बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

माँ उमा द्वारा कुन्बियो की उत्पत्ति

माँ उमा द्वारा कुन्बियो की उत्पत्ति –
 कुलदेवी माँ उमा देवी

स्कन्द पुराण के अनुसार सृष्टि के आदि मे ब्रम्हा के मानस पुत्र जो की श्रेष्ठ ब्राम्हण कहलाए । उनसे अलग - अलग वंशों की उत्पति हुई । ये कुल वंश भिन्न भिन्न गौत्र थें , जो धर्मारण्य क्षेत्र मे यज्ञ , तप , जप आदि कार्यो मे संलग्न थें ।
इन ब्राम्हणों को असुरों द्वारा पीड़ित किया जाता था , जिससे धर्मकार्य नष्ट होने लगा था ।
ब्राम्हणों की पुकार सुनकर  भगवान शिव और माँ उमा धरती लोक पर सरस्वती नदी के किनारे आये । भगवान शिव ने राक्षसों और दानवों से युद्ध कर उनका संहार किया और सरस्वती नदी के किनारे माँ उमा देवी ने मिट्टी के 52 पुतले बनाए।
माँ उमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की , इन 52 पुतलों मे प्राण डालें ।  भगवान शिव ने उमा की विनती पर उन पुतलों को जीवन दिया । इन 52 पुतलों से प्रकट हुए मनुष्यो ने यज्ञोपवीत धारण कर रखा था ।
वे सब शास्त्रों मे चतुर और ब्राम्हणभक्त , ब्राम्हनो का हित चाहने वाले , तपस्वी , उत्तम आचरण वाले और धार्मिक थें ।
तदनन्तर माँ उमा ने उनके हित के लिये कहाँ - तुम सब ब्राम्हणों की आज्ञा अनुसार चलो , कभी इनका अनादर न करो । जातकर्म , नामकरण , चूंडाकरण , उपनयन आदि संस्कार तथा जो व्रत , दान , उपहास आदि कर्म प्राप्त हो उन्हे इन ब्राम्हणों की आज्ञा के अनुसार ही करना चाहिए । इनकी आज्ञा के बिना जो दर्शयाग , श्राद्धकार्य या और कोई कर्म करेगा । वह दरिद्रता , पुत्रशोक एवं कीर्तिनाश को प्राप्त होगा । तब उन मनुष्यो ने बहूत अच्छा है , हम ऐसा ही करेंगे कहकर माँ उमा देवी और शिव जी की आज्ञा स्वीकार की ।
इन मनुष्यो के विवाह के लिये भगवान शंकर  जी ने गन्धर्वों की कन्याओं को लाकर उनकी पत्नी के रूप मे स्थापित किया । विश्वावसु नाम के प्रसिद्ध गन्धर्वों के राजा की सभी  कन्याए रूप , यौवन और उदारता से सम्पन्न थी ।
उन्ही को वेदोक्त विधि से देवता के समीप उन मनुष्यो के लिये अर्पण किया । उस समय उन मनुष्यो ने गन्धर्वों को , पूर्वज देवताओ को सूर्य और चन्द्रमा को तथा यमराज और मृत्यु को भी आज्यभाग दिया । विधिपूर्वक आज्यभाग अर्पण करने के पश्चात ही उन मनुष्यो ने उन कन्याओं का वरण ( पाणिग्रहण ) किया तब से लेकर आज तक गन्धार्व विवाह उपस्थित होने पर देवता आज्यभाग गृहण करते है ।
ये धर्मारण्य के दिव्य प्रदेश मे सूस्थिर होकर बसते है और ब्राम्हणों के लिये अन्न , पान , समिधा , कुश तथा फल आदि का प्रबन्ध करते है ।
माँ उमा देवी ने जिन 52 पुतलों का निर्माण सरस्वती नदी के किनारे किया और शिव जी ने उनमे प्राण दिये , वे  52 शाखाओं के आदिपरुष हुए। उनमे एक शाखा कुनबी भी थी ।  इस तरह मां भगवती उमा देवी कुन्बियो की कुलदेवी बनी।
 उनको सुखी, समृद्ध और आबाद होने का तथा जब उन्हें याद करने पर सहायता करने का आशिर्वाद दिया।
 भगवान शिव ने इस पुण्य क्षेत्र को उमापुर के नाम से स्थापित किया ।
माँ उमा देवी का वर्णन कुलदेवी होने के कारण 64 योगनियो की गणना मे भी लिया जाता है ।

दूसरी पौराणिक कथा – राजा जनक की पुत्री देवी सीताजी ,  माँ उमा गौरी की पूजा करती थी। जनक के बगीचे में रामचंद्रजी के साथ प्रथम मिलन के बाद उन्हें अपना पति के रूप में पाने की सीताजी की कामना माँ उमा के आशिर्वाद से पूर्ण हुई। जब वे धरती में प्रविष्ट की, उस समय उन्होंने लव कुश को माता उमा को सौंपा था। तब से वे माँ उमा की पूजा करते आए है। उनके वंशज भी माँ उमा की पूजा करते आए है। सीता माता भी जनक विदेही को खेत में हल जोतते हुए मिली थी। जनक प्रथम किसान के रूप में जाने जाते है। कुनबी भी खेती के काम के साथ जुड़े हुए है। माँ उमा का वाहन भी नंदी है जो खेती का मूल आधार है। इस तरह कुन्बियो का रामचंद्र सीताजी लव कुश के साथ रिश्ता पता चलता है। कुनबी क्षत्रिय थे तथा उनकी कुलदेवी भी माँ उमाँ है।

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