मंगलवार, 31 मार्च 2020

Amba devi – यहां होती हैं सारी मनोकामना पूरी/ Here all wishes are fulfilled

Amba devi – यहां होती हैं सारी मनोकामना पूरी/ Here all wishes are fulfilled


कहते है पहाड़ो वाली माँ अम्बाजी सबकी मुरादें पूरी करती है । उसके दरबार में जो भी भक्त सच्चे दिल से जाता है उसकी हर मुराद पूरी होती है , ऐसा ही सच्चा दरबार माँ अम्बाजी  का है  , माँ अम्बाजी का अत्यंत प्राचिन मन्दिर मध्यप्रदेश कें बैतूल जिले कें ग्राम धारूल पंचायत में स्थित है । देवी अम्बाजी का चमत्कारी शक्तिपीठ महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा रेखा पर स्थित है । बैतूल जिले कें सतपुड़ा कें घने जंगलो में विराजि माँ अम्बाजी का मन्दिर मध्यप्रदेश का सबसे अधिक पूजनिय और पवित्र मंदिरो में से एक है । 
शक्ति कें उपासकों कें लिए यह मन्दिर बहूत महत्व रखता है । 
माँ अम्बाजी का मन्दिर बैतूल रेलवे स्टेशन से 90 कि.मी , नागपुर से 141 और  भोपाल से 266 कि.मी कि दूरी पर स्थित है । 
माँ अम्बाजी दरबार का रास्ता जंगलो से होकर गुजरता है , आठनेर से हीरादेही होते हुए श्रध्दालु धारूल गांव पहुंचते है जहाँ से पहाड़ो में विराजी माँ कें मन्दिर की दूरी 4 किमी रह जाती है । 
माँ कें दर्शन कों आने वाले भक्तगण छोटी अम्बादेवी देवस्थान पहुंचकर यहाँ अपने वाहनों कों खड़ा करते है । छोटी माँ अम्बा देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने कें बाद बड़ी अम्बा देवी कें दर्शन कें जंगल कें रास्ते से आगे बढ़ते है  । 
लगभग 1.5 कि.मी की दूरी तय करने कें बाद श्रध्दालु गण माँ अम्बाजी चमत्कारी गुफा में पहुंचते है । 
माँ अम्बाजी कि पवित्र गुफा में प्रवेश करते ही भक्तों का हृदय अध्यात्म और शक्ति से भर उठता है । 
शक्ति स्वरूपा अम्बाजी का मन्दिर देश कें अत्यंत प्राचिन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है । कहते है कि यहां माँ सती का हृदय गिरा था । 

माँ अम्बाजी के मन्दिर की उत्पति कें बारे में कहाँ जाता है की आठनेर विकासखण्ड कें सावंगी गांव की राधा बाई कों भगवान शिव और माँ पार्वती ने दर्शन 
देकर यहाँ की गुप्त गुफा कें दर्शन कराए थें । 
राधा ने मणिहारी बेचने वालो अपनी सखी कों अम्बा देवी की सेवा करने की जवाबदारी सौपी । 
मंगला ने अम्बाजी जी की तपस्या कर देवी की सिद्धि प्राप्त कर ली । 
देवी मंगला द्वारा अम्बाजी धाम कें लिए पुजा का विधि विधान तैयार किया गया जिसके अनुसार यहां माता का प्रतिदिन स्नान और श्रंगार पूजन किया जाता है । 
तपस्वी ने यह नियम भी बनाया था की इस स्थान कों जाग्रत रखने कें गुरू पूर्णिमा कें दिन दिन बारह बजे और प्रत्येक माह की पूर्णिमा कों देवी हवन किया जाये  है । 

