बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

धामनगाँव मे विराजी माँ रेणुका देवी की सम्पूर्ण गौरव गाथा

 माँ रेणुका सिध्दपीठ धामनगाँव जिला बैतूल मध्यप्रदेश
 जबलपुर के एक आर्टिस्ट प्रदीप पटेल ने माँ रेणुका महिमा जन जन तक पहुंचाने के लिए भजन का निर्माण किया
 माँ रेणुका भजन शूट के लिए सावन मास मे धामनगाँव मे आए ..बड़ी दयालु हैं माँ रेणुका
धाम 




माँ रेणुका मूर्ति खण्डित करणे वाले लॊगॊ को कोर्ट ने सजा सुनाई और एक माह बाद माता के प्रकोप से हुई मृत्यु


धामनगाँव माँ रेणुका देवी प्रवेश द्वार -दुर्लभ दर्शन
माँ रेणुका मन्दिर धामनगाँव जिला बैतूल मध्यप्रदेश
धामनगाँव माँ रेणुका के तीन स्वरूपों के दर्शन
बैतूल जिला कोर्ट अभिलेखागार जहाँ 10 वर्ष माँ रेणुका देवी की मूर्ति जप्त रहि -फिर माता रेणुका ने दिखाया चमत्कार

सतपुड़ा पर अनेक दैविक शक्तियो का वास है ,  यही दैविक शक्तियाँ है जो भारतवर्ष भूमि को हर आपदा और समस्या से मुक्त रखती है । सतपुड़ा की इन वादियो मे ऐसा सम्मोहन की देवता स्वर्ग छोड़कर धरती पर आ बसे ।  धर्म और आस्था की इस कड़ी मे आज हम आप सभी को भगवान परशुराम की माता रेणुका के सिद्ध शक्तिपीठ धामनगाँव की महिमा बताने जा रहे है ।  आप सभी इतने जागृत तीर्थ की महिमा सुनकर व यात्रा करके आपका मन श्रध्दा और विश्वास से जगमगा उठेगा ।  जिस स्थान की आप महिमा सुन रहे हो ये वही स्थान है जहाँ से परमात्मा गुजरे थे । जिस मन्दिर मे आज लाखो भक्त सर झुका रहे है यही जगदम्बा भवानी ने अपनी लीला रची थी , ये एहसास अलौकिक है , ये अनुभूति दिव्य है । शास्त्रों मे सच ही कहाँ है की आस्था का पग उजालों से भरा हुआ है ।
कहते है की रामायण काल मे  देवी रेणुका के कोख साक्षात भगवान श्री हरी नारायण ने छटवे रूप मे अवतार लिया । एक बार की बात है परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नी उनकी माता देवी रेणुका से किसी बात को लेकर क्रोधित हो गये ।  उन्होने परशुराम जी को आदेश दिया की वे अपनी माता रेणुका के सिर को धड़ से अलग कर दे , पिता के वचन परशुराम के लिये पत्थर की लकीर थे । कहते है की पितृ आज्ञा मिलते ही परशुराम जी ने अपनी माता का शीश परसे से काँट दिया । पुराणों मे उल्लेख मिलता है कि जब भगवान परशुराम जी ने माता रेणुका के सिर को अपने फरसे से काँटा उस दौरान अनेक स्थानो पर देवी रेणुका शरीर के रक्त की बूँदे व माँस के टुकड़े गिरे वहाँ पर शक्ति माता के सिद्ध पीठों का निर्माण हुआ । भगवान परशुराम के पिता जमदग्नी पितृ भक्ति से प्रसन्न हुये और उन्हे वर माँगने को कहाँ तब परशुराम जी ने उनसे अपनी माता रेणुका का जीवनदान माँगा ,  इस तरह एक बार फिर से माँ रेणुका जीवित हो गई । भगवान परशुराम और माता रेणुका का सम्बन्ध बहुत अनोखा था , परशुराम को अपनी माता से अटूट प्रेम था । लेकिन पिता का आदेश उनके लिये हर भावना और हर सम्बन्ध से बढ़कर था । जब ऋषि जमदग्नी ने उनसे वर माँगने को कहा तो निश्चित वे तीनो लोगो की सम्पदा सातो लोगो का साम्राज्य या अमृत्व का वरदान माँग सकते थे लेकिन उन्होने सिर्फ माँ रेणुका का जीवनदान माँगा । धन्य है उनका मातृप्रेम धन्य है उनका त्याग । भगवान परशुराम जी को मातृहत्या पाप से बहुत दुःख हुआ और वे मातृहत्या पाप से मुक्ति पाने के लिये उन स्थानो पर गये जहाँ पर माँ रेणुका के शरीर की रक्त की बूँदे और मांस के टुकड़े गिरे थे और वहाँ वर्षो तपस्या की ।  भगवान परशुराम इस तपोभूमि मे छाँवल , बिसनूर , महुरगढ़ और धामनगाँव आदि प्रमुख स्थानो का उल्लेख मिलता है ।
बैतूल जिले के धामनगाँव की सतपुड़ा पहाड़ी पर भगवान परशुराम जी ने कई वर्षो तक तब किया व माता रेणुका को प्रसन्न कर सदा सदा के लिये यहाँ निवास करने की विनती की ।  एक समय था जब इसी धामनगाँव की वादियो मे श्री विष्णु अवतारी परशुराम जी तप करते थे  । माता रेणुका की स्तुति करते कई वर्ष उन्होने यहाँ गुजारे तब जाकर यहाँ शक्ति स्वरूपा माँ रेणुका देवी विराजमान हुई । जिसके चमत्कारों से आये दिन भक्तगण रूबरू होते ही रहते है ।
