मंगलवार, 16 जून 2020

ताप्ती माहात्म्य हरण कथा


माँ ताप्ती महात्म्य कथा भाग -2




शिवजी बोले - पुत्र  ताप्ती जी आदिगंगा हैं  वो सृष्टि आरम्भ से इस धरा पर हैं ,सभी नदियाँ ताप्ती जी का सेवन करती हैं । कार्तिकेय बोले - सभी नदियाँ कैसे ताप्ती जी सेवन करती हैं , मुझे नदियों की इस कथा बताइये ।
भगवान  शिव भोले - पूर्वकाल मॆ गंगाजी मेरे पास  कैलाश आयी और मुझसे से बोली हे नाथ ! नारद वगैरह मुनियों को ताप्ती महात्म मिला था ,उसका प्रभाव है या नही ।
तब पुत्र मैने बताया था की  - पूर्वकाल  मॆ नारद मुनि ने बड़े कष्ट से ताप्ती महात्म प्राप्त किया था। तीनो लोको मॆ उसका प्रभाव कहने मॆ कौन समर्थ हैं ।
तब मैने ने कहाँ हे देवी गंगा आप तो ब्रम्हलोक मॆ ब्रम्हा जी के  कमण्डल मॆ रहती हो तुम्हे बड़ी तथा महापापनाशक श्री ताप्ती जी के बारे मॆ कैसे पता चला ।

गंगाजी बोली हे नाथ मै ब्रम्हलोक निवास करती हूँ और मैने ब्रम्हाजी के मुख से जो सुना और आश्चर्च देखा वह ध्यान से सुनिये..अत्यंत हर्ष के साथ हम सभी बड़ी नदियाँ ब्रम्हलोक गई थी ।
वहाँ ब्रम्हाजी ने हमारे सामने उपदेश दिया था कि जो पुरुष ताप्ती जी किनारे मृत्यु कों प्राप्त होगा और जो पुरुष ताप्ती के जल से पुष्ट होगा , ब्रम्हाजी ने कहाँ कि ताप्ती किनारे रहने वाले पुरुष यदि महापापी दुराचारी और निर्दयी हो तो भी स्वभाविक रीति से सतगति को प्राप्त होंगे ।
ऐसा ब्रम्हाजी के मुख से उपदेश सुनकर यमराज जी को बहूत दुख : हुआ और उन्होने विचार किया कि अब मै क्या करूँ !
किस प्रकार मै सभी नदियों को बुलाकर  श्री ताप्ती से प्रार्थना कर सकूंगा कि हे देवी जो श्रद्धा विहीन पापी पुरुष भी यदि सेवन करे आपके जल का तो उसे शास्वत स्थान मत देना । यमराज ने प्रार्थना कि तब ताप्ती नर्मदा आदि नदियाँ दिव्य अलंकार वाले विमान मॆ बैठकर जगत को उज्वल करने वाली नदियाँ यमपूरी मॆ आयी॥
इसके बाद मॆ विनय पूर्वक धर्मराज ने
ताप्तीजी का बड़ा महात्म देखकर सबसे पहले तप्तीजी को आसान प्रदान किया।
 ताप्तीजी का अधिक महात्म देखकर सब नदियाँ रुष्ट होकर लौटने लगी ,तो धर्मराज ने सबको प्रणाम कर कहा की नदियों यह तपती सूर्य की पुत्री हैं , सबसे प्रथम हैं , तुम इसलिये क्रोधित हो रही हो ?  यदि तुम्हे मेरे वचनों पर विश्वास नही हो तो  हो तो मार्कण्डेय मुनी से पूँछ लो !  वो हि आपकी समस्या का समाधान कर सकते है क्युकि वे सात कल्पो के बारे मे जानते है । सभी नदियाॅ लोमश मुनि के पास पहुची।
तब लोमश मुनि ने कहा की ताप्ती जी ही सबसे
प्राचिन नदी है ,तो सभी जिज्ञासावश
पुछा की हमे तापी जन्म कैसे हुआ बताये ।
तब लौमश ऋषि ने कहाँ की आप ब्रम्हाजी के पास जाये सॄष्टि के रचयिता हि आपको बता पायेंगे । सभी नदियाँ फिर ब्रम्हलोक गयी और विचित्र आसनों पर बैठने के बाद उन सब ने नम्रता पूर्वक ब्रम्हाजी से पूछा की नदियों मॆ श्रेष्ठ कौन हैं ? 
गंगा जी बोली हें नाथ !
तब ब्रम्हाजी ने कहाँ की सूर्यनारायण के शरीर से निकली ताप्ती प्रथम हैं जो की इक्कीस कल्पो का लगातार मुझे  स्मरण हैं ।
इस प्रकार कहने पर हम सभी नदियों ने गर्व छोड़कर
अपनी शंका के बारे मॆ पूछा कि किस तरह सूर्यदेव के शरीर से ताप्ती उत्पन हुयी ।
तब हमे ताप्ती जन्म के बारे मॆ पता चला ।
 हे गिरजापति महादेव अब कृपा करके  मुझे ताप्ती महात्म जानने का रास्ता बताये । 
 तब महादेव  बोले , श्री यमुना जी ताप्ती जी की बहन हैं , वह हि बता सकती हैं ताप्ती माहात्म्य और बहन होने के कारण उस पर क्रोध नही करेंगी । बाद मॆ उतावली होकर गंगाजी यमुना जी से मिलने गयी ।  इस प्रकार यमुना जी और गंगाजी मॆ मित्रता हुयी ।
कूछ समय बाद देवी गंगा ने यमुना जी को महादेव जी के पास आने का निमंत्रण दिया  जिससे ताप्ती माहात्म्य  जानने का कार्य पूर्ण हो सके ।
 देवाधि देव महादेव ने आदर पूर्वक कहाँ , हे नदियों मॆ श्रेष्ट यमुना !  तुम शीघ्र ताप्ती माहात्म्य सुनाओ  ।  तब यमुना बोली हे नाथ ताप्ती जी मेरे बहन होते हुये भी क्रोधित हुयी तो मेरी रक्षा कौन करेंगा । तब महादेव जी ने बोले हे देवी यमुना -  मै हुंकार मार कर तुम्हे बचा लूंगा , ताप्ती के श्राप के भय के कारण इस कार्य को तुम्हारे सिवाय कोई करने मॆ समर्थ नही हैं । 
यमुना जी ने काली गाय का रुप धारण किया और ताप्ती जल में ताप्ती महात्म जानने के लिये प्रवेश किया तब यमुना जी का दुष्कर्म जानकर सूर्यपुत्री ताप्ती तीव्र वेग प्रवाह से यमुना को व्याकुल कर दिया तब यमुना जी डुबकी खाती हुयी रुदन करती हुई दिखाई दी । तब  स्वयं मैं भी आश्चर्यचकित हुआ और सफेद रंग कि गाय (यमुना) को उस स्थान का ध्यान किया तब वह गाय ताप्ती जी के प्रभाव से सफेद रंग कि हो गई । ऐसा ध्यान से आभास हुआ , तब मैने हुंकार करके उस गाय कि रक्षा की । यमुना जी बार बार ताप्ती जी का ध्यान करते हुये भी ताप्ती महात्म ना पा सकी । कलांतर मॆ इस स्थान का नाम भूसावन पड़ा । ये तीर्थ प्रसिद्ध तपती पूर्णा संगम के नाम से विख्यात हुआ ।
इस तीर्थ के जल में स्नान और सेवन करने से देवी यमुना और  शिव जी क्रपा बनी रहती हैं ।  

