आदिशक्ति विश्व माता श्री रेणुका देवी की महिमा अपरम्पार है । धन्य है वह माता जिनके गर्भ से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु हरी ने परशुराम रूप में जन्म लिया ।
रेणुका भवानी माता के भारतवर्ष में सैकड़ो शक्तिपीठ विद्यमान है जहाँ माता ने अपने भक्तो की पुकार पर अनेक लीलाएँ रची । माँ रेणुका देवी जिन्हें भारत वर्ष के घर - घर में कुलदेवी के रूप में पूजा जा रहा है जिससे माता को कूलस्वामिनी नाम से पुकारा जाता है । प्रिय भक्तजनों भिण्ड जिले के जमदारा गांव में माँ रेणुका देवी कैसे आयी और माँ रेणुका देवी ने इस जमदारा की पावनधरा पर कैसे कैसे करिश्में दिखाए तो चलिए माँ रेणुका की इस मानसिक यात्रा का लाभ उठाने हमारे । माता रेणुका का जन्म से पूर्व का नाम अदिति था । माँ अदिति ने सैकडो वर्ष तक भगवान शिव शंकर की कठोर तपस्या की । तब देवी अदिति की तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे दर्शन दिये और कहने लगे हे देवी आप आदिशक्ति के रूप में कन्नौज के रेणु (प्रसेन्न्जित ) राजा के जन्म लेकर पाँच पुत्रो की माता का सुख प्राप्त करोगी । आपके एक पुत्र के रूप में स्वयं श्री विष्णु भगवान जी अवतार लेगे जिससे आपका एकवीरा नाम विश्व प्रख्यात होगा । आप पर श्रध्दा रखने वाले भक्तो की रक्षा के लिए आप जहाँ जहाँ प्रकट होगी दर्शन देकर भक्तों उद्धार करोगी वहां वहां आप शक्ति स्वरूपा के रूप में सदा सदा के बस जाओगी । वहां शक्तिपीठ रूप में अनंतकाल तक आपकी पूजा होती रहेगी । आपकी महिमा का भक्तजनों पर इस तरह प्रभाव होगा की भक्त आपको कुलदेवी के रूप में पूजन करेंगे ।
कुछ समय बाद राजा रेणु प्रसेन्न्जित के घर छोटी पुत्री के रूप में रेणुका देवी का जन्म हुआ। राजा रेणु ने अपनी दो सुंदर पुत्रियो में एक का नाम नैनुका तथा दूसरी पुत्री का नाम रेणुका रखा । कहते है की एक बार राजा ने अपनी दोनो पुत्रियों से प्रश्न किया कि वो किसका दिया अन्न ग्रहण करती है। जिसके जवाब मे नैनुका ने कहा कि वह अपने पिता का दिया अन्न ग्रहण करती है। जबकि रेणुका ने जवाब दिया कि वह भगवान का दिया और अपने नसीब का अन्न ग्रहण करती हूँ। रेणुका के जवाब से राजा रेणु अप्रसन्न हो गए और उन्होने रेणुका को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा ने अपनी बडी पुत्री नैनुका का विवाह बडी धूम-धाम से एक पराक्रमी राजा सहस्त्रबाहु से कर दिया और छोटी पुत्री रेणुका को सबक सिखाने के लिए रेणुका का विवाह एक सीधे साधे तपस्वी ऋषि जमदग्नि से कर दिया। देवी रेणुका राजसी ठाठ-बाट मे पली बढी थी। फिर भी उसने ऋषि जमदग्नि को अपना पति परमेश्वर स्वीकार किया और तन मन से उसकी सेवा करने लगी। ऋषि जमदग्नी और माँ रेणुका अपने परिवार के साथ किसी कारणवश हिमालय से मध्यप्रदेश के जानापाँव मे आ गये । उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ गया, तब सभी लोग इन राजाओं द्वारा त्रस्त हो गये । ब्राह्मण व साधु असुरक्षित हो गये। धर्म कर्म आदि के कामों में छत्रीय राजा व्यवधान उत्पन्न करने लगते थे। ऐसे समय में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न करते हैं, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं । कुछ समय बाद उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से उन्हें पांचवे पुत्र के रूप मे वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन परशुराम का जन्म हुआ ।
परशुराम जी भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजीद्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये
ऋषि जमदग्नि की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थीं। वह अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठावान थीं। महर्षि जमदग्नि जी अपने परिवार के साथ जानापाँव में रहते थे इसी पावन भूमि पर परशुराम जी जन्म हुआ । जानापाँव से 55 कि .मी दूरी स्थित महेश्वर नगरी मे राजा सहस्त्रार्जुन का राजमहल था जिसके द्वारा ब्राम्हणों पर किए जा रहे अत्याचारो से दुःखी होकर ऋषि जमदग्नि ऋषि ने अपने गुरुकुल आश्रम कें शिष्यों एवं अपने पांच पुत्रो तथा धर्मपत्नी रेणुका कें साथ भिण्ड जिले के जमदारा गाँव पर आकर रहने लगे । जमदग्नि ऋषि ने जमदारा आश्रम से होकर सिन्धु नदी तक एक गुफा का निर्माण कराया था ।
आश्रम से होते हुए एक सुरंग सीधी सिन्धु नदी पर जाती थी
आश्रम से होते हुए एक सुरंग सीधी सिन्धु नदी पर जाती थी जहाँ से रेणुका माता कच्चे मिट्टी के घडे मे जल भर कर लाती थी रेणुका माता , नाग का आला बना कर कच्चा घडा सिर पर रखकर जल लाती , जिस जल से स्नान करके ऋषि जमदग्नि मुनि हवन यज्ञ पूजा आरम्भ करते थे।। कहते है एक बार जमदारा के आश्रम से माँ रेणुका यज्ञ के लिये जल लेने के लिए इसी गुफा से सिन्ध नदी पर गई थी , जहाँ पर गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखकर रेणुका उस दृश्य पर ध्यान मग्न हो गई थी , जिसके वजह से जमदग्नि जी कों यज्ञ हवन में देरी हो गई । इस तरह जल लाने में विलंब हो जाने से यज्ञ का समय समाप्त हो गया था तब मुनि जमदग्नि ने अपनी योग शक्ति द्वारा पत्नी के मर्यादा विरोधी आचरण को देखकर अपने चार पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी, उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को माँ की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। पिता की आज्ञा स्वरूप परशुराम ने माँ का वध कर दिया । परशुराम जी की पितृ भक्ति देख कर पिता जमदग्नि उसे वर माँगने को कहते है तब परशुराम जी पिता से वरदान माँगते हैं कि वह उनकी माता को क्षमा कर उन्हें जीवित कर दें तथा सभी भाईयों को भी चेतना युक्त कर दें । तब जमदग्नि रेणुका माँ को अपने तपोबल से जीवित कर देते है और चारो बेटो को भी श्राप मुक्त कर देते ।
जमदारा की भूमि पर माँ रेणुका का सिर काटने से बहे रक्त कों आज भी देखा जा सकता है जो आज भी एक कीट पत्थर कें रूप मे माँ रेणुका मन्दिर मे विराजमान है वही जमदारा से 40 कि .मी दूरी पर स्थित आलमपुर स्थान पर माता रेणुका कें सिर कि पूजा कि जाती है। मान्यता है की माता रेणुका का सिर काटने कें दौरान जमदारा से आलमपुर आकर गिरा था । रेणुका माता की बड़ी बहन सहस्त्रार्जुन की पत्नी थी । माता रेणुका की सुंदरता पर मोहित होकर सहस्त्रार्जुन देवी रेणुका को पाने कें लिये अनेक प्रयत्न करने लगा । इस तरह सहस्त्रार्जुन ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करना करना आरम्भ कर दिया , कुरुकुल आश्रमों को तोड़ना , आग लगाकर जलाना और आश्रमों मे स्थित धन सम्पदा को लुटकर राजकीय खजाने मे डालना । सहस्त्रार्जुन ने एक बार ऋषि जमदग्नि आश्रम की 200 गाए चोरी कर ली वही आश्रम कुरुकुल पर एक बड़ा कर भी लगाना आरम्भ कर दिया । इसी बीच आचार्य वशिष्ट जी का जमदग्नि आश्रम मे आगमन हुआ जो गुरुकुल मे पढ़ रहे विद्यार्थियों एवं जमदग्नि परिवार कें भरण पोषण की पूर्ति कें लिये कामधेनु गाय महर्षि जमदग्नि जी को भेंट कर गए। ऐसे अत्याचारों को देखकर परशुराम भगवान ने पापियों को सजा दिलाने कें अस्त्र उठा लिये । किन्तु पिता कें विचारो कें विरूद्ध जाने की वजह से उन्हे आश्रम छोड़कर जाना पड़ा ।
