माँ ताप्ती जन्म की कथा
प्रिय भक्तो पुण्य सलिला ताप्ती माँ जो युगों युगों और कल्पो - कल्पो से सूर्यदेव के बाहों मॆ अखिलिया करते हुये ऊँचे नीचे रास्तों से गुजरते हुये कही फूल खिलाती है..कही अन्न उगाती जन जन जीवन का संचार करती हुईं मूलतापी के गौ मुख से निकलकर पूरे देश का भ्रमण करती हुईं सूर्यपूर के अरबसागर मॆ विलीन हो जाती है । ताप्ती मैया की महिमा कितनी निराली है , भक्तो ये पापों को धोकर मुक्ति दिलाती है , मृत्यु सीमा पर पड़े मनुष्य के मुँह यदि ताप्तीजल की दो बूँद डाल दी जाये या भूलवश भी ताप्ती के जल मॆ मृत देह की अस्थि प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है । ताप्ती मैया सृष्टि आरम्भ से निरन्तर बहती चली आ रही है ।
ये कभी थकती है ना कभी विश्राम करती है , हम सब की झोली सुखों से भरती रहती है । ताप्ती माता कहाँ से आयी , कैसे आयी , कैसे माँ ताप्ती जी का अवतरण हुआ और ताप्ती कहाँ जाती है ,इस पतित पावनी ताप्ती मैया की कथा आपको सुनाता हूँ..
आदिकाल में भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर देवताओ की सभा में कार्तिकेय महाराज को ताप्ती माहात्म्य सुनाया था । उस सभा में उपस्थित रोमेश मुनि ने यह ताप्ती महात्म्य गोकर्ण मुनि से कहाँ था । रोमेश मुनि से गोकर्ण ऋषि ने ताप्ती महात्म्य सुनकर कहाँ यह बहूत उत्तम हैं ।
गोकर्ण मुनि ने द्वापर युग के अंत में रोमेश मुनि से सुना ताप्ती महात्म्य सुनकर पृथ्वी लोग के मुनियों को सुनाया । मुनियों के माध्यम से ताप्ती महात्म्य सम्पूर्ण विश्व में फैलता गया । पौराणिक हिन्दु ग्रंथो व शास्त्रों में प्रमुख स्कंदपुराण , भविष्यपुराण , सूर्यपुराण, वाराह पुराण , ब्रम्हपुराण , महाभारत , शिवपुराण, नर्मदापुराण में वर्णित ताप्ती महात्म्य को मैंने ( रविन्द्र मानकर ) संकलन किया जो आपको सुनाने का प्रयास कर रहे हैं , आशा हैं आपको यह अनमोल ताप्ती महात्म्य बहूत पसंद आएगा ।
एक बार शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय जी अपने हठ के कारण कैलाश छोड़कर दक्षिण चले गए । तब उन्हे माता - पिता की अवहेलना करके अपने हठ से बड़ी ग्लानि हुई । श्री कार्तिकेय जी ने अपने अनुज गणेश जी को अपना दुख बताया , तब श्री गणेश जी ने उन्हे सम्पूर्ण तापो का निवारण करने वाली भगवती ताप्ती की शरण में जाने और वहां बेल वृक्ष के मूल में शिवार्चन का विधान बताया ।
कार्तिकेय जी ने छः महीने वह अनुष्ठान किया और ताप्ती कृपा से उनकी ग्लानि मिट गई । परिणामस्वप शिव जी के चरणो में अनुराग उत्पन्न हुआ जिससे वे आनन्द पूर्वक कैलाश लौट आये । कैलाश के रमणीय शिखर पर भगवान शिव सुखपूर्वक शान्त मुद्रा में बैठे थे । कुमार कार्तिकेय ने कमल और पारिजात पुष्प तथा से उनकी पूजा की फिर उनके चरणो के समीप भूमि पर आसान बिछाकर बैठ गए । तब भगवान शिव ने उन्हे विकार , चिता और ग्लानि रहित देखा तो कुशल प्रश्नो के बाद उनको हृदय से लगाकर आशीष पूर्वक उनका परितोष किया । कार्तिकेय जी के कैलाश आते ही सभी देवी देवताओ और ऋषि मुनि भी कैलाश पर आशीर्वाद देने पहुंचे ।
तब भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय जी के मन में सूर्यपुत्री ताप्ती जी की महिमा जानने की ईच्छा व्यक्त हुई । तब वे पिता शिव शंकर जी के पास गये और बोले पिताजी क्या सूर्यपुत्री ताप्ती जी का माहात्म्य नही हैं ? क्या श्री तप्तीजी नदियों मॆ प्राचीन नही हैं ?
