शनिवार, 9 मई 2020

माँ मंगला की कहानी



भक्तों तुमने तो अनेक पावन कथा सुनी होगी । माँ तारा कें भक्त वामा खेपा की ,  कलकत्ते वाली काली माँ कें भक्त रामकृष्ण परमहंस की , माँ वैष्णो देवी कें भक्त श्रीधर पण्डित  की , माँ ग्वाला देवी कें भक्त ध्यानु की , मैहर की माँ शारदा माता कें भक्त आल्हा की , पर जो आज पावन कथा हम आपको सुनाने जा रहें है ,  वह सबसे भिन्न है, अनुपम है।

अम्बा देवी की प्यारी भक्त मंगला माता की कथा बड़ी मनोरम है।  माँ अम्बादेवी क्षेत्र तपस्वी सन्त माँ मंगला देवी की तपो भूमि कें नाम से जाना जाता है । अम्बादेवी क्षेत्र ऋषि मुनियों की पावन भूमि रही है । अम्बा देवी क्षेत्र कों पूर्व में विधर्भ कें नाम से जाना जाता था । यही वो पावन भूमि है जहाँ भगवान शिव ने कुछ पल विश्राम किया । यही वो पुण्य क्षेत्र है जहाँ त्रेतायुग में श्री राम जी ने माता जानकी और लक्ष्मण कें साथ कुछ समय व्यतीत किया था । यही वो मोक्ष भूमि है जहाँ पाण्डवों ने अज्ञात वास गुजारा और अर्जुन ने अम्बिकेश्वर तीर्थ की स्थापना की थी ।
तपस्वी सन्त मंगला देवी एक अवदूत का ही रूप थी ।
अवदूत अर्थात परमेश्वर कें भेजे हुए दूत अर्थात वो आत्माएं जो मुक्त होती है , इस भू लोक की तमाम औपचारिकताओं से , छल , कपट जैसे तमाम भौतिक बंधनो से , ये होती है समय कें कालचक्र से परे , माया कें जटिल बंधनो से दूर , ब्रम्हानंद की स्थति में अवदूत इस दुनियाँ में आते है , आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाने , भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने अवदूत रूप धरते है ताकि हर कोई अपना मन परमपिता परमेश्वर में लगा सकें । इस तरह निर्माण प्राप्त कर सकें ।

आओ हम अम्बा देवी माँ का,सुमिरन कर लें
अदिशक्ति शेरांवाली का तो हम, भजन कर लें ।।
माँ की प्यारी भक्त राधा का,
उनके चरणों मे हम नमन कर लें ।।
आओ हम अम्बा देवी माँ का......


कहते है की माँ मंगला का जन्म परतवाडा महाराष्ट्र कें एक निर्धन परिवार में हुआ था ।
मंगला माता कें माता पिता पोत - माला गांव - गांव कें बाजार जा कर बेचा करते थें । मणिहार बेचने तथा पोत माला बेचने से जो कूछ भी मिल जाता था मंगला कें माता पिता उसी से अपना जीवन निर्वाह करते थें ।
माता पिता ने मंगला का विवाह करना चाहा लेकिन मंगला माता गृहस्थ जीवन नही जीना चाहती थी ,वो तो तपस्विनी थी , वो आदि शक्ति का अवतार थी , उनको भला कौन रोक सकता था , इसलिए शादी में मंडप से बारात और दुल्हे कों वापस जाना पड़ा ।
इसके कुछ समय बाद मंगला कें माता - पिता का स्वर्गवास हो गया । जिसके कारण मंगला माँ पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई । अपनी आजीवका चलाने कें लिए मंगला ने भी मणिहारी बेचने का छोटा व्यवसाय चालू किया ।
मंगला कों जीवन में अनेक कठिनाईयो का सामना करना पड़ा , जीवन में कई उतार चढ़ाव आते रहे और वे अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रही । इस दौरान उनकी मुलाकात एक ऐसे सन्त सूरदास महाराज से हुई जो बड़े तेजस्वी और सिद्धि प्राप्त गुरू थें ।
