'गुफा में बैठी है मां.......................!
कहानी :- रामकिशोर पंवार '' रोंढावाला ''
शाम होने को थी उसे आज घर जल्दी जाना था। घर से आते समय उसकी मां ने उसे बार - बार चेताया था कि ''बेटा चैत मास के नवरात्रे चल रहे है, इसलिए काम पर से जल्दी घर आ जाना ....! '' पिछले कई सालो से उसकी असमय बुढ़ी हो चुकी मां घर में माता रानी के नाम की जोत जलाती चली आ रही थी। श्यामा घर - परिवार में सबसे बड़ा था इसलिए नाते उसे ही माता रानी की संध्या आरती उतारनी पड़ती थी। पिछले कई वर्षो से अपने पिता के निधन के बाद से श्यामा ही गांव के दुधारू जानवरो को पास के जंगलो में चराने ले जाने का काम करता था। जब उसके पिता जिदंा थे तब उसने गांव के स्कूल में ही चार क्लास पढ़ ली थी जिसके चलते श्यामा थोड़ा बहुॅत पढऩा - लिखना जानने लगा था। एक दिन जगंल जालवर चराने गया श्यामा का पिता गोकूल जानवरो की आपसी लड़ाई में घिर गया और उन्हे बचाने के चक्कर में वही जानवरो के पैरो तले ऐसा कुचला की फिर दुबारा उठ नहीं सका। उस समय भी नवरात्र चल रहे थे इसलिए श्यामा की मां कलावति उस घटना को आज तक नहीं भूल सकी है। श्यामा के अकसर देर से आने के कारण पूरा घर संध्या आरती के बिना दिन भर का उपवास छोड़ भी नहीं पाता था। श्यामा के परिवार में उसकी मां और दो बहने कमला , विमला थी जो गांव में ही मां के संग हाथ मजदूरी पर काम करने जाया करती थी। आज श्यामा ने दिन ढलने से पहले ही अपने सभी जानवरो को उस पहाड़ी से नीचे गांव की ओर उतारना शुरू कर दिया था। अचानक उसका ध्यान रामदीन काका की गौरी गाय की ओर गया लेकिन उसे गाय भैस के झुण्ड में उसे चितकबरी गौरी गाय नही दिखी तो वह घबरा गया। उसने आसपास सब दूर गौरी को खोजा लेकिन उसे जब नहीं मिली तो उसके हाथ पांव फूलने लगे। कुछ दिन ही गौरी ने एक छोटा सी बछिया को जन्म दिया था। उसे गौरी की उस बछिया की चिंता हो रही थी। श्यामा पास के ही घोघरा गांव का चरवाहा था जो गायकी समाज से आता था। पिछले दस साल से वह अपने गांव सम्पन्न लोगो एवं किसानो के दो दर्जन से अधिक दुधारू जानवरो को साल भर की ठेका मजदूरी पर चराने का काम करता था। श्यामा की मां कलावति ने पति के चले जाने के बाद हाथ मजदूरी करके पाल पोश कर बड़ा किया। जब श्यामा दस साल का हुआ वह तभी से गांव के जानवरो को चराने के लिए पास के जंगलो में चला जाता था। सुबह उठते ही श्यामा गांव के हर घर से जानवरो को लेकर जाता और शाम को सबको उनके घर पहुंचाने के बाद अपने घर आता था। आज मंगलवार का दिन था उसे सुबह ही मां ने बोल रखा था कि आज उसे जल्दी आना है लेकिन गौरी के अचानक गायब हो जाने से श्यामा का हाल - बेहाल हो चुका था। उसके जानवर पहाड़ी से नीचे उतर कर गांव की ओर निकल पड़े थे लेकिन श्यामा गौरी के लिए पहाड़ी की ओर फिर से चढऩे लगा। शाम के ढलते ही अंधेरा छाने लगा था लेकिन वह गौरी को ढुढऩे के लिए निकल पड़ा था। उसने पत्ते और अपने फटे कबंल के कपड़े को लपेट कर मशाल बना कर उसे जला रखा था। वह