ईश्वर इस धरती पर आते है और चले जाते है लेकिन उनके पदचिन्ह यही छोड़ जाते है । इसी पदचिन्हों पर चलकर आने वाला युग पुण्य और पवित्रता की खोज करता है , सुख और शांति के परम धाम पहुँचता है । माँ रेणुका माता का धामनगाँव का ये मन्दिर भी परमात्मा का ऐसा ही पदचिन्ह है ।
बैतूल जिले के भैसदेही तहसील मे स्थित ग्राम धामनगाँव का चारो युगों और इक्कीस कल्पो से दैविक अवतारों से रिश्ता जुड़ा हुआ है । इस क्षेत्र के राजा गय ने भी माँ रेणुका माता की स्तुति और अपने कुलदेवी के स्वरूप मे माँ रेणुका की आराधना करते रहे । राजा गय बहुत ही धार्मिक व धर्म पर श्रध्दा आस्था रखने वाले राजा थे उनके राज्य मे सभी लोग ताप्ती व रेणुका माता के उपासक थे  ।  धामनगाँव से 16 कि .मी की दूरी पर राजा गय का राज दरबार था । कहते है की एक बार सप्त ऋषियों ने राजा गय की परीक्षा लेने के लिये भैसदेही नगरी मे आगमन किया । राजा गय की परीक्षा लेने के लिये सप्त ऋषियों ने 88 हजार ऋषियों को दुग्धपान कराने की शर्त रखी । सारे राज्य मे लाखो ऋषि मुनियों का आगमन होने लगा । धामनगाँव के रेणुका मन्दिर की सतपुड़ा पर्वत श्रंखला के स्थान पर सप्त ऋषियों ने निवास किया । राजा गय के राज्य मे दुग्ध की कमी थी वे चिन्तित हो गये इतने सारे ऋषि मुनियों को दुग्ध पान कैसे कराये । अत : राजा गय ने त्रिदेव की तपस्या कर उन्हे प्रसन्न किया और उनसे माँ कामधेनु माता को धरती लोग पर अवतरित करने की विनती की लेकिन कामधेनु ने त्रिदेव के साथ ही धरती लोक जाने का निर्णय लिया । काशी तालाब नामक स्थान पर कन्या रूप धारण कर माँ कामधेनु  के साथ ब्रम्हा विष्णु महेश प्रकट हुये । राजा गय के निवेदन पर माँ कन्या रूपी देवी ने सारे राज्य आये 88 हजार ऋषियों को पात्र से दुग्धपान कराया इस दौरान माँ पयोष्नि ने इस धामनगाँव की पावन धरा पर भी अपने पदचिन्ह रखे ।
कहते है की आगे चलकर मुगलो द्वारा इस मन्दिर को तोड़ने का प्रयास किया गया व क्षति पहुचाई जिसकी  की सूचना जब छत्रपति शिवाजी को प्राप्त हुई तो उन्होने इस रेणुका माता के मन्दिर का जीर्णोद्धार किया व अपनी कुलदेवी माँ तुलजा भवानी की भी यहाँ मूर्ति स्थापना की । शिवाजी द्वारा माँ रेणुका मन्दिर जीर्णोद्धार का उल्लेख संस्कृत मे अंकित पूर्णा महात्म्य मे भी मिलता है ।
कहते है प्राचिनकाल मे धामनगाँव के आस पास घना जंगल हुआ करता था ऐसे मे लोग इन जंगलो व पर्वत चोटियों पर जाने से भी डरते थे ।
एक बार की बात है धामनगाँव के ही बल्लू नामक भक्त को माँ रेणुका ने साक्षात सपने मे आकर दर्शन दिये । कहते है की वह समय लगभग सन 1865 के करीब था जब माँ रेणुका ने सपने मे आकर बालिका रूप मे दर्शन दिये और कहा की गाँव के समीप की ऊँची पहाड़ी पर स्थित बीजा और सेमल वृक्ष के मध्य रिक्त जगह जहाँ खुदाई करने पर मेरी मूरत प्राप्त होगी ,  जिस मूरत के रूप मे मै आदिकाल से यहाँ निवास कर रही हूँ ,  तुम जाकर वहाँ खुदाई करो और मेरी महिमा जन -जन तक पहुंचाओ ।
देवी रेणुका के इस प्रकार सपने मे आकर दर्शन देने व मार्गदर्शन के अनुरूप माता के उस भक्त बल्लू ने सारे ग्रामवासीयो को सपने के बारे मे बताया । कहते है की  सभी ग्रामवासियों ने सपने मे बताये स्थान की तलाश आरम्भ कर दी । सतपुड़ा की उस छोटी के ऊपर सैकडो ग्रामवासी झाड़ियों के बीच बीजा और सेमल के वृक्ष की तलाश कर रहे थे कि उन्हे ठीक सपने मे बताये बीजा और सेमल का वृक्ष नजर आया जिसके बाद उस स्थान पर सभी ग्रामीणो ने खुदाई आरम्भ की और उन्हे संक्षिप्त‎ खुदाई करके ही माँ रेणुका की पाषाण रूपी मूर्ति प्राप्त हुई ।  जब खुदाई के दौरान माँ रेणुका देवी की मूर्ति निकली तो ग्राम वासियो की खुशी का ठिकाना नही रहा , गाँव मे हर्षोल्लास का वातावरण छा गया । तब सभी गाँव के देवी रेणुका के भक्तो ने बल्लू भगत के साथ मिलकर माता रेणुका की मूर्ति की पूजा अर्चना कर यथास्थान पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर दी ।
