प्रिय भक्तों आज हम आपको माँ दुर्गा माता कें चमत्कार की हैरान कर देने वाली , दिल पिघला देने वाली एक सत्य कहानी बताने वाले है ।
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा रेखा पर स्थित प्रख्यात आदिशक्ति माँ अम्बा देवी दरबार की महिमा बताने वाले है । मां अम्बादेवी जिसकी मेहरबानी से ब्रम्हाजी सृष्टी निर्माण ,विष्णु जी पालन एवं शंकर जी संहार करने की शक्ति प्राप्त करते है ,उस गुफावाली मां अम्बादेवी को बार बार नमस्कार है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यो से भरपुर सबकी मुरादे पुरी करने वाली ,अपने अनन्य भक्तो को अमर करने वाली मांई अम्बादेवी आपकी सदा ही जय हो ।
सतपुडा के घने जंगलो मे बिराजी मां अम्बादेवी का ये मन्दिर हर आने वाले भक्त के मन को मोह लेता है। यहां आने वाले दोनो ही राज्यो कें श्रध्दालुओ में माँ अम्बाजी कें प्रति अटूट श्रध्दा और आस्था है ।
कथा है जब भगवान शिव मां सती के शव को लेकर बम्हांड मे ताडंव नृत्य कर रहे थे उस वक्त इसी स्थान पर मां सती का हृदय गिरा था । इसलिए धारूल की अम्बादेवी , अमरावती की अम्बा माई और गुजरात की अम्बाजी ये तीनों एक रूप में ही पूजे जाते है । तीनों राज्यों में माँ अम्बाजी कें ये तीनों शक्तिपीठ अपनी वैभवशाली सत्ता कें साथ विराजमान है ।
मध्यप्रदेश के बैतुल जिले मे धारुड ग्राम पंचायत मे अम्बाजी का शक्तिपीठ परम पवित्र सतपुडा में इसीलिए प्रख्यात है क्योकि माता अपने भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाती है । माँ अम्बा जी ने अब तक अपने सैकड़ो भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाया है ।
इस धरती पर मां अम्बे ही वो शक्ती है,जो हमारी झोली भरने के लिए ,हमारी मुरादे पुरी करने के लिए , हमे खुद अपने दरबार पर बुलाती है।
ऐसे ही सांचे दरबार की महिमा को चारो युगो मे 3 गुणो के लोगो द्वारा गाया जाते रहा है ,और आगे भी गाया जाते रहेंगा।
माँ अम्बाजी की पवित्र गुफा की खोज एक मनीहार बेचने वाली मंगला नाम की महिला ने की थी जिसे भक्त माँ मंगला , माँ राधा कहकर पुकारते है । मंगला ने माँ अम्बा की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त कर ली थी जिसके चलते माँ अम्बादेवी के दरबार मे आने वाले हर भक्त को माँ से कूछ न कुछ मिल ही जाता था ।
ऐसे तो माँ अम्बाजी शक्तिपीठ से जुड़ी सैकड़ो सत्य घटनाए है लेकिन आज हम आपको ग्वालियर कें एक देवी भक्त की कहानी बताने जा रहे है । जिन्हें स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बाजी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने धाम बुलाया था ।
ग्वालियर कें दुर्गा भक्त का नाम भटनागर था , वे ग्वालियर कें एक स्कूल में प्राचार्य थें । अचानक भटनागर जी का ट्रांसफ़र भैसदेही तहसील कें सावलमेंढा गांव कें सरकारी स्कूल में हो गया ।
भटनागर जी सावलमेंढा गांव में प्राचार्य पद पर कार्यरत थें । सावलमेंढा गांव कें एक भोजनालय से उन्हे स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति हो जाती । भटनागर जी सुबह और शाम माँ दुर्गा का पूजन पाठ किया करते थें ।
माता दुर्गा की भक्ति उपासना कें साथ ही उनके दिन की शुरूआत होती थी ।
जब भी भटनागर जी पर कोई विपत्ति और संकट आता तो वो सर्वप्रथम माँ दुर्गा से प्रार्थना करते थें ।