पहाड़ी रास्तो का जानकार तो था लेकिन आज उसे लगने लगा कि वह रास्ता भूल गया है .......! इधर गांव पहुंचे जानवर अपने - अपने मालिको के घर पहुंच चुके थे। श्यामा की मां कलावति को जब श्यामा के गांव तक न आने की $खबर मिली तो वह घबरा गई। उसने अपने पड़ौस के दयाल को आवाज लगाई। काकी की आवाज सुन कर पड़ौसी दयाल सरपट दौड़ा चला आया। श्यामा का बालसखा दयाल उसकी ही तरह जानवरो को चराने का काम करता था लेकिन उसने वह काम बंद करके गांव में साल भर की ठेके पर नौकरी कर ली थी। वह गांव पटेल के खेतो की देखभाल करने के साथ - साथ उसके खेतो को जोतने एवं बखेरने का भी काम करता था। जब कलावति ने दयाल को श्यामा के घर न आने की बात बताई तो दयाल भी भौचक्का रह गया। उसने अपने दोस्तो को जमा किया और वह भी उस पहाड़ी की ओर निकल पड़ा। घोघरा गांव के आठ दस लड़को के संग हाथ में मशाल ,लालटेन, कुल्हाड़ी और भाला लेकर निकल पड़े दयाल को बार - बार चिंता सता रही थी कि कहीं श्यामा के संग कोई हादसा न हो गया हो वरणा काकी का क्या होगा....... ! बेचारी काकी श्यामा के बापू को खोने के बाद से जैसे - तैसे ही स्वंय को संभाल पाई है। ऐसे में एक और हादसे से वह तो टूट कर बिखर जाएगी ......! गांव से देर रात को पहाड़ी की ओर जाने से गांव वालो ने मना किया लेकिन कलावति काकी की आंखो के आंसुओं के थमने का नाम नहीं ले रहे थे। कलावति की हालत देख कर दयाल ने गांव वालो के मना करने के बाद भी जगंल की उस पहाड़ी की ओर जाने का मन बना लिया और वह अपने साथियों के संग निकल पड़ा। गांव के आसपास की पहाडिय़ों में जंगली हिसंक जानवरो को खास कर रीछ से बचने के लिए उसने भी गांव से एक मशाल जला कर उसे अपने पास रख लिया था। होली के जलते ही चैत माह की गर्मी दिन में अपनी मौजूदगी का अहसास करा देती थी लेकिन शाम होते ही हल्की - हल्की ठंड से गर्मी की बैचेनी कम हो जाती थी। बंसत के बाद पतझड़ शुरू हो जाता था। अब जंगलो के पेड़ो से पत्ते गिरने लग जाते है। ऐसे में पहाड़ी पर आग की एक लपट भी पूरे जंगल में आग लगा सकती थी। दयाल के संग आये कुछ नवयुवको के पास थाली और उसे बजाने के लिए बांस की पतली लकड़ी भी साथ ले आये थे। सुनसान जंगल में थाली के शोर से अकसर हिसंक जानवर करीब आने का साहस नहीं कर पाते है। दो घंटे की कठीन पहाड़ी चढऩे के बाद दयाल को दूर कहीं किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। सभी लोग उसी दिशा की ओर निकल पड़े। दिन में सैकड़ो बार इस पहाड़ी पर जानवर चराने आने वाले चरवाहो में दयाल भी था इसलिए उसे जंगल जाना - पहचाना सा लगता था। पता नहीं क्यूं दयाल को भी लगने लगा कि वे लोग रास्ता भटक गये है। कुछ पल एक पेड़ के नीचे रूकने के बाद दयाल ने अपने सभी साथियों को कहा कि ''यार लगता है हम भूलन बेल के चक्कर में फंस गये है , इसलिए सभी लोग पेशाब कर ले हो सकता कि ऐसा करने से पेशाब के छीटें से भूलन बेल का प्रभाव कम हो जाए........ ! ÓÓ कुछ देर बाद हुआ भी कुछ ऐसा ही। अब उन्हे लगने लगा कि वे पास की एक गुफा के करीब आ गये है। वैसे तो सालबर्डी से लेकर कुकरू मेलघाट और चिकलधरा तक फैली इस लम्बी चौड़ी पहाड़ी की श्रखंला में दर्जनो गुफायें है लेकिन अकसर गुफाओं में जंगली हिसंक जानवरो के होने की वजह से गुफाओं के करीब जाने से सभी आसपास के गांव के चरवाहे डरते थे। रहस्यो से भरी काफी लम्बी चौड़ी प्रकाश विहीन गुफाओं में शेर चीते के छुपे होने की वजह से आसपास के गांव के चरवाहे अपने दुधारू जानवरो को भी उस ओर नहीं जाने देते थे। दयाल को पता नहीं क्या सुझा उसने अपने साथियो से कहा कि ''वे सभी गुफा के ऊपर चढ़ कर थाल बजाना शुरू कर दे। यदि गुफा में कोई जंगली जानवर छुपा होगा तो बाहर आ जाएगा ....! ÓÓ काफी देर तक थाल बजाने के बाद जब कोई हरकत नहीं हुई तो वे पहाड़ी के रास्ते नीचे उतर कर दुसरी पहाड़ी की ओर चढऩे लगे। एक बार फिर उन्हे किसी के कदमो की आहट सुनाई दी। इस बार वे सब लोग एक जगह जमा हो गये और जिस ओर से आवाज आ रही थी उस ओर देखने लगे। दो दिन पहले ही भूतिया अमावस्या थी। अमावस्या होने की वजह से रात काली स्याह थी लेकिन आसमान में तारो को साफ देखा जा सकता था। चांदनी रात में तारो की गणना करके ही गांव वाले रात्री के समय की जानकारी प्राप्त कर लेते थे। काली स्याह रात को चारो ओर पसरा सन्नाटा रह - रह कर डराने का काम करता था। दयाल को ऐसा लगा कि कोई महिला सामने की ओर चली जा रही है। सुनसान जंगल में किसी महिला के दिखाई पडऩे से कुछ लोग तो उसे चुड़ैल समझ कर डर के मारे थर - थर कांपने लगे लेकिन दयाल को हनुमान चालिसा याद थी उसने हिम्मत नहीं हारी और वह हनुमान चालिसा पढ़ कर उस महिला के पीछे पीछे निकल पड़ा। अचानक वह महिला पलटी और दयाल की ओर आने लगी तो उसके संगी साथी डर के मारे भागने लगे लेकिन दयाल ने सभी को रोकना चाहा पर किसी ने उसकी नहीं सुनी। कुल देर बाद जब वह महिला आधा फलांग की दूरी से करीब नहीं आई तो फिर दयाल जैसे ही उस महिला के करीब पहुंचने की कोशिस करता वह महिला उससे दूर होती चली जाती। अमावस्या के जाने के बाद काली रात में खुले आसमान में तारे चमकने लगे थे। दयाल ने आसमान में तारो की ओर देख कर अंदाज लगा लिया कि आधी से ज्यादा रात बीत चुकी है। तीर खंडी और बुढिय़ा की खटोली को देख कर दयाल समझ चुका था कि रात का तीसरा पहर चल रहा है। मशाल की रोशनी में जंगल में अंधकार उतना असर नहीं दिखा पा रहा था। काफी देर बाद वह एक गुफा के करीब पहुंचा। गुफा का द्वारा तो उसे दिखाई दिया लेकिन वह जिस महिला का पीछा कर रहा था उसे वही दिखाई नहीं दी। लगता है वह उस गुफा के अंदर जा चुकी थी। दयाल के पांव मे सूजन ने उसे बुरी तरह से थका डाला था। उसने आसपास की लकडिय़ों को जमा कर उसका गोल घेरा बना कर उसे जला रखा था। गोल घेरे में चारो ओर लकडिय़ा धू - धू कर चलने लगी। दयाल ने नींद से बचने के लिए आग अलाव तेज कर लिया और जान बुझ कर आग के करीब बैठ गया ताकि आग के उसे चटके लगते रहे लेकिन वह कब तक नींद को भगा सकता था आखिर थकावट ने भी