सभी धामनगाँव के भक्तजनों ने माता रेणुका के मन्दिर का निर्माण किया ।
सच ही कहते  है अद्भुत है श्रध्दा की शक्ति , दिये हम माँ रेणुका के चरणो मे जलाते है उजाला हमारे मन मे होता है ।
गुणगान हम देवी रेणुका का करते है लेकिन सुख हमारी आत्मा को मिलता है । धन्य है माँ रेणुका के प्रति भक्तो की आस्था और श्रध्दा की रीत और धन्य है माँ रेणुका के उपकार ।
कहते है की वक्त की बढ़ती डोर से साथ धीरे धीरे माता रेणुका के इस धाम की खोज व प्रतिमा स्थापित होने की जानकारी जन -जन तक आग की तरह फैलने लगी जिससे दिनो दिनो दिन भक्तो की भीड़ बढ़ने लगी माता के दर्शनों के लिये और मन्दिर विख्यात होते गया ।  कहते है की परशुराम माता रेणुका भवानी के इस मन्दिर और माता की प्राचिन मूर्ति के बारे मे किसी स्वार्थी और लालची व्यक्तियो द्वारा ऐसी अफवाह फैलाने का कार्य आरम्भ किया की माँ रेणुका की मूर्ति के नीचे धन माया गढ़ी है और माता रेणुका की मूर्ति के नीचे अपार सम्पदा गढ़ी है । ऐसी झूठी अफवाहों पर विश्वास करते हुये कुछ असमाजिक तत्वों ने मिलकर माता की प्रतिमा के नीचे खुदाई करने का प्रयास करना आरम्भ किया तभी अचानक एक करिश्मा हुआ माता की मूर्ति के आस - पास मटर के दाने बिछ गये जिसे  देखकर असमाजिक तत्व भयभीत हो गये और गिरते पडते भागने लगे किन्तु सारी रात्रि बीत गई उन्हे राह नही मिली और सुबह पकड़े गये ।
माँ रेणुका की शक्ति अपार है जो भी माता के अस्तित्व को नकारने का प्रयास करता है उसे माँ दण्ड अवश्य देती है । माँ रेणुका तो वह माँ है जिनकी कोख से साक्षात श्री हरी नारायण ने परशुराम रूप मे जन्म लिया । ऐसे माता तो देवताओ से भी अधिक पूजनीय है इसलिये माता के दरबार बुरी नियम से आने वालो सजा मिलना उचित है । कहते है की माँ रेणुका मन्दिर के पास ही स्थित धामनगाँव का माता का एक पुजारी भी लालच मे आकर गढ़े हुये धन की खोज मे खुदाई करनेे का प्रयास करने लगा जिससे वह मानसिक रूप से अपंग होने के साथ साथ सारी अपनी सम्पति से हाथ धो बैठा । माता रेणुका देवी की प्राचिन मूर्ति प्राकृतिक रूप से केवल पाषाण की विराजित थी । कहते है की समय के चलते कुछ लोगो द्वारा पाषाण की प्रतिमा पसंद न करने की वजह से संगमरमर की मूर्ति स्थापित करने का मन बना लिया ।
जब कुछ ग्रामीण जनों ने संगमरमर की प्रतिमा ला ली और पाषाण की प्रतिमा को हटाकर  उसके जगह संगमरमर की प्रतिमा विस्थापित की गई ,  जैसे ही रेणुका माँ की पाषाण की प्रतिमा हटाई गई वैसे ही धामनगाँव और आसपास के गाँवो मे भयंकर महामारी का प्रकोप पड़ा । ऐसी स्थति को देखकर ग्रामीण भक्तो ने पुन : माँ रेणुका की प्राकृतिक पाषाण प्रतिमा को  पूर्वानुसार स्थापित किया गया व दूसरी ओर माँ रेणुका कि संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की गई । इस तरह माँ रेणुका देवी के दो रूपों को श्रध्दालू पूजने लगे । कहते है की माँ रेणुका के भक्त बल्लू के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र लहू ने माता के साँचे दरबार मे सेवा कार्य किया ।
लहू के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र  गंगाधर , मेजर , सखाराम ने माता के धाम के संचालन व देखरेख का कार्य सम्भाला ।

जब अंग्रेज़ी सरकार को सन् 1924 मे रेणुका माता के इस धाम की जानकारी मिली । अंग्रेज़ी सरकार रेणुका मन्दिर पर दिन प्रतिदिन आ रही चढ़ोतरी को देखकर कब्जा करना चाहती थी ।  इसी के चलते माँ रेणुका मन्दिर पर स्वामित्व स्थापित करने के लिये शासन व सखाराम के बीच विवाद उत्पन्न हुआ , कहते है की माता के भक्त लहू के पुत्र सेवाराम की जीत हुई और शासन ने मन्दिर की देखरेख और पूजा पाठ की जिम्मेदारी सखाराम को दे दी ।
