सामग्री : अगरबत्ती , दुर्गा सप्तशती माहात्म्य , माता की चुनरी , नारियल , फूल माला , पांच प्रकार के फल , गंगाजल , घी , माता सिंगार , शहद , कपूर , लाल धागा , कलावा, मौली , दुध दही , पान के पत्ते , चावल , रोली, चंदन , सुपारी , चीनी , दुध दही , हवन सामग्री , हवनकुण्ड , लाल कपड़ा , लकड़ी का पाटा , नवदुर्गा यंत्र , माता की फोटो ,।
विधि : पूजन के लिए स्नान करने के बाद शुद्ध होकर अपने ललाट पर भस्म , रोली या चंदन लगा लें , पूर्व या उत्तर दिशा में मुँह करके बैठ जाये ।
अब अपनी शुद्धि के आचमन करें , हाथ में जल लिए हुए आप इन मंत्रो के साथ ध्यान करें
ॐ केशवाय नम:
ॐ नारायणाय नम:,
ॐ माधवाय नम:
फिर यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें | ॐ हृषीकेशाय नम: |
आचमन करने से आप शुद्ध हो जाएंगे अब सामग्री अपने पास रख लें , बाए हाथ से जल लेकर दाएं हाथ से उसे ढक लें । मंत्रोच्चारण के साथ जल कों सिर , शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क दे या पुष्प से अपने ऊपर जल छिड़क लें ।
कलश स्थापना
पूजा पीठ पर कलश रखा जाता है । तांबे के लोटे के कण्ठ मे कलावा बांधे , शुद्ध जल भरे और आम के पत्ते लगाकर उसके ऊपर दीपक स्थापित करें ।
जल शीतलता शांति ,एवं दीपक जैसै तेजस्वी पुरुषार्थ की क्षमता हम सबमे ओत प्रोत हो । यह दीपयुक्त कलश का सन्देश है । दीप को यज्ञ और कलश को गायत्री का प्रतीत माना जाता है ।
संकल्प धारण
संकल्प लेनें के लिए पुष्प अक्षत और जल लेकर संकल्प लें ।
ओम विष्णु विष्णु विष्णु ..मैं ....पिता ....जहाँ रहते है उस क्षेत्र का नाम बोले , तिथि का नाम बोले , माह का नाम बोले , वार का नाम बोले , गौत्र का नाम बोले , जिस कामना के लिए कर रहे है उस कामना को बोले ।
विनियोग :
ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि-वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे (यदि श्रीदुर्गा का पाठ कर रहे हो तो आगे लिखा हुआ भी उच्चारित करें) श्री दुर्गासप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि | गायत्र्युष्णिगनुष्टुपछन्देभ्यो नमःमुखे | महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि |
ऐं बीजाय नमः गुह्ये | (जांघ कों छुए )
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | (पैरो कों छुए )
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ | (नाभि कों छुए )
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो गुह्ये ||
करन्यास |
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |
दिङ्ग-न्यास :
ॐ ऐं प्राच्यै नमः,ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः, ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः, ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः, ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लीं वायव्यै नमः, ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः, ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।
हवन
इस मंत्र का दशांक हवन करना होता है जैसै 11 माला जाप किया है तो 1188 बार हवन आहुतियाँ , 118 बार तर्पण , 11बार मार्जन करना पड़ता है ।
तर्पण : तर्पण के लिए एक बढ़े कटोरे में जल लेकर उसने कुछ बूंद गंगाजल की डाल दे और दुध शहद कपूर पुष्प डाल दे , दाहिने हाथ में कटोरे का जल लेकर या पुष्प डुबोकर निम्न मंत्र बोलकर कटोरे में उंगलिया डालें
मंत्र - ऐं ह्रीं क्लीं तर्पयामि नमः
मार्जन - तर्पण का दशांक मार्जन होता है जिसमे उस तर्पण वाले कटोरे के जल की बूंद अपने दाहिने हाथ की उंगलियों से लेकर मंत्र बोले
ऐं ह्रीं क्लीं मार्जयामि नमः और जल अपने माथे पर आंखो के बीच लगा लें ।
फिर हवनकुण्ड के चारो ओर से जल लेकर तीन बार घुमाकर जमीन पर छोडे ।
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