सूरदास महाराज ने मंगला माता कों अपनी बेटी मानकर गुरू  दीक्षा दी । सन्त शिरोमणि सूरदास महाराज ने मंगला माता  कों रद्दो नाम दिया । इसी कारण लोग उन्हे राधा कहकर भी पुकारते थें ।
 कहते है की मंगला माता कभी भैंसदेही कें बाजार में नजर आती , तो कभी अचलपूर कें बाजार में दिखाई देती , तो कभी चाण्दूबार की गलियों में नजर आती , तो कभी आठनेर कें गावों में भ्रमण करती दिखाई देती। मंगला माता बड़ी करुणामय और दयालु थी । उनके भक्त उन्हे जहाँ भी याद करते वो वहां उपस्थित हो जाती थी ।
जब मंगला माता आठनेर बाजार करने जाती तो सावंगी गांव में अपनी सखी राधा बाई कें घर एक दों दिन रहकर आगे का बाजार करने निकलती थी । मंगला माता ने अपनी सखी राधा बाई कें साथ नागद्वार की यात्रा भी की थी ।
कूछ दिन तक ऐसा हि चलते रहा । इसके बाद मंगला माँ ने सोचा की इस जीवन में क्या रखा है । मेरे आगे पीछे कौन है , मैं किसके लिए ये धन एकत्रित करू ।
एक दिन मंगला माता ने सूरदास महाराज से मुलाकात की । उन्होने अपने गुरूदेव से कहाँ की , मैं क्या करू गुरुदेव जिससे मेरा कल्याण हो सकें । मेरा ये जीवन सफल हो सकें । तब सूरदास महाराज ने कहाँ की बेटी तेरे मन में जो ईच्छा है वह बता । तब मंगला माँ ने कहाँ की मैं सालबर्डी कें आत्मज्ञानी सन्त महादेव बाबा की सेवा करना चाहती हु । सूरदास महाराज बोले की ठीक है बेटी , अगर तु सन्तो की सेवा करना चाहती है तो मुझे तेरा नाम रद्दो बदलना होगा । आज से तुम्हारा नाम चन्दा होगा । अब मंगला माता महादेव बाबा और मारोती बाबा कें तपोभूमि शिवधाम सालबर्डी आ गई । मंगला माता सन्तो की सेवा करने लगी । महादेव बाबा ने मंगला देवी की कई परीक्षाए ली और सारी परीक्षाओं में मंगला माता सफल हुई ।
सन्तो की कृपा और आशीर्वाद से मंगला कों शिव बाबा अर्थात सालबर्डी महादेव भी प्रसन्न हो गए । मंगला माता महादेव बाबा की सेवा कें साथ हि शिव भगवान की भी सेवा भक्ति करती रही   । सन्तो की कृपा से मंगला माता कों आत्मज्ञान की प्राप्ति होने लगी थी । महादेव बाबा ने निर्णय किया की अब मंगला कों भी एक दरबार देना चाहिए । महादेव बाबा ने मंगला माता कों अपने पास बुलाया और कहाँ बेटी अब यहां का तुम्हारा सम्पूर्ण कार्य पूर्ण हो गया । अपने धाम जाकर आदिशक्ति की महिमा कों जन जन तक पहुंचाओ । यहां से 10 कोश की दूरी पर माँ अम्बाजी का गुप्त परम धाम विराजमान है जहाँ माँ सती का हृदय गिरा था , वही तुम्हारी माता अम्बा , पिता भोलानाथ रहते है । तुम उस धाम की खोज करो , देवी अम्बा की साधना कर माता कों प्रसन्न करो ।
कहते है की महादेव बाबा से ऐसी बात सुनकर मंगला रोने लगी , कहने लगी की मैं नही जाऊंगी यहां से कही भी । मैं आपकी सेवा करूंगी । यहां भी मेरे पिता शिव शंकर रहते है मैं उन्ही कें सहारे रहूंगी ।
तब महादेव बाबा ने मंगला कों समझाया और कहाँ बेटी यहां पर हम सब कें पिता देवाधिदेव महादेव का धाम है , यहां भक्त उनके नाम से आते है लेकिन आप जिस धाम में जा रही हो वहां माँ शेरावाली अम्बादेवी कें नाम से भक्त गण आएगे । ये दोनो हि धाम भविष्य में बड़े जनकल्याण का कार्य करेंगे । इस तरह महादेव बाबा और मारोती कें कहने और प्रभातपट्टन कें भक्तों ने दबाव डाला की माता तुम्हे इस धाम कों छोड़कर जाना होगा ।
