मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

मां ज्ञानेश्वरी महिमा

जब जब इस पृथ्वी पर असत्य बलवान होता है तब तब इस पृथ्वी पर भगवान ने अवतार लिया है।

ऋषि मुनियों, साधु संतो की इस पावन धरा पर धर्म की स्थापना और लोक कल्याण के लिए किसी ना किसी रूप मे ईश्वर का प्राकट्य होते ही आया है और इन पवित्र आत्माओ मे ईश्वर का ही साक्षात्‌ अंश समाया होता है।

आज के युग मे भी ब्रम्ह स्वरूप संत देवी ज्ञानेश्‍वरी माता जी अपनी चैतन्य ऊर्जा से सम्पूर्ण जगत मे सत प्रेम की धारा प्रवाहित कर रही हैं।

संत ज्ञानेश्‍वरी माता जी की चैतन्य वाणी से साक्षात ब्रम्हज्ञान का अवतरण हुआ है।

जिससे सम्पूर्ण मानव समाज का कल्याण हो रहा है।  

मंत्र, तंत्र, यंत्र चिकित्सा ,विविध गोपनीय रहस्यों के मर्मज्ञ, समस्त मूलभूत समस्याओ का माँ बगलामुखी अनुष्ठान से  निराकरण उपलब्ध कराने वाली संत देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामीजी का लक्ष्य है ,

पृथ्वी पर सत्‍य ,प्रेम की उपासना, आत्म जागरण, समस्त प्राणियो का आनंदमय जीवन,

ऐसा जीवन जो पारिवारिक, मानसिक ,शारीरिक ,आर्थिक आदि हर प्रकार के तनाव से मुक्त हो। 

इसलिए संत ज्ञानेश्‍वरी माता श्री पीतांबरा माँ बगलामुखी देवी और बाबा श्री महाकाल जी के सानिध्य मे विभिन्न प्रकार की दीक्षायें प्रदान करती हैं।

तो आईए प्रिय धर्म प्रेमी अनुरागी भक्तजनो माँ जगदंबा स्वरूप गुरु माता देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामीजी के अवतरण और ईश्वर प्राप्ति पश्चात मानव सेवा की सम्पूर्ण कहानी का अमृतपान करते हैं ।

बेहद कम आयु में माँ बगलामुखी और बाबा श्री महाकाल के प्रति भक्ति व प्रेम से हजारों लोगों के जीवन को सुखमय बनाने वाली गुरु माता का जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं है। आज हम आपको माँ ज्ञानेश्‍वरी जी की जीवनी बताने जा रहे हैं, उम्मीद करते हैं आपको जरुर पसंद आएगी।


संत ज्ञानेश्‍वरी देवी की माता रुकमणी देवी और पिता महंत सदगुरुदेव संत श्री डॉ.सत्यनारायण गिरी गोस्‍वामी जी महाराज हैं।

माता रुकमणी देवी बड़ी ही धार्मिक प्रवृति की महिला हैं।

वे स्वयं आध्यात्मिक प्रवचन देती रहीं ।

जैसे कि ,ऋषिअत्रीमुनी की धर्मपत्नी माता अनुसुईया चरित्र, श्री रामचरितमानस,माँ सती की कथा भक्त श्री ध्रुव चरित्र कथा ,प्रवचन की धारा प्रवाह करती रहीं। 

पिताश्री भी बाल्यकाल से हि ईश्वर भक्ति मार्ग मे अग्रसर रहे। ईश्वर भक्ति मे इतने लीन होते रहे कि, जो भक्ति सतयुग , त्रेतायुग ,द्वापरयुग , मे देवताओ को दुर्लभ थी वह भक्ति इस कलयुग के कलिकाल मे पूज्य पिताश्री को यह भक्ति प्राप्त हुई। जिस भक्ति का नाम अखंड ब्रम्ह ध्यानालीन समाधि है, जो देवताओ मे केवल भगवान शिवजी को ही प्राप्त थी। अखण्ड ब्रम्ह ध्यानालीन समाधि केवल शिवजी की ही लगती थी। 

