शनिवार, 20 जुलाई 2019

धर्म प्रचार - प्रसार मंच के गीत रचनाएं

First Album Bhajan List

 दोहा
आल्हा ऊदल दोऊ गये रे , मां शारद के द्वार
और अकबर ज्वाला गये , पा गये मुक्ति द्वार
ध्यानु गये मां वैष्णवी रे , पाए भक्ती अपार
जो ध्यावे श्री अम्बे मां , तर जाये भव पार

(1)
श्री गणेश का सुमिरन करके, मां अम्बे का ध्यान लगाय ।
मात सरस्वति तुम्हे मनाऊं , मेरे कंठ विराजो आय ।
भुल चुक जो भी हो जाये ,  करना माता क्षमा प्रदान ।
मां अंजनी के राज दुलारे , पहरे पर बैठे हनुमान ।
मंगला देवी तुम्हे मनाऊ , रखना माता मेरी शान ।
हे देवन के देव महादेव , रखना लाज मेरी भगवान ।
कथा सुनाउ मां अम्बे की , सुनियो श्रोता चतुर सुजान ।
लिखवे नाम बनावे आल्हा , महिमा चांदनी रही बखान ।
(2)
मातेश्वरी अम्बा माई की , गाथा सुनलो ध्यान लगाय ।
सतपुडा पर्वत पर है बिराजी , धारुड वालीमात कहाय।
शिव के ससुर थे दक्ष प्रजापति ,यज्ञ दिये थे शुरु करवाय ।
नही निमंत्रण शिव को भेजे ,ये अपमान सहा न जाय ।
सती कुद पडी हवन कुण्ड मे , यज्ञ दियो विध्वंस कराय ।
सती शव लेके शिवजी धुमे , सतपुडा पर्वत पर है आय ।
अंग सती के गिरे धरनी पे , तब से धारुड धाम कहाय ।
जै जै कार हो अम्बे मां की ,भगत सभी है ध्यान लगाय ।
(3)
म.प्र बैतुल जिले मे , बैठी माता आसन मार ।
सारे जगत मे तेरी मैया ,होय भवानी जै जैकार ।
गुफा के अन्दर बैठी हो अम्बे ,करके मां सोलह सिंगार ।
मंगला मां की बनी समाधि ,जिनको पुजे सब नर नार ।
भक्त कहे मां राधा जिनको ,मां शक्ति का है अवतार ।
जिनके गुरु श्री सुरदास थे ,उनसे शिक्षा मिलि अपार ।
शिवधाम मे बैठके गुरुवर ,भक्ति का करते संचार ।
धारुड आठनेर मे गुंजे ,मां राधे की जै जैकार ।
(4)
भक्ति की शक्ती बडी मैया , करती राधे मां हरसाय
जंगल बियाबान मे धुमे , कैसी लिनी लगन लगाय ।
प्यास लगी इक दिन मैया को , पानी कही नजर ना आय ।
बिन पानी के मां राधे का , चेहरा रहा देख मुरझाय ।
एक गुफा दिखलाई उनको , राधे मां गई है हरसाय ।
मन ही मन मे सोच रही है , यहाँ पानी पीने मिल जाय ।
पहुची गुफा के अन्दर मंगला , देख अचम्बा गई चकराय।
बैठी गुफा मे अम्बे रानी, जिसकी महिमा कही ना जाय ।
(5)
मां अम्बे के दर्शन करके , मन अन्तर की बुझ गई प्यास।
 ऐसी मोहित भई मैया पे, पानी बिन जो रही हतास।
इसी गुफा मे करती ,भुल गई है दिन और रात ।
ऐसी लगन लगी मैया से , मैया चारो तरफ दिखात।
1970 की भक्तो तुम्हे सुनाती हुँ मै बात ।
 कृपा करी जगदम्बा मैया , जिनकी महिमा कही न जात ।
राधे मां की भक्ती देखकर , मां की शक्ति गई समाय ।
तेज बडा मस्तक पे इतना , जिसकी प्रसंशा की ना जाय ।
(6)
कई वर्षौ तक करी तपस्या ,अपने मन मे धीरज धार
अन्न का दाना छोड़ दिया है,फल पत्तो का किया आहार ।
राधे मां को दर्शन देने , आ गई अम्बे सिंह सवार ।
दर्शन करके जगदम्बा के , मंगला बोली जै जैकार ।
कहन लगी जगदम्बा मैया , बेटी सुन ले वजन हमार ।
तेज जन्म हुआ है मंगला , जन-जन का करने उध्दार ।
जो भी इस दरबार मे आये , उसकी सुनना करुण पुकार ।
दुखियो के दु:ख दर्द मिटाना ,भक्तो के भरना भण्डार
(7)
गाय चराने को आते थे , दुर दुर से यहाँ पे ग्वाल ।
इक दिन प्यास लगी ग्वाले को , पानी की करे तलाश ।
इसी गुफा मे पहुच गया है ,जल की मन मे लेकर आस ।
राधे मां को देख के ग्वाला ,करने लगा है अरदास ।
कहाँ से आई हो तुम मैया,किसकी बैठी ध्यान लगाय ।
सारा हाल सुना राधा मां , उस ग्वाले से कहा समाझाय।
सारी गाथा सुनकर ग्वाला ,अपने गाँव गया है आय।
गांव-गांव मे पीट डिंढोरा ,घर घर सबको रहा बताय।
(8)
सावंगी और हिवरा गांव के , जुडने लागे भक्त तमाम।
केशो भाई चले है देखो , राधे मां का लेते नाम ।
गोंडी घोघरा के नरनारी बोलत , चल दिये जै जैकार ।
पावन गुफा के पाये दर्शन , माता का कीन्हा दीदार ।
मां मंगला के संग भक्तो ने गुप्त गुफा मे किया प्रवेश ।
मां अम्बे के करके दर्शन , कट गये सबके कठिन कलेश।
देख के भक्ति मां राधे की , दिन दुना फैला परचार ।
म.प्र.बैतुल जिले में , होवे मां की जै जैकार ।
(9)
राधे मां ने करने यात्रा ,अपने मन मे ली है ठान ।
चली है तीरथ करने मैया ,हाथ धर्म का लिये निशान।
एक सरोवर मिला मैया को ,बैठे जहाँ शंकर भगवान ।
श्री गणेश और पार्वती की ,प्रतिमा सुन्दर मिली महान ।
कुछ ही दुर मे काली मां का ,सुन्दर मिला एक स्थान ।
फल फुलो का लगा बगीचा ,जिसकी कही न जाये ना शान।
उस बगीचे मे बैठे साधू , माता का कर रहे थे ध्यान ।
मंगला को उन साधु ने ,अभय दे दिया वरदान ।
(10)
ऐसी पावन गुफा की भक्तो ,गाथा तुमको दई सुनाय ।
मंगला माता बडी तपस्वी ,राधा माता बोली जाय।
इस मन्दिर मे अमावस पुणो ,होती भक्तो भीड़ अपार।
दुर दुर से नर और नारी आकर करते है दीदार ।
जिसकी जो भी मनोकामना ,यहां पर आ पुरी हो जाय ।
उसकी भर जाती है झोली ,जिसने ली है लगन लगाय।
रहत  कडोंदा और कटंगा , माता दई बेनाम बनाय।
राधा मां का नाम सुमरके ,चांदनी सबको दई सुनाय।
जय अम्बादेवी

