सोमवार, 18 मई 2020

अम्बा माँ की प्यारी मैना भक्त की कहानी


भक्तों तुमने तो अनेक पावन कथा सुनी होगी । माँ तारा कें भक्त वामा खेपा की ,  कलकत्ते वाली काली माँ कें भक्त रामकृष्ण परमहंस की , माँ वैष्णो देवी कें भक्त श्रीधर पण्डित  की , माँ ग्वाला देवी कें भक्त ध्यानु की , मैहर की माँ शारदा माता कें भक्त आल्हा की , पर जो आज पावन कथा हम आपको सुनाने जा रहें है ,  वह सबसे भिन्न है, अनुपम है।

अम्बा देवी की प्यारी भक्त मंगला माता की कथा बड़ी मनोरम है।  माँ अम्बादेवी क्षेत्र तपस्वी सन्त माँ मंगला देवी की तपो भूमि कें नाम से जाना जाता है । अम्बादेवी क्षेत्र ऋषि मुनियों की पावन भूमि रही है । अम्बा देवी क्षेत्र कों पूर्व में विधर्भ कें नाम से जाना जाता था । यही वो पावन भूमि है जहाँ भगवान शिव ने कुछ पल विश्राम किया । यही वो पुण्य क्षेत्र है जहाँ त्रेतायुग में श्री राम जी ने माता जानकी और लक्ष्मण कें साथ कुछ समय व्यतीत किया था । यही वो मोक्ष भूमि है जहाँ पाण्डवों ने अज्ञात वास गुजारा और अर्जुन ने अम्बिकेश्वर तीर्थ की स्थापना की थी ।
तपस्वी सन्त मंगला देवी एक अवदूत का ही रूप थी ।
अवदूत अर्थात परमेश्वर कें भेजे हुए दूत अर्थात वो आत्माएं जो मुक्त होती है , इस भू लोक की तमाम औपचारिकताओं से , छल , कपट जैसे तमाम भौतिक बंधनो से , ये होती है समय कें कालचक्र से परे , माया कें जटिल बंधनो से दूर , ब्रम्हानंद की स्थति में अवदूत इस दुनियाँ में आते है , आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाने , भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने अवदूत रूप धरते है ताकि हर कोई अपना मन परमपिता परमेश्वर में लगा सकें । इस तरह निर्माण प्राप्त कर सकें ।

आओ हम अम्बा देवी माँ का,सुमिरन कर लें
अदिशक्ति शेरांवाली का तो हम, भजन कर लें ।।
माँ की प्यारी भक्त राधा का,
उनके चरणों मे हम नमन कर लें ।।
आओ हम अम्बा देवी माँ का......