इनके पूज्य पिताश्री की प्रथम समाधि सन 1978 मे ग्राम बजरवाडा तहसील बन्डोल जिला सिवनी म.प्र. मे  3 माह 13 दिन की अखंड ब्रह्म ध्यानालीन समाधि दिन मंगलवार दोपहर  3:30 बजे संपन्न हुई। 


21 सितंबर सन 1980 दिन रविवार को पिताश्री और माताश्री की ईश्वर भक्ति की कृपा से ही,

देवी ज्ञानेश्‍वरी जी का अवतरण हुआ।


बेटी ज्ञानेश्‍वरी के जन्म के 3 माह बाद ही पूज्य पिताश्री तपस्‍या करने हिमालय चले गए उसके उपरांत माता रुकमणी देवी ने ही ज्ञानेश्‍वरी के लालन पालन ,भरण पोषण करते रही । 

ज्ञानेश्‍वरी जब पाँच वर्ष की हुई तो उनका धार्मिक ग्रंथो के प्रति रुझान बढ़ने लगा ।

माता रुकमणी देवी को उनके शिष्य अपने अपने गाँव धार्मिक आयोजनों मे लेकर जाते थे तब उनकी लाड़ली बेटी ज्ञानेश्‍वरी भी माँ के साथ रहकर उनके प्रवचन सुना करती थी और धार्मिक कार्यक्रमो मे सुन्दर सुन्दर भजन सुनाया करती थी ।


जब देवी ज्ञानेश्‍वरी 6 से 7 वर्ष की हुई तो माता रुकमणी देवी के साथ ही श्री राम चरित मानस सुन्दरकाण्ड पाठ किया करने लगीं ।

धीरे-धीरे वक्त गुजरते गया, ज्ञानेश्‍वरी की भजन सत्संग की ओर अधिक रुचि बढ़ने लगी ।

पाँच वर्ष से ही ज्ञानेश्‍वरी की भगवान शिव जी से ऐसी लगन लगी की,निरन्तर उनके ध्यान में ही मग्‍न रहने लगीं ।


आगे चलकर देवी ज्ञानेश्‍वरी ने ज्ञान दीक्षा श्री काशी धर्म पीठाधीश्वर जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज से संपन्न ली और अपने पूज्य पिताश्री संत श्री डॉ.सत्यनारायण गिरी गोस्‍वामी जी से श्री ब्रम्हास्त्र विद्या माँ बगलामुखी की दीक्षा लीं । 


देवी ज्ञानेश्‍वरी ने भगवान शिव जी का कठिन जप, तप कर श्रीशिव भक्ति की अपार कृपा से श्री ब्रम्हास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। और इसके साथ ही शिक्षा अध्ययन भी करते रहीं ।


देवी ज्ञानेश्‍वरी

माँ बगलामुखी,और बाबा श्री महाकाल जी की भक्ति मे पूर्ण समर्पित होकर भक्त जनों के भविष्य का सटीक फलादेश करने लगीं।

धीरे धीरे भक्तो के जीवन का सटीक फलादेश जन जन तक पहुचने लगा। और सम्पूर्ण प्रदेश मे देवी ज्ञानेश्‍वरी की ख्याति फैलने लगी।

जब देवी माँ ज्ञानेश्‍वरी 15 वर्ष की हुई तो माँ बगलामुखी अनुष्ठान ,पूजन आदि करना आरंभ किया।

गुरु माँ देवी ज्ञानेश्‍वरी जी से उनके शिष्य परिवार सुख समृद्धि हेतु  माँ बगलामुखी अनुष्ठान करवाने लगे।

सन 1995 से श्री ब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी अनुष्ठान पूजन से देवी ज्ञानेश्‍वरी की ख्याति दूर दूर  बढ़ने लगी।