सन्तो और भक्तों कें बार बार निवेदन पर मंगला माता अपने धाम की खोज करने कें लिए तैयार हो गई ।
महादेव बाबा और मारोती बाबा ने कहाँ की बेटी जैसा हमारा धाम चल रहा है भोलानाथ बाबा की कृपा से वैसा हि तुम्हारा धाम माँ अम्बादेवी कृपा से चलेगा । सन्तो ने कहाँ की बेटी हम तुम्हारा नाम चन्दा से बदलकर मंगला रख रहे है अब तुम्हे भक्तगण इसी नाम से जानेंगे ।
जाते वक्त मंगला देवी ने दोनो सन्तो कों कहाँ की आप बाबा महाज्ञानी हो , आप योगी हो  , मैं वहां कैसे पहुंचूंगी , कैसे अकेली रह पाऊँगी , कैसे माँ अम्बा की तपस्या कर पाऊँगी ,
मैं सब आप पर छोड़ देती हूँ ।
तब महादेव बाबा बोले - बेटी तुम्हे काली बिल्ली रास्ता दिखाते जाएगी वो जा रूक जाएगी वही तुम्हारा धाम होगा । मंगला माता काली बिल्ली कें पीछे पीछे चलते हुए जाती थी,  जहाँ वह एक गुफा कें अन्दर गई वही मंगला माता ने अपना ढेरा डाल लिया ।
सन 1971 में माँ मंगला देवी धारूल गांव से दों कि.मी दूर सतपुड़ा कें घने जंगल कि एक गुफा में बैठकर तपस्या करने लगी ।
कहते है की तीन वर्ष तक माँ मंगला ने भगवती अम्बा का कठोर जप किया और पाला पत्ते, फल फूल खा कर अम्बे माँ  का ध्यान करती रही ।
इसी बीच मंगला माता की एक सखी राधा बाई कों स्वप्न में माता पार्वती और शिवजी ने दर्शन दिये और अम्बादेवी की गुप्त गुफा कें दर्शन कराये । भगवान शिव और माता पार्वती ने राधा से कहाँ की बेटी मैं यहां आदिकाल से विराजमान हूँ । प्राचिन गुफा धाम कें सामने तुम्हारी सखी मंगला बैठी हुई है तुम उसे सहयोग करो ।
सावंगी गांव की राधा बाई स्वप्न में माता कें बताए स्थान पर मंगला से मिलने पहुंची ।
दोनो हि सखियो की माँ अम्बे पर अटूट श्रध्दा और आस्था थी । उनको कई वर्ष बीत गए थें मिले हुए । राधा ने स्वप्न कें बारे में मंगला देवी कों बताया । दोनो सखियों ने माँ अम्बा कें इस तीर्थ कों जन जन पहुचाने कें लिए कार्य योजना बनाई । राधा कें गांव से अम्बादेवी गुफा की दूरी 60 कि.मी थी ।
हर सप्ताह कें अन्त में राधा  गांव कें भक्तों कें साथ मंगला देवी से मिलने आती थी , मंगला माता कें वस्त्र और खाने कें लिये भी कच्चा पक्का अन्न लें आती थी ।
उस दौरान आठनेर क्षेत्र कें ग्वाल किसानों कें पशु चराने कें लिए जंगल आते थें और अम्बा माई कि गुफा पर हि अपना ढेरा डाला करते थें ।
इन ग्वालों ने अम्बा देवी की गुफा और वहां रहने वाली तपस्वी की सूचना गांव गांव पहुचाई ।
राधा बाई जब भी अम्बा माई जाती तो वह अपने साथ अपने सावंगी गांव कें कई भक्तों कों लेकर आती थी । माँ मंगला और राधा बाई में सगी बहनो से भी बढ़कर प्रेम था ।
एक बार की बात है राधा बाई गाँव के हि अम्बा भक्त नामदेव माकोडे , देवराव राणे अपने छोटे पुत्र गनपत के साथ अम्बा यात्रा को निकली ।  जब राधा बाई अम्बा माई पहुँची तो मंगला देवी को बहुत ही प्रसन्नता हुईं ।