तब शिवजी बोले - पुत्र सूर्यपुत्री ताप्ती जी कि बड़ी महिमा है, पुराने समय मॆ , जो श्री नारद जी ने कहाँ था । वह मेरे द्वारा ही कहाँ हुआ हैं । मैंने ही उन्हे बताया था कि जब गंगा ,नर्मदा ,गोमती आदि नदियाँ नही थी तब से सूर्यपुत्री ताप्ती प्रकट हुई हैं । आगे भगवान शिव कहने लगे पुत्र श्री गंगाजी में कई दिनो तक स्नान करने , नर्मदा जी के जल के दर्शन करने से और सरस्वती जी के संगम का जल पीने से जो पवित्रता होती हैं ,वही पवित्रता श्री ताप्ती के स्मरण मात्र से मनुष्य को होती हैं । यह ताप्ती आति प्राचीन हैं ।
इतना सुनकर कार्तिकेय जी पूछा - हे तात मैंने ताप्ती जी के दोनो किनारो आपके सुन्दर अर्चित लिंगो का दर्शन किया है प्रिय अनुज गणेश ने भी मां तापी महत्ता का गुणगान किया है , तात आप तापी जल क्यो धारण करते हो मुझे बताईये ।
तब भगवान शिव बोले- हे पुत्र कार्तिकेय जिस तरह भगवान सुर्यदेव अपनी इच्छा से गति करते है एवं सदैव
कर्मशील रहते है । उन्हे इस ब्रम्हाण्ड की आत्मा कहा जाता है उनके बिना सृष्ठी चारो अन्धकार ही
रहेंगा । उसी तरह पृथ्वी लोग पर मां तापी के बिना जीव-जीवन सम्भव नही था । मां ताप्ती
तीनो लोको के तापो का निवारण करती है ,वो ही सृष्टी की आदिगंगा है । मां तापी मोक्ष्यदायिनी है ,जिव और
जिवन का आधार है जो भी उनके शरण मे जाता
उसके सभी तापो को हर लेती है तापी जी ।
तब भगवान शिव आगे कहने लगे पुत्र मै तुम्हे ताप्ती माहात्म्य सुनाता हुँ जिसके ध्यान मात्र से मनुष्य भवपार हो जाता हैं । भगवान शिव बोले - हे पुत्र कार्तिकेय जब सूर्य नारायण का विवाह भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ । विवाह के कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था ।
इसी वजह से संज्ञा ने अपने पति की परिचर्चा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर ,वह एक घोडी का रुप धारण कर मन्दिर में तपस्या करने चली चली गईं। अपनी इच्छा से संसार को गति देने वाले हिरण्यगर्भ भगवान सुर्य भी अपने तेज से संसार को गति दे रहे थे उनके प्रचण्ड तेज के कारण सृष्टी पर महाप्रलय आया था । पृथ्वी पर गर्मी और तापमान इतना अत्यधिक बढ़ गया था ,जिससे जमीन उर्वरा शक्ति पुरी तरह खत्म हो गई थी । पृथ्वी के हिम झिलाखण्ड पिघलकरपीछे हट रहे थे ।