कहते है की सच्चे मन से जो भी भक्त माँ अम्बाजी कों जाता है वह खाली हाथ नही लौटता है । 
वह किसी न किसी बहाने माता कें दर्शन कों पहुँच ही जाता है । 
कहते है की जो भी भक्त माता कें दर्शन कों अम्बाजी जाता है और भैरोनाथ जी कें दर्शन नही करता उसकी यात्रा पूरी नही होती । भक्तगण माता अम्बा देवी शक्तिपीठ की पवित्र गुप्त गंगा कें जल से स्नान कर माता अम्बा देवी दर्शन और पुजा कें लिए पूजन सामग्री खरीदते है इसके बाद भक्तगण आगे गुफा कें प्रवेश द्वार की ओर बढ़ते है । 
अम्बाजी मन्दिर कें प्रवेश द्वार पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा विराजमान है , भक्तगण गणेश जी का प्रथम पूजन कर स्वयं भू प्रकट हूँ अम्बाजी का पूजन करते है ।  
माँ अम्बा देवी की प्रतिमा का महाकाल मन्दिर जैसै ही माता का जलाभिषेक कर श्रंगार और पूजन किया जाता है । 
माँ अम्बाजी कों भक्तगण साड़ी , चुनरी और श्रंगार भेंट कर माता की वोटी भरते है । इसके बाद श्रध्दालु अम्बादेवी शक्तिपीठ में वैभवशाली सत्ता कें साथ विराजमान शिव शंकर जी , काली माता प्रतिमा , अन्नपूर्णा माता , नागदेवता , श्री रेणुका दरबार , माँ शेरोंवाली , भैरव बाबा आदि देवी देवताओ का विधिवत पूजन करते है । 

गुफा में बैठी माँ अम्बाजी अपने भक्तों कों स्वप्न देकर बुलावा भेजती और उनको यश कीर्ति और विद्वान बनाती है । 
भगवती अम्बाजी स्वयं यहाँ विराजमान है और अपनी शक्ति का चमत्कार दिखाते रहती है । देवी भक्त रविन्द्र ने देवी कें चमत्कारो का एक बढ़ा संग्रह तैयार करके रखा है जिसमे एक दर्जन से अधिक माँ शेरोंवाली कें दरबार से जुड़ी सत्य घटनाए सम्मिलित है । देवी अम्बाजी कें भक्त रविन्द्र कें अनुसार माता कों प्रसन्न करने कें लिए  श्री दुर्गा सप्तशती माहात्म्य का पाठ करना आवश्यक है । 


देवी अम्बाजी कें चमत्कारी शक्तिपीठ की देखरेख वर्तमान में आठनेर की एक प्राइवेट समिति द्वारा की जा रही , वही देवी कें सिद्धपीठ का दिनो - दिनो बढ़ते प्रचार की वजह से जिला कलेक्टर ने मन्दिर कों पर्यटन की सूची में प्रमुखता दी है और यहां सरकारी ट्रस्ट गठित करने हेतू प्रयास किया जा रहा है ।

रविवार, 29 मार्च 2020

कौन थी रावण और मेघनाथ की कुलदेवी जानिये

कौन थी रावण और मेघनाथ की कुलदेवी जानिये

मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की आराधना करकें कई शक्तियां प्राप्त की थी ।
 आज हम आपको रावण और मेघनाथ की कुलदेवी कें बारे में जानकारी देंगे ।
रावण की कुलदेवी माँ भवानी निकुंबला शक्ति पीठ यह स्थान मध्यप्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बैतूल बाजार गांव में स्थित है जैसा कि माँ निकुंबला का सम्बंध रावण कुल से है किंतु रावण से ज्यादा इस स्थान पर रावण पुत्र मेघनाथ यानी इंद्रजीत का सम्बंध माँ से है अतः माँ के स्थान पर मेघनाथ की भी प्रतिष्ठा माँ के सामने है इंद्रजीत इन्ही की साधना कर बैतूल से आगे पाताल कोट के रास्ते पाताल लोक गया था और वहां उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य जी को प्रसन्न कर लिया तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मेघनाथ को दिक्षा दी एवं उसे माँ निकुंबला की साधना करने को कहा और गुप्त मंत्र और विधि भी बताई ।
 मेघनाथ ने माँ निकुंबला की साधना पूरी की तब भवानी प्रसन्न हो कर उसे एक रथ का वरदान दिया और कहा कि जब जब तुम्हें युद्ध में जाना हो तो मेरा तांत्रिक अभिषेक कर मुझे खप्पर बलि पूजा देकर इस रथ पे सवार होगा तो तुझे सारे शत्रुओं का संहार करने की शक्ति प्राप्त हो जाएगी और तुझे कोई पराजित नही कर सकता आज भी माँ भवानी निकुंबला का साल के कुछ विशेष दिनों में तांत्रिक अभिषेक और हवन पूजन सम्पन्न होता है निकुंबला का यह रहस्य मय मन्दिर में प्रविष्ट होते ही आपके शरीर के सारे रोगों का अपने आप ही नाश होने लगता है एवं माँ के अभिषेक का जल लोग अपने सांथ ले जाते हैं दूर दूर से लोग माँ के दर्शन को आते है न किंतु यहां केवल दिन में दर्शन कर सकते हैं रात्रि में इस स्थान पे रुकने की आज्ञा किसी को नही है केवल अघोर साधकों के लिये यह स्थान रात्रि विशेष के लिये निश्चित है





