सोमवार, 27 अप्रैल 2020

कुनबी समाज कें कुल्देवता का परिचय

छत्रिय लोनारी कुनबी समाज की कुलदेवी माँ उमा देवी है वही हजारो वर्षों से कुल्देवता नाग देवता कें नाम से प्रसिद्ध है । मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र ,और गुजरात में कुलदेवी माँ उमा ( उमिया ) देवी कें जगह - जगह बड़े प्यारे सुन्दर मन्दिर है । 
मध्यप्रदेश में माँ उमादेवी कों भक्तगण कुलस्वामिनी श्री रेणुका , अम्बादेवी , एकवीरा कें नामो से भी जानते है । 
कुनबी समाज के कई श्रध्दावान भक्तों कों माँ उमा देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने माहात्म्य का जन जन तक प्रचार करने की प्रेरणा दी है । 
कुनबी समाज कें इष्ट देव भगवान शिव है । 
अपने इष्ट भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने कें कारण कुनबी भी शैव कहलाए ।
कुनबी शब्द की उत्पति कुटुम्बिन शब्द से हुई है । 
कुटुम्बी का अर्थ है किसान परिवार का मुखिया । हिन्दी में कुर्मी , गुजराती में कनबी , मराठी में कुनबी कहाँ जाता है । 
बिस पीढ़ियों पूर्व कुनबी पंजाब में रहा करते थें उस दौरान कुलदेवी माँ उमा देवी की पुजा पध्दति आरम्भ थी । 

इसकें बाद कुनबी गुजरात , मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में निवास करने लगे । गुजरात में रहने वाले कुन्बियो ने कुलदेवी की पुजा उपासना आरम्भ रखी वही मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र कें रहने वाले कुन्बियो ने अपने इष्ट शिव भगवान कें आभूषण नागदेवता की पूजा आरम्भ कर दी ।

 इसी कें परिणाम स्वरूप किसानों ने नागद्वारी , पचमढ़ी , महादेव की यात्रा आरम्भ कर दी । आज कुनबी समाज कें लगभग सभी परिवार कुल रक्षक , कुल्देवता कें रूप में नागदेवता की पुजा कर रहे है । 
परिवार की सुख शांति और मंगल कामना कें लिए नागदेवता से मन्नत , नवस कबूलना प्रथा का अधिक प्रचलन है । 

कुनबी समाज में पहले शिवजी की पुजा करते है  , फिर उनके गले कें आभूषण नागदेवता की पुजा की जाती है । कुनबी समाज में ऐसी मान्यता भी है की शिव की पूजा करके नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे । 

नागदेवता की पूजा कुनबी समाज (कृषक समाज ) ,में कब से शुरू हुई , कहना मुश्किल है । लेकिन इस पुजा आरम्भ होने कें पीछे एक कहानी बहुत प्रचलित है ।... 

किसी समय एक किसान अपने दो पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहता था। एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गए। नाग के मर जाने पर नागिन ने रोना शुरू कर दिया और उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने का प्रण किया।

रात में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित उसके दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया। और नागिन से हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुन: जीवित कर दिया।
यह बात दूर दूर तक फैली तो कृषक परिवारों ने शिवजी कें गले कें आभूषण नागदेवता महाराज की पुजा भी आरम्भ कर दी । 
यही वजह है कि हजारों साल से देश के कुनबी किसान सांपों को नाग देवता मानकर उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
पुराणो में वर्णन मिलता है की नागों की पूजा करके आध्यात्मिक और अपार धन की प्राप्त‍ि की जा सकती है और ऋषि-मुनियो ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है ।

 इसी बात कों ध्यान में रखते हुए कुनबी कृषक समाज कें लोगों ने अपने इष्टदेव भगवान शिव जी की पुजा आराधना करके कें बाद उनके आभूषण नागदेवता की कुल रक्षक कें रूप में पूजा आरम्भ कर दी । 