राधाबाई अपनी सखी मंगला को हमेशा ही पहनने के लिये वस्त्रों के रुप ब्लाउस और लहंगा भेंट करती थी और उसके भोजन के लिये कूछ हल्का पुलका ले आती थी ।
अब माँ अम्बा कें धाम में भक्तो के कल्याण के लिये गंगा का रहना जरूरी था पर गुफा से  दुर दुर तक पानी कही नही मिल पाता था । राधाबाई और मंगला  माता ने माँ ताप्ती माई का स्मरण करते हुये भक्तगण नामदेव और देवराव कें साथ एक झीरी (गड्डा) खोदने लगे । माँ अम्बा भवानी की कृपा से खोदते हुये लम्बे अंतराल कें बाद जलधारा के रुप में आदि  गंगा ताप्ती मैया का उदगम हो गया ।
माँ अम्बे धाम में ताप्ती रानी के आगमन से सारे तीर्थ धाम आ गये सभी भक्त जनों कें चेहरे पर प्रसन्नता की लहर नजर आ रही थी ।
माँ मंगला की वर्षों की तपस्या से माँ भगवती दुर्गा प्रसन्न हुई और माता की कृपा से मंगला कों सिद्धि प्राप्त हो गई ।
अम्बादेवी गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक बड़े नागराज रहते है , मंगला माता ने उनसे गुफा कें प्रवेश द्वार से हटने कें लिए अनुरोध किया । मंगला माता की आज्ञा से जब नागदेवता वहां से हट गए तब माता ने शिव दरबार की स्थापना की और नागदेव महाराज से वचन मांगा की आप सच्चे भक्तों कों दर्शन दोगे और आपके धाम में ही रहोगे ।
 स्वयं भू प्रकट हुई अम्बा देवी माँ की गुफा में माँ काली , माँ अन्नपूर्णा , माँ कामाख्या , भगवान शिव , माँ ताप्ती , नागदेवता , माँ रेणुका , माँ शेरावाली , श्री हनुमान जी आदि देवी - देवताओ कें धामों की स्थापना स्वयं तपस्वी मंगला माता ने ही की ।
मंगला ने अपनी दिव्य दृष्टि से वो प्राचिन गुप्त गुफा देखी जहाँ स्वयं माता पार्वती और भगवान शिव निवास करते  है , जहाँ माँ सती का हृदय गिरा हुआ है । अपनी सखी राधा बाई कें साथ प्रथम बार मंगला ने उस दिव्य गुफा की यात्रा की ।
   
जो भी श्रध्दालु माँ अम्बादेवी धाम आते वो स्वयं भू प्रकट हुई माँ आदि शक्ति कों नमन करते और मंगला माता से कुछ न कुछ लेकर जाते थें ।
माँ अम्बा की प्यारी भक्त मंगला कें तपोबल से दरबार आने वाले हर सच्चे भक्त की मनोकामना पूरी होने लगी ।
अनेक भक्तों कों उनकी अपेक्षा कें अनुसार लाभ होने लगा।
भक्तों कों उन्होने अनेक कष्टो से बचाया । मृत्यु सैया पर लेते भक्तों कों भी बचाया , किसी की विकलांगता दूर की , तो किसी कों दृष्टि दी ।
 माँ अम्बा की कृपा से किसी कों पुत्र प्राप्ति हुई , तो किसी कों धन सम्पति मिली , किसी कों रोजगार मिला तो किसी कों तंत्र बांधा से मुक्ति मिली ।  आज भी अनेक प्रांतो में अम्बा देवी की प्यारी भक्त मंगला माता का परिवार रहता है । पूर्णरूप से समर्पित माँ अम्बा भक्त सुभाजी घोड़की , केशों पटेल , राधा बाई , अम्बा बाई ये माता भक्तों का परिवार माना जाता है ।
माँ अम्बा देवी आने वाले भक्तगण उनके दिव्य रूप कों जानने लगे , उनके कई शब्द भविष्य की ओर संकेत करते नजर आते थें । जो मंगला माँ कहती लोग ध्यान से सुनते और श्रध्दापूर्वक गृहण करते थें ।