उसे तोड़ - मरोड़ रखा था। उसे कब नींद आ गई उसे पता भी नही चला लेकिन सुबह जब उसकी नींद खुली तो वह आसपास का माहौल देख कर दंग रह गया। उसके आसपास न तो उसकी जली मशाल थी और न जंगल में कहीं लकड़ी के जलने के निशान थे। उसे अच्छी तरह से याद है कि रात को उसने अपने चारो ओर आग का घेरा बना रखा था लेकिन आग को घेरा तो दूर उसे कहीं पर भी पत्तो तक के जलने के निशान दिखाई नहीं पड़ रहे थे। चिडिय़ों की चहकार से दयाल की नींद खुली तो उसने सामने एक अनजान महिला को पाया। वह महिला लगता काफी देर से उसके सिर को सहला रही थी। अचानक हड़बड़ा कर उठ बैठा दयाल कुछ पुछ पाता उसके पहले ही वह महिला बोली बेटा इतनी रात को अकेले जंगल में क्या करने आये थे........? दयाल ने जब स्वंय को अकेला पाया तो वह घबरा गया। उसके मन में तरह - तरह के सवालो का ऐसा तुफान उमड़ रहा था कि वह उनके उत्तर जानने के लिए बैचेन हो उठा। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उस अनजान महिला से कुछ भी बोल पाता उसके पहले ही वह महिला बोली आओं मेरे संग चलो गुफा के अंदर .......? मैं तुम्हारे हर सवालो का जवाब दूंगी.................. उस महिला में ऐसा सम्मोहन था कि दयाल बरबस उसके पीछे - पीछे गुफा के अंदर चल पड़ा। प्रकाश विहीन उस गुफा में दूर से रोशनी की किरणे दिखाई दे रही थी। काफी देर तक सर को झुकाये वह अनजान महिला के संग अनजान राह पर निकल पडे दयाल को कुछ देर बाद खुला मैदान मिला। पास में ही झरने बह रहे थे तथा दो तीन झोपड़ी बनी हुई थी। एक पेड़ के नीचे दयाल बैठ गया। कुछ देर बाद वह महिला अपनी झोपड़ी से एक थाल में कुछ ताजे फल लेकर आई और उसे देते हुये बोली ''ले बेटा कुछ खा ले इनको खाने के बाद तेरे शरीर में कुछ ताकत आ जाएगी...! ÓÓ दयाल उस महिला के बारे में कुछ जानना चाह रहा था कि वह महिला स्वंय ही बोल पड़ी। ''बेटा सब लोग मुझे राधे मां के नाम से पुकारते है। मैं इसी झोपड़ी में रहती हूं लेकिन तू इतनी दूर कैसे चले आया....... ! दयाल ने जब उसे अपने आने का कारण बताया तो वह कहने लगी कि ''वह जिसे खोजने यहां जंगल में आया था वह तो रात को ही उसके साथियों के साथ गांव की ओर जा चुका है.......! ÓÓ दयाल को उस महिला की बात पर भरोसा नहीं हुआ क्योकि उसे पता था कि रात्री के तीसरे पहर तक उसके साथी उसके साथ थे। उस महिला के माथे से लेकर पांव तक चमक थी। दयाल ने एक बार फिर हनुमान चालिसा मन ही मन पढ़ी और फिर कुछ फलो को उठाया और उसे खाने लगा लेकिन वह बार - बार उस महिला की ओर ही देख रहा था। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि श्यामा गांव पहुंच गया और वह अकेला जंगल में अकेला कैसे रह गया..... ! उसके साथी उस महिला को चुड़ैल समझ कर भाग जरूर गये थे लेकिन उसे पूरा यकीन था कि गांव के उसके संगी साथी उसे किसी कीमत पर अकेला छोड़ कर नही जा सकते। उसके संग गांव से आये संगी - साथी सभी उसे अकेला छोड़ कर क्यूं चले गये। इस बात को लेकर दयाल के दिल दिमाग में उठ रहे