 कुन्बियो का यह विश्वास है की उनके कुल्देवता नागदेव भगवान भूगर्भ में निवास कर पृथ्वी की रक्षा करते हैं। वहीं फसल को बचाने में भी इनकी भूमिका होती है। यही नही नागदेवता फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों कों खाकर कृषक कुन्बियो का भला करते हैं।

 नाग देवता को भूजल का श्रोत भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भूजल की रक्षा नागदेवता ही करते हैं इसलिए इनकी पूजा कुल्देवता कें रूप में की जाती है। नाग को भगवान शिव का एक अंग माना जाता है जो इसकी पूजा का एक और कारण है।
कहते है की सांप खेतों में रहकर कृषि-संपदा (अनाज) को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों को खा जाते हैं, इसलिए उन्हें किसानों का रक्षक अथवा क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। अनेक जीवन-रक्षक औषधियों के निर्माण हेतु नागों से प्राप्त जहर की जरूरत होती है। अत: नाग हमारा जीवन-रक्षक भी है। इसी कारण आधुनिकता के वर्तमान युग में भी नाग कों कुल्देवता या कुल रक्षक कें रूप में पूजा जाता है । 

पर्यावरण - संतुलन में मदद करने वाला सांप देवाधिदेव शिवजी के कंठ का हार बनता है, तभी कों सारा कृषक परिवार कुल की प्रमुख में नागदेवता कों विशेष स्थान देता है । हिंदू धर्मग्रंथों में नाग को प्रत्येक पंचमी तिथि का देवता माना गया है, परंतु छत्रिय लोणारी समाज की प्रत्येक कुल की  पुजा में नाग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है।
मानव सभ्यता में नागों कों शक्ति और सूर्य का अवतार बताया गया है । 
नागदेव वन, उपवन, बाग़ बगीचे,फल देने वाले पेड़ , और सुगंधित पुष्प देने वाले पौधे की रक्षा करने वाले देव के रूप में भी माना जाता है
नागपूजा आर्य धर्म में सम्मिलित होने के बाद नागदेव को द्रव्य यानी धन का रक्षक देव और ग्राम अधिपति देव माना गया है । 
गुजरात , मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र कें कुनबी कृषकों कें  हर गांव  में नागदेवता के मंदिर है । 
कुन्बियो की अपने कुलदेवता पर अटूट श्रध्दा और भक्ति है , अपने समाज का कोई भी सामाजिक या मंगल कार्य हो अपने कुल्देवता का आशीर्वाद लेकर हि पुनीत कार्य का शुभारंभ करते है । यही कारण है की कुनबी कुटुंब में नागदेवता  को पुत्र या पुत्री का फल देने वाला, शिशु या बालक की रक्षा करने वाला देव माना गया है । 

कुल्देवता नागदेवता की पुजा में लगने वाली आवश्यक सामग्री और पद्धति ...
नागदेवता को हल्दी, रोली, चावल और फूल , बेलपत्र अर्पित करने कें, बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे । 
इसके अलावा सावा , महुआ , हलवा प्रसादी , निवेद, नारियल , नीम्बू आटे कें नाग , से भी कुल रक्षक की पुजा की जाती है । 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

