मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

मां ज्ञानेश्वरी महिमा

जब जब इस पृथ्वी पर असत्य बलवान होता है तब तब इस पृथ्वी पर भगवान ने अवतार लिया है।

ऋषि मुनियों, साधु संतो की इस पावन धरा पर धर्म की स्थापना और लोक कल्याण के लिए किसी ना किसी रूप मे ईश्वर का प्राकट्य होते ही आया है और इन पवित्र आत्माओ मे ईश्वर का ही साक्षात्‌ अंश समाया होता है।

आज के युग मे भी ब्रम्ह स्वरूप संत देवी ज्ञानेश्‍वरी माता जी अपनी चैतन्य ऊर्जा से सम्पूर्ण जगत मे सत प्रेम की धारा प्रवाहित कर रही हैं।

संत ज्ञानेश्‍वरी माता जी की चैतन्य वाणी से साक्षात ब्रम्हज्ञान का अवतरण हुआ है।

जिससे सम्पूर्ण मानव समाज का कल्याण हो रहा है।  

मंत्र, तंत्र, यंत्र चिकित्सा ,विविध गोपनीय रहस्यों के मर्मज्ञ, समस्त मूलभूत समस्याओ का माँ बगलामुखी अनुष्ठान से  निराकरण उपलब्ध कराने वाली संत देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामीजी का लक्ष्य है ,

पृथ्वी पर सत्‍य ,प्रेम की उपासना, आत्म जागरण, समस्त प्राणियो का आनंदमय जीवन,

ऐसा जीवन जो पारिवारिक, मानसिक ,शारीरिक ,आर्थिक आदि हर प्रकार के तनाव से मुक्त हो। 

इसलिए संत ज्ञानेश्‍वरी माता श्री पीतांबरा माँ बगलामुखी देवी और बाबा श्री महाकाल जी के सानिध्य मे विभिन्न प्रकार की दीक्षायें प्रदान करती हैं।

तो आईए प्रिय धर्म प्रेमी अनुरागी भक्तजनो माँ जगदंबा स्वरूप गुरु माता देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामीजी के अवतरण और ईश्वर प्राप्ति पश्चात मानव सेवा की सम्पूर्ण कहानी का अमृतपान करते हैं ।

बेहद कम आयु में माँ बगलामुखी और बाबा श्री महाकाल के प्रति भक्ति व प्रेम से हजारों लोगों के जीवन को सुखमय बनाने वाली गुरु माता का जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं है। आज हम आपको माँ ज्ञानेश्‍वरी जी की जीवनी बताने जा रहे हैं, उम्मीद करते हैं आपको जरुर पसंद आएगी।


संत ज्ञानेश्‍वरी देवी की माता रुकमणी देवी और पिता महंत सदगुरुदेव संत श्री डॉ.सत्यनारायण गिरी गोस्‍वामी जी महाराज हैं।

माता रुकमणी देवी बड़ी ही धार्मिक प्रवृति की महिला हैं।

वे स्वयं आध्यात्मिक प्रवचन देती रहीं ।

जैसे कि ,ऋषिअत्रीमुनी की धर्मपत्नी माता अनुसुईया चरित्र, श्री रामचरितमानस,माँ सती की कथा भक्त श्री ध्रुव चरित्र कथा ,प्रवचन की धारा प्रवाह करती रहीं। 

पिताश्री भी बाल्यकाल से हि ईश्वर भक्ति मार्ग मे अग्रसर रहे। ईश्वर भक्ति मे इतने लीन होते रहे कि, जो भक्ति सतयुग , त्रेतायुग ,द्वापरयुग , मे देवताओ को दुर्लभ थी वह भक्ति इस कलयुग के कलिकाल मे पूज्य पिताश्री को यह भक्ति प्राप्त हुई। जिस भक्ति का नाम अखंड ब्रम्ह ध्यानालीन समाधि है, जो देवताओ मे केवल भगवान शिवजी को ही प्राप्त थी। अखण्ड ब्रम्ह ध्यानालीन समाधि केवल शिवजी की ही लगती थी। 

इनके पूज्य पिताश्री की प्रथम समाधि सन 1978 मे ग्राम बजरवाडा तहसील बन्डोल जिला सिवनी म.प्र. मे  3 माह 13 दिन की अखंड ब्रह्म ध्यानालीन समाधि दिन मंगलवार दोपहर  3:30 बजे संपन्न हुई। 


21 सितंबर सन 1980 दिन रविवार को पिताश्री और माताश्री की ईश्वर भक्ति की कृपा से ही,

देवी ज्ञानेश्‍वरी जी का अवतरण हुआ।


बेटी ज्ञानेश्‍वरी के जन्म के 3 माह बाद ही पूज्य पिताश्री तपस्‍या करने हिमालय चले गए उसके उपरांत माता रुकमणी देवी ने ही ज्ञानेश्‍वरी के लालन पालन ,भरण पोषण करते रही । 