Second Album Bhajan List

आओ सुनाऊँ तुमको महिमा मां ताप्ती के नाम की  ।
महिमा गजब निराली है इनके पावन धाम की ।
जय ताप्ती मैया...जय ताप्ती मैया...

प्रिय भक्तो पुण्य सलिला ताप्ती माँ जो युगों युगों और  कल्पो -कल्पो से सूर्यदेव के बाहों मॆ अखिलिया करते हुये ऊँचे नीचे रास्तों से गुजरते हुये कही फूल खिलाती है..कही अन्न उगाती जन जन जीवन का संचार करती हुईं मूलतापी के गौ मुख से निकलकर पूरे देश का भ्रमण करती हुईं सूर्यपूर के अरबसागर मॆ विलीन हो जाती है । ताप्ती मैया की महिमा कितनी निराली है , भक्तो ये पापों को धोकर मुक्ति दिलाती है , मृत्यु सीमा पर पड़े मनुष्य के मुँह यदि
ताप्तीजल की दो बूँद डाल दी जाये या भूलवश भी ताप्ती जल मॆ मृत देह की अस्थि प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत  आत्मा को मुक्ति मिल जाती है ।
ताप्ती मैया सृष्टि आरम्भ से निरन्तर बहती चली आ रही है ।
ये कभी थकती है ना कभी विश्राम करती है , हम सब की झोली सुखों से भरती रहती है । ताप्ती कहाँ से आयी  , कैसे आयी और कहाँ जाती है ,इस पतित पावनी ताप्ती मैया की कथा आपको सुनाती हूँ..।

1. सूर्य देव का हुआ विवाह  ये बात है बड़ी पूरानी  ।
विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा बनी सूर्य की रानी ।
सूर्यदेव संज्ञा के संग जीवन लगे बिताने ।
यम मनु और यमुना उनकी तीन  हुई  संताने ।
संज्ञा सूर्य के तेज को सह ना सकी ज्यादा ।
सूर्यदेव को छोड़ने का उसने किया इरादा ।
सूर्यदेव की सेवा में छोडा अपनी  छाया को।
संज्ञा घोड़ी बनकर तप  करने गई मन्दिर को ।
ना उसको डर था ना थी फिकर हर  अंजाम की ।
आओ सुनाओ....

इधर सूर्यदेव भी अपने तेज से संसार को गति दे रहे थे, उनके प्रचण्ड तेज से पृथ्वी पर तापमान और गर्मी इतनी बढ़ गई कि धरती सूर्य के तेज से नष्ट हो रही है ,पृथ्वी के हिम झिलाखण्ड भी पिघलकर पीछे हट रहे थे । अत्यधिक गर्मी से पृथ्वी कि प्राण वायु पर असर पडने लगा जिसके कारण सभी जीव ब्रम्हा जी मॆ समाने लगे । सूर्य देव के तेज के कारण ब्रम्हा भी सॄष्टि कि पुन : निर्माण करने मॆ असफल रहे । तब सभी देव और माँ पृथ्वी शिव शंकर महादेव के पास जाकर प्रार्थना करने लगे । तब महादेव जी ने सभी से कहाँ..

2. छोड़ दो चिंता सारी अब तुम हो जाओ तैयार ।
सूर्यदेव की पुत्री ताप्ती अब लेंगी अवतार ।
ताप्ती मैया इस धरती का बढ़ता ताप हरेँगी ।
वो सबका कल्याण करेंगी सबके पाप हरेंगी ।
आंखों में उम्मीद लिए मन में लेकर आस ।
इतना सुन कर चले गए सब सूर्य देव के पास ।
सब देवो ने सूर्य देव के आगे सर को झुकाया ।
अब आपको रक्षा करना है सबके प्राणों की ।
आओ तुम्हे सुनाऊँ...