हजारो सवालो का उसके पास कोई उत्तर नहीं था। उस महिला ने जब स्वंय के बारे में बताया तो वह सुन कर दंग रह गया। मंगला जिसे गांव के लोग राधे मां के नाम से जानते है वह महाराष्ट्र के अमरावति जिले के परतवाड़ा के पास के एक निरजगांव की रहने वाली है। उसे उसके गुरू जी ने सपने में दिखाई दी अम्बा मांई को इस पहाड़ी की किसी गुफा में खोजने की जवाबदारी सौपी थी। उसे ही अम्बा मांई को खोज कर उसकी कीर्ति जग - जग तक पहुंचाना था। राधे मां उसे जिस स्थान पर मिली उसके ठीक सामने महाराष्ट्र के गांव दिखाई पड़ते है। यह पहाड़ी सालबडऱ्ी से लेकर धारूल गांव पास से होती हुई चिकलधरा तक जाती है। इस पहाड़ी की लम्बी कतार को काशी तालाब भैसदेही से निकल कर बहने वाली पूर्णा मांई की कलकल बहती तेज धारा ही दो भागो में काटती है। पूर्णा इस क्षेत्र की सबसे पवित्र नदियों में से एक है जो पूरी पहाडियों को एक दो नही सात बार काटती हुई भुसावल की ओर बहती चली जा रही है। बैतूल जिले का महाराष्ट्र की सीमा से लगा धारूल गांव आठनेर जनपद के अन्तगर्त आता है। उसके गांव घोघरा से लगभग दस से बारह कोस की दूरी पर धारूल गांव बसा हुआ है। पूरा क्षेत्र ही घने सागौन और शीशम के जंगलो एवं ऊंची - नीची पहाडिय़ों श्रंखला से जुड़ा हुआ है। यहां पर यूं तो दर्जनो आदि मानव की गुफायें है जिसकी जानकारी वह अकसर अपने गांव के बड़े - बुर्जगो से सुनता चला आ रहा था। निरजगांव की राधे मां के अनुसार उसे बीते दस साल बाद वह जगह मिली जहां पर अम्बा मांई की चुनरी मिली। उसी स्थान पर स्वंयभू प्रगट हुई अम्बा मांई की खोज पूरी हो जाने के बाद वह यही पर बस गई। कुछ देर आराम करने के बाद स्वंय राधे मां उसे अब उस मैदान से लेकर गुफा वाले रास्ते से लेकर अंदर ही अंदर चल पड़ी। काफी दूर चलने के बाद उसे गुफा के अंदर नागा बाबाओं की टोली दिखाई दी। काफी लम्बा चौड़ा बगीचा और झरनो दिखाई दिया। दयाल की राधे मां के संग धारूल की माँ अम्बा देवी के दर्शन के लिये उस गुप्त गुफा की यात्रा शुरू हुई। गुफा के रास्ते मे काले विषधर साँपो के ढेर लगा हुआ था जिसे राधे मां अपने हाथो से उन्हे हटाती और आगे बढती जा रही थी। उसके पीछे - पीछे चल रहा दयाल कुछ दूर आगे चलने बाद एक तालाब के करीब पहुंचा। पहाड़ी पर बना तालाब करीब 200 मीटर लम्बा - चौडा था। तालाब के पास ही लगभग 6 फि ट ऊँची भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनी हुई थी। इस मूर्ति के ठीक सामने गणेश जी की मूर्ति विराजमान थी। उन सभी मूर्तियों से सूर्य के तेज प्रकाश निकल कर चारो ओर फैला हुआ था। तेज प्रकाश एवं चकाचौंध रोशनी की वजह से दयाल बुरी तरह से डर गया था लेकिन राधे मां ने उसे धैर्य दिलाया। तालाब के पास से आगे की ओर बढने पर उसे माँ काली की 6 फीट ऊंची मूर्ति दिखाई दी। आस पास कई प्रकार के बगीचो में खटट्े मीठे फल लगे हुये थे। कुछ दूरी पर लगभग 7 - 8 साधुओ बाबा समाधी लगा कर वर्षो से तपस्या मे लीन है। कुछ समय बाद उसे गुफा के अंदर एक चुनर