इस तरह माता रेणुका देवी के धाम मे समय समय पर डिंडी नाडे और गाढ़े व खप्पर कार्यक्रमो का आरम्भ हुआ जो पुनीत कार्य  सभी ग्राम वासियो के आर्थिक सहयोग द्वारा किया गया । जो परम्पराएँ आज भी हर्षोल्लास के मनाये जा रही है ।  कहते है की समय व्यतीत होने के साथ साथ माता की महिमा सर्वत्र फैलने लगी और धाम आस्था का केन्द्र बनने लगा ।  वर्ष 1983 के आसपास की घटना है , धामनगाँव के ही एक श्रध्दालू और गौली बाबा ने लोभ प्रवृत्ति के कारण माता जी के खप्पर प्रज्वलित होते है अर्थात पूर्णिमा के दूज के दिन माँ रेणुका की पाषाण ( पत्थर ) की प्रतिमा हटाने का प्रयास किया गया , जब प्रतिमा लाख कोशिश करने के बाद भी  उनसे माँ रेणुका की मूर्ति नही हटी तो उन्होने  माता जी का शरीर यथावत भी रहने दिया और सिर को खण्डित कर दिया गया । अगले ही दिन विशाल मेला लगता है जब माता के  दर्शनार्थीयो ने देखा जाकर तो माता जी की मूर्ति खण्डित अवस्था मे पड़ी हुई है तो उन्होने सभी ग्राम वासियो को इसकी सूचना दी । माँ रेणुका की मूर्ति खंडित होने की घटना से धामनगाँव व आसपास गाँवो मे अशांति का वातावरण उत्पन्न हो चुका था ।
माँ रेणुका के मूर्ति खंडित होने की घटना का भैसदेही थाने मे पुलिस प्रकरण दर्ज हुआ माँ रेणुका मूर्ति खण्डित मामले की जाँच भैसदेही थाने मे पदस्थ  मानकर मुंशी जी द्वारा की जा रही थी । माँ रेणुका के मूर्ति खण्डित घटना की जाँच पड़ताल चालू हुई उसके  कुछ दिनो बाद मे माता की मूर्ति खंडित करने वालो दोनो आरोपी पुलिस के हाथ लग गये और न्यायालय द्वारा उन्हे सजा सुनाई गई जिसके वजह से उन्हे जैल जाना पड़ा । ऐसी स्थिति मे माँ रेणुका का खण्डित सिर भैसदेही पुलिस द्वारा जिला अभिलेखागार बैतूल मे जमा कर दिया  । कहते है की कुछ दिनो बाद धामनगाँव के ही मूर्ति खण्डित करने वाले एक अपराधी जमानत पर रिहा हो गया व दूसरा अपराधी गौली बाबा जिला बैतूल जेल मे ही सजा काँट रहा था । समय की मार ऐसी रही की आने वाले एक माह की अवधि के पूर्णिमा के दोपहर 1 बजे एक अपराधी की मुत्यु धामनगाँव मे और दूसरे अपराधी की मृत्यु अभीरक्षा मे हो गई । यह खबर सुनते ही माताजी पर श्रध्दालू भक्तो की श्रध्दा और आस्था और भी बढ़ने लगी ।

माँ रेणुका भवानी माता का सिर जिला अभिलेखागार बैतूल मे जमा था जिसके वजह से माता का शरीर उसी स्थान पर विद्यमान था , जो उस स्थान से हटने को तैयार न होने के कारण ग्रामीण जनों ने उसी शरीर पर नवनीत व सिन्दूर का सिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई । तब से उस शरीर की पूर्ण मूर्ति मानते हुये पूजा जाते रहा ।
कहते है की एक दिन अभिलेखागार बैतूल मे पदस्थ अभिलेखागार प्रभारी श्री विश्वकर्मा व सोनीजी के साथ ऐसी घटना घटी की वे अचम्भित हो गये ।  विश्वकर्मा जी ने अपने आफिस समय पर आये और अचानक उन्हे कुर्सी पर बैठे बैठे नींद आ गई । उसी समय एक कन्या रूप मे माता जी आयी और बताया की मै धामनगाँव की देवी हूँ और मुझे वर्ष 1983 से इस अभिलेखागार मे रखा गया है , मेरा फाइलें नंबर उक्त है ,  मेरा केस नंबर उक्त है , मुझे मुक्त किया जाये ।  इसी समय विश्वकर्मा जी की नींद खुली और अपने सहपाठी सोनी जी को सम्पूर्ण वृतांत सुनाया तब सोनी जी ने कहा की हमे देखना चाहिये की उस फाइलें और कपड़े बन्द सामाग्री मे क्या है । जब विश्वकर्मा और सोनी जी ने कन्या रूपी देवी द्वारा सपने मे बताये फाइलें नंबर ,  केस नंबर को देखा  तो उन्हे वही सब कुछ प्राप्त हुआ और एक कपड़े मे माता का खण्डित सिर प्राप्त हुआ ।  दोनो ही माँ रेणुका के इस चमत्कार को देखकर दंग रह गये ,  उन्होने अगरबत्ती और पूजन सामाग्री लाई और माता के उस खण्डित सिर की पूजा अर्चना , दीप प्रज्वलन कार्य कर स्तुति की । माता के इस चमत्कार को देखते हुये विश्वकर्मा बाबूजी और सोनी जी  ने  अभिलेखागार के नियमो को तोड़ने मे पीछे नही रहे और माता की पूजा अर्चना निस्वार्थ भावना से सम्पन्न की ।  जब विश्वकर्मा बाबूजी ने माता रेणुका की खंडित मूर्ति को मुक्त कर उनके शक्ति धाम पर पुन : स्थापित करने का प्रयास आंरभ किया उन्होने अपने परिचित सुरेन्द्र मालवीय वकील साहब को पूर्ण घटना सुनाई । तब सुरेन्द्र मालवीय जी ने कहा की मेरा जूनियर उसी गाँव का है ,  मै आपको उनसे मिलवा देता हूँ ।
