शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

माँ रेणुका शक्तिपीठ जमदारा जिला भिण्ड


आदिशक्ति विश्व माता श्री रेणुका देवी की महिमा अपरम्पार है । धन्य है वह माता जिनके गर्भ से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु हरी ने परशुराम रूप में जन्म लिया ।
रेणुका भवानी माता के भारतवर्ष में सैकड़ो शक्तिपीठ विद्यमान है जहाँ माता ने अपने भक्तो की पुकार पर अनेक लीलाएँ रची । माँ रेणुका देवी जिन्हें भारत वर्ष के घर - घर में कुलदेवी के रूप में पूजा जा रहा है जिससे माता को कूलस्वामिनी नाम से पुकारा जाता है । प्रिय भक्तजनों भिण्ड जिले के जमदारा गांव में माँ रेणुका देवी कैसे आयी और माँ रेणुका देवी ने इस जमदारा की पावनधरा पर कैसे कैसे करिश्में दिखाए तो चलिए माँ रेणुका की इस मानसिक यात्रा का लाभ उठाने हमारे । माता रेणुका का जन्म से पूर्व का नाम अदिति था । माँ अदिति ने सैकडो वर्ष तक भगवान शिव शंकर की कठोर तपस्या की । तब देवी अदिति की तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे दर्शन दिये और कहने लगे हे देवी आप आदिशक्ति के रूप में कन्नौज के रेणु (प्रसेन्न्जित ) राजा के जन्म लेकर पाँच पुत्रो की माता का सुख प्राप्त करोगी । आपके एक पुत्र के रूप में स्वयं श्री विष्णु भगवान जी अवतार लेगे जिससे आपका एकवीरा नाम विश्व प्रख्यात होगा । आप पर श्रध्दा रखने वाले भक्तो की रक्षा के लिए आप जहाँ जहाँ प्रकट होगी दर्शन देकर भक्तों उद्धार करोगी  वहां वहां आप शक्ति स्वरूपा के रूप में सदा सदा के बस जाओगी । वहां शक्तिपीठ रूप में अनंतकाल तक आपकी पूजा होती रहेगी । आपकी महिमा का भक्तजनों पर इस तरह प्रभाव होगा की भक्त आपको कुलदेवी के रूप में पूजन करेंगे ।
कुछ समय बाद राजा रेणु प्रसेन्न्जित के घर छोटी पुत्री के रूप में  रेणुका देवी का जन्म हुआ। राजा रेणु ने अपनी  दो सुंदर पुत्रियो में एक का नाम नैनुका तथा दूसरी पुत्री का नाम रेणुका रखा । कहते है की एक बार राजा ने अपनी दोनो पुत्रियों से प्रश्न किया कि वो किसका दिया अन्न ग्रहण करती है। जिसके जवाब मे नैनुका ने कहा कि वह अपने पिता का दिया अन्न ग्रहण करती  है। जबकि रेणुका ने जवाब दिया कि वह भगवान का दिया और अपने नसीब का अन्न ग्रहण करती  हूँ। रेणुका के जवाब से राजा रेणु अप्रसन्न हो गए और उन्होने रेणुका को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा ने अपनी बडी पुत्री नैनुका का विवाह बडी धूम-धाम से एक पराक्रमी राजा सहस्त्रबाहु से कर दिया और छोटी पुत्री रेणुका को सबक सिखाने के लिए रेणुका का विवाह एक सीधे साधे तपस्वी ऋषि जमदग्नि से कर दिया। देवी  रेणुका राजसी ठाठ-बाट मे पली बढी थी। फिर भी उसने ऋषि जमदग्नि को अपना पति परमेश्वर स्वीकार किया और तन मन से उसकी सेवा करने लगी। ऋषि  जमदग्नी और माँ रेणुका अपने परिवार के साथ किसी कारणवश हिमालय से मध्यप्रदेश के जानापाँव मे आ गये । उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ गया, तब सभी लोग इन राजाओं द्वारा त्रस्त हो गये । ब्राह्मण व साधु असुरक्षित हो गये। धर्म कर्म आदि के कामों में  छत्रीय राजा व्यवधान उत्पन्न करने लगते थे। ऐसे समय में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न करते हैं, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं । कुछ समय बाद उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से उन्हें पांचवे पुत्र के रूप मे वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन परशुराम का जन्म हुआ  ।
