रविवार, 22 दिसंबर 2019

सच्चे गुरु की पहचान कैसे करे

सच्चे गुरु की पहचान
सभी प्रकार की विद्या प्राप्ति मे गुरू की कृपा पाना आवश्यक है , क्योकि गुरू हि हमे किसी विद्या की क्रमबद्ध व सटीक जानकारी दे सकता है । इसी जानकारी के बल पर जीवन मे सफलता का मार्ग तय कर अपनी मंजिल पर पहुंचा जा सकता है । गुरू की सहायता के बिना किसी भी साधना या कार्य मे सफलता पाना कठिन है । पुराणो मे गुरू के महत्व कों देवताओ से भी अधिक माना गया है ।
गुरु के प्रति शिष्य का भाव सही होना जरूरी है , वैसे ही गुरु का भी शिष्य प्रति भाव होना मान्य रखता है । आज कल तो कुछ ऐसे गुरू और बाबा है जो के बोलते है 5100 अकाउंट मे डाल दो मैं आपको ऑनलाइन दीक्षा दे दूंगा पर यह सब कुछ गलत है । वास्तविकता मे गुरु वो है जो आपके अकेले मैं बिठा कर ज्ञान देता है जैसे के गुरु का गुरु मंत्र गुरु पूर्णिमा को गुरु के द्वारा शिष्य के कान मैं फूंका जाता है । ऐसे नहीं है गुरु मंत्र आप कोई भी करलो जब तब गुरु मंत्र कान मे नहीं देता है । तब तक आप उनके शिष्य नहीं हो सकते हो क्युकी गुरु तभी मान जाता है जब वो अपने प्राण शक्ति से आपको वो शक्ति देता है ।  ऐसे चलते फिर गुरु से सोशल मीडिया और गूगल भरा पढ़ा है इंटरनेट वाली विद्या और गुरु जी की विद्या दोनों अलग -२ है ।  हमारे गुरुमुखी मंत्र , इंटरनेट और किताब से मैच नहीं होते है और गुरु का आदेश भी यही होता है के आपको गुप्त रहना है और किसी को भी कुछ नहीं बताना है जब तक आप तंत्र मंत्र के क्षेत्र
 मे पूरी तरह सम्पूर्ण नहीं हो जाते हो ! बाकि यह सब मेरा खुद का अनुभव और अध्यन है ! क्युकी मैं किताबी ज्ञान किसी को नहीं देता हूँ न ही किसी को किसी भी प्रकार के भरम मैं रखना चाहता हूँ । क्युकी आज मैं सच बोलूगा तो शायद किसी भाई बहन को मेरी बात समझ आ जाये ! मेरा काम मंत्र शक्ति और साधना की सही जानकारी देना है । आप सभी दे गुजारिश है आप सभी इंटरनेट वाली कोई भी क्रिया ऐसे मत करना क्युकी तंत्र मंत्र मैं सकारात्मक और नकरात्मक विकार दोनों साथ मैं चलते है । गुरु कृपा के बाद ही आप इन सब से बच पाओगे इसलिए गुरु धारण करना जरूरी है । अगर आपके गुरु नहीं गुरु तो काम से काम गुरु को इंटरनेट पर मत ढूँढो , मत उड़ाओ पैसे ऐसे ऑनलाइन कुछ नहीं होता है ! असली दीक्षा और गुरु का ज्ञान गुरु के पास मे रह कर ही प्राप्त होता है । जय मां अम्बादेवी ...मैं  माता अम्बादेवी  का सीधा साधा और भोला भक्त रविन्द्र मानकर   ! बस मेरा काम आप सब को सही मार्गदर्शन करना है , मैं किसी को भ्रमित नहीं करना चाहता हूँ ।
मैंने स्कन्दपुराण , ब्रम्हपुराण , दुर्गा सप्तशती चण्डी , ताप्ती पुराण पढ़ी है , पढ़ा लिखा हूँ , मैंने ज्योतिष पंडितों के कर्मकांड और क्रिया का परिणाम देखा है । कुंडली पंचाग , राशि देख किसी का भविष्य बताना आसान है लेकिन वही दैविक क्रिया कर उसे जीवनदान देना बहूत मुश्किल है ।
सच्चा गुरू अपनी क्रिया कों करता है उसे पूर्ण होने की समय तिथि पर की आत्मविश्वास के साथ भविष्यवाणी करता है ।

हमारे पास जो न क्रिया दी जायगी वो सारी सारी अनुभव की हुई है इसका हमारे पास प्रमाण और साक्ष्य भी है ।

 मैंने जो गुरुजी किसन महाराज की साधना  मे देखा और क्रिया के सामने परिणाम आये ,उनके अनुभव के आधार पर यहाँ पर सब कुछ दे रहा हूँ मैं !
आप गुरू किसी कों बनाना चाहते हो तो इन बातो का विशेष ध्यान रखे

1. गुरू के ऊपर कोई कलंक ना लगा हो ।
2.  गुरू किसी धर्म या सम्प्रदाय का विरोधी ना हो ।
3. गुरू किसी अंग से विकलांग नहि होना चाहिए ।
4. गुरू मे आचरण दोष नहि होना चाहिए ।
5. गुरू मे लालच और अभिमान नहि होना चाहिए ।


बुधवार, 4 दिसंबर 2019

हे राम क्या आपको माता रेणुका का दर्द दिखाई नही दिया?