भटनागर जी कें इसी धार्मिक स्वभाव की वजह से सावलमेंढा गांव कें श्रध्दावान लोगों कें साथ उनकी मित्रता हो गई ।
एक दिन रात्री भटनागर जी कों स्वप्न में माता की एक मूर्ति दिखाई दी और मूर्ति से आवाज आ रही थी, बेटा तु मेरे दरबार आकर मेरे आंखो पर लगा सिंगर पोंछ , मूझे बहूत तकलीफ हो रही । इस सिन्दूर कें कारण मूझे ठीक ढंग से दिखायी नहि दे रहा ।
जब भटनागर जी सुबह उठे तो उन्हे रात में दिखायी दिये स्वप्न की याद आने लगी । माता दुर्गा का पूजन कर स्कूल में चले गए लेकिन बार बार वही स्वप्न याद आ रहा था ।
इसके बाद दूसरी रात्री भी माता की वह मूर्ति स्वप्न में आयी और आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करने का कह रही थी ।
ऐसा भटनागर जी कें साथ एक माह तक हुआ, इसके बाद उन्होने निर्णय किया की वे माता की इस मूर्ति की खोज करेंगे और माँ कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करेंगे ताकि माता कों दिख सकें । इसके बाद एक दिन अमरावती जाकर अम्बा माता और एकवीरा माता कें दर्शन किये लेकिन स्वप्न में दिखायी दे रही मूर्ति नहि दिखी इसलिए माँ कों प्रणाम कर घर वापस आ गए ।
अब भटनागर जी ने माता कें स्वप्न में आने की घटना सावलमेंढा गांव कें अपने मित्रो कों भी बतायी तब सभी मित्रो ने उन्हे आसपास कें अलग - अलग देवी मंदिरो कें दर्शन करने कों कहाँ । यह भी बताया की पता नहि कौनसे मन्दिर में स्वप्न में दिखायी देने वाली आपकी माता कें आपको दुर्लभ दर्शन हो जाये ।
कई मंदिरो में अपनी स्वप्न में दिखायी देने वाली माता की तलाश करते रहे लेकिन उन्हे वह मूर्ति नहि मिली ।
इस तरह माता की खोज करने पर भी माँ ना मिली तो भटनागर जी बहूत हताश और निराश हो कर माँ से यही प्रार्थना करने लगे की माता अब तो अपने भक्त पर दया करो , अपने भक्त पर कृपा करो । अब आप ही मूझे आपके दरबार का पता बताओ ।
कहते है की कभी - कभी माता हमारे भक्ति भाव और निष्ठा की परीक्षा लेती है , हमारा उनके प्रति समर्पण पराकाष्ठा पर पहुंचा है की नहि इसकी परीक्षा कभी कभी स्वयं भगवती लेती है इसलिए उतनी निष्ठा होनी चाहिए ।
माता कों हम जिस रूप में सुमिरन कर रहे है , वो हमारा पूरी आस्था कें साथ होना चाहिए ।
अगले ही दिन भटनागर जी स्कूल जा रहे थें तब एक मित्र से उनकी मुलाकात हुई । मित्र ने भटनागर जी से कहाँ , गुरुजी माता का स्वप्न में दिखायी देने वाला स्थान मिला या नही ।
तब गुरुजी ने कहाँ की मित्र बहूत तलाश की लेकिन अब तक माता की वह मूर्ति नहि मिली ।
इतना सुनकर मित्र ने कहाँ की यहां से 60 कि.मी कि दूरी पर धारूल गांव में माँ अम्बाजी का दरबार है आप एक बार वहां दर्शन करके आ जावो ।
माता का स्वप्न तो हर रात्री आता था , भटनागर जी कों देवी माँ पर विश्वास भी था कि वह एक ना एक दिन दर्शन करने का अवसर अवश्य देंगी ।
अगले ही दिन रविवार का दिन था , स्कूल का भी अवकाश था । भटनागर जी माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए निकल पड़े ।
गुफा में विराजि स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए आगे बढ़ते ही जा रहे थें की सामने माँ दुर्गा की वह मूर्ति आ गई जो कई दिनो से उन्हे स्वप्न में दिखायी दे रही थी ।