अत्यधिक गर्मी से सबसे अधिक पृथ्वी पर छाई प्राण वायु पर्तो पर पढ़ रहा था , जिससे सृष्टी के सभी जीव ब्रह्राजी मे विलिन होने लगे । ब्रम्ह्राजी ने पुन : सृष्टी रचना करने की कोशिश की लेकिन सुर्यदेव के प्रचण्ड तेज से वे भी व्याकुल हो गये ।
अत : ब्रम्ह्राजी ने भगवान शिव और विष्णू जी का ध्यान किया । तब भगवान शिव ने पृथ्वी मां और देवताओ से कहा कि आप चिंता ना कीजिये इस बार भगवान हिरण्य गर्भ सुर्यदेव की पुत्री ताप्ती जन्म लेंगी जो सारे जगत के ताप हार कर जन जन का कल्याण करेंगी ।
इस प्रकार शिव जी के कहने पर सभी देवता गण एवं पृथ्वी मां भगवान सुर्यदेव के पास गये और उनसे प्रार्थना की इस महाप्रलय से सृष्टी को विनाश होने से बचाये ।अत:
भगवान सुर्यदेव ने अपनी पुत्री ताप्ती का ध्यान किया ।
सुर्यपुत्री ताप्ती ताप्ती उनके ताप से उत्पन्न होकर सारी दिशाओ एवं आकाश को अलौकिक करते हुए अपने पिता का सन्ताप दूर करते भूलोक पर प्रकट हुई । इस प्रकार सृष्टी निर्माण के समय प्रथम नदी के रुप में ताप्ती जी का अवतरण हुआ। मां ताप्ती जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल
सप्तमी को दोपहर में हुआ। सुर्यदेव ने अपने तेज
से ताप उत्पन्न करके ताप्ती जी को अवतरित किया था ,इसलिए सुर्यपुत्री का नाम तप्ती हुआ । महाभारत ,भविष्यपुराण,स्कन्धपुराण आदि अनेक पुराणो मे माँ तापी जी का उल्लेख मिलता है ।
ताप्ती संकलनकर्ता : रविन्द्र मानकर
प्रिय भक्तो पुण्य सलिला ताप्ती माँ जो युगों युगों और कल्पो - कल्पो से सूर्यदेव के बाहों मॆ अखिलिया करते हुये ऊँचे नीचे रास्तों से गुजरते हुये कही फूल खिलाती है..कही अन्न उगाती जन जन जीवन का संचार करती हुईं मूलतापी के गौ मुख से निकलकर पूरे देश का भ्रमण करती हुईं सूर्यपूर के अरबसागर मॆ विलीन हो जाती है । ताप्ती मैया की महिमा कितनी निराली है , भक्तो ये पापों को धोकर मुक्ति दिलाती है , मृत्यु सीमा पर पड़े मनुष्य के मुँह यदि ताप्तीजल की दो बूँद डाल दी जाये या भूलवश भी ताप्ती के जल मॆ मृत देह की अस्थि प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है । ताप्ती मैया सृष्टि आरम्भ से निरन्तर बहती चली आ रही है ।
ये कभी थकती है ना कभी विश्राम करती है , हम सब की झोली सुखों से भरती रहती है । ताप्ती माता कहाँ से आयी , कैसे आयी , कैसे माँ ताप्ती जी का अवतरण हुआ और ताप्ती कहाँ जाती है ,इस पतित पावनी ताप्ती मैया की कथा आपको सुनाता हूँ..