सम्पूर्ण हवन आहुति मंत्र सूची

इस संसार में भगवती पार्वती माता और देवाधिदेव महादेव कों प्रसन्न करने और घर में सुख शांति कें लिए हवन कुण्ड में इन मंत्रो की आहुति दे ..
1 ) ॐ महागणपति नमः 
2) ॐ रिद्धि सिद्धि नमः 
3)  ॐ लक्ष्मी नारायण नमः
4) ॐ उमा महेश नमः
5) ॐ वाणी हिरण्यगर्भ नमः
6) ॐ शनि पुरंदर नमः 
7) ॐ वास्तु देवता नमः 
8) ॐ गायत्री माता नमः
9) ॐ अग्नि देवता नमः 
10) ॐ जल देवता नमः 
11) ॐ इन्द्रदेवता नमः 
12) ॐ धर्मराज नमः 
13) ॐ कुबेर देवता नमः 
14) ॐ अश्विनीकुमार नमः 
15)  ॐ वायु देवता नमः 
16) ॐ धर्मराज देवता नमः 
17) ॐ कुबेर देवता नमः
18) ॐ अश्विन कुमार देवा नमः 
19) ॐ सरस्वती नमः 
20) ॐ महालक्ष्मी नमः 
21) ॐ महाकाली नमः 
22) ॐ खेड़ापति नमः 
23) ॐ श्री दुर्गायै नमः 
24) ॐ श्री विश्वकर्मा नमः 
25) ॐ समुद देवता नमः
26) ॐ मातृ -पितृ देवता नमः
27) ॐ मेरे इष्टदेव नमः 
28) ॐ मेरे ग्राम देवता नमः
29) ॐ मेरे पितृ नमः
30) ॐ मेरे कुल्देवता नमः 
31) ॐ मेरी कुलदेवी नमः 
32) ॐ सर्ववेआय नमः 
33)ॐ सर्ववेधाय नमः 
34) ॐ श्री क्षेत्रपाल नमः 
35) ॐ श्री भैरवाय नमः 
36) ॐ सर्वेभ्यौ ब्राम्हनेभ्यो नमः 
37) ॐ पृथ्वी नमः 
38) ॐ सूर्यदेव नमः 
39) ॐ चंद्रदेव नमः 
40) ॐ मंगलदेव नमः 
41) ॐ बुधदेव नमः 
42) ॐ गुरूदेव नमः 
43) ॐ शुक्रदेव नमः 
44) ॐ शनिदेव नमः 
44) ॐ राहु
45) ॐ केतु 
46) ॐ ताप्ती देवी नमः 
47) ॐ गंगा देवी नमः 
48) ॐ नर्मदा देवी नमः 
49) ॐ यमुना देवी नमः 
50) ॐ गोदावरी देवी नमः 
51) ॐ कावेरी देवी नमः 
52) ॐ अम्बादेवी नमः 
53) चौसठ योगिनी नमः
54) ॐ शक्ति देवी नमः 
55) माँ वैष्णो देवी नमः
56) ॐ जाग भवानी नमः 
57) ॐ शैलपुत्री नमः 
58) ॐ ब्रह्मचारिणी नमः 
59) ॐ चंद्रघंटा नमः 
60) ॐ कूष्मांडा नमः 
61) ॐ स्कंदमाता नमः 
62) ॐ ब्रह्मचारिणी नमः 
63) ॐ कात्यायनी नमः
 64) ॐ कालरात्रि नमः 
65) ॐ महागौरी नमः 
66) ॐ सिद्धिदात्री नमः 
67) ॐ काली देवी नमः
68) ॐ तारा देवी नमः 
69) ॐ त्रिपुरसुंदरी देवी  नमः
70) ॐ भुवनेश्वरी देवी नमः 
71) ॐ छिन्नमस्ता देवी  नमः 
72) ॐ त्रिपुरभैरवी देवी नमः 
73) ॐ धूमावती देवी नमः 
74) ॐ बगलामुखी देवी नमः 
75) ॐ मातंगी देवी नमः 
76)  ॐ कमला देवी नमः
77) ॐ कामाख्या देवी नमः 
78) अखण्ड ज्योति नमः 
79) गौ माता नमः शिवाय
80) अन्नपूर्णा देवी नमः 
81) ॐ षष्टि देवी नमः 
82) ॐ चामुण्डा देवी नमः 
83) ॐ वनदुर्गा देवी नमः 
84) ॐ तुलजा भवानी नमः 
86) ॐ शीतला माता नमः 
87) ॐ सप्तशृंगी माता नमः
88) ॐ गौरा पार्वती देवी नमः
89) ॐ पहाड़वाली देवी नमः 
90) मालन देवी नमः शिवाय
91) ॐ एकवीरा देवी नमः
92) ॐ यल्लमा देवी नमः
93) ॐ शारदा देवी नमः 
ॐ ईच्छापुर देवी नमः 
ॐ वैभव लक्ष्मी नमः 
ॐ अम्बाजी नमः 
ॐ रेणुका देवी नमः 


मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

ग्वालियर कें एक भक्त कों माँ स्वप्न देकर दर्शन कों बुलायी

प्रिय भक्तों आज हम आपको माँ दुर्गा माता कें चमत्कार की हैरान कर देने वाली , दिल पिघला देने वाली एक सत्य कहानी बताने वाले है ।
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा रेखा पर स्थित प्रख्यात आदिशक्ति माँ अम्बा देवी दरबार की महिमा बताने वाले है । मां अम्बादेवी जिसकी मेहरबानी से ब्रम्हाजी सृष्टी निर्माण ,विष्णु जी पालन एवं शंकर जी संहार करने की शक्ति प्राप्त करते है ,उस गुफावाली मां अम्बादेवी को बार बार नमस्कार है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यो से भरपुर सबकी मुरादे पुरी करने वाली ,अपने अनन्य भक्तो को अमर करने वाली मांई अम्बादेवी आपकी सदा ही जय हो ।
सतपुडा के घने जंगलो मे बिराजी मां अम्बादेवी का ये मन्दिर हर आने वाले भक्त के मन को मोह लेता है। यहां आने वाले दोनो ही राज्यो कें श्रध्दालुओ में माँ अम्बाजी कें प्रति अटूट श्रध्दा और आस्था है ।
कथा है जब भगवान शिव मां सती के शव को लेकर बम्हांड मे ताडंव नृत्य कर रहे थे उस वक्त इसी स्थान पर मां सती का हृदय गिरा था  । इसलिए धारूल की अम्बादेवी , अमरावती की अम्बा माई और गुजरात की अम्बाजी ये तीनों एक रूप में ही पूजे जाते है । तीनों राज्यों में माँ अम्बाजी कें ये तीनों शक्तिपीठ अपनी वैभवशाली सत्ता कें साथ विराजमान है ।
मध्यप्रदेश के बैतुल जिले मे धारुड ग्राम पंचायत मे अम्बाजी का शक्तिपीठ परम पवित्र सतपुडा में इसीलिए प्रख्यात है क्योकि माता अपने भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाती है । माँ अम्बा जी ने अब तक अपने सैकड़ो भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाया है ।
इस धरती पर मां अम्बे ही वो शक्ती है,जो हमारी झोली भरने के लिए ,हमारी मुरादे पुरी करने के लिए , हमे खुद अपने दरबार पर बुलाती है।
 ऐसे ही सांचे दरबार की महिमा को चारो युगो मे 3 गुणो के लोगो द्वारा गाया जाते रहा है ,और आगे भी गाया जाते रहेंगा।

माँ अम्बाजी की पवित्र गुफा की खोज एक मनीहार बेचने वाली मंगला नाम की महिला ने की थी जिसे भक्त माँ मंगला , माँ राधा कहकर पुकारते है ।  मंगला ने माँ अम्बा की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त कर ली थी जिसके चलते माँ अम्बादेवी के दरबार मे आने वाले हर भक्त को माँ से कूछ न कुछ मिल ही जाता था ।

ऐसे तो माँ अम्बाजी शक्तिपीठ से जुड़ी सैकड़ो सत्य घटनाए है लेकिन आज हम आपको ग्वालियर कें एक देवी भक्त की कहानी बताने जा रहे है । जिन्हें स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बाजी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने धाम बुलाया था  ।

ग्वालियर कें दुर्गा भक्त का नाम भटनागर  था  , वे ग्वालियर कें एक स्कूल में प्राचार्य थें । अचानक भटनागर जी का ट्रांसफ़र भैसदेही तहसील कें सावलमेंढा गांव कें सरकारी स्कूल में हो गया  ।