हे राम क्या आपको माता रेणुका का दर्द दिखाई नही दिया?

बचपन से हि रेणुका नंदन राम सहस्त्रअर्जुन पापी राजा के अत्याचारों से दुःखी थें इसलिए बाल्य अवस्था से हि वे संकल्प कर चूके थें की उन्हे सहस्त्रअर्जुन पापी की मृत्यु करके अपने माता -पिता कों सुख देना चाहते थें इसलिए वो शिव शंकर जी के पास कैलाश जाना चाहते थें ताकि शिव जी से 10 वर्ष तक ऐसी विद्या सीखना चाहते थें , जिससे सहस्त्राअर्जुन का अंत हो सकें ,क्योकि पापी राजा ने कई बार उनके पिता जमदग्नि का आश्रम जलाया और कई बार कष्ट दिये वही सारा ऋषि समाज सहस्त्रअर्जुन के अत्याचारों से दुःखी था ।

जब राम ने अपनी माता रेणुका देवी से कहाँ की माता मैं आज भी आपको कोई सुखद समाचार नहि देने आया हूँ
मैं आपसे दूर जा रहा हूँ 10 वर्ष के लिए ।

माता रेणुका ने पूछा - कहाँ जा रहें हो पुत्र !
राम बोले - माता मैंने शिव शंकर के पास कैलाश जाने का निर्णय लिया है , उनके साथ रहकर 10 वर्ष तक शस्त्र विद्या सीखूँगा आपकी अनुमति लेनें आया हूँ ।

माता रेणुका बोलि - निर्णय ले हि लिया है तो अनुमति की कोई आवश्यकता नहि रह जाती पुत्र , अपने जीवन के बारे में निर्णय लेनें की अनुमति तो तुमने मुझसे मांगी नहि ।

राम बोले - आप तो जानती हो माता की परिस्थितियो ने मूझे ये निर्णय लेनें कों विवश कर दिया ।

माता रेणुका बोली - ऐसा लगता है पुत्र राम की इस संसार में मां और ममता हि विवश नहि है बाकी हर कोई किसी न किसी कारण विवश है ।

               
हे राम , आपने कितनी सहजता से, कह दिया कि "मैं विवश हूँ माता , मेरे संकल्प ने , मेरे लक्ष्य ने मूझे आपसे दूर रहने कों मजबूर कर दिया है ...!"
मैं आपका ऋण नहि चुका पा रहा हूँ , आपको सुख नहि दे पा रहा हूँ जो पुत्र का धर्म है ।
माता रेणुका का दिल दुखाने वाली, उनकी ममता पर लांछन लगाने वाली बात, आप इतनी सहजता से कैसे कह पाएं प्रभु ? क्या आपको एक बार भी मन में विचार नही आया कि मेरी इस बात से माता रेणुका का दिल कितनी बुरी तरह से टूट जाएगा?

जिस रेणुका माता के ममत्व का आज भी गुणगान होता है,
जिस माता रेणुका ने आपके पालन-पोषण में कोई कसर नही छोड़ी, जिसके ममत्व पर आप स्वयं भी शक नही कर सकते, उस माता पर इतना बड़ा कष्ट जो अपने राम का मुख देखने के लिए कई दिनो तक आश्रम के द्वार पर आस लगाए बैठी रहती है कोई दिन तो उनका लल्ला आयेंगा लेकिन उसका राम कई दिनो बाद कुछ पल के लिए आया और फिर जा रहा है ।
जो स्वयं आदिशक्ति है जगदम्बा है उसी माता के नयना आपको देखने के लिए तरस जाते है , प्रभु, आप तो सर्वज्ञ हो, त्रिकालदर्शी हो फिर आप सिर्फ अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ऐसा कैसे कर सकते है ? आप कोई और बहाना कर लेते या खुद की हार कबूल कर लेते लेकिन माता की खुशी के लिए कुछ पल मां रेणुका के पास रूक जाते । तुम क्या जानो राम माँ की ममता क्या होती है
आपने माता रेणुका की नींद उड़ा रखी है , माता रेणुका ना आपके बिना भोजन करती है ना पानी पीती है उसकी जान तो आप में बसी है , कई राते माता रेणुका इसी उम्मीद में रात भर जागती रही की आप आवोगे है लेकिन आप नहि आए ।
  क्या आपके लिए, आपका उदेश्य माता के ममत्व से ज्यादा मायने रखता  है ? ऐसा क्यों किया राम आपने ?

क्या आपको पता है राम जब आप कुरुकुल से कुछ पल के लिए ओझल हो जाते थें तो माता कितनी चिंतित होकर आप यहां वहां खोजती रहती ,बड़ी मुश्किल के बाद आप कुरुकूल के खण्डरो की ओर शस्त्र सीखते नजर आते तब जाकर रेणुका मां कों सुकून मिलता था ।

क्या भुल गए राम रेणुका मां की ममता कों क्या आपको वो दिन याद नहि जब आपको माता के सोते हि उड़कर शस्त्र सिखने निकल जाते थें और माता उतनी हि रात्री आपकी तलाश करते हुए आपके पास आती थी ।

क्या मां रेणुका की ममता और स्नेह के लिए आपकों थोड़ा वक्त नहि निकालना चाहिए था ,ठीक ढंग से रेणुका माता कों आपके दर्शन तो करने देते श्री राम । राम आप रेणुका मां के लिए कितने अनमोल हो यह तो एक मां हि जान सकतीं है ।