तब विश्वकर्मा बाबूजी मालवीय जी के जूनियर वासुदेव कोसे जी मिले और उन्हे पूरी गाथा सुनाई माँ रेणुका की जो उनके साथ अभिलेखागार मे हुई थी । इसके बाद कोसे  वकील जी थाने गये और उन्होने वहाँ फाइलें खोलने लगाई पूर्ण प्रकरण की जाँच पड़ताल चेक की गई ।  सन 1992 मे उस वक्त के दोनो आरोपी की मुत्यु हो जाने की वजह से केस बन्द हो गया था इसलिए सुपुर्द नामे पर लिया ।  इसके बाद कोसे जी ने ग्रामीण से निवेदन कर माँ रेणुका उत्थान समिति का गठन किया ।  इस समिति मे आनन्दराव जी वंजारे को अध्यक्ष और ऊतमराव पटेल को सचिव बनाया । इसके बाद माता के भक्त कोसे ने मन्दिर समिति के साथ गांजे बाजे के साथ बैतूल तीन ट्रेक्टर भक्त गण लेकर अभिलेखागार गये ।
बैतूल जिला अभिलेखागार व न्यायालय कारवाही कर सम्पूर्ण औपचारिकता पूर्ण करने पर उक्त खण्डित सिर दिनाँक 30/08/1992 को सुपुर्द नामे पर लिया गया ।
माह अगस्त था बारिश का समय चल रहा था किन्तु लगभग दो माह से पानी नही आ रहा था , जैसे ही माताजी का सिर धामनगॉव मे प्रवेश किया । ग्रामीणो द्वारा माताजी के सिर को रात्रि भर बजरंग मन्दिर मे रखा गया । ग्रामवासियों के समक्ष समस्या उत्पन्न हुई की केवल माता के सिर की स्थापित नही की जा सकती । क्योकि प्रमुख शरीर मे पहले ही सिर स्थापित कर दिया था इसलिये सारे गाँव वासियो द्वारा काफी विचार -विमर्श  करने के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि माता जी के शरीर को प्रथक से बनाया जाये और कोर्ट से लाये सिर को उस पर स्थापित किया जाये । दूसरे दिन माता जी का सिर दिनाँक 31/ 08 / 1992 को विशाल जुलूस निकालकर  धामनगाँव ,  सीताढाना , रेणुका खापा मे घुमाया गया उस समय हजारो की संख्या मे भीड़ एकत्रित होकर डिन्डि और बाजे गांजे के साथ रेणुका माता स्थित मन्दिर पहुँचे जहाँ पर वही अभिलेखागार के विश्वकर्मा और सोनी जी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा चल रही थी की उसी गाँव मे एक गाय ने सफेद कलर की बछिया को जन्म दिया । गौ के रूप मे माता का आगमन सुनकर सारा गाँव उस बछिया को देखने के लिये उसके पास दौड़ दौड़ के जाने लगे और आशीर्वाद लेने लगे ।
जिससे लोगो मे माँ रेणुका के प्रति अधिक आस्था बढ़ गई और वह जन्मी बछिया आकर्षण का केन्द्र बन गई । इस तरह माताजी की अपार लीला कोई समझ नही पाया और न ही ऐसा वाक्या कही सुना न कही देखा होगा की एक पूर्व से माता जी का शरीर है जिस पर नवीन सिर स्थापित किया गया और दूसरी मूर्ति संगमरमर पूर्ण से विद्यमान है और तीसरी मूर्ति पर माताजी जी का पुराना सिर और नवीन शरीर स्थापित किया गया है । इस तरह माताजी के तीन रूपों का वर्णन किया गया । जब दिनाँक 31/08/1992 को तीसरे रूप मे माताजी विराजमान हुई और विराजमान होने के पश्चात लगभग  शाम 5 बजे सभी ग्रामीण अपने अपने घर पहुँचे ही थे की इतनी जोरदार बारिश हुई की नदी नाले भारी उफान पर आ गये इसी दिन प्रतिवर्ष 31 अगस्त को माँ रेणुका की मूर्ति स्थापना दिवस के रूप मे जन्मदिन मनाया जाता है । स्थापना के पश्चात धीरे धीरे माता जी के पावन धाम पर विकास होने लगा जैसे छत निर्माण , कूप निर्माण टयूबेल खनन आदि कार्यो मे ग्राम वाशियो ने भरपूर सहयोग किया । समय समय के चलते वर्ष 1999 मे ग्रामवाशियो के सहयोग से माँ सतचण्डी महायज्ञ का आयोजन रखा । समापन के एक दिन पूर्व के रात्रि मे भंडारे हेतु माताओं द्वारा पुड़िया बनाई जा रही थी कि उसी समय रात्रि 12 बजे एक अजनबी एक महिला आयी और उसने एक महिला के हाथ से आटा लेकर उबलते हुये तेल मे पूड़ी डालकर हाथ से निकाल ली गई । ऐसा उस दिव्य रूप धारण कर आयी महिला ने पाँचों पुड़िया तल रही कड़ाईयो मे किया । आस पास बैठी महिलाये सोच ही रही थी की इस महिला के हाथ नही जल रहे जो इतने गर्म तेल से पुड़िया हाथ से ही निकाल रही है । वह महिला कुछ समय बाद मन्दिर की ओर जाने लगी और कुछ दूर चलते ही अदृश्य हो गई ।  सारे गाँव मे माता के इस चमत्कार ने भक्ति की गंगा बहा दी ।