अब श्रध्दावान लोग यहाँ रूकने लगे , माँ अम्बा धाम में सेवा देने लगे । लोभ लालच ईर्ष्या छोड़कर कर माँ अम्बा की सेवा में लोग अपना समय व्यतीत करने लगे । 
माँ अम्बा जिन भक्तों कों बुलाना चाहती वो खुद ही दौड़ा आता था ऐसे ही एक भक्त केशों पटेल का अम्बा देवी की  गुफा में आगमन हुआ , घोघरा कें केशों पटेल पहली बार अम्बा देवी आये थें । मंगला माता कें पास बहूत सारे भक्त लोग बैठे हुए थें ॥ जब भक्तों की भीड़ कम हुई तो केशों पटेल मंगला माता से मिलने पहुंचे , माता ने उनसे पूछा की बोलो बेटा क्या चाहिए तुम्हे , कैसे यहां तुम्हारा आना हुआ । तब केशों पटेल ने बताया की माता मैं यहां दुध की धारा देखने आया था लेकिन किसी ने आपका नाम बताया और मेरे मन में आपके दर्शन की ईच्छा उत्पन्न हुई , मेरी आपसे विनती है , मेरे पास पर्याप्त खेती है एक अच्छा परिवार है , मंगला माता मैं माँ भगवती अम्बे की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हूँ ।  मंगला माता ने केशों से कहाँ ,  बेटा तुम गांव - गांव में जाकर भक्तों कों यहां आने कें लिए आमंत्रन भेजो तुम्हे अम्बा माता का भी यही आदेश है , इसी से तुम्हारा कल्याण होगा । केशों पटेल तपस्वी मंगला की शक्ति कों जान चूके थें इसलिए वे मंगला माता कें बताए मार्ग पर चलने लगे ।
केशों पटेल कें पास एक घोड़ा था उस घोड़े पर सवार होकर वे जंगल से चलते हुए अम्बा देवी आया करते थें ।
माँ मंगला ने अन्न तो खाना छोड़ दिया था । माँ मंगला सिंगाडे , मूंगफली  कें दाने और चाय का सेवन किया करती थी ।  । केशों का कोई सप्ताह खाली नही जाता था की वे अम्बा माई नही जाते थें ।
एक दिन की बात है केशों गांव जाना चाहते थें , लेकिन
मंगला माता की ईच्छा नही थी इसलिए जब गांव जाने कें लिए केशों तैयार हुए तो उनका घोड़ा गायब हो गया । जंगल में बहूत तलाश किया लेकिन कही नजर नही आया ,  वही मंगला माता केशों कों हैरान परेशान देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी । बहूत तलाश करने कें बाद भी घोड़ा नही मिला तो मंगला माता से पास जाकर रोने लगे , माँ तु जगदम्बा का रूप ही है , तेरे बिना यहाँ पत्ता भी नही हिल सकता । तु जो चाहती वही होता है अब बताए क्या आदेश है मेरे लिए ।
मंगला माता ने कहाँ की बेटा चिन्ता मत करो आज तुम्हे वो दिव्य गुफा कें दर्शन यात्रा कराने लें कर चल रही हूँ जहाँ कें दर्शन करने कें लिए अम्बा देवी आने वाला हर भक्त तरसते रहेगा लेकिन उसे प्राप्त नही होगे । जब कोई समर्पित भक्त माँ अम्बा की परीक्षाओं में पास होगा तब माँ उसे अवसर देगी ।  माँ अम्बा की प्रेरणा से मंगला माता ने केशों कों ऋषि मुनि आश्रम गुप्त गुफा कें दर्शन कराये जहाँ मंगला देवी कों माँ अम्बा देवी का साक्षात्कार हुआ । तब माँ अम्बा ने तपस्वी से कहाँ की अपने गुरू सूरदास महाराज को यहां लेकर आओ वो आपको आगे मार्ग बताएंगे ।

केशों पटेल मंगला माता कें निर्देश पर उनके गुरू सूरदास महाराज कों अम्बा माई लेकर आये ।
माँ मंगला कें गुरू सूरदास महाराज जब अम्बा देवी पहुंचे तो उन्होने भक्तजनों कें बीच भविष्यवाणी की ।
