पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यो से भरपुर सबकी मुरादे पुरी करने वाली ,अपने अनन्य भक्तो को अमर करने वाली मांई अम्बादेवी आपकी सदा ही जय हो ।
सतपुडा के घने जंगलो मे बिराजी मां अम्बादेवी का ये मन्दिर हर आने वाले भक्त के मन को मोह लेता है।
कथा है जब भगवान शिव मां सती के शव को लेकर बम्हांड मे ताडंव नृत्य कर रहे थे उस वक्त इसी स्थान पर मां सती के देह की चुनरी गिरी थी ।इस लिए इसे चुनरी वाला दरबार भी कहा जाता है।
मध्यप्रदेश के बैतुल जिले मे धारुड ग्राम पंचायत मे अम्बा माई का मन्दिर परम पवित्र सतपुडा पर अपनी वैभवशाली सत्ता के साथ सुशोभित है।
माई सती के देह की चुनरी वाली ,चार भुजाओ , मन के दुख को हरने वाली ,सब की मुरादे पुरी करने वाली माई अम्बा को कोटी-कोटी प्रणाम है।
इस धरती पर मां अम्बे ही वो शक्ती है,जो हमारी झोली भरने के लिए ,हमारी मुरादे पुरी करने के लिए ,हमे खुद अपने दरबार पर बुलाती है।
इस स्थान की महिमा चारो युगो मे 3 गुणो के लोगो द्वारा गाया जाते रहा है ,और आगे भी गाया जाते रहेंगा।
कोई भी भाषा हो ,कोई भी बोली हो
दुनिया भर मे जो हम पहला शब्द बोलना सीखते है वो है मां ।
आज हमारी यात्रा मे हम आपको मां से मिलाने चलते है ।
शेरोवाली माँ, पहाड़ावाली माँ,
धारुडवाली माँ,अम्बादेवी माँ,
कितने भी दर्शन को लालायित हो लेकिन जब तक मां का बुलावा नही आ जाता आप अम्बादेवी नही आ सकते है।
मां अम्बादेवी की दर्शन यात्रा अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दु बैतुल जिले से आरम्भ होती है।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी को जोडने वाले मध्य रेल्वे के बैतुल रेल्वे स्टेशन से अम्बादेवी शक्तिपीठ की दुरी लगभग 90 कि.मी. है ।
बैतुल जिला मुख्यालय से आगे बढ़ने पर मां अम्बादेवी की यात्रा मे प्रथम दर्शन मां सुर्यपुत्री ताप्ति का होता है।
जब उन्होने पुन: सृष्टी के निर्माण का ध्यान किया तो भगवान सुर्य वहा उपस्थित हो गये ,लेकिन ब्रम्हाजी की व्याकुलता से वे भी चिन्तित हो उठे।
अत: उन्होने अपनी पुत्री ताप्ती का ध्यान किया ।
सुर्यपुत्री ताप्ति उनके ताप से उत्पन्न होकर सारी दिशाओ एवं आकाश को अलौकित करते हुए पिता का संताप दुर करते हुए भुलोक पर प्रकट हुई ।
इस तरह सृष्टी निर्माण के समय प्रथम नदी के रुप मे ताप्ती का अवतरण हुआ ।
ऐसा भी कथा है कि भगवान
भगवान राम ने ताप्ती नदी के तट पर 12 ज्योतिर्लिंगो की स्थापना कर भगवान शिव का रुद्राभिषेक पुजा अर्चना की थी जिससे उनके पिताजी राजा दशरत को ब्रम्हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके ।
इस तरह आदिगंगा मां ताप्ती के दर्शनो के बाद आगे चलने पर आठ मोहल्लो का नगर आठनेर पड़ता है ।
नगर के प्रवेश द्वार पर ताप्ति झिरी मिलती है ,जिसके बारे विशेष कथा प्रचलित है कि एक भक्त को मां ताप्ति ने यहां पर दर्शन दिये थे और इस झिरी मे समेशा सदा वास करने का प्रण किया था।
आगे चलने पर बाजार चौक मे स्थित दुर्गा मन्दिर मे मातारानी दर्शन से अलौकिक आनन्द कि प्राप्ति होती है।
यह मन्दिर आठनेर नगर के वासियो की सबसे बडी आस्था और विश्वास का केन्द्र है।
नगर से लगभग 5 कि.मी दुरी चलने पर वो प्राचिन गुप्तेश्वर शिवधाम है जहाँ भगवान शिव ने अपना पीछा कर रहे भस्मासुर नामक राक्षस को कुछ पल के लिए पीछे मुड़कर देखा था।