बाबा श्री महाकाल जी की अपार कृपा से मांँ भगवती श्री ब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी देवी जी का सानिध्य प्राप्त हुआ,तथा माँ बगलामुखी देवी जिला सिवनी मध्य प्रदेश में स्वयं देवी ज्ञानेश्‍वरी जी को अधिक प्रेरणा देने लगीं कि वे स्वयं यहां स्थापित होंगी तभी देवी ज्ञानेशवरी जी ने माँ भगवती ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुखी देवी जी की सन 2008 में भव्य प्राण प्रतिष्ठा कराई। माँ बगलामुखी देवी जी की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले महान तपस्वी संत,जोकि अखंड ब्रह्म ध्यानालीन समाधिष्ठ दिव्‍य महापुरुष महंत सदगुरुदेव संत डॉ. श्री सत्य नारायण गिरी जी महाराज श्री जी के कर कमलों द्वारा मैया की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई।

तभी से माँ भगवती के मंदिर में दूर-दूर से भक्तगण आने लगे तथा संपूर्ण भक्त जनों के सर्व कार्य सिद्ध होने लगे तत्पश्चात देवी ज्ञानेश्‍वरी माँ भगवती बगलामुखी देवी की आराधना साधना कर माँ बगलामुखी की अपार कृपा से जन कल्याण हेतु जनमानस के शुभ शुभ कार्य करने लगीं ।माता रानी की भक्ति का प्रकाश ऐसे फैलने लगा के भक्तों के घोर कष्ट दूर होने लगे।

मैया के जप ,तप ,पूजा ,अनुष्ठान के माध्यम से लोगों की सारी परेशानियां तत्काल ही दूर होने लगीं ,

जैसे= बहुत सारे नि:संतान माताओं की गोद में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,कुछ भक्तों के असाध्य रोग ठीक होने लगे ,कुछ कन्याओं और बालकों के विवाह संस्कार में विलंब हो रहा था बाधा आ रही थी ,मैया की कृपा से शीघ्र ही उनके विवाह हो गए , इस शुभ और पुनीत कार्य के चलते देवी मैया बगलामुखी देवी के भक्तों के करुण वंदन आग्रह पर देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामी ने अनेक शिष्य और शिष्‍याऐं बनाई ,और अपने शिष्यों को गुरु शिष्य की परंपरा तथा ईश्वर और अंश की परंपरा को भली-भांति समझाने का प्रयास करते रहीं ।अपने शिष्यों को यह दुर्लभ ज्ञान देती हैं। जैसे = राज ऋषि, ब्रह्म ऋषि ,और देव ऋषि की परंपरा को भलीभांति समझाते हुए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया करती हैं।


 देवी ज्ञानेश्‍वरी गोस्वामी ने स्वयं के लिए परिवार का ,और संसार का ,माया मोह त्याग कर संपूर्ण जन कल्याण हेतु यह दुर्लभ शुभ कार्य करने का संकल्प लिया है। जिसे वे अपने मन ,क्रम ,वचन से यथासंभव निभा रही हैं। तथा आप अपने शिष्यों को गुरु और शिष्य की परंपरा क्या है इस भाव को बड़े ही शुमधुर दिव्य वाणी से अपने शिष्यों को समझाते हैं कहती हैं भक्तों गुरु स्वयं पूर्ण रूप होता है ,जो पूर्ण से भी परिपूर्ण होता है और पूर्ण के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता सद्गुरु स्वयं दिव्य प्रकाशवान होता है ,जो कि अपने शिष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश में विलीन कर अपने शिष्य को सद्‍ज्ञान से परिपूर्ण प्रकाशित कर देता है। अर्थात "गु" शब्द अंधकार का है ,और "रू"शब्द प्रकाश का है ,इसलिए जो सद्गुरु अपने शिष्‍यों के भीतर अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर उसका जीवन अपनी सद्‍भक्ति के प्रभाव से एवं स्वयं की दिव्य वाणी से भक्तों के जीवन को प्रकाश वान कर दे वही "गुरु" है। वैसे तो प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सद्‍गुरु कृपा अथवा संत कृपा का बहुत विशेष महात्म्‍य है।

भक्‍तों भगवान की कृपा से जीव को मानव का शरीर मिलता है ,और गुरु कृपा से ही भगवान की प्राप्ति होती है । यह गुरु कृपा चार प्रकार से होती है स्मरण से ,दृष्टि से ,शब्द से ,और स्पर्श से गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। वैसे प्रत्येक मनुष्य को गुरु दीक्षा अवश्य लेना चाहिए गुरु शरण में स्वयं को जरूर ले जाना चाहिए और स्वयं की गुरु दीक्षा हो जाने के बाद ये ना सोचें कि मैं गुरुमुखी हो गया अब मेरा कल्याण निश्चित ही होगा तो ऐसा नहीं है।

गुरु दीक्षा पश्चात गुरु के वचनामृत को श्रवण पानकर अपने इस मानव जीवन में उतारने एवं गुरु के बताए मार्ग पर चलने से जीव का कल्याण होता है। इस प्रकार से अपने धर्मपुत्र स्वरूप शिष्यों को शब्द ज्ञान देती रहती हैं इसी सद्‍ज्ञान के प्रभाव से उनके अनेक शिष्य बनते गए अनेक जिलों से भक्त आते और अपनी गुरु माँ से सद्‍ज्ञान ग्रहण कर अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को कृतार्थ करते हैं सद्गुरु की कृपा के बारे में समझाते हुए देवी ज्ञानेश्‍वरी अपनी इष्ट देवी माँ बगलामुखी के बारे में अपने शिष्यों को समझाती हैं। भक्तों विद्यायें अनेक हैं परंतु दसों महाविद्या का स्‍थान श्रेष्ठ है।और इन दसों महाविद्याओं में भी सर्वश्रेष्ठ विद्या हैं ,वे श्रीब्रह्मास्त्र विद्या माँ बगलामुखी हैं। मनुष्य के बहुत ही कठिन परिस्थिति में ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुखी को याद किया जाता है तथा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं ब्रह्मास्त्र विद्या से कठिन से कठिन परिस्थिति में फंसे मनुष्य को शीघ्रता पूर्वक छुटकारा मिलता है जिला सिवनी में माँ बगलामुखी दरबार से अनेक भक्तों की मनोकामना पूर्ण हुई है नि:संतानों की संतान प्राप्ति हुई अविवाहितों के विवाह कार्य संपन्न हुए भक्‍तों को असाध्य रोगों से मुक्ति मिली।

तो भक्तों माँ बगलामुखी देवी के दरबार में और गुरु माता के शरण में सर्व संकटों से ,सर्व बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

तो आइए हम सब मिलकर माँ बगलामुखी देवी माँ की शरण में चलते हैं और आज से ही हम अपने इस दुर्लभ ,देह मानव जीवन की नई शुरुआत करते हैं।

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

मां बगलामुखी अनुष्ठान


      *🙏🕉जय माँ बगलामुखी🕉🙏* 



आपका विश्वास जब ना दे साथ , जब शत्रु भय से जीवन हो जाये बेहाल , जब बचाव के सारे रास्ते बन्द हो जाये , 

जब कानूनी मामलो मे फंसकर रह जाये , तब एक देवी की कृपा से आप अपना जीवन सफल बना सकते है। पुरे ब्रम्हान्ड मे शक्तिशाली है वो देवी , 

 सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती । 

आज के दौर मे चाहे या ना चाहे कोई ना कोई किसी ना किसी की बुरी नजर का शिकार हो ही जाता है । चाहे आप नौकरी करते हो या बिजनेस करते हो आपकी कामयाबी के कारण आपके गुप्त शत्रु बन ही  जाते है । 

जीवन मे कई बार समस्याओ का सामना करना पड़ता है । कई बार कानूनी चक्करों मे इंसान ऐसा उलझकर रह जाता है की उससे निकालना मानो ना मुमकिन सा हो जाता है । 

आपकी हर परेशानी का ईलाज है माँ बगलामुखी की उपासना । कहते है शत्रुओं और विरोधियो को शान्त करने व कानूनी मामलो से छुटकारा पाने के लिए माँ बगलामुखी की उपासना अचूक होती है । तो कैसे करें माँ बगलामुखी की उपासना, बताने से पहले जानते है माँ बगलामुखी की महिमा क्या है ,कौन है ब्रम्हांड की महाशक्ति बगलामुखी माँ


 ज्योतिषाचार्या देवी ज्ञानेश्वरी गोस्वामी माँ भगवती  बगलामुखी देवी जी की अपार कृपा एवं मैया जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर श्री ब्रह्मास्त्र विद्या माँँ बगलामुखी देवी जी की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताती है की , एक समय सतयुग काल में भयंकर तूफान आने से संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया और अनेकों लोक संकट में पड़ गए  जिससे संसार की रक्षा करना असम्भव हो गया , उस समय संपूर्ण जीव,मनुष्य ,देवजन,भगवान विष्णु सहित अत्यंत चिंतित हुए तथा भगवान शिव की प्रेरणा व कृपा से भगवान विष्णु महान तपस्या करने लगे उस तपस्या के प्रभाव से महात्रिपुर सुन्‍दरी देवी अत्यंत संतुष्ट हुई।


*हरिद्रा* नाम के सरोवर को देखकर सौराष्ट्र कठियावाड़ में  देवी अत्यंत गहरे उस सरोवर में जल क्रीड़ा करने के लिए जिस समय प्रवृत्त हुईं l

उस समय श्री विद्या से तेज उत्पन्न अपूर्व के चारों ओर फैल गया उसी समय आकाश में तारा मंडल अत्यंत सुशोभित था उस दिन चतुर्दशी और मंगलवार था एवं पंच मकार से सेवित देवी ने उस दिन अर्धरात्रि में उस गहरे पीले हरिद्रा सरोवर में निवास किया और उस रात्रि का नाम वीर रात्रि पड़ा तभी से चतुर्दशी मंगलवार के दिन तांत्रिक गण पंच मकार का सेवन करते हैं श्रीविद्या जनित तेज से दूसरी त्रैलोक्‍य स्तंभनी ब्रह्मास्त्र विद्या उत्पन्न हुई उस ब्रह्मास्त्र का तेज विष्णु से उत्पन्न तेज में विलीन हो गया और वह तेज विद्या और अनुविद्या में लीन हुआ । माँ बगलामुखी को पीताम्बरा भी कहाँ जाता है । देवी के दश महाविद्या स्वरूपो मे आठवां स्वरूप माँ बगलामुखी देवी का है । माँ बगलामुखी देवी को स्तम्भन शक्ति की देवी भी कहाँ जाता है । 


माँ बगलामुखी की उपासना मे सबसे महत्वपूर्ण है की माँ की उपासना रात्री के समय 9से 12 के बीच पीले वस्त्र पहनकर ही करना चाहिए । माँ की उपासना के लिए एक चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाए ,फिर सामने अखण्ड दीपक जलाए , उन्हे पीले फूल और नेवेद्य अर्पित करें । 


सबसे पहले इनके भैरव मृत्युंजय रूप की उपासना करें । 

इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र की एक माला जप अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह करके करनी चाहिए। फिर बगलामुखी कवच का पाठ करें । इसके बाद संकल्प के साथ माँ के मंत्र का जाप करें । 

माँ का मंत्र 

ॐ ह्लीं बगलामुखी देवी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धि विनाशाय ह्लीं ॐ फट् स्वाहा l


मंत्र का कम से कम 36 हजार या एक लाख जाप करें । 

इसके बाद दशांक हवन करें । माँ बगलामुखी तंत्र की देवी है । इनमे ब्रम्हान्ड की शक्ति का समावेश है । माँ बगलामुखी की पुजा हर बाँधा से मुक्ति दिलाती है । इसलिए माँ की भक्ति करने वाले साधक के जीवन मे खुशियो ही खुशियों का आगमन होता है । 

लेकिन माँ बगलामुखी उपासना के नियम जानना बहुत ही अनिवार्य है जो इस प्रकार है ..

1 माँ बगलामुखी की उपासना बिना गुरू के निर्देश की कदापि नही करना चाहिए । 

2 आराधना खुले आसमान के नीचे नही करनी चाहिए । 

3 आराधना के समय ब्रम्हचर्य का पालन बहुत जरूरी है । 

4 देवी पूजा किसी के विनाश के लिए नही करनी चाहिए 


इन सभी नियमों का पालन आपको करना बहुत जरूरी है । 

और दक्षिणा लेकर संकल्प लें । 


आप माँ बगलामुखी अनुष्ठान द्वारा सम्पूर्ण समस्याओ का समाधान कर सकते है , अगर आपको कोई माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करना है तो आप हमें अवश्य बताए । 

आपको माँ बगलामुखी माँ की उपासना के बारे मे किसी प्रकार की जानकारी चाहिए या आपको माँ बगलामुखी साधिका देवी ज्ञानेश्वरी गोस्वामीजी से किसी प्रकार की जानकारी चाहिए तो वीडियो पर कॉमेंट्स कर अपनी बात रखे । 


रविवार, 12 जुलाई 2020

धारूल की माँ अम्बादेवी दर्शन 12 जुलाई 2020 ( श्री सन्दीप साकरे जी )






माँ अम्बा देवी शक्तिपीठ की दर्शन यात्रा में खड़ी पहाड़ी को चढ़कर जाना पड़ता हैं जिसके ऊपर नागदेवता , माँ काली और हनुमान प्रतिमा कें दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता हैं ।










ये वह स्थान हैं जहाँ तपस्वी सन्त मंगला माँ ने माँ अम्बे की साधना की थी ....यही सामने माँ मंगला देवी की समाधि विराजमान हैं और भगवान गणेश जी की प्रतिमा गुफा कें प्रवेश द्वार पर विराजमान हैं ।
जहाँ पर माँ मंगला देवी तपस्विनी की तस्वीर रखी हुई हैं वहां माँ मंगला बैठी रहती थी , अम्बा देवी की यात्रा बड़ी मनोरम हैं आईए आगे चलते हैं ।...






माँ अम्बा देवी शक्तिपीठ में श्रध्दालु भक्त आते हि नीचे नदी में बहते पानी से स्नान करते हैं , यह पानी गुप्त गुफा से आ रहा हैं , स्वयं माँ अम्बे और भगवान शिव कें चरणो से ...अम्बा देवी शक्तिपीठ की दिव्य गुफा का मार्ग बन्द किया गया हैं जिसे ऋषि मुनि आश्रम कहते हैं ...यह पानी आदि गंगा का पावन चल वही से आ रहा हैं ...





माँ अम्बा देवी की स्वयं भू प्रकट हुई प्रतिमा ....माँ अम्बे उनसे दरबार आने की ईच्छा रखने वालें हर एक भक्त की रास्ता देख रही हैं ..यह अति पावन भूमि हैं यहां आज भी लाखो वर्षों से जप कर रहे ऋषि मुनि साधना कर रहे हैं ...
माँ अम्बा कें बारे में विशेष कहानी प्रचलित हैं की जब तक माँ अम्बा स्वप्न में बुलावा ना भेजे कोई भक्त नही आता दर्शन को ..




आदि शक्ति माँ अम्बे का दरबार हर किसी भक्त कें लिए खुला हैं जो माँ का अनन्य भक्त हैं ...
जो माँ अम्बे की अनन्य भक्ति करते हैं उनके जुबानी माँ अम्बा कें चमत्कारो की अनगिनत कहानी आप सुन सकते हॊ



माँ अम्बा कें दरबार हजारो भक्त आते हैं दर्शन करके चले जाते हैं ...लेकिन माँ अम्बे का अनन्य भक्त तो हजारो में कोई एक हि आता हैं जो सिर्फ माँ से मिलने आता हैं , माँ कें दर्शन को आता हैं इनमे एक माँ रेणुका देवी कें अनन्य भक्त सन्दीप साकरे जी हैं ....



ऐसी अम्बा देवी शक्तिपीठ में सैकड़ो गुफाएँ हैं जिनमे एक गुफा माँ कामाख्या कें धाम जाती हैं लेकिन वहां कोई भी भक्त नही जा सकता ....





माँ अम्बारानी धारूल माता कें शक्तिपीठ में गुप्त गुफाओं से जुड़े हजारो रहस्य हैं जिनकी खोज माँ अम्बा भक्त रविन्द्र कर रहा हैं , तपस्वी सन्त मंगला माँ ने इन्ही गुफाओं से होकर कई तीर्थों की यात्रा की हैं , ये वही गुफाएं हैं जहाँ कभी इन्द्र आदि देवताओ ने माँ अम्बा की तपस्या की थी ....
यहाँ की गुफाओं को देखकर बड़े हि अलौकिक सुख की प्राप्ति होती हैं 


माँ अम्बादेवी धाम में विराजे भगवान शिव का पावन धाम ...माँ अम्बा रानी कें दर्शन कें बाद श्रध्दालु भोलानाथ कें दर्शन करते हैं फिर महाकाली माँ कें दर्शन की ओर आगे बढ़ते हैं 




भगवान की महिमा गाते छोटे बच्चे भी नही थकते ...
माँ अम्बा देवी दर्शन कें लिए निरंतर हि स्कूल कें बच्चे यहां पिकनिक मनाने आते हैं , यहां खाना बनाने कें लिए उत्तम व्यवस्था भी हैं इसलिए यहाँ कें प्राकृतिक दृश्य का आनंद लेनें पहुंचते हैं  


जो जैसी भावना लेकर आता हैं माँ अम्बा उसे वैसा हि फल देती हैं , यहाँ साक्षात माँ अम्बे विराजमान हैं , शक्तिपीठों में माँ अम्बा जी का बड़ा महत्व हैं क्यो यहां पर माँ सती का हृदय गिरा था , माँ अम्बा बड़ी दयालु हैं , जिस भक्त पर माँ अपना हाथ रख दे , उनके जीवन में चार चांद लग जाते हैं ....


माँ अम्बा देवी में जब भी कोई सच्चा भक्त दर्शन को आता हैं तो वह अपने परिवार कें साथ आता हैं या फिर माँ अम्बे कें अनन्य नये भक्तों को दर्शन कराने आता हैं ...
सन्दीप साकरे जी धामनगांव कें रहने वालें जो माँ भगवती दुर्गा कें अनन्य भक्त हैं ...











माँ कालिका और माँ अन्नपूर्णा दरबार कें प्रवेश मार्ग का रास्ता





ये माँ अन्नपूर्णा का मन्दिर हैं , जो भक्त माँ अम्बा देवी दर्शन कें साथ माँ अन्नपूर्णा कें दर्शन करता हैं उसके घर अन्न कें भंडार भरे रहते हैं । माँ अन्नपूर्णा की बड़ी कृपा होती हैं



आप को माँ अम्बे दर्शन की यह फोटो कैसे लगी कॉमेंट्स करके अवश्य बताए