माता की मूर्ति कों माँ कें सम्मुख जाकर देखा तो माँ की आंखो पर सिन्दूर लगा हुआ था , यह दृश्य देकर भटनागर जी की आंखो से आँसू बहने लगे । माँ अम्बा की स्वयं भू प्रकट हुई मूर्ति कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों चुनरी से पोंछा और माँ कें सम्मुख बैठकर रोने लगे ।
रोते रोते कह रहे थें की माँ इतने दिनो तक अपने बेटे कों अपने प्यार से क्यो वंचित रखा । अब भटनागर जी ने माँ अम्बा देवी का विधिवत पूजन किया और माँ जगदम्बा कों बार बार प्रणाम करते रहे । माँ फिर दर्शन देने इतनी देर ना लगाना ।
अब भटनागर जी सावलमेंढा आ गए और घर में माता की पुजा अर्चना की । रात्री कों जब सोए तो माता की वही मूर्ति दिखी लेकिन माता का खिलता हुआ मुख था । माता कह रही थी बेटा मैं तेरी भक्ति से बहूत प्रसन्न हु, अब जब भी तेरा मन करें अपनी माँ से मिलने आ जाना ।
इस तरह माँ भगवती दुर्गा , अम्बादेवी माँ अपने सच्चे भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार आने का बुलावा भेजती है , जब तक माँ का आदेश ना हो कोई अम्बादेवी नहि आ सकता है । ग्वालियर कें भटनागर जी कें अलावा भी माँ अम्बादेवी कई भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर बुलाया है जिनमे आठनेर कें सुभाजी घोड़की , गुदगांव की अम्बा माता , हिवरा की राधिका कापसे , सुनील भोपलें , घोघरा कें केशों पटेल , सावंगी कें रविन्द्र मानकर जी , परतवाड़ा की मंगला माता , कन्हैया महाराज इनके अलावा ऐसे हजारो भक्त है जिन्हें स्वयं माँ अम्बा की ईच्छा से उनके दर्शन धारूल आना पड़ा ।
। यह घटना आज से 10 वर्ष पूर्व की है , गांव कें बहूत बुजुर्ग आज भी भटनागर जी कों याद करते है , उनकी भक्ति कों प्रणाम करते है ।
अगर आप माता कें सच्चे भक्त हो और यह सत्य घटना आपको बहूत अच्छी लगी हो तो एक बार अम्बादेवी दर्शन यात्रा करने अवश्य आये
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा रेखा पर स्थित प्रख्यात आदिशक्ति माँ अम्बा देवी दरबार की महिमा बताने वाले है । मां अम्बादेवी जिसकी मेहरबानी से ब्रम्हाजी सृष्टी निर्माण ,विष्णु जी पालन एवं शंकर जी संहार करने की शक्ति प्राप्त करते है ,उस गुफावाली मां अम्बादेवी को बार बार नमस्कार है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यो से भरपुर सबकी मुरादे पुरी करने वाली ,अपने अनन्य भक्तो को अमर करने वाली मांई अम्बादेवी आपकी सदा ही जय हो ।
सतपुडा के घने जंगलो मे बिराजी मां अम्बादेवी का ये मन्दिर हर आने वाले भक्त के मन को मोह लेता है। यहां आने वाले दोनो ही राज्यो कें श्रध्दालुओ में माँ अम्बाजी कें प्रति अटूट श्रध्दा और आस्था है ।
कथा है जब भगवान शिव मां सती के शव को लेकर बम्हांड मे ताडंव नृत्य कर रहे थे उस वक्त इसी स्थान पर मां सती का हृदय गिरा था । इसलिए धारूल की अम्बादेवी , अमरावती की अम्बा माई और गुजरात की अम्बाजी ये तीनों एक रूप में ही पूजे जाते है । तीनों राज्यों में माँ अम्बाजी कें ये तीनों शक्तिपीठ अपनी वैभवशाली सत्ता कें साथ विराजमान है ।
मध्यप्रदेश के बैतुल जिले मे धारुड ग्राम पंचायत मे अम्बाजी का शक्तिपीठ परम पवित्र सतपुडा में इसीलिए प्रख्यात है क्योकि माता अपने भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाती है । माँ अम्बा जी ने अब तक अपने सैकड़ो भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार बुलाया है ।
इस धरती पर मां अम्बे ही वो शक्ती है,जो हमारी झोली भरने के लिए ,हमारी मुरादे पुरी करने के लिए , हमे खुद अपने दरबार पर बुलाती है।