कहते है की माँ मंगला का जन्म परतवाडा महाराष्ट्र कें एक निर्धन परिवार में हुआ था ।
मंगला माता कें माता पिता पोत - माला गांव - गांव कें बाजार जा कर बेचा करते थें । मणिहार बेचने तथा पोत माला बेचने से जो कूछ भी मिल जाता था मंगला कें माता पिता उसी से अपना जीवन निर्वाह करते थें ।
माता पिता ने मंगला का विवाह करना चाहा लेकिन मंगला माता गृहस्थ जीवन नही जीना चाहती थी ,वो तो तपस्विनी थी , वो आदि शक्ति का अवतार थी , उनको भला कौन रोक सकता था , इसलिए शादी में मंडप से बारात और दुल्हे कों वापस जाना पड़ा ।
इसके कुछ समय बाद मंगला कें माता - पिता का स्वर्गवास हो गया । जिसके कारण मंगला माँ पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई । अपनी आजीवका चलाने कें लिए मंगला ने भी मणिहारी बेचने का छोटा व्यवसाय चालू किया ।
मंगला कों जीवन में अनेक कठिनाईयो का सामना करना पड़ा , जीवन में कई उतार चढ़ाव आते रहे और वे अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रही । इस दौरान उनकी मुलाकात एक ऐसे सन्त सूरदास महाराज से हुई जो बड़े तेजस्वी और सिद्धि प्राप्त गुरू थें ।
सूरदास महाराज ने मंगला माता कों अपनी बेटी मानकर गुरू  दीक्षा दी । सन्त शिरोमणि सूरदास महाराज ने मंगला माता  कों रद्दो नाम दिया । इसी कारण लोग उन्हे राधा कहकर भी पुकारते थें ।
 कहते है की मंगला माता कभी भैंसदेही कें बाजार में नजर आती , तो कभी अचलपूर कें बाजार में दिखाई देती , तो कभी चाण्दूबार की गलियों में नजर आती , तो कभी आठनेर कें गावों में भ्रमण करती दिखाई देती। मंगला माता बड़ी करुणामय और दयालु थी । उनके भक्त उन्हे जहाँ भी याद करते वो वहां उपस्थित हो जाती थी ।
जब मंगला माता आठनेर बाजार करने जाती तो सावंगी गांव में अपनी सखी राधा बाई कें घर एक दों दिन रहकर आगे का बाजार करने निकलती थी । मंगला माता ने अपनी सखी राधा बाई कें साथ नागद्वार की यात्रा भी की थी ।
कूछ दिन तक ऐसा हि चलते रहा । इसके बाद मंगला माँ ने सोचा की इस जीवन में क्या रखा है । मेरे आगे पीछे कौन है , मैं किसके लिए ये धन एकत्रित करू ।
एक दिन मंगला माता ने सूरदास महाराज से मुलाकात की । उन्होने अपने गुरूदेव से कहाँ की , मैं क्या करू गुरुदेव जिससे मेरा कल्याण हो सकें । मेरा ये जीवन सफल हो सकें । तब सूरदास महाराज ने कहाँ की बेटी तेरे मन में जो ईच्छा है वह बता । तब मंगला माँ ने कहाँ की मैं सालबर्डी कें आत्मज्ञानी सन्त महादेव बाबा की सेवा करना चाहती हु । सूरदास महाराज बोले की ठीक है बेटी , अगर तु सन्तो की सेवा करना चाहती है तो मुझे तेरा नाम रद्दो बदलना होगा । आज से तुम्हारा नाम चन्दा होगा । अब मंगला माता महादेव बाबा और मारोती बाबा कें तपोभूमि शिवधाम सालबर्डी आ गई । मंगला माता सन्तो की सेवा करने लगी । महादेव बाबा ने मंगला देवी की कई परीक्षाए ली और सारी परीक्षाओं में मंगला माता सफल हुई ।
सन्तो की कृपा और आशीर्वाद से मंगला कों शिव बाबा अर्थात सालबर्डी महादेव भी प्रसन्न हो गए । मंगला माता महादेव बाबा की सेवा कें साथ हि शिव भगवान की भी सेवा भक्ति करती रही   । सन्तो की कृपा से मंगला माता कों आत्मज्ञान की प्राप्ति होने लगी थी । महादेव बाबा ने निर्णय किया की अब मंगला कों भी एक दरबार देना चाहिए । महादेव बाबा ने मंगला माता कों अपने पास बुलाया और कहाँ बेटी अब यहां का तुम्हारा सम्पूर्ण कार्य पूर्ण हो गया । अपने धाम जाकर आदिशक्ति की महिमा कों जन जन तक पहुंचाओ । यहां से 10 कोश की दूरी पर माँ अम्बाजी का गुप्त परम धाम विराजमान है जहाँ माँ सती का हृदय गिरा था , वही तुम्हारी माता अम्बा , पिता भोलानाथ रहते है । तुम उस धाम की खोज करो , देवी अम्बा की साधना कर माता कों प्रसन्न करो ।
कहते है की महादेव बाबा से ऐसी बात सुनकर मंगला रोने लगी , कहने लगी की मैं नही जाऊंगी यहां से कही भी । मैं आपकी सेवा करूंगी । यहां भी मेरे पिता शिव शंकर रहते है मैं उन्ही कें सहारे रहूंगी ।
तब महादेव बाबा ने मंगला कों समझाया और कहाँ बेटी यहां पर हम सब कें पिता देवाधिदेव महादेव का धाम है , यहां भक्त उनके नाम से आते है लेकिन आप जिस धाम में जा रही हो वहां माँ शेरावाली अम्बादेवी कें नाम से भक्त गण आएगे । ये दोनो हि धाम भविष्य में बड़े जनकल्याण का कार्य करेंगे । इस तरह महादेव बाबा और मारोती कें कहने और प्रभातपट्टन कें भक्तों ने दबाव डाला की माता तुम्हे इस धाम कों छोड़कर जाना होगा ।
सन्तो और भक्तों कें बार बार निवेदन पर मंगला माता अपने धाम की खोज करने कें लिए तैयार हो गई ।
