गुरुवार, 7 नवंबर 2019

गौमुख की पहली यात्रा और मां अम्बादेवी दर्शन में हुआ चमत्कार


माँ शेरावाली की महिमा बड़ी निराली होती हैं भक्तों , पहाड़ा वाली लाटा वाली माँ के सच्चे भक्त जब भी माँ अम्बे के दर्शन के लिए उसके धाम जाते हैं तो माँ अम्बे की कृपा से कोई चमत्कार होता ही हैं ।
माँ अम्बे दरबार तक आने वाले रास्ते के सारे विघ्नों कों दूर करने के लिए माँ अम्बा कोई कोई सहायक उनका वाहन भेज ही देती हैं । मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के धारूल गाँव में विराजि मां अम्बादेवी शक्तिपीठ से जुड़ी कई रहस्यमई कहानियां जुड़ी हैं । यहां मनुष्य और शेर एक साथ रहते थे यह सब शेरोंवाली मां की कृपा से ही हो पाया ।

ऐसी महिमा हैं शेरोंवाली माँ की पहाड़ा वाली माँ अम्बे की । दुनियाँ में कई पहाड़ावाली माँ के सिद्धपीठ हैं लेकिन धारूल गाँव में स्थित गुफावाली माँ अम्बादेवी के मंदिर से जुड़े हजारो रहस्य हैं जो भक्तों कों उस गुफा वाले दरबार की ओर बुलावा भेजते हैं ।
सतपुड़ा के घने जंगलो में विराजि माँ अम्बा के दरबार आने का रास्ता जोखिमों से भरा हुआ हैं । हिडली से अम्बादेवी  रास्ता जंगल की लंबी पैदल चढ़ाई से होकर गुज़रता हैं ।
आईये इस दीपावली पर अम्बे दरबार की यात्रा में हुए चमत्कार की कहानी आपको बताते हैं ।
मेरे आठनेर के मित्र शैलेंद्र कुमार के साथ मैं रविन्द्र दिन के 12 बजे के लगभग अम्बादेवी क्षेत्र में स्थित भित्तिय चित्रो कों देखने के लिए निकले थे ।



अम्बादेवी जाते हुए सातकुण्ड गाँव के पास एक दादा रोड़ के किनारे बेहोशी की हालत में सोए हुए थे हमने सोचा कई इनके ऊपर कोई गाड़ी नहि चला दे इसलिए उन्हे हम हमारे साथ गाड़ी पर बिठाकर उनके गाँव की ओर ले गए । दादा कों उनके बताए गाँव कों छोड़ने के लिए हमे एक कि.मी हमारे मार्ग से विपरीत दिशा में जाना पड़ा । दादा कों उनके घर के सामने छोड़ने के बाद हम पुनः हमारे अम्बादेवी मार्ग पर आए और आगे बढ़ने लगे ।
लगभग 2:30 बजे के करीब हम नड़ा गाँव पहुंचे । वहां के एक चौराहे पर बैठे लोगों से गौ मुख की दूरी पूछी तो किसी ने बताया की एक कि .मी के करीब हैं ।


 हमे लगा पास में होगा वहां से आकर हम भित्तिय चित्रो की गुफा देखने जाएंगे । इसलिए वहां जाने के लिए तैयार हो गए । तभी वहां एक लड़का हमसे पूछने लगा कि भईया मूझे भी गौ मुख दर्शन कों जाना हैं क्या आप मूझे साथ लेकर चलोगे । हमें भी रास्ता नहि पता था इसलिए हमने उसे हमारी मोटरसाईकल पर बैठा लिया । नड़ा गाँव से नदी कि ओर चलते गए । आगे का रास्ता बहुत खराब था वहां नदी में बड़े बड़े पत्थर थे  । इसलिए गाड़ी कों नदी में एक अच्छी जगह खड़ा करके उसको लॉक कर दिया । हम नदी होते हुए गौमुख शिवधाम की ओर आगे बढ़ने लगे । आगे वह सारथी और शैलेंद्र भाई और पीछे पीछे मैं चल रहा था । कुछ दूर आगे चलने के बाद वह झरने जैसा गौ मुख आया जहाँ पत्थरो के बीच से पानी के तेज धाराएँ आ रही थी लेकिन पानी कहाँ से आ रहा पता नहि चल रहा था । हमने उस स्थान के वीडियो बनाए और फोटो खीची उसके बाद आगे बढ़ने लगे ।
नदी के बड़े बड़े पत्थरो के बीच रूके हुए पानी में आदिवासी लोग मछलियां पकड़ते नजर आ रहें थे । हम नदी पार कर चूके थे,  जंगल की पहाड़ियो चढ़ते हुए आगे बढ़ते जा रहें थे 





