प्राचीन काल की बात है तापीतट किनारे एक छोटे से गाँव सावँगी किनारे राधाबाई नाम की एक ताप्ती मैया की भक्त रहती थी । विवाह के उपरान्त अपने बच्चो के पालन पोषण के साथ माँ भवानी की आराधना किया करती थी । माँ ताप्ती जी के सेवन और दर्शन करने के लिये वो सदा ही उत्तेजित रहती थी । राधाबाई को माँ भवानी और भगवान भोलेनाथ पर पूर्ण विश्वास था कि भक्ति से प्रसन्न होकर एक ना एक दिन उन्हे दर्शन देने अवश्य उसके घर पधारेँगे । देवी राधाबाई ने अपनी सखी मनीहार बेचने वाली मंगला के साथ नागद्वार कि कई यात्रायें कि थी ।
एक बार की बात है देवादिदेव एवं माँ पार्वती दोनो ही ने नन्दी पर सवार होके इस सावँगी नामक गाँव मॆ प्रवेश किया । माँ राधाबाई ने जब इनके दर्शन किये तो उसे यकीन ही नही हो रहा था...की स्वयं माता पार्वती पिता महादेव के साथ उनके घर पधारी है । राधा को ऐसा लग रहा था कि वो सपना ही देख रही है । राधाबाई ने उनकी पूजा अर्चना कि कर प्रणाम किया । भगवान का आदेश सुनकर राधाबाई भी चल निकली उनके धन (शिवगणों ) के साथ उनके पीछे पीछे सतपुडा पर्वत शृंखला कि ओर । गाँव से आगे चलकर आठनेर नगर के समीप स्थित गूप्तेश्वर धाम महादेव बाबा और माँ पार्वती जी कि इस यात्रा मॆ हर बोला हर हर महादेव के नारो का जयघोष हो रहा था । आगे आगे नन्दी पर सवार होकर महादेव बाबा और माता गौरा चल रही थी और पीछे पीछे भक्तो के साथ राधा बाई चल रही थी । गूप्तेश्वर से आगे चलकर धारुल गाँव कि सतपुडा पर्वत शृंखला कि एक दिव्य गुफा मॆ प्रवेश किया ।
उस गुप्त गुफा की यात्रा शुरू हुई। गुफा के रास्ते मे काले विषधर साँपो के ढेर लगा हुआ था जिसे राधा मां अपने हाथो से उन्हे हटाती और आगे बढती जा रही थी। उसके आगे आगे चल रहे थे महादेव बाबा और गौरा माता पहाड़ी पर बना तालाब करीब 200 मीटर लम्बा - चौडा था। तालाब के पास ही लगभग 6 फि ट ऊँची भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनी हुई थी। इस मूर्ति के ठीक सामने गणेश जी की मूर्ति विराजमान थी। उन सभी मूर्तियों से सूर्य के तेज प्रकाश निकल कर चारो ओर फैला हुआ था। तेज प्रकाश एवं चकाचौंध रोशनी की वजह से माँ राधाबाई बुरी तरह से डर गई थी। तालाब के पास से आगे की ओर बढने पर राधाबाई को माँ काली की 6 फीट ऊंची मूर्ति दिखाई दी। आस पास कई प्रकार के बगीचो में खटटे मीठे फल लगे हुये थे। कुछ दूरी पर लगभग 7 - 8 साधुओ बाबा समाधी लगा कर वर्षो से तपस्या मे लीन है।
भगवान शिव और माँ भवानी ने राधाबाई से कहाँ की हे राधाहम तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न है और हम वरदान स्वरूप तुम्हे कुछ देना चाहते है । हम चाहते है कि तुम इस धाम की कीर्ति जन -जन तक पहुँचाने के लिये यहाँ बस जाओ और यहाँ पर तुम्हारी माता अम्बे के धर्म का प्रचार करो अर्थात आप सन्यास लेकर यहाँ पर स्वयं भू -प्रकट हुईं तुम्हारी माँ अम्बा माई की सेवा पूजा -अर्चना करो । भगवान भोलेनाथ के ऐसे वचन सुनकर भक्त राधाबाई भोली..हे जगत पिता आप मुझ पर प्रसन्न हुये मेरे लिये इससे बड़ी खुशी ओर क्या हो सकती है । सदा आपकी और माता अम्बा की कृपा बनी रहे मुझे इसके अलावा कूछ भी नही चाहिये । मेरे बच्चे और मेरा परिवार मेरे बिना नही रह सकता आप भी बताओ मैं उन्हे छोड़कर कैसे सन्यास ले लू..कैसे उनके बिना