 भटनागर जी सावलमेंढा गांव में प्राचार्य पद पर कार्यरत थें । सावलमेंढा गांव कें एक भोजनालय से उन्हे स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति हो जाती । भटनागर जी सुबह और शाम माँ दुर्गा का पूजन पाठ किया करते थें ।
माता दुर्गा की भक्ति उपासना कें साथ ही उनके दिन की शुरूआत होती थी ।
जब भी भटनागर जी पर कोई विपत्ति और संकट आता तो वो सर्वप्रथम माँ दुर्गा से प्रार्थना करते थें ।
भटनागर जी कें इसी धार्मिक स्वभाव की वजह से सावलमेंढा गांव कें श्रध्दावान लोगों कें साथ उनकी मित्रता हो गई ।

एक दिन रात्री भटनागर जी कों स्वप्न में माता की एक मूर्ति दिखाई दी और मूर्ति से आवाज आ रही थी,  बेटा तु मेरे दरबार आकर मेरे आंखो पर लगा सिंगर पोंछ ,  मूझे बहूत तकलीफ हो रही । इस सिन्दूर कें कारण मूझे ठीक ढंग से दिखायी नहि दे रहा ।
जब भटनागर जी सुबह उठे तो उन्हे रात में दिखायी दिये स्वप्न की याद आने लगी । माता दुर्गा का पूजन कर स्कूल में चले गए लेकिन बार बार वही स्वप्न याद आ रहा था ।
इसके बाद दूसरी रात्री भी माता की वह मूर्ति स्वप्न में आयी और आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करने का कह रही थी ।
ऐसा भटनागर जी कें साथ एक माह तक हुआ,  इसके बाद उन्होने निर्णय किया की वे माता की इस मूर्ति की खोज करेंगे और माँ कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करेंगे ताकि माता कों दिख सकें । इसके बाद एक दिन अमरावती जाकर अम्बा माता और एकवीरा माता कें दर्शन किये लेकिन स्वप्न में दिखायी दे रही मूर्ति नहि दिखी इसलिए माँ कों प्रणाम कर घर वापस आ गए ।
अब भटनागर जी ने माता कें स्वप्न में आने की घटना सावलमेंढा गांव कें अपने मित्रो कों भी बतायी तब सभी मित्रो ने उन्हे आसपास कें अलग - अलग देवी मंदिरो कें दर्शन करने कों कहाँ । यह भी बताया की पता नहि कौनसे मन्दिर में स्वप्न में दिखायी देने वाली आपकी माता कें आपको दुर्लभ दर्शन हो जाये ।