धरती पर बढ़ती गर्मी और तापमान को रोकने के लिये सभी देवों ने सूर्यदेव से प्रार्थना कि और धरती माँ ने कहाँ हे प्रभु अगर आपने सॄष्टि रक्षा के लिये ताप्ती माँ ध्यान नही किया तो सारी सॄष्टि का विनाश हो जायेंगा ।सबकी प्रार्थना सुनकर सूर्यदेव ने अपनी पुत्री का ताप्ती ध्यान किया -

3. सूर्य देव ने अपनी पुत्री को याद किया था  जिस दिन ।
वो आषाढ़ का महीना सप्तमी का था दिन ।
सूर्य देव के ताप से प्रकट हुई मां ताप्ती शक्तिशाली ।
उनके तेज से चारों दिशाएं हो गई उजियाली ।
प्रथम नदी के रूप में ताप्ती धरती पे  आई । ताप हरा मां ने धरती का खुशियां लौटाई ।
सूर्य ने अपने तेज से इनको प्रकट किया।
तब से ताप्ती मैया इनका नाम हुआ। लाज रख ली मैया ने सबके सम्मान की ।
आओ सुनाओ...

तब से हि ताप्ती माँ को आदिगंगा भी कहते है क्युकी वो हि सॄष्टि आरम्भ मॆ जल के रुप मॆ धरती पर आयी है । सभी नदियों उनका सेवन करती है , परन्तु उधर जब भगीरथ जी कि कठिन तपस्या से गंगा धरती पर नही आयी तब विष्णु जी ने पूछा कि हे देवी आप ब्रम्हा जी के कमन्डल से धरती पर क्यू नही जा रही हो , तो गंगा जी ने कहाँ

4. मां ताप्ती की महिमा इतनी सब उनको पुजेँगे ।
मैं जाऊंगी धरती पर मुझको नहीं पुजेँगे ।
विष्णु जी बोले नारद से तुम धरती पर जाओ ।
ताप्ती जी के पुराने सारे ग्रंथ चुरा ले आओ ।
ताप्ती ग्रंथ ना होने से उन्हें दुनिया नहीं जानेगी ।
धरती पर फिर सारी दुनिया गंगा तुम्हे नहीं मानेंगे ।
ताप्ती मां से झूठ बोलकर नारद ने ग्रंथ चुराए ।
गंगाजी तब आई धरा पर दुनिया महिमा गाए ।
तब से ही कम है धरती पर महिमा तापी नाम की ।
आओ सुनाओ तुमको...

तापी पुराण चोरी होने से माँ ताप्ती का प्रभाव तो कम नही हूआ पर लोग ताप्ती जी कि महिमा ज्यादा जान न पाये । ताप्ती माँ को नारद जी द्वारा धोके का पता चला तो उन्होने को कुष्ठ रोग का श्राप दिया और गंगा जी को अपने हि कुलवंश मॆ वधू बनकर आने का और उनकी वंश बेल ना बढ़ पाने का श्राप दिया ।श्राप से भटकने के बाद नारद मुनि ने मूलतापी आकर ताप्ती माँ कि 12 साल तपस्या की जब ताप्ती माँ प्रसन्न हुईं और उनके जल मॆ स्नान करके नारद जी श्राप मुक्त हुये । उधर गंगा मैया को भी शान्तनु से विवाह करके ताप्ती माँ की पौत्रवधू बनना स्वीकार करना पड़ा । आषाढ़ सप्तमी पर गंगा जी ताप्ती माँ के जल सेवन करती है । समुद्र मंथन से निकली मदिरा जो राक्षसों ने वरुण देव को दे दी थी और वरुण देव ने उस मदिरा का पान अगस्त मुनि के आसन पर किया जिसे देखकर अगस्त मुनि ने वरुण देव को मनुष्य योनि मॆ जन्म लेने का श्राप और पुत्र मुख देख मुक्ति का उपाय बताया । इन्ही का ताप्ती जी के साथ विवाह हूआ ।

5. वन में जब संवरण करने आये शिकार। वन में वो अपना दिल गये तब हार ।
जब तकराई ताप्ती से संवरण की नजर ।
मोहित हो गए ताप्ती को पल में देखकर ।
राजा ने फिर ताप्ती से अपनी कही कहानी ।
फिर बोले करके विवाह बन जाओ मेरी रानी ।
ताप्ती बोली मुझ को पाना है तो ऐसा करो ।
मै सूर्य पुत्री मेरे पिता को प्रसन्न करो । अदृश्य हुई ताप्ती करके बोल काम के। आओ सुनाओ सुनाओ..

इधर संवरण ताप्ती जी को पुकारते हुये बेहोश हो गये फिर जब वो होश मॆ आये तो उन्होने ने सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिये उनका तप शुरू किया । इधर सूर्यदेव ने संवरण के तप की परीक्षा ली ।एक बार रात को संवरण ध्यान मॆ मग्न थे. तब उनके कान मॆ आवाज लगाई कि हे राजन तू यहाँ किसका तप कर रहा है, उधर तेरी राजधानी आग से जल रही है , तेरा कुटुम्ब जल रहा है , तेरे नाम कि बदनामी हो रही है । परन्तु फ़िर राजा का तप नही टूटा ।संवरण कि दृढ़ता देख सूर्य नारायण प्रसन्न हुये और प्रकट होकर संवरण को वर माँगने को कहाँ फिर -

6. संवरण ने सूर्य देव को देखकर किया नमन ।
मांग रहे सूर्यदेव से वो अनमोल वचन ।
हे भगवन अपनी पुत्री को दे दो ये  आजादी ।
सात फेरे लेकर ताप्ती कर ले मुझसे  शादी ।
सूर्य देव बोले संवरण बात पता है सारी । गुरु वशिष्ठ के हाथों कराओ शादी की तैयारी ।
सबकी राजी मरजी से फिर पूरण काज हुये ।
संवरण और ताप्ती एक दूजे के हुए । फिर अपनी जिंदगानी एक दूजे के के नाम की ।
आओ सुनाओ

इसके बाद सभी देवों और ब्रम्हाणो ने संवरण और ताप्ती को आशीर्वाद दिया । शादी के कूछ अंतराल बाद ताप्ती जी ने एकपुत्र को जन्म दिया और अपने पुत्र का मुँह देखकर संवरण श्राप मुक्त हुये और अपने वरुण देव स्थान को प्राप्त हुये । ताप्ती जी ने अपने पुत्र का नाम कुरु रखा और राज बाग डोर अपने पुत्र के हवाले सौंप वो भी अपने स्थान चली गई । फिर जिस जगह ताप्ती जी के पुत्र गुरु ने तप किया था आगे चलकर वह कुरु
क्षेत्र धर्मक्षेत्र प्रसिद्ध हुआ । राजा कुरु पांडवों और कौरवों के पितामह बने । राजा जनमेजय के सर्प विनाशी यज्ञ से धर्म हानि हुईं जिसका निवारण भी ताप्ती जी चरणों पर हुआ माँ ताप्ती सर्पों के निवेदन पर उन पर विराजमान हो गई ।


ताप्ती माँ  के धाम के......4
इक्कीस कल्प के इक्कीस तीरथ सब की खास बात
इक्कीस तीरथ क्यों है जरूरी सुनो सुनाओ बात.....
दीवानों आओ मेरे साथ
भक्तो आओ मेरे साथ
1.  सूर्यलोक पहला तीरथ ताप्ती माँ जन्मी थी ।
पहली नदी के रूप में धरती पर आई थी ।
मुलतापी तीर्थ दूजा सुन लो मेरे भाई ।
ताप्ती माँ यहीं धरा पर जल के रूप में आई ।

इसी मुलतापी तीर्थ में साथ कुंड है ....
( सूर्य..शनि..ताप्ती..धर्म कुंड..पाप..नारद .नागा )

हर एक कुंड की है यहां रही है अपनी खास बात ।
दीवानों आओ मेरे साथ......
2.   शांडिल्य मुनि ने ताप्ती तट पर जप-तप खूब किया ।
इसलिए ये तीसरा तीरथ शांडिल्य तीर्थ हुआ ।
चौथा तीर्थ श्रवण तीरथ बनकर हुआ साकार ।
माता पिता संग आए थे यहां श्रवण कुमार ।
सुन लो सारे तीरथ के क्या-क्या करामात
दीवानों आओ मेरे साथ.....

3. पारसढोह तीर्थ पाँचवा  ऐसी यहां की शक्ति ।
कपिला छट गऊ दान से मिलती यहाँ मुक्ति ।
सूर्यमुखी तीरथ पर ताप्ती उलटी दिशा में बहती ।
इस तीरथ पर श्राप से मिल जाती है मुक्ति ।
कर लो बस स्नान जब आए मकर संक्रांत।
दीवानों आओ मेरे साथ....

4.सातवा तीरथ पावन है बारहलिंग शिव धाम ।
अपने पिता की श्राप मुक्ति यहां करें श्री राम ।
कान्हा ने जब देह त्यागी  क्रोधित हुए दुर्वासा ।
यहीं से स्वर्ग सिधारे जब खत्म हुई हर आशा ।
देवलोक के स्वर्ग का एक ही रस्ता देवल घाट ।
दीवानों आओ मेरे साथ

5.ब्रम्हा के आदेश पे मोहनी भंग करे एक तप ।
पूछ रही वो शिव शंकर से क्या करूं मैं अब ।
बोले भगवन ताप्ती माँ के जल में तुम समाओ ।
मोहिनी ताप्ती संगम बनकर यहां से मुक्ति पाओ।
छ :महीने यहां स्नान करें जो सिद्ध हो हर काज ।
दीवानों आओ मेरे साथ...

6. दसवा तीर्थ स्थालेेश्वर इसीलिये  कहे ।
गय्या बनके यहाँ पे यमुना ताप्ती प्रवेश करे ॥
इच्छापूरी तीरथ पे इच्छा पूरी होती सारी ।
तप करे  एक ब्राह्मण हो प्रसन्न माँ अवतारी ।
देवी ने ब्राह्मण के मन की पूरी कर दी बात ।
दीवानों आओ मेरे साथ........

7. ताप्ती पूर्णा संगम देखो बारवा तीरथ कहांए ।
यहां श्री विष्णु आदिवराह रूप में थे आए ।
सारंगखेडा तीरथ यहां इंद्र देवता आये ।
यहां से एक सुरंग से होकर वो पाताल जाएं
कर लो यहां स्नान रहता सात जनम तक  राज
दीवानों आओ मेरे साथ....

8.  चक्रतीर्थ में कृष्ण जी ने करंक दैत्य को मारा ।
इस तीरथ से होकर दैत्य स्वर्ग को सिधारा ।
प्रकाशा तीरथ पापनाशक जल इसका मतवाला ।
जो भी  करे स्नान  उसके जीवन में हो उजाला।
ब्रह्माजी यहां स्नान करें गजब इसकी बात
दीवाना आओ मेरे साथ..........

9. श्री गणेश कार्तिकेय को बाला तीरथ समझाए
ताप्ती शरण में आए कार्तिक मात- पिता को पाएँ
गौतम ऋषि की विनती से  ताप्ती मां यहाँ आई ।
रहने लगी फिर मां यही पे तीर्थ है फलदाई ।
ऐसा है तीरथ गोतमेश्वर यहां  नवाऊं माथ ।
दीवाना आओ  मेरे साथ.....

10. भैरवी तीर्थ पर इंद्र पुत्र ने श्राप से मुक्ति पाएं ।
भैरवी देवी की स्तुति उसने यहां जब गाई ।
सूर्य देव का तेज हुआ कम  होने लगे बेचैन ।
ताप्ती समुद्र संगम तीर्थ से मिला उन्हें चैन ।
ताप्ती जी के जल में नहाकर मिटा इंद्र संताप
दीवाना आओ मेरे साथ...
11. कुरुक्षेत्र मॆ  हुआ ताप्ती मां का स्वयंवर।
ताप्ती मां ने पुत्र कुरु को दिया यहां कीर्तिवर ।
ताप्ती झिरी में मां ताप्ती करती सदा ही वास ।
याद करे जो यहां पर मां को हो जाता है एहसास।
योगी संत को मछली रूप में दर्शन दिया साक्षात ।

दीवाना आओ मेरे साथ...
भक्तो आओ मेरे साथ...
इक्कीस कल्प के इक्कीस तीरथ सबकी खास बात
इक्कीस तीरथ क्यों है ज़रूरी सुनो सुनाऊँ बात



https://youtu.be/T9WvF5LOi9Q
नगरकोट महारानी रेणुका
आये शरण तुम्हारी माँ
        ...... रेणुका मैया हो

1) धामनगाँव बना अलबेला
   रोज लगे भक्तगण का मेला
   परशुराम महतारी रेणुका
    आ गये शरण तुम्हारी माँ

रेणुका मैया तोरे अंगना रे
तोरे अंगना रे भवन के भंडार रे
 रेणुका मैया हो
 नगरकोट महारानी रेणुका
आ गये शरण तुम्हारी माँ

2) अम्बादेवी धारूड वाली
   आष्टा नगर की मैया काली
  होवे जय जयकार भवानी
आ गये शरण तुम्हारी माँ

मोरी अम्बा मईया तोरे लाने रे
तोरे लाने रे लाये चुनरी भवानी गोटेदार
मोरी अम्बा मैया हो
आ गये शरण तुम्हारी माँ

3)  जल प्रवाह बनकर लहराई
   सूर्यपुत्री ताप्ती महारानी
  वेग लिये अति भारी भवानी
  आ गये शरण तुम्हारी माँ
  मोरी ताप्ती मैया बनके जल की धारा
 बनके जल की धारा मुलताई से निकली
 मोरी ताप्ती मैया हो

4) ग्राम चिचोलि की चण्डी माई
  दुवारे लाल ध्वजा लहराई
  करते जय जय कार भवानी
  आ गये शरण तुम्हारी

मोरी चन्द्रपुत्री  पूर्णा नदी माँ
पूर्णा नदी माता भैसदेही मे बनो दरबार रे
मोरी चन्द्रपुत्री माँ

  5) बारहलिंग दिखे ना दूजा
    यहाँ राम जी कर गये पूजा
    संग मे जानकी दुलारी भवानी
    आये शरण तुम्हारी माँ
    मोरे भोले बाबा तोरी महिमा से
   तेरी महिमा से परदेसी ना जाने बेनाम रे
   मोरे भोले बाबा रे

रुणुक झुणूक माँ विंध्यवासिनी, आगई मेहँदी गावं
भक्तों को तारन बैठीं माँ,नीम की थंडी छाव - 2

विन्ध्याचल की विंध्यवासिनी, मेहँदी गावं की शान हो
भक्तों को दर्शन देकर माँ, करती जग कल्याण हो
पर्वतराज का मान बढ़ाकर - 2 आई मेहँदी गावं
भक्तों को तारण बैठी माँ, नीम की थंडी छाव - 2

हुआ अवतार योग मात का, विंध्य गिरी मे छाई
पूजित हुई संसार में माता, अष्‍टभुजा कहलाई
एक दिवाने भक्त की खातिर - 2 पहुची मेहँदी गावं
भक्तों को तारण बैठी माँ, नीम की थंडी छाव-2

पावन हो गई गाव की धरती, जबसे चरण पडे माँ
दुर्गा दुर्गती दूर करो माँ, दुर्गा दास कहे माँ
कर स्विकार माँ आरती - 2 और दे आचल की छाव
भक्तों को तारण बैठीं माँ, नीम की थंडी छाव-2

रुणुक झुणूक माँ विंध्यवासिनी, आगई मेहँदी गावं
भक्तों को तारन बैठीं माँ,नीम की थंडी छाव - 2

माँ ताप्ती अवतरण की कथा

       माँ ताप्ती जन्म की कथा

प्रिय भक्तो पुण्य सलिला ताप्ती माँ जो युगों युगों और  कल्पो - कल्पो से सूर्यदेव के बाहों मॆ अखिलिया करते हुये ऊँचे नीचे रास्तों से गुजरते हुये कही फूल खिलाती है..कही अन्न उगाती जन जन जीवन का संचार करती हुईं मूलतापी के गौ मुख से निकलकर पूरे देश का भ्रमण करती हुईं सूर्यपूर के अरबसागर मॆ विलीन हो जाती है । ताप्ती मैया की महिमा कितनी निराली है , भक्तो ये पापों को धोकर मुक्ति दिलाती है , मृत्यु सीमा पर पड़े मनुष्य के मुँह यदि ताप्तीजल की दो बूँद डाल दी जाये या भूलवश भी ताप्ती  के जल मॆ मृत देह की अस्थि प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत  आत्मा को मुक्ति मिल जाती है । ताप्ती मैया सृष्टि आरम्भ से निरन्तर बहती चली आ रही है ।
ये कभी थकती है ना कभी विश्राम करती है , हम सब की झोली सुखों से भरती रहती है । ताप्ती माता  कहाँ से आयी  , कैसे आयी , कैसे माँ ताप्ती जी का अवतरण हुआ और ताप्ती  कहाँ जाती है ,इस पतित पावनी ताप्ती मैया की कथा आपको सुनाता हूँ..
आदिकाल में भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर देवताओ की सभा में कार्तिकेय महाराज को ताप्ती माहात्म्य सुनाया था । उस सभा में उपस्थित रोमेश मुनि ने यह ताप्ती महात्म्य गोकर्ण मुनि से कहाँ था । रोमेश मुनि से गोकर्ण ऋषि ने ताप्ती महात्म्य सुनकर कहाँ यह बहूत उत्तम हैं ।
गोकर्ण मुनि ने द्वापर युग के अंत में रोमेश मुनि से सुना ताप्ती महात्म्य सुनकर पृथ्वी लोग के मुनियों को सुनाया । मुनियों के माध्यम से ताप्ती महात्म्य सम्पूर्ण विश्व में फैलता गया । पौराणिक हिन्दु ग्रंथो व शास्त्रों में प्रमुख स्कंदपुराण , भविष्यपुराण , सूर्यपुराण, वाराह पुराण , ब्रम्हपुराण , महाभारत , शिवपुराण, नर्मदापुराण में वर्णित ताप्ती महात्म्य को मैंने ( रविन्द्र मानकर ) संकलन किया जो आपको सुनाने का प्रयास कर रहे हैं , आशा हैं आपको यह अनमोल ताप्ती महात्म्य बहूत पसंद आएगा ।

एक बार शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय जी अपने हठ के कारण कैलाश छोड़कर दक्षिण चले गए । तब उन्हे माता - पिता की  अवहेलना करके अपने हठ से बड़ी ग्लानि हुई । श्री कार्तिकेय जी ने अपने अनुज गणेश जी को अपना दुख बताया , तब श्री गणेश जी ने उन्हे सम्पूर्ण तापो का निवारण करने वाली भगवती ताप्ती की शरण में जाने और वहां बेल वृक्ष के मूल में शिवार्चन  का विधान बताया ।
कार्तिकेय जी ने छः महीने वह अनुष्ठान किया और ताप्ती कृपा से उनकी ग्लानि मिट गई । परिणामस्वप शिव जी के चरणो में अनुराग उत्पन्न हुआ जिससे वे आनन्द पूर्वक कैलाश लौट आये । कैलाश के रमणीय शिखर पर भगवान शिव सुखपूर्वक शान्त मुद्रा में बैठे थे । कुमार कार्तिकेय ने कमल और पारिजात पुष्प तथा से उनकी पूजा की फिर उनके चरणो के समीप भूमि पर आसान बिछाकर बैठ गए । तब भगवान शिव ने उन्हे विकार , चिता और ग्लानि रहित देखा तो कुशल प्रश्नो के बाद उनको हृदय से लगाकर आशीष पूर्वक उनका परितोष किया ।  कार्तिकेय जी के कैलाश आते ही सभी देवी देवताओ और ऋषि मुनि भी कैलाश पर आशीर्वाद देने पहुंचे ।
तब भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय जी के मन में सूर्यपुत्री ताप्ती जी की महिमा जानने की ईच्छा व्यक्त हुई ।   तब वे पिता शिव शंकर जी के पास गये और बोले पिताजी क्या सूर्यपुत्री ताप्ती जी का माहात्म्य नही हैं ? क्या श्री तप्तीजी नदियों मॆ प्राचीन नही हैं ?
तब शिवजी बोले - पुत्र सूर्यपुत्री ताप्ती जी कि बड़ी महिमा है, पुराने समय मॆ , जो श्री नारद जी ने कहाँ था । वह मेरे द्वारा ही कहाँ हुआ हैं । मैंने ही उन्हे बताया था कि जब गंगा ,नर्मदा ,गोमती आदि नदियाँ नही थी तब से सूर्यपुत्री ताप्ती प्रकट हुई हैं । आगे भगवान शिव कहने लगे पुत्र श्री गंगाजी में कई दिनो तक स्नान करने , नर्मदा जी के जल के दर्शन करने से और सरस्वती जी के संगम का जल पीने से जो पवित्रता होती हैं ,वही पवित्रता श्री ताप्ती के स्मरण मात्र से मनुष्य को होती हैं । यह ताप्ती आति प्राचीन हैं ।
  इतना सुनकर कार्तिकेय जी पूछा  - हे तात मैंने ताप्ती जी के दोनो किनारो आपके सुन्दर अर्चित लिंगो का दर्शन किया है प्रिय अनुज गणेश ने भी मां तापी महत्ता का गुणगान किया है , तात आप तापी जल क्यो धारण करते हो मुझे बताईये ।