परशुराम जी भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजीद्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये
ऋषि जमदग्नि की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थीं। वह अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठावान थीं। महर्षि जमदग्नि जी अपने परिवार के साथ जानापाँव में रहते थे इसी पावन भूमि पर परशुराम जी जन्म हुआ । जानापाँव से 55 कि .मी दूरी  स्थित महेश्वर नगरी मे राजा सहस्त्रार्जुन का राजमहल था जिसके द्वारा ब्राम्हणों पर किए जा रहे अत्याचारो से दुःखी होकर ऋषि जमदग्नि ऋषि ने अपने गुरुकुल आश्रम कें शिष्यों एवं अपने पांच पुत्रो तथा धर्मपत्नी रेणुका कें साथ भिण्ड जिले के जमदारा गाँव पर आकर रहने लगे । जमदग्नि ऋषि ने जमदारा आश्रम से होकर सिन्धु नदी तक एक गुफा का निर्माण कराया था ।
आश्रम से होते हुए एक सुरंग सीधी सिन्धु नदी पर जाती थी
आश्रम से होते हुए एक सुरंग सीधी सिन्धु नदी पर जाती थी जहाँ से रेणुका माता कच्चे मिट्टी के घडे मे जल भर कर लाती थी रेणुका माता , नाग का आला बना कर कच्चा घडा सिर पर रखकर जल लाती ,  जिस जल से स्नान करके ऋषि जमदग्नि मुनि हवन यज्ञ पूजा आरम्भ करते थे।। कहते है एक बार जमदारा के आश्रम से माँ रेणुका यज्ञ के लिये जल लेने के लिए इसी गुफा से सिन्ध नदी पर गई थी , जहाँ पर गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखकर रेणुका उस दृश्य पर ध्यान मग्न हो गई थी , जिसके वजह से जमदग्नि जी कों यज्ञ हवन में देरी हो गई ।  इस तरह जल लाने में विलंब हो जाने से यज्ञ का समय समाप्त हो गया था तब मुनि जमदग्नि ने अपनी योग शक्ति द्वारा पत्नी के मर्यादा विरोधी आचरण को देखकर अपने चार पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी,  उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को माँ की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। पिता की आज्ञा स्वरूप परशुराम ने माँ का वध कर दिया । परशुराम जी की पितृ भक्ति देख कर पिता जमदग्नि उसे वर माँगने को कहते है तब परशुराम जी पिता से वरदान माँगते हैं कि वह उनकी माता को क्षमा कर उन्हें जीवित कर दें तथा सभी भाईयों को भी चेतना युक्त कर दें । तब जमदग्नि रेणुका माँ को अपने तपोबल से जीवित कर देते है और चारो बेटो को भी श्राप मुक्त कर देते ।
जमदारा की भूमि पर माँ रेणुका का सिर काटने से बहे रक्त कों आज भी देखा जा सकता है जो आज भी एक कीट पत्थर कें रूप मे माँ रेणुका मन्दिर मे विराजमान है वही जमदारा से 40 कि .मी दूरी पर स्थित आलमपुर स्थान पर माता रेणुका कें सिर कि पूजा कि जाती है। मान्यता है की माता रेणुका का सिर काटने कें दौरान जमदारा से आलमपुर आकर गिरा था । रेणुका माता की बड़ी बहन सहस्त्रार्जुन की पत्नी थी । माता रेणुका की सुंदरता पर मोहित होकर सहस्त्रार्जुन देवी रेणुका को पाने कें लिये अनेक प्रयत्न करने लगा । इस तरह सहस्त्रार्जुन ने अपनी शक्ति  का दुरूपयोग करना करना आरम्भ कर दिया , कुरुकुल आश्रमों को तोड़ना , आग लगाकर जलाना और आश्रमों मे स्थित धन सम्पदा को लुटकर राजकीय खजाने मे डालना । सहस्त्रार्जुन ने एक बार ऋषि जमदग्नि आश्रम की 200 गाए चोरी कर ली वही आश्रम कुरुकुल पर एक बड़ा कर भी लगाना आरम्भ कर दिया । इसी बीच आचार्य वशिष्ट जी का जमदग्नि आश्रम मे आगमन हुआ जो गुरुकुल मे पढ़ रहे विद्यार्थियों एवं जमदग्नि परिवार कें भरण पोषण की पूर्ति कें लिये कामधेनु गाय महर्षि जमदग्नि जी को भेंट कर गए।  ऐसे अत्याचारों को देखकर परशुराम भगवान ने पापियों को सजा दिलाने कें अस्त्र उठा लिये । किन्तु पिता कें विचारो कें विरूद्ध जाने की वजह से उन्हे आश्रम छोड़कर जाना पड़ा ।