एवं स्वंयभू पगट हुई माँ अम्बाँदेवी के दर्शन हुए। माँ राधा को अम्बाँ ने कहा कि ''तुम अपने गुरु को यहाँ बुलाओ वो तुम्हे सम्पूर्ण रहस्य अवगत करायेंगे और इस दरबार के प्रसार हेतू वे तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे। ÓÓ उस गुप्त गुफा रास्ता बहुत छोटा है ओर रास्ते मे कई प्रकार के जानवर भी रहते थे। इस क्षेत्र की पहाडिय़ों में से अधिकांश गुफाओ का सीधा सबंध द्वापर युग के पाण्डव पुत्रो के एक वर्ष के अज्ञातवाश से जुड़ा हुआ है। यहां की गुफाओं में सालबर्डी एवं बरिहम में देवाधिदेव महादेव भी भस्मासुर के डर से छुपे हुये थे। यहाँ से कई गुफाये सीधी पचमढ़ी बड़ा महादेव तक जाती है। कुछ दिनो के बाद माँ राधा के गुरू बाबा सुरदास को लेने उनके गाँव इलचगाँव जो परतवाडा के पास लेने गये और उन्ह पूरे रहस्य से अवगत कराया और लेकर अम्बा देवी धारूल आ गये। बाबा सुरदास ने माँ राधा को बताया था कि जिस स्थान की तुम्हारे द्वारा खोज हुई है वह एक दिन ऐसा जागृत स्थान होगा कि यहां पर अम्बा मांई के दरबार मे भक्तो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जायेंगी। दयाल राधे मां से उनके गुरू द्वारा बताई गई बातों को सुनने में इतना मगन हो गया कि उसे पता भी नहीं चला कि गुफा के अंदर वक्त उसका पांव किस वस्तु पर रखने के चलते फिसल गया और वह धड़ाम से ऐसा गिरा की सुध बुध खो गया। होश आया तो उसने स्वंय को धारूल की अम्बा मांई की गुफा की ओर जाने वाली पहली सीढ़ी के समक्ष एक मंदिर में एक मूर्ति के सामने पाया। उसे चारो ओर लोग घेरा डाले खड़े थे। दयाल ने सबसे पहले अपने आप को देखा क्योकि उसे डरा था कि कहीं गिरने से उसे कोई चोट तो नहीं पहुंची लेकिन उसने जैसे ही अपने शरीर की ओर देखा तो वह दंग रह गया। होश आने के बाद जब उसने मंदिर में एक पत्थर की मूर्ति को देखा तो वह एक बार फिर चक्कर खाकर गिर गया। सीताराम पुजारी बाबा ने उसे किसी तरह पानी के छींटे मार कर होश में लाया। दयाल ने सबसे पहले स्वंय की ओर देखा तो वह अपने शरीर में आये परिवर्तन से भौचक्का रह गया। अपने गांव घोघरा से उस रात श्यामा को खोजने के लिए निकला था तब वह बीस साल का युवक था लेकिन इस समय वह पचास साल का लग रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसका शरीर कैसे बदल गया। उसे अच्छी तरह से याद है कि उसने गुफा के अंदर अम्बा मांई की हाथ जोड़ कर पूजा करने के बाद ही वह राधे मां के संग - संग गुफा से बाहर आ रहा था कि अचानक उसका पांव फिसल गया और वह धड़ाम से गिर गया था। उसके बाद क्या हुआ उसे पता नहीं। चैतमास की नवरात्र होने की वजह से मंदिर में पांव रखने की जगह तक नहीं बची थी। मंदिर के पुजारी सीतराम बाबा ने दयाल से उसके बारे में पुछा तो वह कुछ बताने से पहले उसने ही पुजारी से सवाल किया कि ''यह महिला पत्थर की कैसे हो गई.......! ÓÓ पुजारी उसकी बात को समझ नही सका। उसने दयाल से पुछा कि ''वह किस महिला की बात कर रहा है...? ! ÓÓ दयाल ने पत्थर की मूर्ति