नवार्ण मंत्र : “ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ” साधना विधि


नवार्ण मंत्र : “ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ” साधना विधि

सामग्री : अगरबत्ती , दुर्गा सप्तशती माहात्म्य , माता की चुनरी , नारियल , फूल माला , पांच प्रकार के फल , गंगाजल , घी , माता सिंगार , शहद , कपूर , लाल धागा , कलावा, मौली , दुध दही , पान के पत्ते , चावल , रोली, चंदन , सुपारी , चीनी , दुध दही , हवन सामग्री , हवनकुण्ड , लाल कपड़ा , लकड़ी का पाटा , नवदुर्गा यंत्र , माता की फोटो ,।

विधि : पूजन के लिए स्नान करने के बाद शुद्ध होकर अपने ललाट पर भस्म , रोली या चंदन लगा लें , पूर्व या उत्तर दिशा में मुँह करके बैठ जाये ।
अब अपनी शुद्धि के आचमन करें , हाथ में जल लिए हुए आप इन मंत्रो के साथ ध्यान करें
ॐ केशवाय नम:
 ॐ नारायणाय नम:,
ॐ माधवाय नम:
फिर यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें | ॐ हृषीकेशाय नम: |
आचमन करने से आप शुद्ध हो जाएंगे अब सामग्री अपने पास रख लें , बाए हाथ से जल लेकर दाएं हाथ से उसे ढक लें । मंत्रोच्चारण के साथ जल कों सिर , शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क दे या पुष्प से अपने ऊपर जल छिड़क लें ।

कलश स्थापना
पूजा पीठ पर कलश रखा जाता है । तांबे के लोटे के कण्ठ मे कलावा बांधे , शुद्ध जल भरे और आम के पत्ते लगाकर उसके ऊपर दीपक स्थापित करें ।
जल शीतलता शांति ,एवं दीपक जैसै तेजस्वी पुरुषार्थ की क्षमता हम सबमे ओत प्रोत हो । यह दीपयुक्त कलश का सन्देश है । दीप को यज्ञ और कलश को गायत्री का प्रतीत माना जाता है ।

संकल्प धारण
संकल्प लेनें के लिए पुष्प अक्षत और जल लेकर संकल्प लें ।
ओम विष्णु विष्णु विष्णु ..मैं ....पिता ....जहाँ रहते है उस क्षेत्र का नाम बोले , तिथि का नाम बोले , माह का नाम बोले , वार का नाम बोले , गौत्र का नाम बोले , जिस कामना के लिए कर रहे है उस कामना को बोले ।

विनियोग :
ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि-वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे (यदि श्रीदुर्गा का पाठ कर रहे हो तो आगे लिखा हुआ भी उच्चारित करें) श्री दुर्गासप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि | गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्देभ्यो नमःमुखे | महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि |
ऐं बीजाय नमः गुह्ये | (जांघ कों छुए )
 ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | (पैरो कों छुए )
 क्लीं कीलकाय नमः नाभौ | (नाभि कों छुए )
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो गुह्ये ||

करन्यास |
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |
 ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |

दिङ्ग-न्यास :

ॐ ऐं प्राच्यै नमः,ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः, ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः, ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः, ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लीं वायव्यै नमः, ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः, ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।

हवन

इस मंत्र का दशांक हवन करना होता है जैसै 11 माला जाप किया है तो 1188 बार हवन आहुतियाँ , 118 बार तर्पण , 11बार मार्जन करना पड़ता है ।

तर्पण : तर्पण के लिए एक बढ़े कटोरे में जल लेकर उसने कुछ बूंद गंगाजल की डाल दे और दुध शहद कपूर पुष्प डाल दे , दाहिने हाथ में कटोरे का जल लेकर या पुष्प डुबोकर निम्न मंत्र बोलकर कटोरे में उंगलिया डालें
मंत्र - ऐं ह्रीं क्लीं तर्पयामि नमः

