब ज्ञात हुआ की परशुराम ने अपनी माता को दुसरे प्रदेश में छिपा रखा है । सहस्त्रअर्जुन परशुराम जी की कमचोरी श्री रेणुका देवी को बंधक बनाकर परशुराम जी की हत्या करना चाहता था , वही पापी दुष्ट रेणुका देवी को अपनी रानी बनाने के लिए नई नई युक्ति सोचते रहता था । एक दिन सहस्त्रअर्जुन अपनी सेना की एक टुकड़ी के साथ हिमांचल पहुंच गया और रेणुका देवी का चीर हरण करने के लिए उसकी ओर बड़ा , माता रेणुका देवी सहस्त्रअर्जुन के इरादों को भांप गई और वह नीचे तलहटी में जा पहुंची । सहस्त्रअर्जुन देवी रेणुका का पीछा करते हुऐ उसके पीछे दौड़ा , पापी दुष्ट सहस्त्रअर्जुन देवी रेणुका माता को पकड़ पाता की तभी रेणुका देवी के मूल स्वरूप देवमाता अदिति के अनुरोध पर एकाएक धरती फटी और माता रेणुका उसमे समा गई । श्री रेणुका देवी के धरती में समाते हि पानी की धाराएँ फुट पड़ी और उस स्थान ने झील का रूप धारण कर लिया । सहस्त्रअर्जुन ये दृश्य देखकर अचम्भित हो गया और उसे यहां से भी खाली हाथ लौटना पड़ा । 
सहस्त्रअर्जुन ने सारे भारतवर्ष के छत्रिय राजाओ का संगठन तैयार कर परशुराम जी की हत्या हो सकें जिसके लिए नई नई युक्तियों तैयार करने लगा । 
वह दुष्ट परशुराम जी को चूहे हि भांति घेरकर षडयंत्र से मारना चाहता था । वही परशुराम जी को यह ज्ञात था की सहस्त्रअर्जुन उनके लिए कैसे कैसे युध्द नीति तैयार कर रहा इसलिए परशुराम जी ने भार्गवो के साथ मिलकर सहस्त्रअर्जुन का वध करने के लिए नई युद्ध नीति की रचना की । 
परशुराम जी भार्गव शिष्यों से कहते है - तुम लोगों में से जिन लोगों की काया काली है , वे 5 लोग मेरा रूप धारण कर उन राजाओ पर आक्रमण करेगा  , वो रूकेगा नहि , वहां से भाग जाएगा । ताकि सेना की टुकड़ी भी उसके पीछे भाग जाये । मेरा रूप धारण कर दूसरा वीर सेना की दूसरी टुकड़ी पर आक्रमण करेगा । इससे उसकी सेना में आतंक मंच जाएगा । भ्रम की स्थति उत्पन्न होगी , सैनिक  ये समझ नहि पाएगे कहाँ जाये और कहाँ ना जाये । ध्यान रहे , हमे उनके हाथो से नहि मरना है , उन्हे मारना है , और कोई प्रश्न । 

भार्गव शिष्य बोले - हमे सब समझ आ गया , ऐसा हि होगा ।

जमादारा भिण्ड की पावन भूमि पर यह युद्ध हो रहा था जहाँ युद्ध की जगह पहले हि परशुराम जी जमीन के अंतर छिपे हुऐ थें । परशुराम जी के रूप में एक वीर आता और सहस्त्रअर्जुन राजा की सेना की टुकड़ी उसके पीछे चली जाती ।  
 इस तरह पांच वीर परशुराम जी का रूप धर मैदान में आये और सेना की पांच टुकडियां उन वीरों के पीछे चली गई । भार्गव अचानक कही से आकर वार करते , पापियों की हत्या करते और भाग जाते इस तरह सहस्त्रअर्जुन सारी सेना मिट्टी में मिल गई तभी अचानक सहस्त्रअर्जुन के सामने ने धरती को चीरकर भगवान परशुराम जी प्रकट हुऐ , आसपास के क्षेत्र में मानो महाप्रलय , भू चाल हो उठा हो , सहस्त्रअर्जुन अकेला और दूसरी ओर परशुराम थें , लम्बे अंतराल तक परशुराम जी और सहस्त्रअर्जुन में युद्ध चला लेकिन वह समय आ गया जब परशुराम जी ने सहस्त्रअर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया । पापी दुष्ट का वध होते हि देवी देवताओ ने परशुराम जी पर फूलो की वर्षा करने लगे । 

हें माता हें पिता मैंने आपको वचन दिया था , इस धरती से हैहय छत्रियो के रक्त का सरोवर बना दूंगा । मैंने बना दिया है , मैं आज उन सभी के रक्त से तर्पण कर रहा हूँ ।