कुछ समय बाद आठनेर नगर के समिप स्थित गुणखेड गाँव मे अचानक कोई बीमारी आ गई थी । उसी दरम्यान ग्राम गुणखेड निवासियों ने प्रत्येक मंगलवार रात्रि डिन्डि लाने का संकल्प लिया और वहाँ की गम्भीर बीमारी समाप्त हो गई , इसलिये पाँचवे मंगलवार जब डिन्डि आई और ऊपर माँ रेणुका दरबार मे भजन करने लगे सभी भक्त गण वह समय लगभग रात्रि 11 बजे का चल रहा था की अचानक माता की सवारी शेर आ गया और माँ के दर्शन करने को लेकिन सभी भक्तगण उसे देखकर भयभीत हो गये थे और कुछ समय रुकने के बाद वह चला गया ।
जैसे ही शेर वहाँ से गया वैसे ही सभी भक्तो के जान मे जान आई और वे तुरन्त घर की ओर लौट आये ।
ऐसी माँ की महिमा का करिश्मा देखकर भक्तो का दिल गद गद हो गया ।
                 सखाराम के स्वर्गवास के बाद  उनके बेटे कृष्णराव और कृष्णराव पटेल के स्वर्गवास बाद उनके सुपुत्र उतम पटेल द्वारा माता के धाम की देखरेख व संरक्षण का कार्य किया जा रहा है ,  समय समय पर यज्ञ ,हवन ,भण्डारे ,भागवत ,चैत्र महोत्सव ,जन्मोत्सव ,नवरात्री महोत्सव आदि का आयोजन चलता रहता है ।
आज से लगभग 4 -5 वर्ष पहले की बात है मॉ रेणुका के किसी भक्त ने लालच वश मॉ रेणुका मंदिर के गर्भगृह के आगे स्थित बरामदे मे लगा घंटा चुरा लिया
औऱ ऐसा माना जाता है कि मॉ ने इस कृत्य की सजा भी उस चोर को दी ,इस घटना के बाद से मॉ रेणुका के भक्तो का माता पर विश्वास औऱ भी दृढ़ हो गया।
माँ की महिमा अपरम्पार है जो सच्चे दिल से माता का सुमिरन करता है उसके जीवन के सारे संकट हर लेती है ।










धारूल अम्बा देवी दरबार की खोज कब कैसे और किसने की सुनिए सच्ची कहानी

 प्राचीन काल की बात है तापीतट किनारे एक छोटे से गाँव सावँगी किनारे राधाबाई नाम की एक ताप्ती मैया की भक्त रहती थी । विवाह के उपरान्त अपने बच्चो के पालन पोषण के साथ माँ भवानी की आराधना किया करती थी । माँ ताप्ती जी के सेवन और दर्शन करने के लिये वो सदा ही उत्तेजित रहती थी । राधाबाई को माँ भवानी और भगवान भोलेनाथ पर पूर्ण विश्वास था कि भक्ति से प्रसन्न होकर एक ना एक दिन उन्हे दर्शन देने अवश्य उसके घर पधारेँगे  । देवी राधाबाई ने अपनी सखी मनीहार बेचने वाली मंगला के साथ नागद्वार कि कई यात्रायें कि थी ।
 एक बार की बात है देवादिदेव एवं माँ पार्वती दोनो ही ने नन्दी पर सवार होके इस सावँगी नामक गाँव मॆ प्रवेश किया । माँ राधाबाई ने जब इनके दर्शन किये तो उसे यकीन ही नही हो रहा था...की स्वयं   माता पार्वती पिता महादेव के साथ उनके घर पधारी है । राधा को ऐसा लग रहा था कि वो सपना ही देख रही है । राधाबाई ने उनकी पूजा अर्चना कि कर प्रणाम किया । भगवान का आदेश सुनकर राधाबाई भी चल निकली उनके धन (शिवगणों ) के साथ उनके पीछे पीछे सतपुडा पर्वत शृंखला कि ओर ।  गाँव से आगे चलकर आठनेर नगर के समीप स्थित गूप्तेश्वर धाम  महादेव बाबा और माँ पार्वती जी कि इस यात्रा मॆ हर बोला हर हर महादेव के नारो का जयघोष हो रहा था । आगे आगे नन्दी पर सवार होकर महादेव बाबा और माता गौरा चल रही थी और पीछे पीछे भक्तो के साथ राधा बाई चल रही थी । गूप्तेश्वर से आगे चलकर धारुल गाँव कि सतपुडा पर्वत शृंखला कि एक दिव्य गुफा मॆ प्रवेश किया ।
उस गुप्त गुफा की यात्रा शुरू हुई। गुफा के रास्ते मे काले विषधर साँपो के ढेर लगा हुआ था जिसे राधा मां अपने हाथो से उन्हे हटाती और आगे बढती जा रही थी। उसके आगे आगे  चल रहे थे महादेव बाबा और गौरा माता पहाड़ी पर बना तालाब करीब 200 मीटर लम्बा - चौडा था। तालाब के पास ही लगभग 6 फि ट ऊँची भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनी हुई थी। इस मूर्ति के ठीक सामने गणेश जी की मूर्ति विराजमान थी। उन सभी मूर्तियों से सूर्य के तेज प्रकाश निकल कर चारो ओर फैला हुआ था। तेज प्रकाश एवं चकाचौंध रोशनी की वजह से माँ राधाबाई  बुरी तरह से डर गई थी। तालाब के पास से आगे की ओर बढने पर राधाबाई को माँ काली की 6 फीट ऊंची मूर्ति दिखाई दी। आस पास कई प्रकार के बगीचो में खटटे मीठे फल लगे हुये थे। कुछ दूरी पर लगभग 7 - 8 साधुओ बाबा समाधी लगा कर वर्षो से तपस्या मे लीन है।