मार्जन - तर्पण का दशांक मार्जन होता है जिसमे उस तर्पण वाले कटोरे के जल की बूंद अपने दाहिने हाथ की उंगलियों से लेकर मंत्र बोले
ऐं ह्रीं क्लीं मार्जयामि नमः और जल अपने माथे पर आंखो के बीच लगा लें ।
फिर हवनकुण्ड के चारो ओर से जल लेकर तीन बार घुमाकर जमीन पर छोडे । 


शुक्रवार, 20 मार्च 2020

माँ ताप्ती दर्शन पदयात्रा तस्वीरो झरोके से

जयति जय देवी माँ कुरु जननी , सूर्य पुत्री ताप्ती

प्रिय धर्म प्रेमी बंधुओ पतित पावन पुण्य सलिला माँ ताप्ती की महिमा बड़ी निराली है ,  श्री ताप्ती माता की उत्पत्ति के बारे मे कहाँ जाता है की आदिकाल भगवान सूर्यनारायण के अत्यधिक तेज सारी सृष्टि के जीव ब्रम्हाजी मे विलीन होने लगे । इस संकट से बचने के लिए देवी देवताओ ने भगवान हिरण्यगर्भ सूर्यनारायण की आराधना की तब सूर्यनारायण देव वहां प्रकट हुए और उन्होने अपनी पुत्री का ध्यान किया । सूर्यपुत्री ताप्ती उनके ताप से उत्पन्न होकर सारी दिशाओ एवं आकाश को आलोकिक करते हुए पिता का संताप दूर करते हुए भूलोक पर प्रकट हुई ।

आईए साथियो हम पावन नदी माँ ताप्ती की लोक संस्कृति
से आपको रूबरू कराते है ...

 माँ ताप्ती मे  इस  मुलताई और बैतूल के भक्तों ने वर्ष 2006 मे  ताप्ती दर्शन यात्रा का शुभारंभ किया । ताप्ती दर्शन यात्रा का उद्देश्य जल संरक्षण व जल संवर्धन हेतू लोगों को प्रेरित करना था ।
मां ताप्ती के धार्मिक, पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व अत्यधिक होने से कारण धीरे धीरे यह यात्रा धार्मिक हो गयी ।
 समिति का निर्माण कर 15 जनवरी 2007 से
 विधिवत रूप से इस यात्रा को धार्मिक स्वरूप दिया गया ।
इस दर्शन यात्रा मे भक्तगण अपनी स्वेच्छानुसार सम्मिलित होते है , भक्तगण एक दिन से लेकर अपनी स्वेच्छा अनुसार दर्शन यात्रा मे भाग लेंते है ।
मां ताप्ती दर्शन पदयात्रा पहले जहां बैतूल जिले की सीमा तक ही सीमित थी लेकिन अब इस यात्रा का स्वरूप विस्तृत होता का रहा है ,
अब ताप्ती दर्शन पदयात्रा गुजरात के ताप्ती संगम स्थल डूमस तक जाने लगी है।
माँ ताप्ती दर्शन पदयात्रा का नगर प्रवेश के दौरान नगरवासियो द्वारा उत्साह के साथ  जगह - जगह भव्य स्वागत किया जाता है ।  शाम को यात्रा का पड़ाव होता है , जहाँ माँ ताप्ती पर श्रध्दा आस्था रखने वाले ग्रामीणो द्वारा भोजन प्रसादी और रूकने की व्यवस्था की जाती है ।
माँ ताप्ती की दर्शन पदयात्रा मे मुख्य रूप से विशेष सहयोग श्री दादा जी धूनीवाले संस्थान नीमगव्हाण , माँ ताप्ती मन्दिर मांझी सुरत समिति से जुड़े भक्तों का मिलते रहा है ।

माँ ताप्ती दर्शन पदयात्रा को धार्मिक स्वरूप प्रदान करने मे ताप्ती भक्त राजू पाटनकर जी की अहम भूमिका रही है वही जनश्रुति के अनुसार यात्रा मे मुख्य सहयोगियो के नामो मे अरूणसिंह किलेदार जी का नाम सदैव आगे आता रहा है ।












































































विशेष सहयोग : ताप्ती भक्त राजू पाटनकर
संकलनकर्ता : महाकाल भक्त रविन्द्र
धर्म प्रचार प्रसार मंच प्रस्तुति