भगवान शिव बोले - हे पुत्र जब राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों के मोक्ष के लिये गंगाजी को धरती पर लाने के लिये हजारो वर्ष तक तप किया किंतु गंगाजी धरती पर ना ला सके , और तप करते करते उनकी मृत्यु हो गयीं ।
राजा सगर की मृत्यु की सूचना पाकर उनके पुत्र अंशुमान को बड़ा दुख हुआ और अंशुमान ने संकल्प लिया अब वो इस अधूरे कार्य को पूरा करेगा परंतु कठोर तप करने के बाद भी गंगाजी धरती पर नही आयी । इस तरह राजा सगर की दो पीढ़ीया समाप्त हो गयीं ।
 गंगा जी को धरती पर लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी,  उसके फलस्वरूप गंगा ने
ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु
वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी । ताप्ती नदी का महत्व समझकर
श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत भगवान विष्णु स्वयं ब्रम्हलोक मे आये और माॅ गंगा जी से कहने लगे, हे देवी तपस्वी इंसान को कम-कम एक ही जन्म में वरदान दे देना चाहिये , परन्तु राजा सगर की दो पीढ़ीयाॅ समाप्त हो गयी है, और तीसरी पीढ़ी
भगीरथ के अनेक वर्ष बीत चुके है । हे  देवी कपिल मुनि आपको बुलाना चाहते है तो आपको जाना चाहिये ।
जब कपिल मुनि जैसे तपस्वी नित तुम्हारे जल मे स्नान करगें तो तुम्हारे पाप नित धुलते रहेंगे। अत : हे देवी आप मुत्यु लोक पर जाने की कृपा करे ।
गंगाजी ने भगवान विष्णु जी की बातो का उत्तर देते हुए
कहा कि भगवन ताप्तीजी मुझसे पहले धरातल पर
उपस्थित है और ताप्तीजी के तेज के सामने मेरा
प्रभाव कम हो जायेंगा । इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि पृथ्वी लोक धरातल पर जितने भी ताप्ती पुराण है , उन्हे मृत्यु लोग से बुलाकर स्वर्ग लोक तुम्हारे सामने सामने रख देते है ।
 इस कार्य से ताप्ती जी का प्रभाव तो कम नही
होंगा। किन्तु उसके महत्व को जानेंगे ही नही तो मानेंगे
कैसे । अत: स्वमेव ही उनका ध्यान व मान कम हो जायेंगा । कपिल मुनि की कृपा से तुम्हारा मान बढ़ते
जायेंगा । इस शर्त पर गंगा जी पृथ्वी पर जाने को तैयार हुई ।