बहूत जल्द अम्बा देवी धाम का दूर दूर तक प्रचार हो जाएगा , माता अम्बा कें इस धाम बस , ट्रक और गाड़ियां चालू हो जाएगी , यहां नवरात्रि और शिवरात्रि कों लाखो भक्तों का आगमन होगा ।
धीरे धीरे माँ अम्बा देवी का दरबार महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश कें लाखो श्रध्दालुओ की आस्था और श्रध्दा का केन्द्र बन गया ।

मानव पर ही नही अन्य जीवो पर भी माता मंगला का स्नेह प्रेम रहा है । अपने बच्चो कें समान खिलाना , दुध पिलाना प्रेम करना उनकी आदत थी  । बिल्ली पर इनका विशेष प्रेम था । बिल्ली कें लिए प्रतिदिन दुध आता था , उसकी देखभाल करने में कोई कमी नही रहने देती थी । वह बिल्ली मंगला माता कें साथ दिन रात रहती थी ।
माँ अम्बा कें मंदिर आने वाले शेरों कों भी मंगला माता का आदेश था की वे किसी भी भक्त कों कभी नुकसान नही पहुंचाए । मन्दिर में विषधर सांपों कें झुण्ड कें झुण्ड निकलते थें , माता ने सांपों कों भी मन्दिर परिसर से गुप्त रहने का आग्रह किया था ।
माँ दुर्गा की सवारी शेर भी प्रतिदिन माँ अम्बा कें दर्शन कें लिए आता था इसीलिए माँ मंगला ने मन्दिर कें गर्भ गृह में सोने वाले भक्तों कें लिए कड़ा नियम बना रखा था , अगर रात्री कों कोई आप कें शरीर छुए या किसी कें चलने का आभास हो तो शान्त अवस्था में रहने और जागे तो पुनः सो जाये ।
माँ मंगला कें तपोबल की ही शक्ति है जो घने जंगल में लोगों कें सामने सैकड़ो बार शेर आया लेकिन आज तक किसी कों कोई नुकसान नही पहुचाया ।
  एक दिन अम्बा माता ने मंगला देवी कों दर्शन दिये और कहाँ की बेटी तुम्हारे लिए अयोध्या यही है , यही गंगा सागर है , यहाँ हरीद्वार है इसलिए मेरी बात का ध्यान रखो इस धाम कों छोड़कर कभी कही मत जाना ।
  भक्तों द्वारा मंगला माता कों तीर्थ यात्रा पर चलने का अनुरोध किया जा रहा था , जब बार बार भक्तों ने प्रार्थना की तो मंगला माता यात्रा पर चलने कें लिए राजी हो गई ।
कहते है की मंगला माता ने सन 1978 मे 35 भक्तो कें साथ भारत के प्रमुख तीर्थो की दर्शन यात्राए की । जिनमे राम जन्मभूमि अयोध्या, गंगासागर, रामेश्वर, हरिद्वार आदि आदि तीर्थ थें  ।
इस यात्रा में मंगला माँ की सखी राधा बाई नही गई थी ।
यात्रा में मंगला माता कों कष्ट में देख राधा बाई ने घर से देवी अम्बा की उपासना कर उसकी रक्षा की ।
 । कहते है की मंगला मां ने ही इस यात्रा का सम्पूर्ण खर्च उठाया ।  जब मंगला माता यात्रा से लौटकर आयी तो माँ अम्बा  देवी मन्दिर का सम्पूर्ण वातावरण ही बदल चुका था ।  कितने वर्षों कि तपस्या कर अम्बा देवी कें पवित्र स्थान कों जागृत किया था लेकिन आज अम्बा माँ कें मन्दिर कि सभी दैविक शक्तियां कों अधर्मियो ने बंधक कर डाला । मंगला देवी कों माँ अम्बा कि एक बात बार याद आ रही थी बेटी इस मन्दिर कों छोड़कर मत जाना वरना यहां अनर्थ हो जाएगा ।
उस वक्त अम्बा मन्दिर में माँ मंगला कि सेवा कन्हैया महाराज करते थें । वही मंगला माता कें कपड़े धोते थें । वही माता कों पानी पिलाते , वही अम्बा देवी दरबार की साफ सफाई करते थें ।