इस धाम मॆ रह पाऊंगी अत :कृपा कर कोई रास्ता और निकाले जिससे आपका वचन भी पूरा हो जाये और मुझे भी इस धाम के प्रचार प्रसार करने का मिल सके और यहाँ सदा आते जाते रहूँ ।। तब महादेव बाबा बोले बेटी किसे इस धाम मॆ बिठाना है..कैसे तुम्हे इस धाम की कीर्ति जन जन पहुंचानी ये सब कार्य तुम्हारे भाग्य मॆ ही लिखे है और तुम्हारी माता जगदम्बा और मेरी कृपा से सब सिध्द होंगे । बेटी राधा ये बड़ी पावन भूमि है इस क्षेत्र के कण कण मॆ आदिगँगा माँ ताप्ती का निवास है । सूर्यनारायण की पुत्री ताप्ती इस धरा पर एक मात्र ऐसी नदी है जिनके सेवन से त्रिदेव , गंगा यमुना एवं तैतीस कोटी देव समस्त पवित्र होते है । ताप्ती कल्पो कल्पो से इस क्षेत्र के वासियों के ताप -पाप हारने के साथ साथ उन्हे जल संकट से बचा रही है । इतना कहकर भोलेनाथ और माता गौरा अन्तर्ध्यान हो गये । देवी राधा बाई गुप्त गुफा से बाहर खड़ी स्थिति मॆ अपने आप को पाई । गुफा को देखने के बाद राधाबाई अपने घर गाँव की निकल पड़ी । भगवान शिवरुप धारण करे माया डाले एक ग्वाले मॆ अपने गाय बैलों के साथ उसे गाँव के झोर तक छोड़ अचानक लुप्त हो गई । उस दिव्य गुफा के दर्शन स्वयं
शिवनाथ द्वारा कराने और उस धाम से लौट आने आदि बातो से 4-5 दिन राधा बेहोश हालात मॆ रही । फ़िर देवी राधाबाई ने निर्णय किया की वे भोलेनाथ की आज्ञा का पालन करेंगी और इस गुप्त अम्बेय धाम को जन जन तक पहुँचाने के लिये हर सम्भव प्रयास करेंगी । राधाबाई ने अपनी सखी जो मनीहार बेचने गाँव-गाँव का बाजार किया करती और अपनी जीविका चलाया करती थी...उसे अपने घर बुलाया और उसे अपने साथ घटित घटना सुनाई । उसे अम्बे धाम की सदा के लिये देखरेख और इसकी कीर्ति जन -जन कीर्ति पहुँचाने के लिये अम्बे धाम मॆ रहने की विनती की । राधाबाई का स्वभाव ही ऐसा था जो उनसे कोई भी माता का भक्त जल्द ही घुल मिल जाता है । मणिहार बेचने वाली मंगला की आर्थिक स्थति से राधाबाई अच्छी तरह अवगत थी...परतवाडा एस.डी.डिपो के पास स्थित फुकट मोहल्ले की रहने मंगला शादी होने के कूछ साल बाद सांसारिक जीवन का त्याग कर चूँकि थी । श्री राधा बाई की बात को स्वीकार कर लिया देवी मंगला ने और मंगला निकल पड़ी राधा बाई के अम्बा माई की गुफा धारुल के लिये । राधाबाई की आर्थिक स्थति मजबूत थी । इसलिये उन्होने मंगला के लिये कई दिनो की भोजन सामग्री और कूछ कपडो का का प्रबन्ध कर साथ झोली मॆ लेकर पैदल निकले थे । अम्बा धाम पहुँचकर गुफा के आस पास की साफ सफाई की और एक टीन के पीपे मॆ मंगला के खाने का सामान रख वही पास धुन जला दी । गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक नागराज ने ठेरा डाल रखा था जिससे मंगला भक्तिनी को बहुत डर लगता था ।