ज्योतिष – एक श्रापित विद्या है ,
ज्योतिष को माँ पार्वती से श्राप मिला हुआ है
इस सम्बन्ध मे एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं ,जो इस प्रकार हैं...
भक्तों - एक बार की बात है । एक दिन देवऋषि नारद जी भगवान श्रीहरि विष्णुजी के नामों का सुमधुर गुणगान नारायण - नारायण गाते हुए कैलाश पर्वत पर जा पहुँचे। और भगवान श्रीसदाशिव के दर्शन किये l
परन्तु माता पार्वती नही दिखाई दीं, तब देवऋषि नारद जी ने माता के विषय में पुछा तब भगवान श्रीसदाशिव जी ने कहा “नारद जी, आप तो ज्योतिष के ज्ञाता हो। बताओ अभी पावती कहाँ है ?”
तभी देवऋषि नारद जी ने तत्काल ही अपनी ज्योतिषीय गणना की और कहा, हे भोलेनाथ जी “माँ अभी स्नान कर रही हैं प्रभु। और इस समय उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है”
कुछ समय बाद माता पार्वती आईं तो भगवान ने उस समय के बारे में पुछा
और नारद जी की बात बताई
इस पर माँ बोली –
“नारद जी आपकी गणना बिल्कुल सही है। पर जो विद्या व्यक्ति के कपडे के भी पार देख ले वह अच्छी नहीं। इसलिए मैं इस विद्या को श्राप देती हूँ कि कभी भी कोई ज्योतिषी पूरा-पूरा नहीं देख पाएगा।“
किन्तु जो ज्योतिषी किसी दिव्य दृष्टिपात सिद्ध सदगुरु की शरण लेकर ,सदगुरु दीक्षा प्राप्त कर ,सदगुरु की मदद से ज्योतिष फलादेश करेगा ,जिसका इष्ट प्रबल होगा ,इष्ट में पूरा-पूरा दृढ़ विश्वास होगा ।
सच्चे हृदय से ज्योतिष को जानेगा उसकी गणना लगभग सत्य ही होगी।
अगर ईश्वर ने आपको एक शक्ति दी है, तो कुछ जिम्मेदारी भी है निभाने के लिए। एक ज्योतिषी के रूप में आपका दायित्त्व है कि आप अपने यजमान को ढाँके ,ना की किसी के सामने अपनी ज्योतिष विध्या द्वारा उसे बेईज्जत ना करें। यह दैविक विद्या है। यदि ज्योतिषी अपनी सीमा लाँघेगा तो माँ पावती का श्राप लगेगा।
और उसकी भविष्यवाणी पूर्णत: सही सिद्ध नहीं होगी l