महादेव बाबा और मारोती बाबा ने कहाँ की बेटी जैसा हमारा धाम चल रहा है भोलानाथ बाबा की कृपा से वैसा हि तुम्हारा धाम माँ अम्बादेवी कृपा से चलेगा । सन्तो ने कहाँ की बेटी हम तुम्हारा नाम चन्दा से बदलकर मंगला रख रहे है अब तुम्हे भक्तगण इसी नाम से जानेंगे ।
जाते वक्त मंगला देवी ने दोनो सन्तो कों कहाँ की आप बाबा महाज्ञानी हो , आप योगी हो  , मैं वहां कैसे पहुंचूंगी , कैसे अकेली रह पाऊँगी , कैसे माँ अम्बा की तपस्या कर पाऊँगी ,
मैं सब आप पर छोड़ देती हूँ ।
तब महादेव बाबा बोले - बेटी तुम्हे काली बिल्ली रास्ता दिखाते जाएगी वो जा रूक जाएगी वही तुम्हारा धाम होगा । मंगला माता काली बिल्ली कें पीछे पीछे चलते हुए जाती थी,  जहाँ वह एक गुफा कें अन्दर गई वही मंगला माता ने अपना ढेरा डाल लिया ।
सन 1971 में माँ मंगला देवी धारूल गांव से दों कि.मी दूर सतपुड़ा कें घने जंगल कि एक गुफा में बैठकर तपस्या करने लगी ।
कहते है की तीन वर्ष तक माँ मंगला ने भगवती अम्बा का कठोर जप किया और पाला पत्ते, फल फूल खा कर अम्बे माँ  का ध्यान करती रही ।
इसी बीच मंगला माता की एक सखी राधा बाई कों स्वप्न में माता पार्वती और शिवजी ने दर्शन दिये और अम्बादेवी की गुप्त गुफा कें दर्शन कराये । भगवान शिव और माता पार्वती ने राधा से कहाँ की बेटी मैं यहां आदिकाल से विराजमान हूँ । प्राचिन गुफा धाम कें सामने तुम्हारी सखी मंगला बैठी हुई है तुम उसे सहयोग करो ।
सावंगी गांव की राधा बाई स्वप्न में माता कें बताए स्थान पर मंगला से मिलने पहुंची ।
दोनो हि सखियो की माँ अम्बे पर अटूट श्रध्दा और आस्था थी । उनको कई वर्ष बीत गए थें मिले हुए । राधा ने स्वप्न कें बारे में मंगला देवी कों बताया । दोनो सखियों ने माँ अम्बा कें इस तीर्थ कों जन जन पहुचाने कें लिए कार्य योजना बनाई । राधा कें गांव से अम्बादेवी गुफा की दूरी 60 कि.मी थी ।
हर सप्ताह कें अन्त में राधा  गांव कें भक्तों कें साथ मंगला देवी से मिलने आती थी , मंगला माता कें वस्त्र और खाने कें लिये भी कच्चा पक्का अन्न लें आती थी ।
उस दौरान आठनेर क्षेत्र कें ग्वाल किसानों कें पशु चराने कें लिए जंगल आते थें और अम्बा माई कि गुफा पर हि अपना ढेरा डाला करते थें ।
इन ग्वालों ने अम्बा देवी की गुफा और वहां रहने वाली तपस्वी की सूचना गांव गांव पहुचाई ।
राधा बाई जब भी अम्बा माई जाती तो वह अपने साथ अपने सावंगी गांव कें कई भक्तों कों लेकर आती थी । माँ मंगला और राधा बाई में सगी बहनो से भी बढ़कर प्रेम था ।
एक बार की बात है राधा बाई गाँव के हि अम्बा भक्त नामदेव माकोडे , देवराव राणे अपने छोटे पुत्र गनपत के साथ अम्बा यात्रा को निकली ।  जब राधा बाई अम्बा माई पहुँची तो मंगला देवी को बहुत ही प्रसन्नता हुईं ।
राधाबाई अपनी सखी मंगला को हमेशा ही पहनने के लिये वस्त्रों के रुप ब्लाउस और लहंगा भेंट करती थी और उसके भोजन के लिये कूछ हल्का पुलका ले आती थी ।
अब माँ अम्बा कें धाम में भक्तो के कल्याण के लिये गंगा का रहना जरूरी था पर गुफा से  दुर दुर तक पानी कही नही मिल पाता था । राधाबाई और मंगला  माता ने माँ ताप्ती माई का स्मरण करते हुये भक्तगण नामदेव और देवराव कें साथ एक झीरी (गड्डा) खोदने लगे । माँ अम्बा भवानी की कृपा से खोदते हुये लम्बे अंतराल कें बाद जलधारा के रुप में आदि  गंगा ताप्ती मैया का उदगम हो गया ।
माँ अम्बे धाम में ताप्ती रानी के आगमन से सारे तीर्थ धाम आ गये सभी भक्त जनों कें चेहरे पर प्रसन्नता की लहर नजर आ रही थी ।
माँ मंगला की वर्षों की तपस्या से माँ भगवती दुर्गा प्रसन्न हुई और माता की कृपा से मंगला कों सिद्धि प्राप्त हो गई ।
अम्बादेवी गुफा के प्रवेश द्वार के पास एक बड़े नागराज रहते है , मंगला माता ने उनसे गुफा कें प्रवेश द्वार से हटने कें लिए अनुरोध किया । मंगला माता की आज्ञा से जब नागदेवता वहां से हट गए तब माता ने शिव दरबार की स्थापना की और नागदेव महाराज से वचन मांगा की आप सच्चे भक्तों कों दर्शन दोगे और आपके धाम में ही रहोगे ।
 स्वयं भू प्रकट हुई अम्बा देवी माँ की गुफा में माँ काली , माँ अन्नपूर्णा , माँ कामाख्या , भगवान शिव , माँ ताप्ती , नागदेवता , माँ रेणुका , माँ शेरावाली , श्री हनुमान जी आदि देवी - देवताओ कें धामों की स्थापना स्वयं तपस्वी मंगला माता ने ही की ।
मंगला ने अपनी दिव्य दृष्टि से वो प्राचिन गुप्त गुफा देखी जहाँ स्वयं माता पार्वती और भगवान शिव निवास करते  है , जहाँ माँ सती का हृदय गिरा हुआ है । अपनी सखी राधा बाई कें साथ प्रथम बार मंगला ने उस दिव्य गुफा की यात्रा की ।

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