इस भगवान के इस मन्दिर के दर्शन के बाद पुन: शहर वापस आकर अम्बादेवी के दर्शन के लिए आगे बढ़ते है ।
मां अम्बादेवी जाने का रास्ता घोघरा जोड से हिरादेही होते हुए जाता है।
रास्ते मे अनेक घाट चढ़ाव आते है कई खतरनाक मोड भी आते है ,परन्तू भक्तो का ऐसा विश्वास है कि जंगल के बिच रास्ते आने वाले नहालदेव बाबा के दर्शन मात्र से सभी बाधाये दुर हो जाती है।
अब हम धारुड ग्राम मे प्रवेश करते है ,
जहाँ से अम्बादेवी दरबार की दुरी लगभग चार कि.मी रह जाती है ।
आगे चलने पर छोटी अम्बा मांई मन्दिर दिखाई देता है।यहाँ सभी भक्तगण आवक-जावक के साधन खडे करते है। क्युकि आगे का रास्ता पैदल ही तय करना पडता है ।अब भक्तगण छोटी अम्बा माँई के दर्शन करके आगे बढ़ते है।
यहाँ से स्वयं भु प्रकट हुई गुफा मे बैठी माँ अम्बा माँई के दरबार की दुरी 2 कि.मी रह जाती है ,जो घने जंगल से होकर जाना पड़ता है।
जो हर क्षण अपनी ओर खीचती चली है।
मां के भक्तो को ना पैरो के छाले रोक पाते है।
न पर्वतो की ऊँचाईया
मन मे श्रध्दा और होठो पर जयकारे लिये
मां के चाहने वाले आस्था के पग पर चले जाते है।
इस तरह माँ अम्बादेवी के भक्तो का जत्या
जय माता दी के नारे लगाते हुए , नाचते झुमते ,मां की भक्ति मे चुर आस्था के पग पर आगे बढ़ते जाते है।
जिसकी कठिन चढाई चढ़ने पर भक्तगण पहाडी पर स्थित देवी -देवताओ के दर्शन कर आगे बढ़ते है।
इस खडी पहाडी से महाराष्ट्र के गांव स्पष्ट रुप से दिखाई देते है ।
इन पहाडियो की एक कहावत है ,
मां समान कोई दाता नही ,
मां के समान इस सृष्टी मे कोई देवी माला नही है,
इन पहाडियो पर निरन्तर मां के जय जय कारे गुंजते रहते है।
यहाँ से कुछ दुरी आगे बढ़ते ही वो ऐतिहासिक मन्दिर है ,जहाँ आज से लगभग 45 साल पहले मंगला नाम की एक भक्त को अम्बे मां ने दर्शन दिया और इस दरबार को जन-जन तक पहुचाने की जवाबदारी सौपी थी ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव मां के देह को लेकर ब्रम्हांड मे तांडव कर रहे थे उस वक्त मां सती की चुनरी इस स्थान पर गिरी थी ।
आगे चलने पर मां अम्बादेवी दरबार का प्रवेश द्वार दिखाई देता है ।
प्रवेश द्वार से नीचे उतरने पर हनुमान के दर्शनो के पश्चात भक्तगण तपस्वी सन्त मां मंगला के दर्शन करते है ,और मां अम्बादेवी के दर्शनो के लिये आगे बढ़ते है।
गुफा के मुख्य द्वार पर गणेशजी के प्रतिमा के दर्शन होते है।
आगे बढ़ते ही मां अम्बादेवी का वो आदिशक्ति दरबार दिखाई पडता है, जहां मां अम्बा मांई सदियो से विराजमान है।
स्वयं भु प्रकट हुई अम्बा माई के दिनभर मे 3 रुपो मे दर्शन प्राप्त होते है।
कहते है कि माता के इस दरबार से बडी किस्मत वालो को बुलावा आता है ।
मां ने बुलाया तो पांव खुद ही उसके भवन की ओर चल पड़ते है ।
एक बार लगन लगी तो
मां भक्त पर न्योछावर हो जाती है।
और भक्त मां पर
ऐसा है ये सम्बन्ध
ऐसे है ये भावना के बन्धन।
मां अम्बादेवी मन्दिर की सबसे बडी यह विशेषता है कि भगवान महाकाल के जैसे ही अम्बा माई का प्रतिदिन जलाभिषेक कर चोला और वस्र पहनाकर श्रंगार किया जाता है ,जिसके पश्चात महाआरती की जाती है ।