ज्ञानेश्‍वरी जब पाँच वर्ष की हुई तो उनका धार्मिक ग्रंथो के प्रति रुझान बढ़ने लगा ।

माता रुकमणी देवी को उनके शिष्य अपने अपने गाँव धार्मिक आयोजनों मे लेकर जाते थे तब उनकी लाड़ली बेटी ज्ञानेश्‍वरी भी माँ के साथ रहकर उनके प्रवचन सुना करती थी और धार्मिक कार्यक्रमो मे सुन्दर सुन्दर भजन सुनाया करती थी ।


जब देवी ज्ञानेश्‍वरी 6 से 7 वर्ष की हुई तो माता रुकमणी देवी के साथ ही श्री राम चरित मानस सुन्दरकाण्ड पाठ किया करने लगीं ।

धीरे-धीरे वक्त गुजरते गया, ज्ञानेश्‍वरी की भजन सत्संग की ओर अधिक रुचि बढ़ने लगी ।

पाँच वर्ष से ही ज्ञानेश्‍वरी की भगवान शिव जी से ऐसी लगन लगी की,निरन्तर उनके ध्यान में ही मग्‍न रहने लगीं ।


आगे चलकर देवी ज्ञानेश्‍वरी ने ज्ञान दीक्षा श्री काशी धर्म पीठाधीश्वर जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज से संपन्न ली और अपने पूज्य पिताश्री संत श्री डॉ.सत्यनारायण गिरी गोस्‍वामी जी से श्री ब्रम्हास्त्र विद्या माँ बगलामुखी की दीक्षा लीं । 


देवी ज्ञानेश्‍वरी ने भगवान शिव जी का कठिन जप, तप कर श्रीशिव भक्ति की अपार कृपा से श्री ब्रम्हास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। और इसके साथ ही शिक्षा अध्ययन भी करते रहीं ।


देवी ज्ञानेश्‍वरी

माँ बगलामुखी,और बाबा श्री महाकाल जी की भक्ति मे पूर्ण समर्पित होकर भक्त जनों के भविष्य का सटीक फलादेश करने लगीं।

धीरे धीरे भक्तो के जीवन का सटीक फलादेश जन जन तक पहुचने लगा। और सम्पूर्ण प्रदेश मे देवी ज्ञानेश्‍वरी की ख्याति फैलने लगी।

जब देवी माँ ज्ञानेश्‍वरी 15 वर्ष की हुई तो माँ बगलामुखी अनुष्ठान ,पूजन आदि करना आरंभ किया।

गुरु माँ देवी ज्ञानेश्‍वरी जी से उनके शिष्य परिवार सुख समृद्धि हेतु  माँ बगलामुखी अनुष्ठान करवाने लगे।

सन 1995 से श्री ब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी अनुष्ठान पूजन से देवी ज्ञानेश्‍वरी की ख्याति दूर दूर  बढ़ने लगी।


बाबा श्री महाकाल जी की अपार कृपा से मांँ भगवती श्री ब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी जी का सानिध्य प्राप्त हुआ,तथा माँ बगलामुखी देवी जिला सिवनी मध्य प्रदेश में स्वयं देवी ज्ञानेश्‍वरी जी को अधिक प्रेरणा देने लगीं कि वे स्वयं यहां स्थापित होंगी तभी देवी ज्ञानेशवरी जी ने माँ भगवती ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुखी देवी जी की सन 2008 में भव्य प्राण प्रतिष्ठा कराई। माँ बगलामुखी देवी जी की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले महान तपस्वी संत,जोकि अखंड ब्रह्म ध्यानालीन समाधिष्ठ दिव्‍य महापुरुष महंत सदगुरुदेव संत डॉ. श्री सत्य नारायण गिरी जी महाराज श्री जी के कर कमलों द्वारा मैया की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई।

तभी से माँ भगवती के मंदिर में दूर-दूर से भक्तगण आने लगे तथा संपूर्ण भक्त जनों के सर्व कार्य सिद्ध होने लगे तत्पश्चात देवी ज्ञानेश्‍वरी माँ भगवती बगलामुखी देवी की आराधना साधना कर माँ बगलामुखी की अपार कृपा से जन कल्याण हेतु जनमानस के शुभ शुभ कार्य करने लगीं ।माता रानी की भक्ति का प्रकाश ऐसे फैलने लगा के भक्तों के घोर कष्ट दूर होने लगे।

मैया के जप ,तप ,पूजा ,अनुष्ठान के माध्यम से लोगों की सारी परेशानियां तत्काल ही दूर होने लगीं ,