इसलिये राधाबाई मॆ मंगला को अपने कंधो पर उठाकर उसे उसे गुफा का द्वार पार कराया । राधाबाई ने मंगला से कहाँ बहना हम दोनो ने साथ मॆ नागद्वार की यात्रा की है ये सभी साँप हमारे भाई है हमे इनसे कैसा भय, कैसा डर अब आगे तुम्हे इनके साथ भी रहना है । अम्बा माई की गुफा का रास्ता बहुत छोटा था..साँपो का झुण्ड रास्ते मॆ विचरण करते रहता था...उन्हे रास्ते से हटाते हुये राधा बाई ने मंगला को लेकर अंदर प्रवेश किया था । इसके बाद राधाबाई गाँव आ गई और मंगला देवी को कह आयी की जल्द ही मैं कूछ और माता रानी के भक्तो के साथ तेरे से मिलने आऊंगी । गाँव सावँगी के कई लोग माँ राधा बाई की भक्ति के प्रभाव से उसके भक्त बन चुके थे । राधा बाई ने गाँव के कूछ प्रिय भक्त नामदेव माकोडे ,देवराव राणे अपने छोटे पुत्र गनपत के साथ अम्बा यात्रा को निकल पड़े । राधाबाई अपनी सखी
मंगला को हमेशा ही पहनने के लिये वस्त्रों के रुप ब्लाउस और लहंगा भेंट करती थी और उसके भोजन के लिये कूछ हल्का पुलका ले आती थी । जब राधा बाई अम्बा माई पहुँची तो मंगला देवी को बहुत ही प्रसन्नता हुईं । अब इस धाम मॆ भक्तो के कल्याण के लिये जलधारा का रहना ज़रूरी था पर गुफा से दुर दुर तक पानी कही नही मिल पाता था । माँ अम्बे भवानी का स्मरण करने लगी राधा और उन्हे भोलेनाथ की सुनाई ताप्ती महिमा याद आई ।ताप्ती माई का स्मरण करते हुये राधा बाई , मंगला देवी ,नामदेव और देवराव ने ए
क झीरी (गड्डा) खोदने लगे अपने हाथो से इनके हाथो मॆ छाले पड़े जैसे दाग हो इस गड्डे को खोदते हुये पर अंत मॆ निकल पड़ी जलधारा के रुप मॆ ताप्ती मैया । माँ अम्बे धाम मॆ ताप्ती रानी के आगमन के सारे तीर्थ धाम आ गये मन्दिर मॆ चार चाँद लग गये हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
इसके बाद राधा बाई और मंगला माई ने दिव्य गुफा के प्रवेश द्वारा के पास माँ अम्बादेवी भवानी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की और गाँव -गाँव के बरसात मॆ गाय बैल चराने वाले ग्वालो के विश्राम भक्ति कीर्तन से तेजी से जन-जन तक तेजी से इस धाम का प्रचार हुआ । कभी केशों भक्त ने इस धाम के लिये समर्पण दिया..तो कभी गुदगांव की अम्बा माँ ने दिया..तो कभी आठनेर के शोभा जी घोड्कि ने....तो कूछ भक्तो ने अपनी जिंदगी माई के नाम कर दी जिनमे कन्हैया महाराज..मदन गुप्ता । इस माई के धाम से झोली भर कर जाने वाले लोगों की कहानी और किस्सों की कमी नही बस माई के सच्चे बेटों की कमी है जो इनका संकलन कर सके । मंगला माई को कूछ तांत्रिक और धन लालचि लोगों ने कई बार मौत की नींद सुलाने की कोशिश की