 एक बार सहस्त्रार्जुन ने अपने चार पुत्रो को जमदग्नि ऋषि के आश्रम में साधुओं कें रूप मे जाकर परशुराम का पता लगाने को कहाँ , महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो को साधुओं कें रूप आये मेहमान समझकर स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी | महर्षि ने उस गाय के मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते चारो पुत्रो के भोजन का प्रबंध कर दिया | कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो को ऋषि जमदग्नि  के आश्रम कें आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसने मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी।
सहस्त्रार्जुन को जब चारो पुत्रो ने कामधेनु की सच्चाई बताई तो उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर कामधेनु को ले अपने राजा दरबार चला गया और जमदग्नि मुनि पर तलवार से कई बार प्रहार भी किया ।
सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो ने कामधेनु से मनचाहे सामग्री मांगी किन्तु कामधेनु माता कें कुछ भी प्रदान नही किया ऐसे मे राजकुमारो को लगा की जमदग्नि ऋषि ने उन्हे असली कामधेनु नही दी है इससे क्रोधित होकर चारो राजकुमार जमदग्नि आश्रम आये तब देवी  रेणुका के सामने ही उसके  पतिदेव जमदग्नि की हत्या कर दी और माँ रेणुका रोते रोते परशुराम परशुराम पुकार रही थी ।  तब माँ रेणुका ने परशुराम को बताया की सहस्त्रार्जुन के बेटो  ने तुम्हारे पिता की हत्या की है । यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे।
तभी एक ऋषि का आगमन हुआ और उन्होने माँ रेणुका और परशुराम को बताया की सहस्त्रार्जुन के पास मृत्यु संजीवनी है अगर तुम उसे मारकर मृत्यु संजीवनी वापस लाते हो तो तुम्हारे पिता पुन : जीवित हो जायेगे ।
सहस्त्रार्जुन का वध करने कें लिये परशुराम जी मऊ कें किले की गए इस तरह भयभीत होकर सहस्त्रार्जुन ने जमीन मे छुपने की योजना बनाई जो परशुराम जी को ज्ञात हुई तो उन्होने मऊ क्षेत्र की सारी जमीन ही पलटी कर दी । आज मऊ मे जमीन खुदाई के दौरान उल्टी वस्तुएँ दिखाई पड़ती है वही यहां आदिकाल से शवों को उल्टा लेटाकर हि जलाया जाता है । भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन  का वध कर मृत्यु संजीवनी को अपने साथ लेकर आते है जिसके प्रभाव से जमदग्नि जीवित हो जाते है ।  तब ऋषि जमदग्नि माँ रेणुका से कहते की देवी आपकी सभी परीक्षायें पूर्ण हुई ।  आप सदा के इस धरती लोक के वासियो के यहाँ निवास करोगे ।
कहते है की भिंड जिले का मौ क्षेत्र में दैविक शक्तियो का सदैव वास रहा हैं।साथ ही यह क्षेत्र अपने भीतर भगवान परशुराम का इतिहास समेटे हुए है।  जिला मुख्यालय से 64 किलोमीटर दूरी पर जमदारा गांव है। कहते है की ऋषि जमदग्नि आश्रम के स्थान पर पहले एक गुफा हुआ करती थी। जो जमदारा गांव से स्योंढ़ा गांव तक जाती थी। जिसकी लंबाई 9 किलोमीटर थी। लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से करीब 50 साल पहले गुफा को बंद कर दिया॥
जो भी भक्त माँ रेणुका देवी ही यह पावन कथा श्रध्दा के साथ सुनता है और माता के भक्तों कों सुनाता है माँ रेणुका देवी की कृपा से उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते है ।