जैसे= बहुत सारे नि:संतान माताओं की गोद में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,कुछ भक्तों के असाध्य रोग ठीक होने लगे ,कुछ कन्याओं और बालकों के विवाह संस्कार में विलंब हो रहा था बाधा आ रही थी ,मैया की कृपा से शीघ्र ही उनके विवाह हो गए , इस शुभ और पुनीत कार्य के चलते देवी मैया बगलामुखी देवी के भक्तों के करुण वंदन आग्रह पर देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामी ने अनेक शिष्य और शिष्‍याऐं बनाई ,और अपने शिष्यों को गुरु शिष्य की परंपरा तथा ईश्वर और अंश की परंपरा को भली-भांति समझाने का प्रयास करते रहीं ।अपने शिष्यों को यह दुर्लभ ज्ञान देती हैं। जैसे = राज ऋषि, ब्रह्म ऋषि ,और देव ऋषि की परंपरा को भलीभांति समझाते हुए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया करती हैं।


 देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामी ने स्वयं के लिए परिवार का ,और संसार का ,माया मोह त्याग कर संपूर्ण जन कल्याण हेतु यह दुर्लभ शुभ कार्य करने का संकल्प लिया है। जिसे वे अपने मन ,क्रम ,वचन से यथासंभव निभा रही हैं। तथा आप अपने शिष्यों को गुरु और शिष्य की परंपरा क्या है इस भाव को बड़े ही शुमधुर दिव्य वाणी से अपने शिष्यों को समझाते हैं कहती हैं भक्तों गुरु स्वयं पूर्ण रूप होता है ,जो पूर्ण से भी परिपूर्ण होता है और पूर्ण के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता सद्गुरु स्वयं दिव्य प्रकाशवान होता है ,जो कि अपने शिष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश में विलीन कर अपने शिष्य को सद्‍ज्ञान से परिपूर्ण प्रकाशित कर देता है। अर्थात "गु" शब्द अंधकार का है ,और "रू"शब्द प्रकाश का है ,इसलिए जो सद्गुरु अपने शिष्‍यों के भीतर अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर उसका जीवन अपनी सद्‍भक्ति के प्रभाव से एवं स्वयं की दिव्य वाणी से भक्तों के जीवन को प्रकाश वान कर दे वही "गुरु" है। वैसे तो प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सद्‍गुरु कृपा अथवा संत कृपा का बहुत विशेष महात्म्‍य है।

भक्‍तों भगवान की कृपा से जीव को मानव का शरीर मिलता है ,और गुरु कृपा से ही भगवान की प्राप्ति होती है । यह गुरु कृपा चार प्रकार से होती है स्मरण से ,दृष्टि से ,शब्द से ,और स्पर्श से गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। वैसे प्रत्येक मनुष्य को गुरु दीक्षा अवश्य लेना चाहिए गुरु शरण में स्वयं को जरूर ले जाना चाहिए और स्वयं की गुरु दीक्षा हो जाने के बाद ये ना सोचें कि मैं गुरुमुखी हो गया अब मेरा कल्याण निश्चित ही होगा तो ऐसा नहीं है।

गुरु दीक्षा पश्चात गुरु के वचनामृत को श्रवण पानकर अपने इस मानव जीवन में उतारने एवं गुरु के बताए मार्ग पर चलने से जीव का कल्याण होता है। इस प्रकार से अपने धर्मपुत्र स्वरूप शिष्यों को शब्द ज्ञान देती रहती हैं इसी सद्‍ज्ञान के प्रभाव से उनके अनेक शिष्य बनते गए अनेक जिलों से भक्त आते और अपनी गुरु माँ से सद्‍ज्ञान ग्रहण कर अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को कृतार्थ करते हैं सद्गुरु की कृपा के बारे में समझाते हुए देवी ज्ञानेश्‍वरी अपनी इष्ट देवी माँ बगलामुखी के बारे में अपने शिष्यों को समझाती हैं। भक्तों विद्यायें अनेक हैं परंतु दसों महाविद्या का स्‍थान श्रेष्ठ है।और इन दसों महाविद्याओं में भी सर्वश्रेष्ठ विद्या हैं ,वे श्रीब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी हैं। मनुष्य के बहुत ही कठिन परिस्थिति में ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुखी को याद किया जाता है तथा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं ब्रह्मास्त्र विद्या से कठिन से कठिन परिस्थिति में फंसे मनुष्य को शीघ्रता पूर्वक छुटकारा मिलता है जिला सिवनी में माँ बगलामुखी दरबार से अनेक भक्तों की मनोकामना पूर्ण हुई है नि:संतानों की संतान प्राप्ति हुई अविवाहितों के विवाह कार्य संपन्न हुए भक्‍तों को असाध्य रोगों से मुक्ति मिली।

तो भक्तों माँ बगलामुखी देवी के दरबार में और गुरु माता के शरण में सर्व संकटों से ,सर्व बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

तो आइए हम सब मिलकर माँ बगलामुखी देवी माँ की शरण में चलते हैं और आज से ही हम अपने इस दुर्लभ ,देह मानव जीवन की नई शुरुआत करते हैं।

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