स्वयं भु प्रकट हुई अम्बा माई के दरबार के पास ही एक गुप्त गुफा है जिसके बारे मे कहते है कि इस गुफा मे लगभग 2 कि.मी अन्दर कई साधु मुनि लोग तपस्या मे लीन है ,अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ और रास्ते कई जंगली जानवर ,विषधर साप है ।आगे एक तालाब है जहाँ भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा है उनके सम्मुख गणेश जी की प्रतिमा है ,मां कालिका तेजमय प्रतिमा है।
धारुड अम्बादेवी की गुप्त गुफा के बारे मे कही जाने वाली बाते एक रहस्य हि नही है , बल्कि बहुत आश्चर्य की बात यह कि इस गुफा मे दर्शन करके आने वाला भक्त आज भी हमारे बिच है।
तपस्वी संत मां मंगला और भक्त केशो पटेल उस गुप्त गुफा से की यात्रा कर आये । मां अम्बादेवी पर अटुट
आस्था रखने वाले लोग इसे रहस्य ना समझकर सच्चाई मानते है।
इस गुप्त गुफा के बारे मे ऐसा भी कहा जाता है ,कि पांच पांडवो ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन यहाँ गुजारे थे ।
3 टिप्पणियां:
माँ अम्बाँदेवी जाग्रति समिति आठनेर
आप सभी भक्तो का हार्दिक अभिन्दन करता है कि आप
माँ के दरबार मे आये |
माँ अम्बाँदेवी समिति का पंजीयन क्रमांक " 01/06/07/26498/13 " है |
समिति के अध्यक्ष श्री भोजराव जी गायकवाड है |
माँ अम्बाँदेवी दरबार के पुजारी कन्हैय्या महाराज
माँ अम्बाँदेवी शक्तिपीठ
धारूड (आठनेर) बैतुल म॰प्र॰ " ये माँ मंगला का समाधि स्थल है जो माँ अम्बाँदेवी की परम भक्त थी |
माँ मंगला को उनके भक्त राधा माँ कहकर भी पुकारते थे |
माँ मंगला परतवाडा के पास स्थित निरजगाँव की रहने वाली थी |
माँ मंगला के गुरू सुरदास महाराज परतवाडा मे रहते थे |
माँ मंगला सन् 1965 के आस-पास सालबर्डी शिवधाम की इक गुफा मे रहकर भगवान शिव और अम्बाँ माँ की पुजा आराधना कर रही थी |
उसके कुछ समय बात माँ मंगला का वहाँ के पुजारी के साथ विवाद हुआ माँ मंगला को अम्बाँ की कृपा से सिध्दी थी जिसके कारण पुजारी का मान घटने लगा था | अतः माँ शिवधाम को छोडकर आगे बडी माँ अम्बे की कूपा से उन्हे अम्बाँदेवी की दिव्य गुफा के दर्शन हुए |
सन् 1970 से माँ मंगला अम्बाँदेवी की गुफा मे रहकर माँ अम्बाँ की तपस्या करने लगी |
यह गुफा धारूड ग्राम की पोस्ट मानी तहसिल आठनेर जिला-बैतुल मे स्थित है |
माँ अम्बाँदेवी गूफा के आस -पास घना जंगल है जिसके कारण दूर दुर तक लोग इस ओर आने से डरते थे | कई जहरीले जानवर भालू -शेर और साँप जंगल घुमते रहते थे |
उन दिनो जंगलो मे सिर्फ बरसात के दिनो मे गोली लोग सारे गाँव की गौ -माँताओ को चराने के लिये जाते थे |
जामगाँव आठनेर के भैय्या गायकी को बहुत तेज प्यास लगी और वह इधर-उधर पानी की तलाश करने लगा , पानी को खोजते -खोजते वह माँ अम्बाँदेवी की गुफा तक जा पहुचा और वहाँ उसे माँ मंगला दिखायी दी | माँ मंगला ने उन्हे पानी पिलाने के बाद सारे गाँव के लोगो को इस गूफा की जानकारी बताने को कहाँ और फिर माँता के भक्तो का आना जाना चालू हूआ |
माँ अम्बाँदेवी की गुफा के दर्शन करने वाले भक्तो मे सबसे पहले ग्राम सावँगी और हिवरा के भक्त थे |
ऐसे भक्तो की कतार मे एक सच्चा भक्त केशो पटेल जो घोंडी घोघरा का रहने वाला जा पहुचा माँ अम्बाँदेवी कि दिव्य गूफा तक और माँ मंगला और केशो पटेल जी माँ अम्बाँदेवी के दरबार को अधिक से अधिक लोगो तक पहुचान का प्रयास चालू कर दिया |
जय माँ अम्बा माई
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