एक बार सहस्त्रार्जुन ने अपने चार पुत्रो को जमदग्नि ऋषि के आश्रम में साधुओं कें रूप मे जाकर परशुराम का पता लगाने को कहाँ , महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो को साधुओं कें रूप आये मेहमान समझकर स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी | महर्षि ने उस गाय के मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते चारो पुत्रो के भोजन का प्रबंध कर दिया | कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो को ऋषि जमदग्नि के आश्रम कें आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसने मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी।
सहस्त्रार्जुन को जब चारो पुत्रो ने कामधेनु की सच्चाई बताई तो उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर कामधेनु को ले अपने राजा दरबार चला गया और जमदग्नि मुनि पर तलवार से कई बार प्रहार भी किया ।
सहस्त्रार्जुन कें पुत्रो ने कामधेनु से मनचाहे सामग्री मांगी किन्तु कामधेनु माता कें कुछ भी प्रदान नही किया ऐसे मे राजकुमारो को लगा की जमदग्नि ऋषि ने उन्हे असली कामधेनु नही दी है इससे क्रोधित होकर चारो राजकुमार जमदग्नि आश्रम आये तब देवी रेणुका के सामने ही उसके पतिदेव जमदग्नि की हत्या कर दी और माँ रेणुका रोते रोते परशुराम परशुराम पुकार रही थी । तब माँ रेणुका ने परशुराम को बताया की सहस्त्रार्जुन के बेटो ने तुम्हारे पिता की हत्या की है । यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे।
तभी एक ऋषि का आगमन हुआ और उन्होने माँ रेणुका और परशुराम को बताया की सहस्त्रार्जुन के पास मृत्यु संजीवनी है अगर तुम उसे मारकर मृत्यु संजीवनी वापस लाते हो तो तुम्हारे पिता पुन : जीवित हो जायेगे ।
सहस्त्रार्जुन का वध करने कें लिये परशुराम जी मऊ कें किले की गए इस तरह भयभीत होकर सहस्त्रार्जुन ने जमीन मे छुपने की योजना बनाई जो परशुराम जी को ज्ञात हुई तो उन्होने मऊ क्षेत्र की सारी जमीन ही पलटी कर दी । आज मऊ मे जमीन खुदाई के दौरान उल्टी वस्तुएँ दिखाई पड़ती है वही यहां आदिकाल से शवों को उल्टा लेटाकर हि जलाया जाता है । भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन का वध कर मृत्यु संजीवनी को अपने साथ लेकर आते है जिसके प्रभाव से जमदग्नि जीवित हो जाते है । तब ऋषि जमदग्नि माँ रेणुका से कहते की देवी आपकी सभी परीक्षायें पूर्ण हुई । आप सदा के इस धरती लोक के वासियो के यहाँ निवास करोगे ।
कहते है की भिंड जिले का मौ क्षेत्र में दैविक शक्तियो का सदैव वास रहा हैं।साथ ही यह क्षेत्र अपने भीतर भगवान परशुराम का इतिहास समेटे हुए है। जिला मुख्यालय से 64 किलोमीटर दूरी पर जमदारा गांव है। कहते है की ऋषि जमदग्नि आश्रम के स्थान पर पहले एक गुफा हुआ करती थी। जो जमदारा गांव से स्योंढ़ा गांव तक जाती थी। जिसकी लंबाई 9 किलोमीटर थी। लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से करीब 50 साल पहले गुफा को बंद कर दिया॥
जो भी भक्त माँ रेणुका देवी ही यह पावन कथा श्रध्दा के साथ सुनता है और माता के भक्तों कों सुनाता है माँ रेणुका देवी की कृपा से उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते है ।
संकलनकर्ता - श्री रविन्द्र कुमार मानकर
2 टिप्पणियां:
इस आलेख को पढ़कर अत्यंत हर्षातिरेक की अनुभूति हुई। इस पुनीत कार्य के लिए आपको धन्यवाद। हमारा गांव अभी तक उन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका है जिसका कि वह हक़दार है। माँ रेणुका और भगवान पराशुराम हमें और प्रोन्नत करें ऐसी मेरी कामना है।
माता की कृपा रही तो बहुत जल्द हम सम्पूर्ण माहात्म्य लेकर आएंगे
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