 कहते है की सन 1984 गुरू पूर्णिमा की रात्री थी मन्दिर में कन्हैया महाराज और माँ मंगला थी , तेज बारिश हो रही थी ।
उसी अर्धरात्री मंगला माता का स्वर्गवास हो गया ।  कन्हैया महाराज माँ कें चरणो में गिर गए और फुट फुट कर रोने लगे । मन्दिर में कोई नही था तेज पानी आ रहा था ।कन्हैया महाराज उसी दौरान तेज पानी से चलकर अम्बा भक्तों कों सूचना देने कें लिए निकल पड़े । कन्हैया महाराज ने घोघरा में अपने पिता कों मंगला माँ कें स्वर्गवास की सूचना दी , इसके अलावा आठनेर कें सुभाजी घोड़की कों सूचना दी , हिडली कें अम्बा भक्तों कों जाकर अवस्था कें बारे में बताया । सभी भक्तगण अम्बा देवी आये । जब सभी भक्तगण आ गए तो मंगला देवी कों समाधि दी गई ।
मंगला माता का सतीत्व इतना पावन और पवित्र था
मंगला माता अम्बा माई धाम में बैठे भक्तों कों बता देती थी की आज कौनसे गांव कें भक्तों का जत्था आ रहा है । मंगला माता आदिवासी महिला का रूप लेकर सैकड़ो भक्तों कों बरसात में नदी पार कराने जाती थी । कहते है की मंगला माता प्रातः उठते ही स्नान कर माता अम्बा की पुजा की तैयारी करती , माता का पवित्र जल से स्नान कर वस्त्र अलंकार , पुष्प अर्पित करती । मंगला देवी की एक लीला जिसे कोई नही समझ पाया , कोई भी उनके जीते जी उनकी तस्वीर अपने घर पर नही रख सका ।
कई भक्तों ने कैमरे या मोबाईल में मंगला माता की तस्वीर निकाली लेकिन जब देखते तो वह अपने आप ही गायब हो जाती थी । कभी कभी  मंगला माता , अम्बा माता और काली बिल्ली तीनों हि अम्बा मन्दिर में रहा करते थें ।
अम्बा देवी मन्दिर में जब छली , कपटी लोग आ कर अपनी तानाशाही बताते तो मंगला माता उन्हे फटकार लगाने में भी पीछे नही रहती थी ।
वर्ष 1984 मे मंगला मां के देह त्यागने के बाद ही मां की तस्वीर निकल पाई।
तपस्वी सन्त मां मंगला के रहते धारूल की अम्बा मांई दरबार में चमत्कार पर चमत्कार होते गए और माँ अम्बा माता पर श्रध्दा आस्था रखने वाले भक्त इसका फायदा उठाते गए ।
तपस्वी सन्त मंगला देवी की सेवा में रात दिन लगे रहने वाले कन्हैया कों महाराज नाम मंगला माता ने ही दिया था इसलिए अम्बा देवी से जुड़े सभी भक्तगण उन्हे कन्हैया महाराज कहते थें । माँ अम्बा देवी मन्दिर की सेवा का आगे का कार्यभार कन्हैया महाराज ने संभाला । केशों पटेल ने माँ मंगला देवी की समाधि स्थान पर माँ मंगला की मूर्ति लाकर स्थापना की ।
तपस्वी सन्त मंगला देवी का सपना था की माँ अम्बा का मन्दिर विश्वभर में प्रख्यात हो लेकिन मन्दिर पर स्वामित्व स्थापित करने कें लिए एक कें पीछे एक समितियॉ गठित होते गई लेकिन किसी ने अम्बा महिमा जन जन पहुचाने का कार्य नही किया ।
वर्ष 2012 तक सोशल मीडिया पर अम्बादेवी मंदिर का प्रचार प्रसार आरम्भ हि नही हो पाया था ।  ना हि अम्बा मन्दिर पर 1984 से 2012 तक स्थापित समितियो द्वारा माँ अम्बा की महिमा संकलित की और ना हि भगवती अम्बा पर भजन गीत या गाथाओं निर्माण हुआ । वैसे अम्बा देवी मन्दिर संस्थान कों लाखो का दान प्राप्त हुआ , इसके अलावा माता पर अर्पित सोने चांदी कें आभूषण , वस्त्र अलंकार की भी गणना करना मुश्किल है । लेकिन समिति ने तपस्वी माँ मंगला माता कें सपनो कों पुरा करने कें लिए कोइ प्रयास नही किया ।
