गुरुवार, 18 जुलाई 2019

माँ ताप्ती झिरी की कहानी

मां सुर्यपुत्री ताप्ती ने अलग-अलग स्थानो पर प्रकट होकर अपने भक्तो का ताप निवारने व उन्हे जल संकट से बचाया है ।
ऐसी ही
 ~  एक सत्य घटना पर आधारित  है मां ताप्ती की गाथा ~ 
जहाँ मां तापी अपने भक्तो के कल्याण के लिये सदा सदा के लिये बस गई ।
प्राचिन काल मे आठनेर नगर के समीप एक योगि सन्त रहते थे ।
वे प्रतिदिन ही तापी जल से स्नान करने के पश्चात मां ताप्ती जी आराधना कर देवी-देवताओ का पुंजन कर तप करने लग जाते थे ।
योगि सन्त की कुटिया से तापी नदी की दुरी लगभग 12 कि.मी थी , जिसे चलकर प्रतिदिन योगि सन्त तापी मे स्नान एवं जल लेने के लिए जाते थे । धीरे धीरे समय बितता गया और योगि सन्त कि उम्र भी काफी बढ़ चूकी थी ।
प्रात : तापी तट पर जाकर स्नान करना करना और अपने कमण्डल मे पुष्पो का जलाभिषेक देवी देवताओ के पुजन के लिए अपने कुटिया पर लेकर आना और तपस्या में लीन रहना ।
एक वक्त योगि सन्त के जीवन में ऐसा आ गया किई उन्हे चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पढ़ा ,पर उन्होने तापी मैया के दर पर जाना नही बन्द किया ।
यही भगवान के लिये भक्त की परीक्षा होती है । उनकी इस पीड़ा को देखकर मां ताप्ती जी को उन पर दया आ गई ।
एक दिन जब योगी सन्त जैसे स्नान कर मां तापी को प्रणाम करने लगे तो मां तापी ने उन्हे प्रत्यक्ष दर्शन दिये और कहा की बेटा मैं आपकी भक्ती से प्रसन्न हुं ।
अब आपके सब संकट दुर हो जायेंगे और आपको इतनी दुर मेर तट पर स्नान एवं जल लेने के लिए नही आना पडेंगा । बेटा अब तुमसे ठीक से चलना भी नही होता फिर तुम प्रतिदिन मेरे तट पर आते रहे ।
मां ताप्ती जी ने कहा की तुम अपनी कुटिया के पास अपने तप करने वाले स्थान पर एक झिरा खोदो मै  वही आ जाऊंगी ।
मैं तुम्हे मछली रुप मे दर्शन दुंगी एवं नाक मे नथनी पहनी रहुंगी । तब मां तापी के निर्देश पर योगी बाबा ने अपने तप करने वाले स्थान पर एक झिरा खोदा जिसमे भरपुर मात्रा में जलधारा निकली और योगी सन्त को मछली रुप मे नाथ मे नथ पहने मां तापी के दर्शन हुए ओर उन्होने मां तापी को प्रणाम किया ।
योगी सन्त के मन में सन्देह हो गया इसलिए वे अगले दिन पुन : लकडी के सहारे मा तापी तट पर जा पहुचे  और स्नान कर मां को प्रणाम करने लगे कि मां ताप्ती जी प्रकट हो गई और योगि सन्त से कहने लगी कि बेटा अब क्यो इतनी दुरी पर आये हो , मैं तो स्वयं तुम्हारे द्वारा खोदे झिरे में आ चुकी हुं ।तब योगि सन्त ने कहा कि मां मै कैसे मान लू की आप वहां आ गई ।सदा के लिये वहाॅ निवास करोंगी ।
मां तापीरानी ने कहा की बेटा चिन्ता ना करो तुम्हारा ये सन्देह भी मिट जायेंगा ।
बेटा ऐसा  करो ये तूम्हारा कमण्डल और यही छोडें जाओ ।
करोडो पापो का नाश कर मोक्ष्यप्रदान करने वाली ताप्ती ने कहा मै आज से सदा सदा के लिए उस झिरी में निवास करुंगी और जो मेरे जल का पान एवं स्नान करेंगा उसको सभी तापो से मुक्ति मिल जायेंगी ।
योगि सन्त अपनी कुटिया मे वापस लौट आये और अपने तप मे लीन हो गयें ।
अगले दिन जब योगी सन्त ने देखा तो पाया कि कमण्डल एवं पुष्प जो उन्होने तापीतट पर छोड़ा था , वो उनके द्वारा खोदी झिरी के पास रखा हुआ । तब योगी सन्त को तापी जी महता का ज्ञान और उस दिन से योगि सन्त ने इस झिरी की ताप्ती झिरी नाम दिया ।
योनि सन्त अब प्रतिदिन उस झिरी के जल से स्नान कर पुष्पो का स्नान कर देवी-देवी देवताओ का पुजन करते थे ।
धीरे धीरे नगर वासियो को इस बात का पता चला तो यहां प्रतिदिन अनेक भक्तगण आने जाने लगे ।
कुछ अन्तराल के बाद योगी तपस्वी महात्मा का स्वर्गवास    हो गया ।
धीरे धीरे इस ताप्ती झिरी के प्रति लोगो की आस्था एवं विश्वास की डोर बढ़ती गई ।
आठनेर नगर की मां सुर्यपुत्री की की बेटी प्रेमा मुलिक ने सन् 1999 मे ताप्ती जी की मुर्ती की प्राण प्रतिष्ठा की गई ।
वही सन् 2001 मे मां ताप्ती जी  के भक्त भगवन्तराव जी कनाठे जी द्वारा पहली बार चतुर्मास समापन और आशाढ़ शुक्ल सप्तमी पर मां सूर्यपूत्री ताप्ती जन्मोत्सव का आयोजन किया ।
वर्ष 2005 में शहर में ऐसा जलसंकट आया जिससे सारे नगरवासी दुविधा मे पड़ गये ।
किसानो की फसले सुख रही थी ।
शहर के आसपास सभी गांवो मे माह के प्रत्येक सोमवार कामकाज बन्द रख मां तापीतट वर जाना उनका भजन किर्तन चल रहा था ।
वही शहर मे मां तापी से विनती कर नलकुप खुदाई का कार्य चल रहा था ।
मां तापी के भक्त भगवन्तराव कनाठे द्वारा तापी पुराण का पाठ अपने घर पर किया जा रहा था ।
ताप्ती झिरी मे दिन रात मां तापी से विनती कि जा रही इस जल संकट से बचाने के लिये।
आखिर मां ताप्ती जी ने भक्तो की पुकार सुन ही ली ।
अचानक बादल मण्डराये और सारा नगर पानी से जलमान हो गया ।
इससे लोगो की आस्था बढ़ती चली गई ।
नगर कुछ लोगो द्वारा यहां एक समिति गठित कि गई जो इस स्थान पर ताप्ती जन्मोत्सव का आयोजन एवं तापी झिरी की देखरेख एवं संरक्षण का कार्य करती है ।

लेखक - रविन्द्र मानकर 

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