की ओर इशारा किया। सीताराम पुजारी बताने लगा कि राधे मां को देह त्यागे तो तीस साल से अधिक समय बीत चुका है........! ÓÓ लेकिन दयाल सीताराम पुजारी की बातो को मानने को तैयार नहीं हुआ क्योकि अभी कुछ देर पहले ही तो वह राधे मां के संग था। राधे मां ने ही उसे अम्बा मांई के दर्शन करवाये। पुजारी सीतराम दयाल की बात सुनने के बाद काफी देर तक खामोश रहा और फिर उसने दयाल को बताया कि बेटा तुमने राधे मां के संग कुछ पल नही पूरे तीस साल बीताये है। आज फिर नवरात्र का दुसरा दिन होने की वजह से अम्बा मांई के दर्शन करने आये आसपास के गांवो के अलावा दूर दराज के सैकड़ो लोग दयाल की बातों को सुनने के बाद उसके ही पैरो पर गिरने लगे। लोगो ने उसके ही पांव को पूजना शुरू कर दिया तो दयाल को काफी अजूबा लगा लेकिन दयाल और पुजारी के बार - बार मना करने के बाद भी बेकाबु भीड़ मानने को तैयार नहीं थी। राधे मां की शरण में बीस साल गुजारने वाले दयाल के किस्से कहानिंया उसके गांव घोघरा तक पहुंची तो गांव से लोगो को जन सैलाब उमड़ पड़ा। गांव से आई उस भीड़ में श्यामा और उसकी मां कलवाती भी थी। दयाल ने जब श्यामा और कलावति को कहानी के शुरूआत की बाते बताई तो सभी दंातो तले ऊंगलियां दबा बैठे क्योकि गांव का कोई भी आदमी उसकी कहीं बातो को सच मानने को तैयार नही था। गांव वालो ने दयाल की बताई पूरी कहानी ही झुठला दी। गांव के लोगो का तो यहां तक मानना था कि गांव का श्यामा गायकी का काम करता ही नहीं था। उसने कभी गांव के जानवरो को चराने के लिए गांव के पास के जंगलो की पहाड़ी पर ही प्रश्र चिन्ह लगा डाला। गांव वालो का कहना था कि घोघरा घाट के पास कोई पहाड़ी या जंगल नहीं है। घोघरा घाट से अम्बा मांई का रास्ता एक दो किमी नही बल्कि पूरे चालिस किमी दूर हीरादेही से मानी धारूल से अम्बा मांई देव स्थान तक जाता है। गांव के लोगो को बेहद आश्चर्य दयाल की बातो पर हुआ क्योकि घटनाक्रम की शुरूआत में जिस गायकी का जिक्र हुआ वह श्यामा नहीं बल्कि स्वंय दयाल था तथा उसके गायब हो जाने के बाद उसके परिवार के लोगो ने उसे मरा मान कर उसके अंतिम संस्कार उपरांत के सारे कार्यक्रम कर डाले। दयाल को गांव वालो ने जब अपने बीच देखा तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि एक मां से बिछड़ा बेटा दुसरी मां के पास एक दो महीने नही बल्कि पूरे बीस साल तक रहा। आज भी धारूल में राधे मां की मूर्ति है उसके द्वारा बताये गये स्थान पर अम्बा मांई भी है लेकिन घोघरा गांव में अब दयाल नाम का कोई व्यक्ति नहीं है जो उस कहानी का पात्र स्वंय को प्रमाणित कर सके। जब भी लोग अम्बा मांई एवं राधे मां के किस्से कहानियां सुनाते है बार - बार गुफाओं के अंदर बाग - बगीचे और झरनो की बाते जरूर करते है। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आठनेर तहसील की ग्राम पंचायत धारूल का यह जागृत धार्मिक स्थान आज भी किस्सो कहानियों से जुड़ा हुआ है। यहां पर सबसे अधिक पड़ौसी सीमावर्ती महाराष्ट्र के अमरावति ,वरूड़ , परतवाड़ा क्षेत्र के ग्रामिण श्रद्धालु भक्त आते रहते है। आदि मानव की इन गुफाओं में कुछ में श्ेार ,चीते , भालू, पेड़ पौधो तथा फूलो की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती है। नागपुर का पुरात्तव विभाग की टीम पूरे क्षेत्र में पिछले तीन साल से कैम्प लगा कर इन गुफाओं के रहस्यों की खोज में लगी है लेकिन दयाल के द्वारा गुफाओं के भीतर बाग - बगीचे तथा नागा साधु बाबाओं एवं तपस्वी संतो तक कोई पहुंच नहीं सका है। दयाल के द्वारा बताई गई कहानी लोगो को सुनने के बाद रहस्य एवं रोमांच पैदा करती है लेकिन गुफाओं का रहस्य राधे मां के चमत्कार तथा धारूल की अम्बा मांई की कीर्ति आज भी लोगो की आस्था का केन्द्र बनी हुई है। कहानी के मुख्य पात्र दयाल को खोजते - खोजते जब मैं गांव घोघरा घाट तक पहुंचा तो गांव वाले उस घटना को भूलने का प्रयास कर रहे है क्योकि उनकी आंखो के सामने एक ऐसा सच सामने आया कि गांव ही नही पूरे क्षेत्र के लोगो को कहना पड़ा कि चमत्कार को नमस्कार कीजिए एक बार जरूर अम्बा मांई एवं राधे मां के दरबार तक दौड़े चले आये.....................आसपास के लोग जिस राधे मां को जानते एवं पहचानते है कि उसके बारे मे गावं के लोगो का कहना था कि माँ राधे मां ही मंगला कहलाती है जिसका समाधि स्थल भी मंदिर के पास स्थित है। राधे मां माँ अम्बा मांई की परम भक्त थी। माँ मंगला को उनके भक्त राधे माँ कहकर भी पुकारते है। माँ मंगला परतवाडा के पास स्थित निरजगाँव की रहने वाली थी। माँ मंगला के गुरू सुरदास महाराज परतवाडा मे रहते थे। राधे मां ने 14 वर्ष तक अन्य जल गृहण नही किया। वह जंगलो के फल फूल और पत्तियो से ही अपना पेट भर लेती थी। मां राधे के के भक्त उन्हे राधे मां और उनके गुरू मंगला कहकर पुकारते थे। राधे मां ने अपने भक्तो के बार बार आग्रह करने पर 1978 मे 35 भक्तो को साथ लेकर भारत के प्रमुख तीर्थो के दर्शन कराये। राम जन्मभूमि अयोध्या, गंगासागर, रामेश्वर, हरिद्वार गई। राधे मां के पास धन दौलत तो कुछ थी। उसके पास जो कुछ था तो अम्बा मांई की भक्ति एवं उसके प्रति सच्ची लगन ही थी। इसलिए गांव वाले कहते है कि राधे मां जो चाहती थ्री वही होता था। माँ राधा के भक्तो की लाख कोशिशे करके बाद भी उनकी तस्वीर नहीं निकल सकी। वर्ष 1984 मे राधे मां के देह त्यागने के बाद ही राधे मां की तस्वीर निकल पाई। घोघरा घाट का दयाल अब बुढ़ा हो चुका है। कलावति काकी भी स्वर्ग सिधार चुकी है। श्यामा की दोनो बहनो की शादी - विवाह हो चुके है। श्यामा अकसर अपने बेटो को अपने दोस्त दयाल के किस्से कहानियों को सुना कर सुलाता है। गांव में पुछने पर श्यामा के बारे में तो हर कोई बता देता है लेकिन कहानी का मुख्यपात्र दयाल आज भी रहस्य बना हुआ है। आज भी गांव के आसपास की पहाडिय़ों में वे गुफायें है जहां पर आदि मानव की मौजूदगी के प्रमाण मिलते है। देवी स्थान धारूल की अम्बा माई कें
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