कई मंदिरो में अपनी स्वप्न में दिखायी देने वाली माता की तलाश करते रहे लेकिन उन्हे वह मूर्ति नहि मिली ।
इस तरह माता की खोज करने पर भी माँ ना मिली तो भटनागर जी बहूत हताश और निराश हो कर माँ से यही प्रार्थना करने लगे की माता अब तो अपने भक्त पर दया करो , अपने भक्त पर कृपा करो । अब आप ही मूझे आपके दरबार का पता बताओ ।
कहते है की कभी - कभी माता हमारे भक्ति भाव और निष्ठा की परीक्षा लेती है ,  हमारा उनके प्रति समर्पण पराकाष्ठा पर पहुंचा है की नहि इसकी परीक्षा कभी कभी स्वयं भगवती लेती है इसलिए उतनी निष्ठा होनी चाहिए ।
माता कों हम जिस रूप में सुमिरन कर रहे है , वो हमारा पूरी आस्था कें साथ होना चाहिए ।
अगले ही दिन भटनागर जी स्कूल जा रहे थें तब एक मित्र से उनकी मुलाकात हुई । मित्र ने भटनागर जी से कहाँ , गुरुजी माता का स्वप्न में दिखायी देने वाला स्थान मिला या नही ।
तब गुरुजी ने कहाँ की मित्र बहूत तलाश की लेकिन अब तक माता की वह मूर्ति नहि मिली ।
इतना सुनकर मित्र ने कहाँ की यहां से 60 कि.मी कि दूरी पर धारूल गांव में माँ अम्बाजी का दरबार है आप एक बार वहां दर्शन करके आ जावो ।
माता का स्वप्न तो हर रात्री आता था , भटनागर जी कों देवी माँ पर विश्वास भी था कि वह एक ना एक दिन दर्शन करने का अवसर अवश्य देंगी ।
अगले ही दिन रविवार का दिन था , स्कूल का भी अवकाश था । भटनागर जी माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए निकल पड़े ।
गुफा में विराजि स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए आगे बढ़ते ही जा रहे थें की सामने माँ दुर्गा की वह मूर्ति आ गई जो कई दिनो से उन्हे स्वप्न में दिखायी दे रही थी ।
माता की मूर्ति कों माँ कें सम्मुख जाकर देखा तो माँ की आंखो पर सिन्दूर लगा हुआ था , यह दृश्य देकर भटनागर जी की आंखो से आँसू बहने लगे । माँ अम्बा की स्वयं भू प्रकट हुई मूर्ति कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों चुनरी से पोंछा और माँ कें सम्मुख बैठकर रोने लगे ।
रोते रोते कह रहे थें की माँ इतने दिनो तक अपने बेटे कों अपने प्यार से क्यो वंचित रखा । अब भटनागर जी ने माँ अम्बा देवी का विधिवत पूजन किया और माँ जगदम्बा कों बार बार प्रणाम करते रहे । माँ फिर दर्शन देने इतनी देर ना लगाना । 
अब भटनागर जी सावलमेंढा आ गए और घर में माता की पुजा अर्चना की । रात्री कों जब सोए तो माता की वही मूर्ति दिखी लेकिन माता का खिलता हुआ मुख था । माता कह रही थी बेटा मैं तेरी भक्ति से बहूत प्रसन्न हु, अब जब भी तेरा मन करें अपनी माँ से मिलने आ जाना ।
इस तरह माँ भगवती दुर्गा , अम्बादेवी माँ अपने सच्चे भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार आने का बुलावा भेजती है , जब तक माँ का आदेश ना हो कोई अम्बादेवी नहि आ सकता है ।  ग्वालियर कें भटनागर जी कें अलावा भी माँ अम्बादेवी कई भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर बुलाया है जिनमे आठनेर कें सुभाजी घोड़की , गुदगांव की अम्बा माता , हिवरा की राधिका कापसे , सुनील भोपलें , घोघरा कें केशों पटेल , सावंगी कें रविन्द्र मानकर जी , परतवाड़ा की मंगला माता , कन्हैया महाराज इनके अलावा ऐसे हजारो भक्त है जिन्हें स्वयं माँ अम्बा की ईच्छा से उनके दर्शन धारूल आना पड़ा ।
 । यह घटना आज से 10 वर्ष पूर्व की है , गांव कें बहूत बुजुर्ग आज भी भटनागर जी कों याद करते है , उनकी भक्ति कों प्रणाम करते है ।
अगर आप माता कें सच्चे भक्त हो और यह सत्य घटना आपको बहूत अच्छी लगी हो तो एक बार अम्बादेवी दर्शन यात्रा करने अवश्य आये

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

सूर्यवंशी छत्रिय कुलदेवी , कुल्देवता का नाम ( पार्ट 01 )


                   