ऐसे ही सांचे दरबार की महिमा को चारो युगो मे 3 गुणो के लोगो द्वारा गाया जाते रहा है ,और आगे भी गाया जाते रहेंगा।
माँ अम्बाजी की पवित्र गुफा की खोज एक मनीहार बेचने वाली मंगला नाम की महिला ने की थी जिसे भक्त माँ मंगला , माँ राधा कहकर पुकारते है । मंगला ने माँ अम्बा की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त कर ली थी जिसके चलते माँ अम्बादेवी के दरबार मे आने वाले हर भक्त को माँ से कूछ न कुछ मिल ही जाता था ।
ऐसे तो माँ अम्बाजी शक्तिपीठ से जुड़ी सैकड़ो सत्य घटनाए है लेकिन आज हम आपको ग्वालियर कें एक देवी भक्त की कहानी बताने जा रहे है । जिन्हें स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बाजी ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने धाम बुलाया था ।
ग्वालियर कें दुर्गा भक्त का नाम भटनागर था , वे ग्वालियर कें एक स्कूल में प्राचार्य थें । अचानक भटनागर जी का ट्रांसफ़र भैसदेही तहसील कें सावलमेंढा गांव कें सरकारी स्कूल में हो गया ।
भटनागर जी सावलमेंढा गांव में प्राचार्य पद पर कार्यरत थें । सावलमेंढा गांव कें एक भोजनालय से उन्हे स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति हो जाती । भटनागर जी सुबह और शाम माँ दुर्गा का पूजन पाठ किया करते थें ।
माता दुर्गा की भक्ति उपासना कें साथ ही उनके दिन की शुरूआत होती थी ।
जब भी भटनागर जी पर कोई विपत्ति और संकट आता तो वो सर्वप्रथम माँ दुर्गा से प्रार्थना करते थें ।
भटनागर जी कें इसी धार्मिक स्वभाव की वजह से सावलमेंढा गांव कें श्रध्दावान लोगों कें साथ उनकी मित्रता हो गई ।
एक दिन रात्री भटनागर जी कों स्वप्न में माता की एक मूर्ति दिखाई दी और मूर्ति से आवाज आ रही थी, बेटा तु मेरे दरबार आकर मेरे आंखो पर लगा सिंगर पोंछ , मूझे बहूत तकलीफ हो रही । इस सिन्दूर कें कारण मूझे ठीक ढंग से दिखायी नहि दे रहा ।
जब भटनागर जी सुबह उठे तो उन्हे रात में दिखायी दिये स्वप्न की याद आने लगी । माता दुर्गा का पूजन कर स्कूल में चले गए लेकिन बार बार वही स्वप्न याद आ रहा था ।
इसके बाद दूसरी रात्री भी माता की वह मूर्ति स्वप्न में आयी और आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करने का कह रही थी ।
ऐसा भटनागर जी कें साथ एक माह तक हुआ, इसके बाद उन्होने निर्णय किया की वे माता की इस मूर्ति की खोज करेंगे और माँ कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों साफ करेंगे ताकि माता कों दिख सकें । इसके बाद एक दिन अमरावती जाकर अम्बा माता और एकवीरा माता कें दर्शन किये लेकिन स्वप्न में दिखायी दे रही मूर्ति नहि दिखी इसलिए माँ कों प्रणाम कर घर वापस आ गए ।
अब भटनागर जी ने माता कें स्वप्न में आने की घटना सावलमेंढा गांव कें अपने मित्रो कों भी बतायी तब सभी मित्रो ने उन्हे आसपास कें अलग - अलग देवी मंदिरो कें दर्शन करने कों कहाँ । यह भी बताया की पता नहि कौनसे मन्दिर में स्वप्न में दिखायी देने वाली आपकी माता कें आपको दुर्लभ दर्शन हो जाये ।
कई मंदिरो में अपनी स्वप्न में दिखायी देने वाली माता की तलाश करते रहे लेकिन उन्हे वह मूर्ति नहि मिली ।