संकलनकर्ता - श्री रविन्द्र कुमार मानकर 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

छावंल की माँ रेणुका की कहानी


       जय माँ रेणुका माता मन्दिर छावल 
            जिला बैतूल मध्यप्रदेश  


आमला नगर से लगभग 10 कि .मी. की  दूरी पर वो आदिशक्ति माँ दुर्गा का पावन दरबार है जहाँ रेणुका माता की कृपा से प्रतिदिन किसी न किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती ही रहती है । जिस छावल रेणुका मन्दिर मे आज भक्तगण सिर झुका रहें है वही ईश्वर अपनी लीलाए रची थी । जहाँ सैकड़ो की संख्या में श्रध्दालु श्री रेणुका माता कें दर्शन करने आते हैं ।
देवी रेणुका भगवान परशुराम की जननी है । माँ हर रूप में धन्य है लेकिन जिस माँ ने साक्षात नारायण को जन्म दिया , उनकी महिमा तो देवताओ से भी बढ़कर है । देवी रेणुका ने इस संसार को परशुराम जैसा उपहार दिया था उनके इस उपहार को नमन कर रहा है सूर्यपुत्री ताप्ती नदी और सतपुड़ा की गोद में बसा ये प्राचिन छावल माता मन्दिर ।
यहाँ अपनी वैभवशाली सत्ता कें साथ विराजी रेणुका देवी की भक्ति में, उपासना में , जीवन कें चार पुरुषार्थ छिपे हुए , इसीलिए भक्तगण देवी की आराधना करना ही धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष्य को प्राप्त करना समझते  हैं । यहां की छावल रेणुका माता की जो भी भक्त सच्चे मन से भक्ति पूर्वक पांच यात्राएं करता हैं , माँ की कृपा से उसकी मनोकामना पूरी हो जाती हैं । इसीलिए छावलवाली माता को कल्प वृक्ष कें रूप में पूजा जाता हैं ।
देवी कें बारे में यहाँ कें लॊगॊ की मान्यता हैं की ,  माँ रेणुका देवी दिन में तीन बार रूप बदलती है। सुबह माता का मुख बाल्य मंडल अर्थात बाल्य अवस्था का होता हैं , दोपहर में मुख मण्डल युवा स्वरूप दिखाई देता हैं और शाज ढलते वृध्दा अवस्था का दिखाई देता हैं ।कहते है कि आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व छावल गांव की पहाड़ी पर एक सन्त महात्मा तप किया करते थे । गांव कें आस पास जंगल  घना होने कें कारण यहां जंगली हिंसक जानवर विचरण किया करते थे ।जिसके वजह गांव में यह बाते फैली हुई थी की जिस पहाड़ी पर साधु महात्मा साधना कर रहें वहां शेर घूमते रहता है । इस तरह सन्त महात्मा ने देवी की कई वर्षो तक साधना की । एक दिन सन्त महात्मा को सपना आया , माँ जगदम्बा ने कहाँ की सामने की पहाड़ी पर पत्थर को चीरकर मेरी मूर्ति प्रकट हुई है । तुम जाकर पहाड़ी पर मेरी मूर्ति की खोज करो और इस गांव कें भक्तो को मेरी सेवा करने कें लिए कहो । माँ जगदम्बा ने आगे कहाँ बालक मेरे भक्त मूझे एकवीरा , रेणुका , कूलस्वामिनी ,जगदम्ब, आदिशक्ति, माहूरगढ़ देवी, यल्लमा देवी आदि नामो से पुकारते है । मैं ही जगत माता हु , जगकल्याणी हु । इस छावल गांव में प्रकट होने की वजह से मेरे भक्त मूझे छावलवाली रेणुका माता कें नाम से जानेंगे । इस तरह वह सन्त महात्मा , छावल गांव कें लोगों से मिलकर स्वप्न में माता कें बताए आदेश को बता रहें थे कि सन्त महात्मा को देखकर गांव कें लॊगॊ की भीड़ जुट गई । गांव कें कुछ जागरूक लोंगो ने सन्त महात्मा की बातो पर गौर करते हुए मूर्ति की तलाश करने का निर्णय लिया। इस तरह सन्त महात्मा कें साथ गांव कें लोग जंगल की पहाड़ी पर मूर्ति की तलाश करने लगे । मूर्ति की तलाश करते हुए झाड़ियों कें बीच माता रेणुका देवी की स्वयं भू प्रकट हुई मूर्ति मिली  । जो स्वयं पत्थर को चीरकर प्रकट हुई थी । माता की मूर्ति को देख गांव कें लोंगो की खुशी का ठिकाना नहि रहा । सारे गांव कें लोग माँ रेणुका की भक्ति करने लगे । आस पास कें गांव कें को माँ रेणुका कें प्रकट होने की सुचना मिली तो भक्तो की भीड़ स्वयं भू प्रकट हुई माता की मूर्ति देखने कें लिए जुटने लगी । छावल गांव कें माँ रेणुका पर अटूट श्रध्दा आस्था रखने वाले भक्तो ने यहां अश्विन और चैत्र नवरात्रि पर मेले का आयोजन करना आरम्भ किया । दूर दूर से भक्तगण माँ रेणुका देवी कें दर्शन आते और दान पेटी में कुछ दान डालते उसी धनराशि से छावल गांव कें भक्तजनों ने माँ रेणुका देवी का प्यारा सा मन्दिर बनाया । छावल गांव कें भभूत गिरी परिवार कें एक भक्त द्वारा माँ रेणुका देवी कें मन्दिर की देखरेख व माँ रेणुका की सेवा करना आरम्भ किया । इनके स्वर्गवास कें बाद इनके पुत्र लक्ष्मण गिरी ने माँ रेणुका मन्दिर में सेवा दी । लक्ष्मण गिरी भक्त कें देहांत कें बाद उनके पुत्र गणेश गिरी और पूरण गिरी द्वारा वर्तमान में छावल माता की सेवा की जा रही है ।
एक बार की बाद है मोहनगिरी महाराज सोए हुई थे तब उन्हे  रात्री 3 बजे करीब माँ रेणुका देवी का स्वप्न आया । तभी गणेश गिरी जी ने स्नान किया और माँ रेणुका कें दर्शन कें मन्दिर गए । मन्दिर पहुंचते ही माँ की प्रतिमा कें सामने फैले प्रकाश को देखकर भयभीत हो गए , जब माता कें मूरत कें सामने पहुंचे तो माँ रेणुका बाल्य स्वरूप में विराजमान थी उनके सेवा दों बड़े शेषनाग ,सफेद रंग का चूहा , एक बिच्छू उपस्थित थे । यही कारण है की श्रध्दालु अपनी मनोकामना लेकर आते है और माँ से वरदान पाते है ।