तब भगवान विष्णु ने नारद जी और गंधर्व गण की को पृथ्वी लोक पर ताप्ती जी का अदभूत महात्म चुराने भेजा । तब नारद मुनि तथा गंधर्वगणों की टोली सहित सब लोग श्री ताप्ती जी के तट पर आये और संगीत के साथ लम्बे अंतराल  तक उनकी स्तुति की । उससे प्रसन्न होकर सूर्यपुत्री ताप्ती ने नारद मुनि और गंधर्वगणों की टोली को
दर्शन दिये और कहाँ आप सब किस लिये प्रार्थना कर रहे हो ! आपको तो कूछ भी असाध्य नही हैं ।
मूझे  बहुत आश्चर्य हो रहा हैं । हे देव ऋषि वेद गायन मॆ तत्पर बड़े मुनि आप मेरे पूज्य हैं ।
यदि आप मेरे प्राण भी माँगेगे वह भी दे दूँगी । तब नारद मुनी बोले हे देवी ताप्ती जो तुम्हे प्रिय हैं ,वह आप मुझे नही दे सकती । जो आपको प्राणों से अधिक प्रिय हैं , वही माँगता हूँ ।  हे देवी सूर्यपुत्री यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं ,तो तुम्हारा महात्म मुझे दे दीजिये तो आपकी कृपा होंगी ।
नारद जी के वजन सुनकर श्री ताप्ती जी बोली - हे देव ऋषि नारद जी यह महात्म दुर्लभ हैं फ़िर भी मैं तुम्हे दूँगी । नारद जी ने कपट मन से माँगा फिर भी श्री ताप्ती जी ने अपना महात्म दे दिया ,तब नारद मुनि और गंधर्वगणों की टोली सभी ताप्ती महात्म लेकर स्वर्ग गये और देवी गंगा जी के सामने पॄथ्वी लोक के सभी ताप्ती महात्म रख दिये । तब ब्रम्हपुत्री गंगा जी पॄथ्वी लोक पर आयी और राजा भगीरथ के सौ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ । बाद मॆ श्री सूर्यपुत्री ताप्ती जी को ज्ञात हुआ की उनका महात्म हरण गया तो श्री ताप्ती जी को क्रोध हुआ जिसके कारण ऋषि नारद को तापी पुराण चुराने की हत्या का पाप लगा और निस्तेज कुष्ठ रोग मुँह वाले हुये साथ हि सब धर्मों से बहिस्कृत हुये । श्री ताप्ती जी क्रोध मॆ अपने पिता सूर्यदेव से भी तेज हो गयी और देवऋषि नारद को कुष्ठ रोग और गंगा जी को अपने हि कुलवंश मॆ वधू बन कर आने तथा उसकी वंश बेल ना बढ़ पाने का श्राप दे गयीं । शनि भगवान की लाड़ली बहन श्री ताप्ती जी के क्रोध से देवी - देवता दानव और गंधर्व सभी डर गये ।
कही ऐसा ना हो कि उसकी क्रोधाग्नि मॆ एक बार फिर पॄथ्वी जलकर राख ना हो जाये इसलिये माँ पॄथ्वी अपना वजूद बचाने के लिये श्री ताप्ती जी के समक्ष खड़ी होकर  प्रार्थना करने लगी और कहने लगी हे देवी आपने हि मुझे सूर्यदेव के तेज से बचाया जिसके वजह से जल और जीवन सम्भव हुआ । आप हि क्रोधग्नि मॆ दहक उठेंगी तो मेरा तो वजूद हि नही रहेगा , जल जीवन दोनो समाप्त हो जायेंगा ।
 हे माँ ताप हारिणी मेरी कोख मॆ पलने वाले जीव - जन्तु आपके भाई मनु कि संतान का क्या होंगा । माँ पॄथ्वी कि प्रार्थना सुनकर सूर्यपुत्री ताप्तीजी ने अपने क्रोध  को  शांत किया ।