परन्तु माँ अम्बा माई से प्राप्त शक्ति की देन से राधा बाई ने हमेशा उसकी रक्षा की चार धाम की यात्रा पर जब माँ मंगला अपने 35 भक्तो के साथ गई तब महाराष्ट्र के गुणी घाट के एक तांत्रिक ने मन्दिर पर अपना स्वामित्व स्थापित करने हेतु गौ हत्या कर डाली जिसकी सजा से वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ परन्तु मन्दिर मॆ गौ हत्या तंत्र विधा के प्रहार से 6 माह बाद दुखद मृत्यु प्राप्त हुईं । इसके बाद राधा बाई ने अपने बेटे गनपत को अम्बा धाम की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी । सब कुशल मंगल चल रहा था कूछ स्वार्थी लोगों ने गनपत पर झुठे इल्जाम लगाकर उसे मन्दिर समिति से हटा दिया । एक ऐसा भी अम्बा माई का बेटा राधा बाई के गाँव सावँगी से 24 वर्ष की उम्र मॆ पहली बार अम्बा धाम धारुल माता के बुलावे पर गया । जिसने माता के दर्शन के बाद कर ली अखंड प्रतिज्ञा कि दुनियाँ कोने तक पहुंचायेगा इस धाम कि अम्बा माई की महिमा । इस भक्त रविन्द्र ने अपना वादा पूरा किया भवानी से और माई के नाम बना बैठा भजन एलबम । सोशल वेब पोर्टल के हर साइड पर पहुँचाई अम्बे माँ की महिमा जिसके चलते बज गया माई का डंका ।नौ पवित्रौ तीर्थ के जलाभिषेक से करवाई मन्दिर विशेष पूजा । वर्तमान मॆ कूछ मन्दिर जुड़े लोगों ने माता के प्राचीन आभूषणों का गबन कर लिया और माई के धाम पर कलंक का टीका लगा दिया । आज इस अम्बा माई के मन्दिर चोरी मामले को दबाने के लिये बैतूल जिले के बड़े नेता मैदान मॆ उतर चुके और पुलिंस प्रशासन पर दबाव बनाये है । हजारो लोग इन चोरों का साथ दे रहे पर माता के इंसाफ के लिये एक भक्त रविन्द्र खड़ा है आज भी प्रयत्न पर प्रयत्न कर रहा है जिससे कोई दिन सच सामने आयेंगा ।
एक बार की बात है देवादिदेव एवं माँ पार्वती दोनो ही ने नन्दी पर सवार होके इस सावँगी नामक गाँव मॆ प्रवेश किया । माँ राधाबाई ने जब इनके दर्शन किये तो उसे यकीन ही नही हो रहा था...की स्वयं माता पार्वती पिता महादेव के साथ उनके घर पधारी है । राधा को ऐसा लग रहा था कि वो सपना ही देख रही है । राधाबाई ने उनकी पूजा अर्चना कि कर प्रणाम किया । भगवान का आदेश सुनकर राधाबाई भी चल निकली उनके धन (शिवगणों ) के साथ उनके पीछे पीछे सतपुडा पर्वत शृंखला कि ओर । गाँव से आगे चलकर आठनेर नगर के समीप स्थित गूप्तेश्वर धाम महादेव बाबा और माँ पार्वती जी कि इस यात्रा मॆ हर बोला हर हर महादेव के नारो का जयघोष हो रहा था । आगे आगे नन्दी पर सवार होकर महादेव बाबा और माता गौरा चल रही थी और पीछे पीछे भक्तो के साथ राधा बाई चल रही थी । गूप्तेश्वर से आगे चलकर धारुल गाँव कि सतपुडा पर्वत शृंखला कि एक दिव्य गुफा मॆ प्रवेश किया ।