नड़ा गाँव से 1 कि .मी की दूरी तय कर चूके जिसके बाद
हनुमान जी एक मंदिर जंगल के बीच में दिखाई पड़ा और उसके नीचे एक गुफा थी जिसमे हमने माँ दुर्गा की प्रतिमा के दर्शन किये और हनुमान जी का आशीर्वाद लेकर आगे का रास्ता तय करने लगे । उसके बाद हमारे रास्ते में एक छोटी नदी आयी जिसमे कुछ पानी रुका हुआ था वही भालू जैसै जानवर की खोपड़ी पड़ी हुई थी ।









इस तरह मैंने मन में शिव भगवान का सुमिरन किया और इनसे प्रार्थना की,  प्रभु मूझे आगे का रास्ता बताऒ ताकि आपके दर्शन हो सकें । इसके बाद पत्थरो कों पकड़कर मैंने आगे कदम बढाए , नीचे बहुत गहराई थी , हाथ पीसला तो शायद हड्डी पसली टूट जाएगी इसलिए ओम नमः शिवाय जब करते शिव कों याद करते आगे बढ़ रहा था ।


 शिव भगवान की कृपा से आखिर मार्ग मिल गया और मैं गौ मुख के कुण्ड के समीप पहुँच गया । शिव कुण्ड में एक लोहे की एक सीढ़ी लगी हुई थी जिसके सहारे कुण्ड में उतरते हैं । कुण्ड में थोड़ा बहुत पानी था और एक नागदेवता की प्रतिमा विराजमान थी । नागदेवता जी की मूर्ति के ऊपर नागमनी रखी हुई थी जो किसी धातु की बनाई हुई थी ।

 इस कुण्ड में यवतमाल के नेताजी नगर दारव्हा रोड़ के विक्रम गुलाब हातागड़े नामक एक परिवार के नामो की सूची का बोर्ड लगा हुआ हैं । मेरे मित्र शैलेंद्र कुमार की ईच्छा थी की नागमणि कों छुए इसलिए मैंने उन्हे कहाँ की पहले ओम नमः शिवाय का जाप करे फिर उठाये । ओम नमः शिवाय का जप करने के बाद हम दोनो ने नागमणि के दर्शन किये । इसके बाद मैंने एक -  दों उस गुफा में शिव जी के भजन गाए । शिव गुफा में भजन कीर्तन करने से मन कों एक अलौकिक आनंद प्राप्त होता हैं ।
अब हम तीनों ने नागदेव भगवान की प्रतिमा कों प्रणाम किया और शिव जी का आशीर्वाद लेकर वहां से हम पुनः वापस आने लगे । इसके पास हनुमान मन्दिर के पास से नीचे उतरने के बाद







हमने नदी के समीप गौमुख शिवधाम के दर्शन किये । इसके बाद हमारे साथ एक गाईड भाई था उसको छोड़ने के लिए नड़ा गाँव से महाराष्ट्र अम्बाड़ा गए । अम्बाड़ा पहुचने के बाद मेरे एक सिस्टर वहां रहती थी उसके घर गए वहां से रात्री 8 बजे भोजन करने के बाद हम अम्बादेवी मन्दिर धारूल के लिए निकल पड़े । रात्री के करीब 9 बजे हम छोटी अम्बा माई  धाम पहुंच गए । वहां मैंने देवी अम्बा माँ के दर्शन किये और वहां के पुजारी मुकेश महाराज से बात की । मुकेश महाराज गूंगे हैं मूझे संकेत दे रहें की कोई शराबी यहां आ कर सोया हुआ था । इसके बाद वहां की दुकान हम बैठ गए । रात्री अधिक हो गई थी इसलिए हम ना गाँव वापस आ सकें और ना जंगल होते हुए गुफावाली अम्बादेवी माँ के दर्शन के लिए जा सकें । इसलिए वहां ही विश्राम करने का निर्णय लिया वैसे भी जंगल की लम्बी चढ़ाई से बहुत थक चूके चूके थे । इसके बाद शैलेंद्र भाई और मूझे नींद आ गई ।
प्रातः 4 बजे हमारी नीन्द खुल गई , इसके बाद हम लोग दोनो भाई बड़ी अम्बादेवी माँ की यात्रा के लिए जंगल के ओर चलने लगे । जैसै ही हम अम्बादेवी के रास्ते आगे चलने लगे तभी अचानक कही से हमारे पास एक काला कुत्ता आ गया ।