इस तरह माता की खोज करने पर भी माँ ना मिली तो भटनागर जी बहूत हताश और निराश हो कर माँ से यही प्रार्थना करने लगे की माता अब तो अपने भक्त पर दया करो , अपने भक्त पर कृपा करो । अब आप ही मूझे आपके दरबार का पता बताओ ।
कहते है की कभी - कभी माता हमारे भक्ति भाव और निष्ठा की परीक्षा लेती है , हमारा उनके प्रति समर्पण पराकाष्ठा पर पहुंचा है की नहि इसकी परीक्षा कभी कभी स्वयं भगवती लेती है इसलिए उतनी निष्ठा होनी चाहिए ।
माता कों हम जिस रूप में सुमिरन कर रहे है , वो हमारा पूरी आस्था कें साथ होना चाहिए ।
अगले ही दिन भटनागर जी स्कूल जा रहे थें तब एक मित्र से उनकी मुलाकात हुई । मित्र ने भटनागर जी से कहाँ , गुरुजी माता का स्वप्न में दिखायी देने वाला स्थान मिला या नही ।
तब गुरुजी ने कहाँ की मित्र बहूत तलाश की लेकिन अब तक माता की वह मूर्ति नहि मिली ।
इतना सुनकर मित्र ने कहाँ की यहां से 60 कि.मी कि दूरी पर धारूल गांव में माँ अम्बाजी का दरबार है आप एक बार वहां दर्शन करके आ जावो ।
माता का स्वप्न तो हर रात्री आता था , भटनागर जी कों देवी माँ पर विश्वास भी था कि वह एक ना एक दिन दर्शन करने का अवसर अवश्य देंगी ।
अगले ही दिन रविवार का दिन था , स्कूल का भी अवकाश था । भटनागर जी माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए निकल पड़े ।
गुफा में विराजि स्वयं भू प्रकट हुई माँ अम्बा देवी कें दर्शन कें लिए आगे बढ़ते ही जा रहे थें की सामने माँ दुर्गा की वह मूर्ति आ गई जो कई दिनो से उन्हे स्वप्न में दिखायी दे रही थी ।
माता की मूर्ति कों माँ कें सम्मुख जाकर देखा तो माँ की आंखो पर सिन्दूर लगा हुआ था , यह दृश्य देकर भटनागर जी की आंखो से आँसू बहने लगे । माँ अम्बा की स्वयं भू प्रकट हुई मूर्ति कें आंखो पर लगे सिन्दूर कों चुनरी से पोंछा और माँ कें सम्मुख बैठकर रोने लगे ।
रोते रोते कह रहे थें की माँ इतने दिनो तक अपने बेटे कों अपने प्यार से क्यो वंचित रखा । अब भटनागर जी ने माँ अम्बा देवी का विधिवत पूजन किया और माँ जगदम्बा कों बार बार प्रणाम करते रहे । माँ फिर दर्शन देने इतनी देर ना लगाना ।
अब भटनागर जी सावलमेंढा आ गए और घर में माता की पुजा अर्चना की । रात्री कों जब सोए तो माता की वही मूर्ति दिखी लेकिन माता का खिलता हुआ मुख था । माता कह रही थी बेटा मैं तेरी भक्ति से बहूत प्रसन्न हु, अब जब भी तेरा मन करें अपनी माँ से मिलने आ जाना ।
इस तरह माँ भगवती दुर्गा , अम्बादेवी माँ अपने सच्चे भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर दरबार आने का बुलावा भेजती है , जब तक माँ का आदेश ना हो कोई अम्बादेवी नहि आ सकता है । ग्वालियर कें भटनागर जी कें अलावा भी माँ अम्बादेवी कई भक्तों कों स्वप्न में दर्शन देकर बुलाया है जिनमे आठनेर कें सुभाजी घोड़की , गुदगांव की अम्बा माता , हिवरा की राधिका कापसे , सुनील भोपलें , घोघरा कें केशों पटेल , सावंगी कें रविन्द्र मानकर जी , परतवाड़ा की मंगला माता , कन्हैया महाराज इनके अलावा ऐसे हजारो भक्त है जिन्हें स्वयं माँ अम्बा की ईच्छा से उनके दर्शन धारूल आना पड़ा ।
। यह घटना आज से 10 वर्ष पूर्व की है , गांव कें बहूत बुजुर्ग आज भी भटनागर जी कों याद करते है , उनकी भक्ति कों प्रणाम करते है ।
अगर आप माता कें सच्चे भक्त हो और यह सत्य घटना आपको बहूत अच्छी लगी हो तो एक बार अम्बादेवी दर्शन यात्रा करने अवश्य आये
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