उस गुप्त गुफा की यात्रा शुरू हुई। गुफा के रास्ते मे काले विषधर साँपो के ढेर लगा हुआ था जिसे राधा मां अपने हाथो से उन्हे हटाती और आगे बढती जा रही थी। उसके आगे आगे चल रहे थे महादेव बाबा और गौरा माता पहाड़ी पर बना तालाब करीब 200 मीटर लम्बा - चौडा था। तालाब के पास ही लगभग 6 फि ट ऊँची भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनी हुई थी। इस मूर्ति के ठीक सामने गणेश जी की मूर्ति विराजमान थी। उन सभी मूर्तियों से सूर्य के तेज प्रकाश निकल कर चारो ओर फैला हुआ था। तेज प्रकाश एवं चकाचौंध रोशनी की वजह से माँ राधाबाई बुरी तरह से डर गई थी। तालाब के पास से आगे की ओर बढने पर राधाबाई को माँ काली की 6 फीट ऊंची मूर्ति दिखाई दी। आस पास कई प्रकार के बगीचो में खटटे मीठे फल लगे हुये थे। कुछ दूरी पर लगभग 7 - 8 साधुओ बाबा समाधी लगा कर वर्षो से तपस्या मे लीन है।
भगवान शिव और माँ भवानी ने राधाबाई से कहाँ की हे राधाहम तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न है और हम वरदान स्वरूप तुम्हे कुछ देना चाहते है । हम चाहते है कि तुम इस धाम की कीर्ति जन -जन तक पहुँचाने के लिये यहाँ बस जाओ और यहाँ पर तुम्हारी माता अम्बे के धर्म का प्रचार करो अर्थात आप सन्यास लेकर यहाँ पर स्वयं भू -प्रकट हुईं तुम्हारी माँ अम्बा माई की सेवा पूजा -अर्चना करो । भगवान भोलेनाथ के ऐसे वचन सुनकर भक्त राधाबाई भोली..हे जगत पिता आप मुझ पर प्रसन्न हुये मेरे लिये इससे बड़ी खुशी ओर क्या हो सकती है । सदा आपकी और माता अम्बा की कृपा बनी रहे मुझे इसके अलावा कूछ भी नही चाहिये । मेरे बच्चे और मेरा परिवार मेरे बिना नही रह सकता आप भी बताओ मैं उन्हे छोड़कर कैसे सन्यास ले लू..कैसे उनके बिना
इस धाम मॆ रह पाऊंगी अत :कृपा कर कोई रास्ता और निकाले जिससे आपका वचन भी पूरा हो जाये और मुझे भी इस धाम के प्रचार प्रसार करने का मिल सके और यहाँ सदा आते जाते रहूँ ।। तब महादेव बाबा बोले बेटी किसे इस धाम मॆ बिठाना है..कैसे तुम्हे इस धाम की कीर्ति जन जन पहुंचानी ये सब कार्य तुम्हारे भाग्य मॆ ही लिखे है और तुम्हारी माता जगदम्बा और मेरी कृपा से सब सिध्द होंगे । बेटी राधा ये बड़ी पावन भूमि है इस क्षेत्र के कण कण मॆ आदिगँगा माँ ताप्ती का निवास है । सूर्यनारायण की पुत्री ताप्ती इस धरा पर एक मात्र ऐसी नदी है जिनके सेवन से त्रिदेव , गंगा यमुना एवं तैतीस कोटी देव समस्त पवित्र होते है । ताप्ती कल्पो कल्पो से इस क्षेत्र के वासियों के ताप -पाप हारने के साथ साथ उन्हे जल संकट से बचा रही है । इतना कहकर भोलेनाथ और माता गौरा अन्तर्ध्यान हो गये । देवी राधा बाई गुप्त गुफा से बाहर खड़ी स्थिति मॆ अपने आप को पाई । गुफा को देखने के बाद राधाबाई अपने घर गाँव की निकल पड़ी । भगवान शिवरुप धारण करे माया डाले एक ग्वाले मॆ अपने गाय बैलों के साथ उसे गाँव के झोर तक छोड़ अचानक लुप्त हो गई । उस दिव्य गुफा के दर्शन स्वयं