आदिकाल में भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर देवताओ की सभा में कार्तिकेय महाराज को ताप्ती माहात्म्य सुनाया था । उस सभा में उपस्थित रोमेश मुनि ने यह ताप्ती महात्म्य गोकर्ण मुनि से कहाँ था । रोमेश मुनि से गोकर्ण ऋषि ने ताप्ती महात्म्य सुनकर कहाँ यह बहूत उत्तम हैं ।
गोकर्ण मुनि ने द्वापर युग के अंत में रोमेश मुनि से सुना ताप्ती महात्म्य सुनकर पृथ्वी लोग के मुनियों को सुनाया । मुनियों के माध्यम से ताप्ती महात्म्य सम्पूर्ण विश्व में फैलता गया । पौराणिक हिन्दु ग्रंथो व शास्त्रों में प्रमुख स्कंदपुराण , भविष्यपुराण , सूर्यपुराण, वाराह पुराण , ब्रम्हपुराण , महाभारत , शिवपुराण, नर्मदापुराण में वर्णित ताप्ती महात्म्य को मैंने ( रविन्द्र मानकर ) संकलन किया जो आपको सुनाने का प्रयास कर रहे हैं , आशा हैं आपको यह अनमोल ताप्ती महात्म्य बहूत पसंद आएगा ।
एक बार शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय जी अपने हठ के कारण कैलाश छोड़कर दक्षिण चले गए । तब उन्हे माता - पिता की अवहेलना करके अपने हठ से बड़ी ग्लानि हुई । श्री कार्तिकेय जी ने अपने अनुज गणेश जी को अपना दुख बताया , तब श्री गणेश जी ने उन्हे सम्पूर्ण तापो का निवारण करने वाली भगवती ताप्ती की शरण में जाने और वहां बेल वृक्ष के मूल में शिवार्चन का विधान बताया ।
कार्तिकेय जी ने छः महीने वह अनुष्ठान किया और ताप्ती कृपा से उनकी ग्लानि मिट गई । परिणामस्वप शिव जी के चरणो में अनुराग उत्पन्न हुआ जिससे वे आनन्द पूर्वक कैलाश लौट आये । कैलाश के रमणीय शिखर पर भगवान शिव सुखपूर्वक शान्त मुद्रा में बैठे थे । कुमार कार्तिकेय ने कमल और पारिजात पुष्प तथा से उनकी पूजा की फिर उनके चरणो के समीप भूमि पर आसान बिछाकर बैठ गए । तब भगवान शिव ने उन्हे विकार , चिता और ग्लानि रहित देखा तो कुशल प्रश्नो के बाद उनको हृदय से लगाकर आशीष पूर्वक उनका परितोष किया । कार्तिकेय जी के कैलाश आते ही सभी देवी देवताओ और ऋषि मुनि भी कैलाश पर आशीर्वाद देने पहुंचे ।
तब भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय जी के मन में सूर्यपुत्री ताप्ती जी की महिमा जानने की ईच्छा व्यक्त हुई । तब वे पिता शिव शंकर जी के पास गये और बोले पिताजी क्या सूर्यपुत्री ताप्ती जी का माहात्म्य नही हैं ? क्या श्री तप्तीजी नदियों मॆ प्राचीन नही हैं ?
तब शिवजी बोले - पुत्र सूर्यपुत्री ताप्ती जी कि बड़ी महिमा है, पुराने समय मॆ , जो श्री नारद जी ने कहाँ था । वह मेरे द्वारा ही कहाँ हुआ हैं । मैंने ही उन्हे बताया था कि जब गंगा ,नर्मदा ,गोमती आदि नदियाँ नही थी तब से सूर्यपुत्री ताप्ती प्रकट हुई हैं । आगे भगवान शिव कहने लगे पुत्र श्री गंगाजी में कई दिनो तक स्नान करने , नर्मदा जी के जल के दर्शन करने से और सरस्वती जी के संगम का जल पीने से जो पवित्रता होती हैं ,वही पवित्रता श्री ताप्ती के स्मरण मात्र से मनुष्य को होती हैं । यह ताप्ती आति प्राचीन हैं ।