भगवान शिव और माँ भवानी ने राधाबाई से कहाँ की हे राधाहम तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न है और हम वरदान स्वरूप तुम्हे कुछ देना चाहते है । हम चाहते है कि तुम इस धाम की कीर्ति जन -जन तक पहुँचाने के लिये यहाँ बस जाओ और यहाँ पर तुम्हारी माता अम्बे के धर्म का प्रचार करो अर्थात आप सन्यास लेकर यहाँ पर स्वयं भू -प्रकट हुईं तुम्हारी माँ अम्बा माई की सेवा पूजा -अर्चना करो । भगवान भोलेनाथ के ऐसे वचन सुनकर भक्त राधाबाई भोली..हे जगत पिता आप मुझ पर प्रसन्न हुये मेरे लिये इससे बड़ी खुशी ओर क्या हो सकती है । सदा आपकी और माता अम्बा की कृपा बनी रहे मुझे इसके अलावा कूछ भी नही चाहिये । मेरे बच्चे और मेरा परिवार मेरे बिना नही रह सकता आप भी बताओ मैं उन्हे छोड़कर कैसे सन्यास ले लू..कैसे उनके बिना
इस धाम मॆ रह पाऊंगी अत :कृपा कर कोई रास्ता और निकाले जिससे आपका वचन भी पूरा हो जाये और मुझे भी इस धाम के प्रचार प्रसार करने का मिल सके और यहाँ सदा आते जाते रहूँ ।। तब महादेव बाबा बोले बेटी किसे इस धाम मॆ बिठाना है..कैसे तुम्हे इस धाम की कीर्ति जन जन पहुंचानी ये सब कार्य तुम्हारे भाग्य मॆ ही लिखे है और तुम्हारी माता जगदम्बा और मेरी कृपा से सब सिध्द होंगे । बेटी राधा ये बड़ी पावन भूमि है इस क्षेत्र के कण कण मॆ आदिगँगा माँ ताप्ती का निवास है । सूर्यनारायण की पुत्री ताप्ती इस धरा पर एक मात्र ऐसी नदी है जिनके सेवन से त्रिदेव , गंगा यमुना एवं तैतीस कोटी देव समस्त पवित्र होते है । ताप्ती कल्पो कल्पो से इस क्षेत्र के वासियों के ताप -पाप हारने के साथ साथ उन्हे जल संकट से बचा रही है । इतना कहकर भोलेनाथ और माता गौरा अन्तर्ध्यान हो गये । देवी राधा बाई गुप्त गुफा से बाहर खड़ी स्थिति मॆ अपने आप को पाई । गुफा को देखने के बाद राधाबाई अपने घर गाँव की निकल पड़ी । भगवान शिवरुप धारण करे माया डाले एक ग्वाले मॆ अपने गाय बैलों के साथ उसे गाँव के झोर तक छोड़ अचानक लुप्त हो गई ।  उस दिव्य गुफा के दर्शन स्वयं
शिवनाथ द्वारा कराने और उस धाम से लौट आने आदि बातो से 4-5 दिन राधा बेहोश हालात मॆ रही । फ़िर देवी राधाबाई ने निर्णय किया की वे भोलेनाथ   की आज्ञा का पालन करेंगी और इस गुप्त अम्बेय धाम को जन जन तक पहुँचाने के लिये हर सम्भव प्रयास करेंगी । राधाबाई ने अपनी सखी जो मनीहार बेचने गाँव-गाँव का बाजार किया करती और अपनी जीविका चलाया करती थी...उसे अपने घर बुलाया और उसे अपने साथ घटित घटना सुनाई । उसे अम्बे धाम की सदा के लिये देखरेख और   इसकी कीर्ति जन -जन कीर्ति पहुँचाने के लिये अम्बे धाम मॆ रहने की विनती की । राधाबाई का स्वभाव ही ऐसा था जो उनसे कोई भी माता का भक्त जल्द ही घुल मिल जाता है । मणिहार बेचने वाली  मंगला की आर्थिक स्थति से राधाबाई अच्छी तरह अवगत थी...परतवाडा एस.डी.डिपो के पास स्थित  फुकट मोहल्ले की रहने मंगला शादी होने के कूछ साल बाद सांसारिक जीवन का त्याग कर चूँकि थी । श्री राधा बाई की बात को स्वीकार कर लिया देवी मंगला ने और मंगला निकल पड़ी राधा बाई के अम्बा माई की गुफा धारुल के लिये । राधाबाई की आर्थिक स्थति मजबूत थी । इसलिये उन्होने मंगला के लिये कई दिनो की भोजन सामग्री और कूछ कपडो का का प्रबन्ध कर साथ झोली मॆ लेकर पैदल निकले थे । अम्बा धाम पहुँचकर गुफा के आस पास की साफ सफाई की और एक टीन के पीपे मॆ मंगला के खाने का सामान रख वही पास धुन जला दी । गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक नागराज ने ठेरा डाल रखा था जिससे मंगला भक्तिनी को बहुत डर लगता था ।इसलिये राधाबाई मॆ मंगला को अपने कंधो पर उठाकर उसे उसे गुफा का द्वार पार कराया । राधाबाई ने मंगला से कहाँ बहना हम दोनो ने साथ मॆ नागद्वार की यात्रा की है ये सभी साँप हमारे भाई है हमे इनसे कैसा भय, कैसा डर अब आगे तुम्हे इनके साथ भी रहना है । अम्बा माई की गुफा का रास्ता बहुत छोटा था..साँपो का झुण्ड रास्ते मॆ विचरण करते रहता था...उन्हे रास्ते से हटाते हुये राधा बाई ने मंगला को लेकर अंदर प्रवेश किया था । इसके बाद राधाबाई गाँव आ गई और मंगला देवी को कह आयी की जल्द ही मैं कूछ और माता रानी के भक्तो के साथ तेरे से मिलने आऊंगी । गाँव सावँगी के कई लोग माँ राधा बाई की भक्ति के प्रभाव से उसके भक्त बन चुके थे । राधा बाई ने गाँव के कूछ प्रिय भक्त नामदेव माकोडे ,देवराव राणे अपने छोटे पुत्र गनपत के साथ अम्बा यात्रा को निकल पड़े । राधाबाई अपनी सखी