हमारे साथ वह कुत्ता भी अम्बा माई के घने जंगलो से होकर माँ अम्बा के धाम की ओर चलते जा रहा हैं ।
हम जहाँ रूकते वहां कुत्ता भी रुकता और हम चलते तो वह कुत्ता भी चलता था । हमने कई जगहो पर उस सारथी कुत्ते के साथ सेल्पी फ़ोटोस भी खीची । रात के अंधेरे में मोबाईल के flashlight के सहारे हम माँ अम्बे से मिलने चले जा रहें हैं । सुबह 5 बजे के करीब अम्बादेवी शक्तिपीठ के प्रवेश द्वार पर हम पहुंचे और माता अम्बा कों प्रणाम किया ।




हम दोनो भाई नहाने के लिए नीचे नदी की तलहटी में उतरे वहां हम लोगों ने स्नान किया । नीचे नदी के किनारे पेड़ो पर बन्दरो का इस पेड़ से उस पेड़ पर कूदना और उछलना चल रहा था  ।। माता के दर्शन के लिए अब मैं उत्सुक हो चुका था इसके बाद माँ के दर्शन लिए गुफा की ओर बढ़ने लगा ।


गुफा के प्रवेश द्वार के सामने मैं सुबह 6 बजे उपस्थिति हो चुका था । तपस्वी मंगला देवी से आशीर्वाद लेनें के बाद मैंने वहां के पुजारी तलाश की ताकि जल्दी से वे मां अम्बा के मन्दिर के पठ खोले और मैं मां के दर्शन कर सकूं । वहां पर तब आठनेर के सन्दीप सोनी से मुलाकात हुई जो वहां रात्री कों रूका हुआ था । सन्दीप सोनी मां अम्बा देवी का सच्चा भक्त नहि हैं क्युकी मैंने कई बार आजमाया हैं , सन्दीप ने कई बार माँ अम्बा के नाम से झूठी कसमे खाई , मैंने इतना भी देखा हैं की सन्दीप इधर की बाते उधर और उधर की बाते इधर करने में ही बहुत जीवन व्यर्थ गवाया । सन्दीप मां अम्बा मन्दिर की चाबी लेकर आया फिर मैं और शैलेंद्र भाई मां अम्बा दर्शन के लिए गुफा में प्रवेश किया । मां अम्बा के मन्दिर में प्रथम दीपक लगाया और मां अम्बादेवी की आरती की ।
मां अम्बादेवी की पूजा अर्चना करने के बाद हम दोनो ने मां अम्बा देवी के दर्शन का वीडियो शूट किया और कुछ फ़ोटोस निकाली ।








 मां अम्बा का चेहरा हमारे आतें ही प्रसन्नता से दिखने लगा । अम्बा मन्दिर चोरी के बाद बहुत से सच्चे भक्तों ने मां अम्बा का विग्रह अपने घर पर स्थापित कर मन्दिर आना बहुत कम कर दिया । वही माता के भक्त मां से मन्दिर होने वाली गतिविधियो से नाराज हैं इसलिए मूझ जैसै मां अम्बा पर अटूट श्रध्दा और आस्था रखने वाले लम्बे अंतराल के बाद आते हैं । इस तरह मां अम्बा दरबार की परिक्रमा करने बाद हम लोग परसादी लेकर जाने लगे । तभी सन्दीप कहने लगा की  रविन्द्र भाई थोड़ा रुकिए मैं चाय बना रहा हु । आप चाय पीकर ही घर जाइये । मैंने सन्दीप से कहाँ भाई  मैं मां अम्बा के दर्शन करने आया हु , मेरी मां से मिलने आया था । आप ही चाय पीजिए , खाना खाइए ।






















इसके बाद हम अम्बादेवी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर वापस आए जहाँ हमारे साथ आया सारथी कुत्ता बैठा हुआ था । शैलेंद्र भाई और मैंने फिर भैरव महाराज के मंदिर जाकर उनके दर्शन किये हमारे साथ वहां भी वह कुत्ता सारथी आ गया । अब मैंने अम्बा माई की महिमा के कुछ वीडियो बनाए और तस्वीरे खीचते हुए छोटी अम्बा माई की ओर जाने लगे ।
इस तरह हमे नीचे पहाड़ी उतरते हुए 8 बज चूके थे । हमारे साथ वह काले कलर का कुत्ता सारथी आगे चलते जाता और हम उसके पीछे चलते जाता ।










इसके बाद हम छोटी अम्बा माई पहुंचे वहां मां अम्बा के दर्शन किए और माता का आशीर्वाद प्राप्त किया । तभी अचानक वहां बस आ गई । मेरा सपना था की मेरी मां के दरबार बस आए । आखिर माता की कृपा और हमारे धर्म प्रचार प्रसार कार्यो से यह ईच्छा भी पूर्ण हुई ।


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