तब भगवान शिव बोले- हे पुत्र  कार्तिकेय जिस तरह भगवान सुर्यदेव अपनी इच्छा से गति करते है एवं सदैव
कर्मशील रहते है । उन्हे इस ब्रम्हाण्ड की आत्मा कहा जाता है उनके बिना सृष्ठी चारो अन्धकार ही
रहेंगा । उसी तरह पृथ्वी लोग पर मां तापी के बिना जीव-जीवन सम्भव नही था । मां ताप्ती
तीनो लोको के तापो का निवारण करती है ,वो ही सृष्टी की आदिगंगा है । मां तापी मोक्ष्यदायिनी है ,जिव और
जिवन का आधार है जो भी उनके शरण मे जाता
उसके सभी तापो  को हर लेती है तापी जी ।
तब भगवान शिव आगे कहने लगे पुत्र मै तुम्हे ताप्ती माहात्म्य  सुनाता हुँ जिसके ध्यान मात्र से मनुष्य भवपार हो जाता हैं । भगवान शिव बोले -  हे पुत्र कार्तिकेय जब सूर्य नारायण का विवाह भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ । विवाह के कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था ।
 इसी वजह से संज्ञा ने अपने पति की परिचर्चा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर ,वह एक घोडी का रुप धारण कर मन्दिर में तपस्या करने चली चली गईं। अपनी इच्छा से संसार को गति देने वाले हिरण्यगर्भ भगवान सुर्य भी अपने तेज से संसार को गति दे रहे थे उनके प्रचण्ड तेज के कारण सृष्टी पर महाप्रलय आया था । पृथ्वी पर गर्मी और तापमान इतना अत्यधिक बढ़ गया था ,जिससे जमीन उर्वरा शक्ति पुरी तरह खत्म हो गई थी । पृथ्वी के हिम झिलाखण्ड पिघलकरपीछे हट रहे थे ।
अत्यधिक गर्मी से सबसे अधिक पृथ्वी पर छाई प्राण वायु पर्तो पर पढ़ रहा था , जिससे सृष्टी के सभी जीव ब्रह्राजी मे विलिन होने लगे । ब्रम्ह्राजी ने पुन : सृष्टी रचना करने की कोशिश की लेकिन सुर्यदेव के प्रचण्ड तेज से वे भी व्याकुल हो गये ।
अत : ब्रम्ह्राजी ने भगवान शिव और विष्णू जी का ध्यान किया । तब भगवान शिव ने पृथ्वी मां और देवताओ से कहा कि आप चिंता ना कीजिये इस बार भगवान हिरण्य गर्भ सुर्यदेव  की पुत्री ताप्ती जन्म लेंगी जो सारे जगत के ताप हार कर जन जन का कल्याण करेंगी ।
स प्रकार शिव जी के कहने पर सभी देवता गण एवं पृथ्वी मां भगवान सुर्यदेव के पास गये और उनसे प्रार्थना की इस महाप्रलय से सृष्टी को विनाश होने से बचाये ।अत:
भगवान सुर्यदेव ने अपनी पुत्री ताप्ती का ध्यान किया ।
सुर्यपुत्री ताप्ती ताप्ती उनके ताप से उत्पन्न होकर सारी दिशाओ एवं आकाश को अलौकिक करते हुए अपने पिता का सन्ताप दूर करते भूलोक पर प्रकट हुई । इस प्रकार सृष्टी निर्माण के समय प्रथम नदी के रुप में ताप्ती जी का अवतरण हुआ। मां ताप्ती जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल
सप्तमी को दोपहर में हुआ। सुर्यदेव ने अपने तेज
से ताप उत्पन्न करके ताप्ती जी को अवतरित किया था ,इसलिए सुर्यपुत्री का नाम तप्ती हुआ । महाभारत ,भविष्यपुराण,स्कन्धपुराण आदि अनेक पुराणो मे माँ तापी जी का उल्लेख मिलता है । 