मंगला को हमेशा ही पहनने के लिये वस्त्रों के रुप ब्लाउस और लहंगा भेंट करती थी और उसके भोजन के लिये कूछ हल्का पुलका ले आती थी । जब राधा बाई अम्बा माई पहुँची तो मंगला देवी को बहुत ही प्रसन्नता हुईं । अब इस धाम मॆ भक्तो के कल्याण के लिये जलधारा का रहना ज़रूरी था पर गुफा से  दुर दुर तक पानी कही नही मिल पाता था । माँ अम्बे भवानी का स्मरण करने लगी राधा और उन्हे भोलेनाथ की सुनाई ताप्ती महिमा याद आई ।ताप्ती माई का स्मरण करते हुये राधा बाई , मंगला देवी ,नामदेव और देवराव ने ए
क झीरी (गड्डा) खोदने लगे अपने हाथो से इनके हाथो मॆ छाले पड़े जैसे दाग हो इस गड्डे को खोदते हुये पर अंत मॆ निकल पड़ी जलधारा के रुप मॆ ताप्ती मैया । माँ अम्बे धाम मॆ ताप्ती रानी के आगमन के सारे तीर्थ धाम आ गये मन्दिर मॆ चार चाँद लग गये हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
इसके बाद राधा बाई और मंगला माई ने दिव्य गुफा के प्रवेश द्वारा के पास माँ अम्बादेवी भवानी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की और गाँव -गाँव के बरसात मॆ गाय बैल चराने वाले ग्वालो के विश्राम भक्ति कीर्तन से तेजी से जन-जन तक तेजी से इस धाम का प्रचार हुआ । कभी केशों भक्त ने इस धाम के लिये समर्पण दिया..तो कभी गुदगांव की अम्बा माँ  ने दिया..तो कभी आठनेर के शोभा जी घोड्कि ने....तो कूछ भक्तो ने अपनी जिंदगी माई के नाम कर दी जिनमे कन्हैया महाराज..मदन गुप्ता । इस माई के धाम से झोली भर कर जाने वाले लोगों की कहानी और किस्सों की कमी नही बस माई के सच्चे बेटों की कमी है जो इनका संकलन कर सके । मंगला माई को कूछ तांत्रिक और धन लालचि लोगों ने कई बार मौत की नींद सुलाने की कोशिश की
परन्तु माँ अम्बा माई से प्राप्त शक्ति की देन से राधा बाई ने हमेशा उसकी रक्षा की चार धाम की यात्रा पर जब माँ मंगला अपने 35 भक्तो के साथ गई तब महाराष्ट्र के गुणी घाट के एक तांत्रिक ने मन्दिर पर अपना स्वामित्व स्थापित करने हेतु  गौ हत्या कर डाली जिसकी सजा से वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ परन्तु मन्दिर मॆ गौ हत्या तंत्र विधा के प्रहार से 6 माह बाद दुखद मृत्यु प्राप्त हुईं । इसके बाद राधा बाई ने अपने बेटे गनपत को अम्बा धाम की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी । सब कुशल मंगल चल रहा था कूछ स्वार्थी लोगों ने गनपत पर झुठे इल्जाम लगाकर उसे मन्दिर समिति से हटा दिया । एक ऐसा भी अम्बा माई का बेटा  राधा बाई के गाँव सावँगी से 24 वर्ष की उम्र मॆ पहली बार अम्बा धाम धारुल माता के बुलावे  पर  गया । जिसने माता के दर्शन के बाद कर ली अखंड  प्रतिज्ञा कि दुनियाँ कोने तक पहुंचायेगा इस धाम कि अम्बा माई की महिमा । इस भक्त रविन्द्र ने अपना वादा पूरा किया भवानी से और माई के नाम बना बैठा भजन एलबम । सोशल वेब पोर्टल के हर साइड पर पहुँचाई अम्बे माँ की महिमा जिसके चलते बज गया माई का डंका ।नौ पवित्रौ तीर्थ के जलाभिषेक से करवाई मन्दिर विशेष पूजा । वर्तमान मॆ कूछ मन्दिर जुड़े लोगों ने माता के प्राचीन आभूषणों का गबन कर लिया और माई के धाम पर कलंक का टीका लगा दिया । आज इस अम्बा माई के मन्दिर चोरी मामले को दबाने के लिये बैतूल  जिले के बड़े नेता मैदान मॆ उतर चुके और पुलिंस प्रशासन पर दबाव बनाये है । हजारो लोग इन चोरों का साथ दे रहे पर माता के इंसाफ के लिये एक भक्त रविन्द्र  खड़ा है आज भी प्रयत्न पर प्रयत्न कर रहा है जिससे  कोई दिन सच सामने आयेंगा ।