इतना सुनकर कार्तिकेय जी पूछा - हे तात मैंने ताप्ती जी के दोनो किनारो आपके सुन्दर अर्चित लिंगो का दर्शन किया है प्रिय अनुज गणेश ने भी मां तापी महत्ता का गुणगान किया है , तात आप तापी जल क्यो धारण करते हो मुझे बताईये ।
तब भगवान शिव बोले- हे पुत्र कार्तिकेय जिस तरह भगवान सुर्यदेव अपनी इच्छा से गति करते है एवं सदैव
कर्मशील रहते है । उन्हे इस ब्रम्हाण्ड की आत्मा कहा जाता है उनके बिना सृष्ठी चारो अन्धकार ही
रहेंगा । उसी तरह पृथ्वी लोग पर मां तापी के बिना जीव-जीवन सम्भव नही था । मां ताप्ती
तीनो लोको के तापो का निवारण करती है ,वो ही सृष्टी की आदिगंगा है । मां तापी मोक्ष्यदायिनी है ,जिव और
जिवन का आधार है जो भी उनके शरण मे जाता
उसके सभी तापो को हर लेती है तापी जी ।
तब भगवान शिव आगे कहने लगे पुत्र मै तुम्हे ताप्ती माहात्म्य सुनाता हुँ जिसके ध्यान मात्र से मनुष्य भवपार हो जाता हैं । भगवान शिव बोले - हे पुत्र कार्तिकेय जब सूर्य नारायण का विवाह भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ । विवाह के कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था ।
इसी वजह से संज्ञा ने अपने पति की परिचर्चा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर ,वह एक घोडी का रुप धारण कर मन्दिर में तपस्या करने चली चली गईं। अपनी इच्छा से संसार को गति देने वाले हिरण्यगर्भ भगवान सुर्य भी अपने तेज से संसार को गति दे रहे थे उनके प्रचण्ड तेज के कारण सृष्टी पर महाप्रलय आया था । पृथ्वी पर गर्मी और तापमान इतना अत्यधिक बढ़ गया था ,जिससे जमीन उर्वरा शक्ति पुरी तरह खत्म हो गई थी । पृथ्वी के हिम झिलाखण्ड पिघलकरपीछे हट रहे थे ।
अत्यधिक गर्मी से सबसे अधिक पृथ्वी पर छाई प्राण वायु पर्तो पर पढ़ रहा था , जिससे सृष्टी के सभी जीव ब्रह्राजी मे विलिन होने लगे । ब्रम्ह्राजी ने पुन : सृष्टी रचना करने की कोशिश की लेकिन सुर्यदेव के प्रचण्ड तेज से वे भी व्याकुल हो गये ।
अत : ब्रम्ह्राजी ने भगवान शिव और विष्णू जी का ध्यान किया । तब भगवान शिव ने पृथ्वी मां और देवताओ से कहा कि आप चिंता ना कीजिये इस बार भगवान हिरण्य गर्भ सुर्यदेव की पुत्री ताप्ती जन्म लेंगी जो सारे जगत के ताप हार कर जन जन का कल्याण करेंगी ।
इस प्रकार शिव जी के कहने पर सभी देवता गण एवं पृथ्वी मां भगवान सुर्यदेव के पास गये और उनसे प्रार्थना की इस महाप्रलय से सृष्टी को विनाश होने से बचाये ।अत:
भगवान सुर्यदेव ने अपनी पुत्री ताप्ती का ध्यान किया ।
सुर्यपुत्री ताप्ती ताप्ती उनके ताप से उत्पन्न होकर सारी दिशाओ एवं आकाश को अलौकिक करते हुए अपने पिता का सन्ताप दूर करते भूलोक पर प्रकट हुई । इस प्रकार सृष्टी निर्माण के समय प्रथम नदी के रुप में ताप्ती जी का अवतरण हुआ। मां ताप्ती जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल
सप्तमी को दोपहर में हुआ। सुर्यदेव ने अपने तेज
से ताप उत्पन्न करके ताप्ती जी को अवतरित किया था ,इसलिए सुर्यपुत्री का नाम तप्ती हुआ । महाभारत ,भविष्यपुराण,स्कन्धपुराण आदि अनेक पुराणो मे माँ तापी जी का उल्लेख मिलता है ।
ताप्ती संकलनकर्ता : रविन्द्र मानकर
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