 कुछ दिन पूर्व की बात है आमला कें पेट्रोल पम्प पर काम करने वाले एक मजदूर को डाँक्टर ने गले में कैंसर की बीमारी बताई थी ।मजदूर कें पास पैसे न होने की वजह से बहुत दुःखी था और वह मजदूर माँ रेणुका कें दर्शन को छावल आया । मन्दिर कें पुजारी गणेश गिरी महाराज को जब मजदूर ने अपनी पीड़ा बताई  तब गणेश गिरी महाराज ने मजदूर को माँ रेणुका देवी कें अखण्ड ज्योत का तेल और हवन कुण्ड की भभूति निकालकर दे दी । मजदूर गणेश महाराज कें बताए अनुसार अखण्ड ज्योत कें तेल से गले की मालिश की और कुछ ही दिनो मे पहले जैसा सेहत में सुधार आ गया । जब डाँक्टर कें पास जाकर पुनः कैंसर  की जांच की तो कैसर पूरी तरह समाप्त हो गया था । डाँक्टर ने जब मजदूर से पूछा की यह चमत्कार कैसे हुआ तब मजदूर ने कहाँ की यह चमत्कार छावल की माँ रेणुका की कृपा से हुआ है । डाँक्टर कें होश उड़ गए जब उसने माँ की महिमा का चमत्कार स्वयं अपनी आंखो से देखा ।.डाक्टर की मन में भी जिज्ञासा हुई माँ रेणुका दर्शन की और माँ रेणुका दर्शन को छावल जा पहुंचा । शास्त्रों में सच ही कहाँ है आस्था का पग उजालों से भरा हुआ है । आपको धर्म प्रचार प्रसार मंच की यह सत्य घटना पर आधारित कहानी कैसे लगी अवश्य बताए ।

इसी कहानी कों दिल्ली की राशि खन्ना जी की मधुर आवाज में रिकॉर्ड किया हैं जो बहुत जल्द आप सभी के बीच Ambadevi Films युटुब चैनल के माध्यम से आने वाली हैं ।
















धर्म प्रचार प्रसार मंच का माँ रेणुका छावल मन्दिर कीर्ति जन जन पहुचाने का अभियान आरम्भ हो चुका हैं .
..जय जगदम्बा





संकलनकर्ता (कहानीकार ) महाकाल भक्त रविन्द्र मानकर