मंगलवार, 7 मई 2019

कुलदेवी माँ तुलजा भवानी की महिमा


आदिशक्ति माँ तुलजा भवानी की महिमा अपरम्पार है । माँ की महिमा और चमत्कार का जितना गुणगान किया जाए कम है ।
क्योकि यह तुलजा भवानी  महान सम्राट क्षत्रिय छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी है , जिन्होने स्वयं प्रगट होकर छत्रपति शिवाजी जी को तलवार भेट की थी ।
तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख इक्यावन शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है।
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजा पुर एक ऐसा स्थान जहॉ छत्रपति शिवाजी जी की कुलदेवी श्री तुलजा भवानी स्थापित है , जो आज भी  महाराष्ट्र व अन्य राज्यो  के कई निवासियो की कुलदेवी के रूप में प्रचलित है ,  कहा जाता है कि तुलजा भवानी छत्रपति शिवाजी जी की कुलदेवी है और जिनके आशीर्वाद को पाकर छत्रपति शिवाजी जी ने सभी दुशमनो को मार भगाया था ,  तथा अपना एक सशक्त शासन स्थापित किया था , आज भी यहॉ के लोगो में देवी तुलजा भवानी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है ,  माता तुलजा भवानी भारत के शक्तिपीठो में से भी एक मानी जाती है ।।

भवानी महाराष्ट्र की राजदेवी व मराठियों की कुलदेवी हैं।
मां तुलजा और दुर्गा दोनों देवियों का नवरात्र में विशेष रूप से पूजन-अर्चन होता है। प्रत्येक नवरात्र में मनौती के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगती है। मां की जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता  है ।

तुलजा भवानी कथा

माँ तुलजा भवानी जिनका स्वरूप भक्तों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करता है जिनके दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट एवं कलेश दूर हो जाते हैं उस माँ के रूप वर्णन को धार्मिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक दर्शाया गया है. माता के इस रूप के वर्णन में एक कथा बहुत ही प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है जाता है कि कृतयुग में करदम नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे जिन्हें अनुभूति नामक सुंदर एवं सुशील पत्नी का साथ प्राप्त हुआ.

करदम की मृत्यु पश्चात उनकी पत्नि अनुभूति ने सती होना चाहा परंतु वह गर्भवती थी इस कारण उन्हें अपने इस विचार का त्याग करना पडा़ तथा उसने मंदाकिनी नदी के किनारे को अपना निवास स्थान बना लिया. वह नियमित रूप नदी के किनारे भगवान की अराधना करती थी इस दौरान वह तपस्या में लीन रहती हैं तभी एक बार कूकर नामक राजा वहाँ से गुज़र रहा होता है तथा अनुभूति के सौंदर्य पर मोहित हो जाता है.

ध्यान मग्न अनुभूति इस घटना से अनभिज्ञ होती है तभी वह दुराचारी राजा अनुभूति के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास करता है. अनुभूति अपने को बचाने के बहुत प्रयास करती है तथा माँ भवानी से याचना करती है उसकी पुकार सुन माँ वहाँ पर अवतरित होती हैं तथा उस राजा से युद्ध करती है युद्ध के दौरान कूकर एक महिष रूपी राक्षस में परिवर्तित हो जाता है जो महिषासुर कहलाया. माँ महिषासुर का अंत कर देती हैं माँ के इस रूप को त्वरिता के नाम से भी जाना जाता है जो मराठी भाषा में तुलजा भी कहलाता है।


इस मंदिर में चमत्कारिक पत्थर

इस मंदिर में चमत्कारिक पत्थर हैं जिसे ‘चिंतामणि’ कहा जाता है। माना जाता है कि, यह पत्थर सभी प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ या ‘नहीं’ में देता है। यदि प्रश्न का उत्तर ‘हां’ है तो यह अपने आप दाहिनी ओर मुड़ जाता है और अगर ‘नहीं’ है तो यह बाईं दिशा में मुड़ जाता है। इसके बारे में माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले ‘चिंतामणि’ नामक इस पत्थर के पास अपने प्रश्नों के समाधान के लिए आते थे। माँ के पलंग के ठीक उलटी ओर शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग के चारों ओऱ चांदी के छल्ले के स्तंभ हैं। शरीर के किसी भी भाग में दर्द है, तो सात दिनों तक इस छल्ले को छूने से दर्द समाप्त हो जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि, इस मंदिर में शालीग्राम पत्थर से निर्मित तुलजा भवानी माता की मूर्ति स्वयंभू है। यह मंदिर महाराष्ट्र के प्राचीन दंडकारण्य वनक्षेत्र में स्थित यमुनांचल पर्वत पर स्थित है। इस प्रतिमा माँ के आठ हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ से माँ ने दैत्य के बाल पकड़े हैं और दूसरे हाथों से वे दैत्य पर त्रिशूल से वार कर रही हैं। प्रतिमा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे माँ महिषासुर राक्षस का वध कर रही हैं। माँ के अन्य हाथों में चक्र, गदा, त्रिशूल, अंकुश, धनुष व पाश आदि शस्त्र सुसज्जित हैं। प्रतिमा के दाई ओर उनका वाहन सिंह स्थापित है। इस प्रतिमा के पास ही ऋषि मार्कंडेय की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा का वर्णन मार्कंडेय पुराण के ‘दुर्गा सप्तशती’ नामक अध्याय में उल्लिखित है। इस ग्रंथ की रचना स्वयं संत मार्कंडेय ने की थी।

 माँ भवानी करती हैं मंदिर की परिक्रमा
माता की मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थित हैं। गर्भगृह के पास ही एक चांदी का पलंग दिखाई देता है, जो माता की निद्रा के लिए बनाया गया है। इस मूर्ति की सबसे खास बात यह है कि, माता की मूर्ति केवल एक ही जगह पर स्थापित नहीं की गयी। इसका मतलब देवी की इस मूर्ति को दूसरी जगह पर भी रखा जा सकता है और देवी की मूर्ति किसी भी दिशा में रखी जा सकती है। इसलिए इस मूर्ति को चल मूर्ति भी कहा जाता है।

वर्ष में तीन बार देवी की मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाला जाता है और साल के ये तीन दिन काफी विशेष माने जाते है। माता की प्रतिमा को मंदिर के चारो ओर घुमाया जाता है। साल में तीन बार माता इस शयनकक्ष में विश्राम करती है। इस तरह की परम्परा केवल इसी मंदिर में है अन्य किसी भी जगह इस तरह की प्रथा नहीं है।


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** जय माँ श्री तुलजा भवानी जी **

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