शिवनाथ द्वारा कराने और उस धाम से लौट आने आदि बातो से 4-5 दिन राधा बेहोश हालात मॆ रही । फ़िर देवी राधाबाई ने निर्णय किया की वे भोलेनाथ की आज्ञा का पालन करेंगी और इस गुप्त अम्बेय धाम को जन जन तक पहुँचाने के लिये हर सम्भव प्रयास करेंगी । राधाबाई ने अपनी सखी जो मनीहार बेचने गाँव-गाँव का बाजार किया करती और अपनी जीविका चलाया करती थी...उसे अपने घर बुलाया और उसे अपने साथ घटित घटना सुनाई । उसे अम्बे धाम की सदा के लिये देखरेख और इसकी कीर्ति जन -जन कीर्ति पहुँचाने के लिये अम्बे धाम मॆ रहने की विनती की । राधाबाई का स्वभाव ही ऐसा था जो उनसे कोई भी माता का भक्त जल्द ही घुल मिल जाता है । मणिहार बेचने वाली मंगला की आर्थिक स्थति से राधाबाई अच्छी तरह अवगत थी...परतवाडा एस.डी.डिपो के पास स्थित फुकट मोहल्ले की रहने मंगला शादी होने के कूछ साल बाद सांसारिक जीवन का त्याग कर चूँकि थी । श्री राधा बाई की बात को स्वीकार कर लिया देवी मंगला ने और मंगला निकल पड़ी राधा बाई के अम्बा माई की गुफा धारुल के लिये । राधाबाई की आर्थिक स्थति मजबूत थी । इसलिये उन्होने मंगला के लिये कई दिनो की भोजन सामग्री और कूछ कपडो का का प्रबन्ध कर साथ झोली मॆ लेकर पैदल निकले थे । अम्बा धाम पहुँचकर गुफा के आस पास की साफ सफाई की और एक टीन के पीपे मॆ मंगला के खाने का सामान रख वही पास धुन जला दी । गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक नागराज ने ठेरा डाल रखा था जिससे मंगला भक्तिनी को बहुत डर लगता था ।इसलिये राधाबाई मॆ मंगला को अपने कंधो पर उठाकर उसे उसे गुफा का द्वार पार कराया । राधाबाई ने मंगला से कहाँ बहना हम दोनो ने साथ मॆ नागद्वार की यात्रा की है ये सभी साँप हमारे भाई है हमे इनसे कैसा भय, कैसा डर अब आगे तुम्हे इनके साथ भी रहना है । अम्बा माई की गुफा का रास्ता बहुत छोटा था..साँपो का झुण्ड रास्ते मॆ विचरण करते रहता था...उन्हे रास्ते से हटाते हुये राधा बाई ने मंगला को लेकर अंदर प्रवेश किया था । इसके बाद राधाबाई गाँव आ गई और मंगला देवी को कह आयी की जल्द ही मैं कूछ और माता रानी के भक्तो के साथ तेरे से मिलने आऊंगी । गाँव सावँगी के कई लोग माँ राधा बाई की भक्ति के प्रभाव से उसके भक्त बन चुके थे । राधा बाई ने गाँव के कूछ प्रिय भक्त नामदेव माकोडे ,देवराव राणे अपने छोटे पुत्र गनपत के साथ अम्बा यात्रा को निकल पड़े । राधाबाई अपनी सखी
मंगला को हमेशा ही पहनने के लिये वस्त्रों के रुप ब्लाउस और लहंगा भेंट करती थी और उसके भोजन के लिये कूछ हल्का पुलका ले आती थी । जब राधा बाई अम्बा माई पहुँची तो मंगला देवी को बहुत ही प्रसन्नता हुईं । अब इस धाम मॆ भक्तो के कल्याण के लिये जलधारा का रहना ज़रूरी था पर गुफा से दुर दुर तक पानी कही नही मिल पाता था । माँ अम्बे भवानी का स्मरण करने लगी राधा और उन्हे भोलेनाथ की सुनाई ताप्ती महिमा याद आई ।ताप्ती माई का स्मरण करते हुये राधा बाई , मंगला देवी ,नामदेव और देवराव ने ए