ताप्ती संकलनकर्ता  : रविन्द्र मानकर 

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

माँ ताप्ती झिरी की कहानी

मां सुर्यपुत्री ताप्ती ने अलग-अलग स्थानो पर प्रकट होकर अपने भक्तो का ताप निवारने व उन्हे जल संकट से बचाया है ।
ऐसी ही
 ~  एक सत्य घटना पर आधारित  है मां ताप्ती की गाथा ~ 
जहाँ मां तापी अपने भक्तो के कल्याण के लिये सदा सदा के लिये बस गई ।
प्राचिन काल मे आठनेर नगर के समीप एक योगि सन्त रहते थे ।
वे प्रतिदिन ही तापी जल से स्नान करने के पश्चात मां ताप्ती जी आराधना कर देवी-देवताओ का पुंजन कर तप करने लग जाते थे ।
योगि सन्त की कुटिया से तापी नदी की दुरी लगभग 12 कि.मी थी , जिसे चलकर प्रतिदिन योगि सन्त तापी मे स्नान एवं जल लेने के लिए जाते थे । धीरे धीरे समय बितता गया और योगि सन्त कि उम्र भी काफी बढ़ चूकी थी ।
प्रात : तापी तट पर जाकर स्नान करना करना और अपने कमण्डल मे पुष्पो का जलाभिषेक देवी देवताओ के पुजन के लिए अपने कुटिया पर लेकर आना और तपस्या में लीन रहना ।
एक वक्त योगि सन्त के जीवन में ऐसा आ गया किई उन्हे चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पढ़ा ,पर उन्होने तापी मैया के दर पर जाना नही बन्द किया ।
यही भगवान के लिये भक्त की परीक्षा होती है । उनकी इस पीड़ा को देखकर मां ताप्ती जी को उन पर दया आ गई ।
एक दिन जब योगी सन्त जैसे स्नान कर मां तापी को प्रणाम करने लगे तो मां तापी ने उन्हे प्रत्यक्ष दर्शन दिये और कहा की बेटा मैं आपकी भक्ती से प्रसन्न हुं ।
अब आपके सब संकट दुर हो जायेंगे और आपको इतनी दुर मेर तट पर स्नान एवं जल लेने के लिए नही आना पडेंगा । बेटा अब तुमसे ठीक से चलना भी नही होता फिर तुम प्रतिदिन मेरे तट पर आते रहे ।
मां ताप्ती जी ने कहा की तुम अपनी कुटिया के पास अपने तप करने वाले स्थान पर एक झिरा खोदो मै  वही आ जाऊंगी ।
मैं तुम्हे मछली रुप मे दर्शन दुंगी एवं नाक मे नथनी पहनी रहुंगी । तब मां तापी के निर्देश पर योगी बाबा ने अपने तप करने वाले स्थान पर एक झिरा खोदा जिसमे भरपुर मात्रा में जलधारा निकली और योगी सन्त को मछली रुप मे नाथ मे नथ पहने मां तापी के दर्शन हुए ओर उन्होने मां तापी को प्रणाम किया ।
योगी सन्त के मन में सन्देह हो गया इसलिए वे अगले दिन पुन : लकडी के सहारे मा तापी तट पर जा पहुचे  और स्नान कर मां को प्रणाम करने लगे कि मां ताप्ती जी प्रकट हो गई और योगि सन्त से कहने लगी कि बेटा अब क्यो इतनी दुरी पर आये हो , मैं तो स्वयं तुम्हारे द्वारा खोदे झिरे में आ चुकी हुं ।तब योगि सन्त ने कहा कि मां मै कैसे मान लू की आप वहां आ गई ।सदा के लिये वहाॅ निवास करोंगी ।
मां तापीरानी ने कहा की बेटा चिन्ता ना करो तुम्हारा ये सन्देह भी मिट जायेंगा ।
बेटा ऐसा  करो ये तूम्हारा कमण्डल और यही छोडें जाओ ।
करोडो पापो का नाश कर मोक्ष्यप्रदान करने वाली ताप्ती ने कहा मै आज से सदा सदा के लिए उस झिरी में निवास करुंगी और जो मेरे जल का पान एवं स्नान करेंगा उसको सभी तापो से मुक्ति मिल जायेंगी ।
योगि सन्त अपनी कुटिया मे वापस लौट आये और अपने तप मे लीन हो गयें ।
अगले दिन जब योगी सन्त ने देखा तो पाया कि कमण्डल एवं पुष्प जो उन्होने तापीतट पर छोड़ा था , वो उनके द्वारा खोदी झिरी के पास रखा हुआ । तब योगी सन्त को तापी जी महता का ज्ञान और उस दिन से योगि सन्त ने इस झिरी की ताप्ती झिरी नाम दिया ।
योनि सन्त अब प्रतिदिन उस झिरी के जल से स्नान कर पुष्पो का स्नान कर देवी-देवी देवताओ का पुजन करते थे ।
धीरे धीरे नगर वासियो को इस बात का पता चला तो यहां प्रतिदिन अनेक भक्तगण आने जाने लगे ।
कुछ अन्तराल के बाद योगी तपस्वी महात्मा का स्वर्गवास    हो गया ।
धीरे धीरे इस ताप्ती झिरी के प्रति लोगो की आस्था एवं विश्वास की डोर बढ़ती गई ।
आठनेर नगर की मां सुर्यपुत्री की की बेटी प्रेमा मुलिक ने सन् 1999 मे ताप्ती जी की मुर्ती की प्राण प्रतिष्ठा की गई ।
वही सन् 2001 मे मां ताप्ती जी  के भक्त भगवन्तराव जी कनाठे जी द्वारा पहली बार चतुर्मास समापन और आशाढ़ शुक्ल सप्तमी पर मां सूर्यपूत्री ताप्ती जन्मोत्सव का आयोजन किया ।
वर्ष 2005 में शहर में ऐसा जलसंकट आया जिससे सारे नगरवासी दुविधा मे पड़ गये ।
किसानो की फसले सुख रही थी ।
शहर के आसपास सभी गांवो मे माह के प्रत्येक सोमवार कामकाज बन्द रख मां तापीतट वर जाना उनका भजन किर्तन चल रहा था ।
वही शहर मे मां तापी से विनती कर नलकुप खुदाई का कार्य चल रहा था ।
मां तापी के भक्त भगवन्तराव कनाठे द्वारा तापी पुराण का पाठ अपने घर पर किया जा रहा था ।
ताप्ती झिरी मे दिन रात मां तापी से विनती कि जा रही इस जल संकट से बचाने के लिये।
आखिर मां ताप्ती जी ने भक्तो की पुकार सुन ही ली ।
अचानक बादल मण्डराये और सारा नगर पानी से जलमान हो गया ।
इससे लोगो की आस्था बढ़ती चली गई ।
नगर कुछ लोगो द्वारा यहां एक समिति गठित कि गई जो इस स्थान पर ताप्ती जन्मोत्सव का आयोजन एवं तापी झिरी की देखरेख एवं संरक्षण का कार्य करती है ।

लेखक - रविन्द्र मानकर 

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