अम्बा देवी रॉक शेल्टर दे सकता भारत मे बैतूल को अलग पहचान

हम बात कर रहे आठनेर ब्लॉक के महाराष्ट्र सीमा पर स्थिति धारूल अम्बा देवी धाम से प्रख्यात स्थान की जहां आसपास के जंगलों मे उची उची पहाड़ियों में चट्टानों पर बहुत अधिक मात्रा में भित्ति चित्र पाये गए हैं यह भित्ति चित्र आम व्यक्ति के लिए सिर्फ एक पेंटिंग है वही खोज कर्ताओ के अनुसार यह 21 वी शताब्दी की अदिव्तीय खोज होंगी जो 25000 हजार वर्ष पूर्व के इतिहास में बैतूल जिले में मानव जाति के विस्तार का बखान कर सकती है
सतपुड़ा ताप्ती मे रॉक शेल्टर पेन्टिंग जिले के कई लोगो ने देखी होंगी या कही उसके बारे में सुना होंगा
वही महाराष्ट्र के डॉ वी.टी. इंगोले ने बताया कि उनकी खोज टीम ने 2006 की शुरुआत में इस क्षेत्र में रॉक शेल्टर पेंटिंग की पहली खोज के बाद और अधिक रॉक शेल्टर की खोज की है और शायद अभी तक कई की खोज की जानी है।वही इन भित्ति चित्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि ऊपरी पुरापाषाण (25000 ई.पू )से लेकर प्रागैतिहासिक काल (600 ई. पू.)तक बहुत लंबे समय तक इस क्षेत्र पर मानव जाति का कब्ज़ा रहा होंगा । इस क्षेत्र में प्रारंभिक मानव बसने वालों की कला बहुत समृद्ध प्रतीत होती है। जिनमे कछुओं के कई चित्र पाए गए हैं और उनकी पेंटिंग में जानवरों की पेंटिंग के साथ-साथ ज्यामितीय रूपांकन भी पाया गया है। पशु चित्रों की संख्या, बहुत अच्छी स्थिति में पहचानी नहीं जा सकती है, क्योंकि वे इस क्षेत्र या भारतीय उप-महाद्वीप में किसी भी जीवित जानवरों के साथ नहीं मिलते हैं। हमारा उद्देश्य इस क्षेत्र में प्रारंभिक मानव बसने वालों की समृद्धि और विशिष्ट कला को सामने लाना है ताकि आगे की विस्तृत जांच शुरू की जा सके। वही डॉ वी टी इंगोले ने कहा कि यह शैलाश्रयों के प्रत्येक स्थान पर अलग-अलग अनुभव आ रहे थे। प्रत्येक शैलाश्रय की रचना भिन्न-भिन्न थी। कहीं गुफा में गूढ़ समाधि दिखती थी, तो कहीं, कभी प्रपात गिरने के चिन्ह, कहीं छत,थी। रंगीन चित्रकला से लेकर तो कुरेदे हुए चित्रों तक की यात्रा, लिंगपूजा ये सारी बातें विस्मयकारक थीं।
वही यह आदि मानव का पहला पग भले ही यहाँ न गिरा हो, फिर भी उनका सर्वप्रथम गृह (गुफा) प्रवेश मात्र निश्चित यहीं हुआ होगा। इस विषय में कोई आशंका नहीं है। 25000 से 26000 वर्षों पुराना यह वसतीस्थान बैतूल से 90 कि.मी एवं अमरावती से केवल 60 कि.मी. अन्तर पर है। यह अब तक अज्ञात कैसे रहा, यह एक रहस्य ही है। अंग्रेजों के भी नजरों से यह बचा रहा, यह भी एक आश्चर्य ही है। हो सकता है की हमारा काम यहीं रुका नही हो। और कई क्षितिज बाकी हैं। इस अभूतपूर्व खोज के उपरान्त यह प्रश्न लोग लगातार पुछ रहे थे। की क्या है अब हमारी मुहीम ने अश्मयुग के मानव इतिहास से लेकर लोहयुग तक का अध्ययन शुरू किया है। क्या हडप्पन संस्कृति का इस सभ्यता के साथ जोड हो, क्या ऐसे कोई प्रमाण मिल सकते हैं? इन सारी बातों पर संशोधन शुरू है और अगर वह प्रमाण मिल गया तो मध्यप्रदेश की यह धरती महन्जो—दाडो-हडप्पन संस्कृति की नींव है, यह बात सिद्ध होगी।
इस भित्तिचित्रों की कला का तत्कालीन भारतीय समाज के साथ निश्चित संबंध स्पष्ट करना कठिन है। उसके लिए अधिक सबूतों की आवश्यकता है। साथ ही उन चित्रों का वैज्ञानिक अध्ययन भी जरूरी है।
इस खोज की विस्तृत जानकारी प्रोफेसर डॉ.वी. टी. इंगोले ने अपनी पुस्तक अश्म युगांतर में विस्तार से हिंदी भाषा में लिखी ही है।