क झीरी (गड्डा) खोदने लगे अपने हाथो से इनके हाथो मॆ छाले पड़े जैसे दाग हो इस गड्डे को खोदते हुये पर अंत मॆ निकल पड़ी जलधारा के रुप मॆ ताप्ती मैया । माँ अम्बे धाम मॆ ताप्ती रानी के आगमन के सारे तीर्थ धाम आ गये मन्दिर मॆ चार चाँद लग गये हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
इसके बाद राधा बाई और मंगला माई ने दिव्य गुफा के प्रवेश द्वारा के पास माँ अम्बादेवी भवानी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की और गाँव -गाँव के बरसात मॆ गाय बैल चराने वाले ग्वालो के विश्राम भक्ति कीर्तन से तेजी से जन-जन तक तेजी से इस धाम का प्रचार हुआ । कभी केशों भक्त ने इस धाम के लिये समर्पण दिया..तो कभी गुदगांव की अम्बा माँ ने दिया..तो कभी आठनेर के शोभा जी घोड्कि ने....तो कूछ भक्तो ने अपनी जिंदगी माई के नाम कर दी जिनमे कन्हैया महाराज..मदन गुप्ता । इस माई के धाम से झोली भर कर जाने वाले लोगों की कहानी और किस्सों की कमी नही बस माई के सच्चे बेटों की कमी है जो इनका संकलन कर सके । मंगला माई को कूछ तांत्रिक और धन लालचि लोगों ने कई बार मौत की नींद सुलाने की कोशिश की
परन्तु माँ अम्बा माई से प्राप्त शक्ति की देन से राधा बाई ने हमेशा उसकी रक्षा की चार धाम की यात्रा पर जब माँ मंगला अपने 35 भक्तो के साथ गई तब महाराष्ट्र के गुणी घाट के एक तांत्रिक ने मन्दिर पर अपना स्वामित्व स्थापित करने हेतु गौ हत्या कर डाली जिसकी सजा से वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ परन्तु मन्दिर मॆ गौ हत्या तंत्र विधा के प्रहार से 6 माह बाद दुखद मृत्यु प्राप्त हुईं । इसके बाद राधा बाई ने अपने बेटे गनपत को अम्बा धाम की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी । सब कुशल मंगल चल रहा था कूछ स्वार्थी लोगों ने गनपत पर झुठे इल्जाम लगाकर उसे मन्दिर समिति से हटा दिया । एक ऐसा भी अम्बा माई का बेटा राधा बाई के गाँव सावँगी से 24 वर्ष की उम्र मॆ पहली बार अम्बा धाम धारुल माता के बुलावे पर गया । जिसने माता के दर्शन के बाद कर ली अखंड प्रतिज्ञा कि दुनियाँ कोने तक पहुंचायेगा इस धाम कि अम्बा माई की महिमा । इस भक्त रविन्द्र ने अपना वादा पूरा किया भवानी से और माई के नाम बना बैठा भजन एलबम । सोशल वेब पोर्टल के हर साइड पर पहुँचाई अम्बे माँ की महिमा जिसके चलते बज गया माई का डंका ।नौ पवित्रौ तीर्थ के जलाभिषेक से करवाई मन्दिर विशेष पूजा । वर्तमान मॆ कूछ मन्दिर जुड़े लोगों ने माता के प्राचीन आभूषणों का गबन कर लिया और माई के धाम पर कलंक का टीका लगा दिया । आज इस अम्बा माई के मन्दिर चोरी मामले को दबाने के लिये बैतूल जिले के बड़े नेता मैदान मॆ उतर चुके और पुलिंस प्रशासन पर दबाव बनाये है । हजारो लोग इन चोरों का साथ दे रहे पर माता के इंसाफ के लिये एक भक्त रविन्द्र खड़ा है आज भी प्रयत्न पर प्रयत्न कर रहा है जिससे कोई दिन सच सामने आयेंगा ।
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