 लेकिन वर्ष 2012 में माँ अम्बा ने एक भक्त कों स्वप्न में दृष्टांत देकर अपने दरबार आने का पहली बार बुलावा भेजा । माँ अम्बा देवी भक्त ने 22 वर्ष की उम्र में अम्बा धाम की पहली यात्रा की और माँ अम्बा की जीवन भर महिमा लिखने और जन जन तक पहुचाने का संकल्प लें लिया ।
माँ अम्बा कें उस भक्त नाम रविन्द्र है और वो उसी गांव का है जहाँ मंगला माता की सखी राधा बाई रहती है ।
राधा बाई आज भी जीवित है रविन्द्र ने राधा बाई , घोघरा कें केशों पटेल , धारूल की मनका माँ , कन्हैया महाराज , आठनेर कें सुनील भोपलें , सुभाजी घोड़की परिवार , हिवरा की राधिका कापसे , मांडवी कें हरी खण्डय आदि अम्बादेवी दरबार धारूल से जुड़े हर छोटे और बढ़े भक्त से माँ अम्बा देवी ,मंगला तपस्वी की महिमा सुनी , महिमा कों लिखित रूप में प्राप्त किया , भक्तजनों कें वीडियो बनाए ।
इसके बाद अम्बा माँ की प्रेरणा से जोगवा अर्थात भिक्षा अर्थात जन सहयोग से धारूल अम्बा देवी महिमा पर माई का डंका बाजे रे भजन एलबम बनाया ।
इस भजन एलबम का निर्माण करने कें दौरान रविन्द्र कों कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा , अपनी नौकरी छोड़ना पड़ा , यहां तक एक रात थाने में गुज़रना पड़ा ।
जब कुछ मन्दिर से जुड़े पापियों ने माँ अम्बा गहने चुरा लिए तो उनका खुलासा भी देवी भक्त ने खुलकर किया ।
धारूल अम्बा देवी मन्दिर , माँ अम्बा देवी , तपस्विनी मंगला की महिमा से जुड़े सैकड़ो वीडियो देवी भक्त ने सोशल मीडिया , युटुब पर डाल रखे है , देवी भक्त की लिखी अम्बा देवी महिमा करोडो लोग देखे चूके है ।
माँ अम्बा का भक्त रविन्द्र स्वयं माँ अम्बा की प्रेरणा से कार्य करता है , उसे मन्दिर से जुड़ी किसी समिति और नेता से लेना देना नही , वो सत्य लिखता है चाहे परिणाम कुछ भी हो ।
माँ अम्बा कें भक्तों की कोई समस्या हो माता का भक्त आगे आकर उन्हे उपाय बताता है । केशों दादा की प्रेरणा से अम्बा दरबार की ऋषि मुनि आश्रम की गुप्त गुफा का मार्ग भी माता कें भक्त ने खोज लिया है ।
तो भक्तों ये अम्बा माता की प्यारी भक्त तपस्वी सन्त मंगला की कहानी है । मंगला माता की लीलाओं का संग्रह बहूत बड़ा है लेकिन इस कहानी में हम एक संक्षिप्त परिचय लेकर आये है ।
माँ अम्बा देवी कें भक्त रविन्द्र का कहना है ..
माँ अम्बा का हर बेटा और बेटी माँ से कुछ भी मांग सकता है । मन हि मन माँ से जिद कर सकता है । आदि शक्ति माँ अम्बा कों , तपस्विनी माँ मंगला कों मना सकता है । इसलिए मंगला माता कें बनाए नियमो पर चलने की आवश्यता है ।

मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आठनेर तहसील की ग्राम पंचायत धारूल का यह जागृत धार्मिक स्थान आज भी हजारो किस्सो कहानियों से जुड़ा हुआ है। यहां पर सबसे अधिक पड़ौसी सीमावर्ती महाराष्ट्र के अमरावति ,वरूड़ , परतवाड़ा क्षेत्र के ग्रामिण श्रद्धालु भक्त आते रहते है।

संकलनकर्ता - श्री महाकाल भक्त रविन्द्र मानकर 

कोई टिप्पणी नहीं: