छत्रिय लोनारी कुनबी समाज की कुलदेवी माँ उमा देवी है वही हजारो वर्षों से कुल्देवता नाग देवता कें नाम से प्रसिद्ध है । मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र ,और गुजरात में कुलदेवी माँ उमा ( उमिया ) देवी कें जगह - जगह बड़े प्यारे सुन्दर मन्दिर है ।
मध्यप्रदेश में माँ उमादेवी कों भक्तगण कुलस्वामिनी श्री रेणुका , अम्बादेवी , एकवीरा कें नामो से भी जानते है ।
कुनबी समाज के कई श्रध्दावान भक्तों कों माँ उमा देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने माहात्म्य का जन जन तक प्रचार करने की प्रेरणा दी है ।
कुनबी समाज कें इष्ट देव भगवान शिव है ।
अपने इष्ट भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने कें कारण कुनबी भी शैव कहलाए ।
कुनबी शब्द की उत्पति कुटुम्बिन शब्द से हुई है ।
कुटुम्बी का अर्थ है किसान परिवार का मुखिया । हिन्दी में कुर्मी , गुजराती में कनबी , मराठी में कुनबी कहाँ जाता है ।
बिस पीढ़ियों पूर्व कुनबी पंजाब में रहा करते थें उस दौरान कुलदेवी माँ उमा देवी की पुजा पध्दति आरम्भ थी ।
इसकें बाद कुनबी गुजरात , मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में निवास करने लगे । गुजरात में रहने वाले कुन्बियो ने कुलदेवी की पुजा उपासना आरम्भ रखी वही मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र कें रहने वाले कुन्बियो ने अपने इष्ट शिव भगवान कें आभूषण नागदेवता की पूजा आरम्भ कर दी ।
इसी कें परिणाम स्वरूप किसानों ने नागद्वारी , पचमढ़ी , महादेव की यात्रा आरम्भ कर दी । आज कुनबी समाज कें लगभग सभी परिवार कुल रक्षक , कुल्देवता कें रूप में नागदेवता की पुजा कर रहे है ।
परिवार की सुख शांति और मंगल कामना कें लिए नागदेवता से मन्नत , नवस कबूलना प्रथा का अधिक प्रचलन है ।
कुनबी समाज में पहले शिवजी की पुजा करते है , फिर उनके गले कें आभूषण नागदेवता की पुजा की जाती है । कुनबी समाज में ऐसी मान्यता भी है की शिव की पूजा करके नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे ।
नागदेवता की पूजा कुनबी समाज (कृषक समाज ) ,में कब से शुरू हुई , कहना मुश्किल है । लेकिन इस पुजा आरम्भ होने कें पीछे एक कहानी बहुत प्रचलित है ।...
किसी समय एक किसान अपने दो पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहता था। एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गए। नाग के मर जाने पर नागिन ने रोना शुरू कर दिया और उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने का प्रण किया।
रात में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित उसके दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया। और नागिन से हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुन: जीवित कर दिया।
यह बात दूर दूर तक फैली तो कृषक परिवारों ने शिवजी कें गले कें आभूषण नागदेवता महाराज की पुजा भी आरम्भ कर दी ।
यही वजह है कि हजारों साल से देश के कुनबी किसान सांपों को नाग देवता मानकर उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
पुराणो में वर्णन मिलता है की नागों की पूजा करके आध्यात्मिक और अपार धन की प्राप्ति की जा सकती है और ऋषि-मुनियो ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है ।
इसी बात कों ध्यान में रखते हुए कुनबी कृषक समाज कें लोगों ने अपने इष्टदेव भगवान शिव जी की पुजा आराधना करके कें बाद उनके आभूषण नागदेवता की कुल रक्षक कें रूप में पूजा आरम्भ कर दी ।
कुन्बियो का यह विश्वास है की उनके कुल्देवता नागदेव भगवान भूगर्भ में निवास कर पृथ्वी की रक्षा करते हैं। वहीं फसल को बचाने में भी इनकी भूमिका होती है। यही नही नागदेवता फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों कों खाकर कृषक कुन्बियो का भला करते हैं।
नाग देवता को भूजल का श्रोत भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भूजल की रक्षा नागदेवता ही करते हैं इसलिए इनकी पूजा कुल्देवता कें रूप में की जाती है। नाग को भगवान शिव का एक अंग माना जाता है जो इसकी पूजा का एक और कारण है।
कहते है की सांप खेतों में रहकर कृषि-संपदा (अनाज) को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों को खा जाते हैं, इसलिए उन्हें किसानों का रक्षक अथवा क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। अनेक जीवन-रक्षक औषधियों के निर्माण हेतु नागों से प्राप्त जहर की जरूरत होती है। अत: नाग हमारा जीवन-रक्षक भी है। इसी कारण आधुनिकता के वर्तमान युग में भी नाग कों कुल्देवता या कुल रक्षक कें रूप में पूजा जाता है ।
पर्यावरण - संतुलन में मदद करने वाला सांप देवाधिदेव शिवजी के कंठ का हार बनता है, तभी कों सारा कृषक परिवार कुल की प्रमुख में नागदेवता कों विशेष स्थान देता है । हिंदू धर्मग्रंथों में नाग को प्रत्येक पंचमी तिथि का देवता माना गया है, परंतु छत्रिय लोणारी समाज की प्रत्येक कुल की पुजा में नाग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है।
मानव सभ्यता में नागों कों शक्ति और सूर्य का अवतार बताया गया है ।
नागदेव वन, उपवन, बाग़ बगीचे,फल देने वाले पेड़ , और सुगंधित पुष्प देने वाले पौधे की रक्षा करने वाले देव के रूप में भी माना जाता है
नागपूजा आर्य धर्म में सम्मिलित होने के बाद नागदेव को द्रव्य यानी धन का रक्षक देव और ग्राम अधिपति देव माना गया है ।
गुजरात , मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र कें कुनबी कृषकों कें हर गांव में नागदेवता के मंदिर है ।
कुन्बियो की अपने कुलदेवता पर अटूट श्रध्दा और भक्ति है , अपने समाज का कोई भी सामाजिक या मंगल कार्य हो अपने कुल्देवता का आशीर्वाद लेकर हि पुनीत कार्य का शुभारंभ करते है । यही कारण है की कुनबी कुटुंब में नागदेवता को पुत्र या पुत्री का फल देने वाला, शिशु या बालक की रक्षा करने वाला देव माना गया है ।
कुल्देवता नागदेवता की पुजा में लगने वाली आवश्यक सामग्री और पद्धति ...
नागदेवता को हल्दी, रोली, चावल और फूल , बेलपत्र अर्पित करने कें, बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे ।
इसके अलावा सावा , महुआ , हलवा प्रसादी , निवेद, नारियल , नीम्बू आटे कें नाग , से भी कुल रक्षक की पुजा की जाती है ।
मध्यप्रदेश में माँ उमादेवी कों भक्तगण कुलस्वामिनी श्री रेणुका , अम्बादेवी , एकवीरा कें नामो से भी जानते है ।
कुनबी समाज के कई श्रध्दावान भक्तों कों माँ उमा देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने माहात्म्य का जन जन तक प्रचार करने की प्रेरणा दी है ।
कुनबी समाज कें इष्ट देव भगवान शिव है ।
अपने इष्ट भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने कें कारण कुनबी भी शैव कहलाए ।
कुनबी शब्द की उत्पति कुटुम्बिन शब्द से हुई है ।
कुटुम्बी का अर्थ है किसान परिवार का मुखिया । हिन्दी में कुर्मी , गुजराती में कनबी , मराठी में कुनबी कहाँ जाता है ।
बिस पीढ़ियों पूर्व कुनबी पंजाब में रहा करते थें उस दौरान कुलदेवी माँ उमा देवी की पुजा पध्दति आरम्भ थी ।
इसकें बाद कुनबी गुजरात , मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में निवास करने लगे । गुजरात में रहने वाले कुन्बियो ने कुलदेवी की पुजा उपासना आरम्भ रखी वही मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र कें रहने वाले कुन्बियो ने अपने इष्ट शिव भगवान कें आभूषण नागदेवता की पूजा आरम्भ कर दी ।
इसी कें परिणाम स्वरूप किसानों ने नागद्वारी , पचमढ़ी , महादेव की यात्रा आरम्भ कर दी । आज कुनबी समाज कें लगभग सभी परिवार कुल रक्षक , कुल्देवता कें रूप में नागदेवता की पुजा कर रहे है ।
परिवार की सुख शांति और मंगल कामना कें लिए नागदेवता से मन्नत , नवस कबूलना प्रथा का अधिक प्रचलन है ।
कुनबी समाज में पहले शिवजी की पुजा करते है , फिर उनके गले कें आभूषण नागदेवता की पुजा की जाती है । कुनबी समाज में ऐसी मान्यता भी है की शिव की पूजा करके नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे ।
नागदेवता की पूजा कुनबी समाज (कृषक समाज ) ,में कब से शुरू हुई , कहना मुश्किल है । लेकिन इस पुजा आरम्भ होने कें पीछे एक कहानी बहुत प्रचलित है ।...
किसी समय एक किसान अपने दो पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहता था। एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गए। नाग के मर जाने पर नागिन ने रोना शुरू कर दिया और उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने का प्रण किया।
रात में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित उसके दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया। और नागिन से हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुन: जीवित कर दिया।
यह बात दूर दूर तक फैली तो कृषक परिवारों ने शिवजी कें गले कें आभूषण नागदेवता महाराज की पुजा भी आरम्भ कर दी ।
यही वजह है कि हजारों साल से देश के कुनबी किसान सांपों को नाग देवता मानकर उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
पुराणो में वर्णन मिलता है की नागों की पूजा करके आध्यात्मिक और अपार धन की प्राप्ति की जा सकती है और ऋषि-मुनियो ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है ।
इसी बात कों ध्यान में रखते हुए कुनबी कृषक समाज कें लोगों ने अपने इष्टदेव भगवान शिव जी की पुजा आराधना करके कें बाद उनके आभूषण नागदेवता की कुल रक्षक कें रूप में पूजा आरम्भ कर दी ।
कुन्बियो का यह विश्वास है की उनके कुल्देवता नागदेव भगवान भूगर्भ में निवास कर पृथ्वी की रक्षा करते हैं। वहीं फसल को बचाने में भी इनकी भूमिका होती है। यही नही नागदेवता फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों कों खाकर कृषक कुन्बियो का भला करते हैं।
नाग देवता को भूजल का श्रोत भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भूजल की रक्षा नागदेवता ही करते हैं इसलिए इनकी पूजा कुल्देवता कें रूप में की जाती है। नाग को भगवान शिव का एक अंग माना जाता है जो इसकी पूजा का एक और कारण है।
कहते है की सांप खेतों में रहकर कृषि-संपदा (अनाज) को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों को खा जाते हैं, इसलिए उन्हें किसानों का रक्षक अथवा क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। अनेक जीवन-रक्षक औषधियों के निर्माण हेतु नागों से प्राप्त जहर की जरूरत होती है। अत: नाग हमारा जीवन-रक्षक भी है। इसी कारण आधुनिकता के वर्तमान युग में भी नाग कों कुल्देवता या कुल रक्षक कें रूप में पूजा जाता है ।
पर्यावरण - संतुलन में मदद करने वाला सांप देवाधिदेव शिवजी के कंठ का हार बनता है, तभी कों सारा कृषक परिवार कुल की प्रमुख में नागदेवता कों विशेष स्थान देता है । हिंदू धर्मग्रंथों में नाग को प्रत्येक पंचमी तिथि का देवता माना गया है, परंतु छत्रिय लोणारी समाज की प्रत्येक कुल की पुजा में नाग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है।
मानव सभ्यता में नागों कों शक्ति और सूर्य का अवतार बताया गया है ।
नागदेव वन, उपवन, बाग़ बगीचे,फल देने वाले पेड़ , और सुगंधित पुष्प देने वाले पौधे की रक्षा करने वाले देव के रूप में भी माना जाता है
नागपूजा आर्य धर्म में सम्मिलित होने के बाद नागदेव को द्रव्य यानी धन का रक्षक देव और ग्राम अधिपति देव माना गया है ।
गुजरात , मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र कें कुनबी कृषकों कें हर गांव में नागदेवता के मंदिर है ।
कुन्बियो की अपने कुलदेवता पर अटूट श्रध्दा और भक्ति है , अपने समाज का कोई भी सामाजिक या मंगल कार्य हो अपने कुल्देवता का आशीर्वाद लेकर हि पुनीत कार्य का शुभारंभ करते है । यही कारण है की कुनबी कुटुंब में नागदेवता को पुत्र या पुत्री का फल देने वाला, शिशु या बालक की रक्षा करने वाला देव माना गया है ।
कुल्देवता नागदेवता की पुजा में लगने वाली आवश्यक सामग्री और पद्धति ...
नागदेवता को हल्दी, रोली, चावल और फूल , बेलपत्र अर्पित करने कें, बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे ।
इसके अलावा सावा , महुआ , हलवा प्रसादी , निवेद, नारियल , नीम्बू आटे कें नाग , से भी कुल रक्षक की पुजा की जाती है ।