भगवान शिव कहने लगे हे पुत्र कार्तिकेय जब नारद मुनि कुष्ठ रोग मुख वाले ब्रम्हाजी के पास गये उस समय नारद मुनि को आते देख द्वार मॆ पर खड़े वायु देव ने आश्चर्यचकित हो तुरन्त ब्रम्हाजी के पास गये और बोले हे पितामह मुनि श्रेष्ट नारद कुष्ठ रोग वाले ब्रम्हलोक आ रहे हैं ।
तभी ब्रम्हदेव ने घ्यान किया और बोले श्री ताप्ती जी का महात्म हरण करने कि हत्या लगी हैं । मैं ऐसे अपवाद वाले पुत्र का मुख नही देख सकता हूँ । मैं समाधि मॆ जा रहा हूँ , तुम नारद मुनि से कहना कि इस समय ब्रम्हपिता के पास तुमसे मिलने का समय नही हैं । ऐसा कहकर ब्रम्हाजी बोले मेरी बनाई कृति का का नाश करने के लिये मुझसे पूछे बिना नारद ने जो किया और पाया हैं वह कोप से मनुष्य योनि पायेंगे । इस प्रकार ब्रम्हाजी समाधि मॆ बैठ गये ।
जब नारद मुनि आ गये ,तो वायुदेव ने नारद मुनि से कहाँ कि अभी ब्रम्हदेव के पास समय नही हैं । 
ऐसा सुनकर नारद मुनि ने ब्रम्हाजी के असमय समाधि जाने का विचार किया । नारद मुनि वहाँ से लौटकर मेरे पास आये पुत्र कार्तिकेय ! तुम्हारी माता पार्वती और मेरी स्तुति कि और  कहने  लगे ,  हे कैलाशनाथ  मैं दुष्ट भावना से हूँ  फिर भी आपकी शरण मॆ आया हूँ ।
 हे तीनो लोकों के स्वामी आप अंतर्यामी हो ! मुझ पर कृपा कर मुक्ति का कोई मार्ग बताये । तब मैने ध्यान द्रष्टि से सब कुछ जान लिया और मीठे वचनों मॆ कहाँ नारद तुम ताप्ती जी का पुराण हर कर लाये हो इसलिये तुम्हे कुष्ठ रोग हत्या लगी  हैं । यह किसी भी तीर्थ मॆ तप्तीजी के प्रभाव के बिना नही जायेंगी । हे नारद मैं ताप्ती जी के तेज और वेग को जानता हूँ ।
उसका कहाँ कल भविष्य को तय करेंगा । मैं स्वयं भी ताप्ती के जल का सेवन करता हूँ । अत :आप गंगाजी के साथ ताप्ती जी कि शरण मॆ जाईये । वह शरणागत पर दया करने वाली हैं । वह तुम पर जरूर प्रसन्न होंगी ।
इसके बाद नारद मुनि श्री ताप्ती उदगम मुलतापी आये और गंगाजी का स्मरण किया । नारद मुनि ने 12 वर्ष तक माँ ताप्ती जी का सेवन किया और कठोर तप किया । जिसके बाद माँ सूर्यपुत्री जी जी प्रसन्न हुई ।
माँ ताप्ती कि कृपा से कोप जल गया तभी आकाशवाणी हुई  की हे नारद मुनि आप पाप मुक्त हो गये हो ।
सूर्यपुत्री ताप्ती के तट पर जहाँ देवऋषि ने तप किया उसे नारद टेकडी के नाम से भक्तगण सुमिरन करते और जहाँ नारद मुनि प्रतिदिन ताप्ती स्नान करते थें उसे नारदकुण्ड के नाम से जाना जाता है । 
ताप्ती पुराण में उल्लेख मिलता है गल्टेश्वर शिव धाम जहाँ से कुछ दूरी माँ गंगा देवी ने ताप्ती जी कों प्रसन्न करने के लिए तपस्या की और गंगा जी नदी का रूप धारण कर ताप्ती जी में मिली जिसे सुरत वासी गल्टेश्वर महादेव के नाम से जानते है । 

संकलनकर्ता - रविन्द्र मानकर 

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