आदिशक्ति धारुडवाली अम्बादेवी माँ की महिमा संकलित करने के बाद रविन्द्र मानकर ने रायपुर छत्तीसगढ़ के कवि मोहन श्रीवास्तव जी से अम्बे महिमा पर एक कविता की रचना करने का निवेदन किया जो कविता आप सभी भक्तजनों समक्ष हैं ।
आओ हम अम्बा देवी माँ का,सुमिरन कर लें
अदिशक्ति शेरांवाली का तो हम, भजन कर लें ।।
माँ की प्यारी भक्त राधा का,
उनके चरणों मे हम नमन कर लें ।।
आओ हम अम्बा देवी माँ का......
बेतुल जिले की धारुड़ के पास गुफाओं में,
माँ अम्बा देवी वहीँ पे बिराजी हैं ।
मुम्बई की अम्बा देवी,अमरावती की अम्बा माँ ,
ये उनके ही रूप में जानी जाती है ।।
माई मंगला का समाधि स्थल धारुड़ में,
जिन्हें सब कोई माँ राधा कह बुलाते थे ।
माँ राधा के गुरु सूरदास स्वामी थे,
जो परत वाड़ा के ही रहने वाले थे ।।
साल बर्डी शिवधाम की गुफा में माँ,
शिव और अम्बा माँ का आराधना था है किया ।
कुछ दिन बाद वहाँ के पुजारी से आहत,
माँ राधा ने वहाँ से तो था प्रस्थान किया ।।
मा शिवधाम को तब छोड़कर आगे थीं बढ़ी ,
माँ अम्बे की गुफा का तब दर्शन पाया ।
बात 1970 की है मेरे प्यारों,
मा मंगला ने अम्बा माँ की भक्ति पाया ।।
गुफा के आस-पास तब भयानक जंगल था,
उसमे तब जंगली जानवर रहा करते ।
गांवो के ग्वाल -बाल अपनी बहुत सी गायों को,
उन जंगलों मे थे वे चराया करते ।।
एक दिन भैय्या गायकी नाम के ग्वाले को,
अचानक जोर से थी तब बड़ी प्यास लगी।
पानी की खोज में भटकते हुए उस ग्वाले को,
माँ अम्बा की पावन गुफा दिखाई दी ।।
वहीँ पे मंगला ने पानी पिलाया प्यासे को,
और उस गुफा के बारे में था बतलाया ।
उसकी बातों को सुनके ग्राम सावँगी व जामगाँव के,
भक्तों का झुण्ड था सबसे पहले आया ।।
इन्हीं भक्तों मे केशो पटेल थे सच्चे,
जो कि घोड़ी-घोघरा के रहने वाले थे ।
माँ अम्बा की पावन गुफा को तब,
मा मंगला के साथ मिलके सबको बतलाये थे ।।
एक रात केशो को लेकर मा राधा ने,
उस गुप्त गुफा की यात्रा को आरम्भ किया ।
जैसे-जैसे वे आगे थे बढ़ते जाते ,
उनको कुछ दूर पे एक सुंदर सरोवर है दिखा
।।
उस पावन सरोवर के किनारे तब,
उन्हें शिव-पार्वती-गणेश का प्रतिमा है
मिला ।
कुछ दूर आगे जाकर उनको तब,
माँ काली की प्रतिमा का दर्शन भी
मिला ।।
उन्हीं के पास में सुंदर फलों के बगीचे थे ,
जहाँ पे आठ साधुओं को देखे वे तपस्या में ।
वहीँ शिव-पार्वती की प्रतिमा के
पास ही ,
माँ अम्बा देवी के तब दर्शन है हुए ।।
उस गुप्त गुफा का मार्ग बहुत छोटा है,
जहां पे जंगली जानवरों का बसेरा था ।
वहीँ पांडवों के अज्ञातवास के दिन में,
यहीँ पे उन सबका यहां पे डेरा था ।।
एक बार शिव जी भस्मासुर से बचने के लिए
इसी गुफा में तब उन्होंने विश्राम किया
।यहां पे कई ऐसी गुफाऐं हैं,
जो कि जाके पंचवटी महादेव में मिला ।।
कुछ दिन बाद मा राधा ने अपने गुरु को बुलवाकर,
और उन्हें सारी कहानी है बतलाई ।
तत्पश्चात गुरु सूरदास स्वामी ने,
अम्बा देवी के बारे में भविष्यवाणी की
।।
यहां भक्तों की भीड़ श्रद्धा के साथ आ
करके,
माँ अम्बा की सब जय-जय कार बुलाएंगे ।
अमावश्या ,पूर्णिमा को माँ के दरबार में तब,
अधिक से अधिक भक्त माँ को तब मनाएंगे।।
मा राधा ने 14 साल तक अन्न-जल न लिया ,
वे फल-फूल-पत्तियां ही बस खाती थीं ।
मा राधा को उनके गुरु मंगला कहते ,
पर भक्तों के बीच माँ राधा ही जानी जाती ।।
35 भक्तों के साथ सन् 1978 में,
मा राधा ने भारत में तीर्थ यात्राऐं की ।
गंगा सागर,अयोध्या,रामेश्वरम,
मथुरा,हरिद्वार ,प्रयागऔर काशी ।।
ऐसी माँ अम्बा की भक्त मा राधा थी,
जिसने माँ अम्बा की भक्ति पाया ।
माँ अम्बा के भक्त रविन्द्र मांकर से कहानी सुनकर,
कवि मोहन ने इस रचना को है रच डाला।।
मेरी विनती है आप सबसे माँ के भक्तों,
कभी किसी के दिल को दुखाना तुम नहीँ ।
जिंदगी चार दिन की है बस अपना समझो,
किसी भी चीज का घमण्ड दिल में लाना तुम नही ।।
आओ हम अम्बा देवी माँ का,सुमिरन कर लें ।
अदि शक्ति शेरांवाली का तो हम,भजन कर लें ।।
माँ की प्यारी भक्त राधा का,
उनके चरणों मे हम नमन कर लें ।।
आओ हम अम्बा देवी माँ का......
माँ अम्बादेवी का बड़ा प्यारा रिश्ता होता हैं उन पर अटूट श्रध्दा और आस्था रखने वाले बेटो के साथ । माँ हर पल अपने बेटो की रक्षा करते रहती हैं । रविन्द्र मानकर एक उदाहरण हैं आपके बीच जो निरन्तर अम्बा माई नाम गुण गा रहा हैं । माँ अम्बे अमृत का रसपान किये जा रहा हैं । माँ अम्बा की कृपा से मूझे बहुत कुछ मिला हैं ॥ मैंने माँ अम्बे से कभी धन दौलत नहि मांगी मैंने सिर्फ माँ अम्बा के मन में एक छोटा सा कोना मांगा और माँ ने जो दिया उसका जितना बखान किया जाये कम हैं । इसलिए मेरे दिल से एक ही आवाज निकलती हैं ।
जब से मिला हैं मूझे ये दरबार अपनी तो दुनियाँ बदल गई यार
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी अम्बा माता ने
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